नील सरस्वती मंत्र साधना

नील सरस्वती मंत्र साधना- यह मंत्र बहुत अधिक प्रभावशाली है इससे सिद्ध कर देने वाले व्यक्ति वाक्शक्ति में बहुत प्रबल हो जाता है वह कभी असफल या निरुत्साहित नहीं हो सकता वह अपने शब्द मात्र से किसी को भी संम्मोहित कर सकता है और वाक् युद्ध में कभी हार नहीं सकता
नील सरस्वती के दो स्वरूप की उपासना होती है . सौम्य स्वरूप - वाकसिद्धि , धनधान्य , शत्रु कलह शमन केलिए और  उग्र स्वरूप -तारा तंत्र की अनेक सिद्धियां  प्राप्त करने के लिए . यहां सौम्य स्वरूप की उपासना का एक विधान दे रहे है . 
इन सौम्य स्वरूप की उपासना से अचूक फल मिलता है . शत्रु और  कलह का शमन हो जाता है और वाक सिद्धि प्राप्त होती है जो समाज, व्यापार, राजनीति, शिक्षण, प्रवचन आदि क्षेत्र में सफलता दिलाती है . 
 अगर कोई ज्योतिष नील सरस्वती की साधना कर ले, तो उसे ज्योतिष शास्त्र का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाता हैं. नील सरस्वती की साधना को पूर्ण करने पर ज्योतिष द्वारा की गई भविष्यवाणी सत्य तथा अकाट्य हो जाती हैं तथा इस साधना को करने के बाद ज्योतिष अगर किसी व्यक्ति की कुंडली का विश्लेषण या उसके जीवन से जुडी किसी प्रकार की भविष्यवाणी कर दे, तो वह भी पूर्णत: सत्य सिद्ध हो जाती हैं. नील सरस्वती स्तोत्र पाठ करने से शत्रु ओर कलह शांत हो जाते है .

साधना सामग्री :- 

1. 1 नीला हकीक पत्थर ( अंगूठी में धारण कर सके वो साइज का )

2. सरस्वती यंत्र

3. एक स्फटिक माला

4. शुद्ध घी से भरा हुआ एक बड़ा दिया

नील सरस्वती की साधना 21 दिनों में सम्पूर्ण होती हैं. इस साधना को सम्पूर्ण करने के लिए साधक  को रोजाना 1 माला गुरु मन्त्र की और 11 माला नील सरस्वती के मन्त्र की करनी चाहिए. नील सरस्वती की साधना में कुछ अलौकिक अनुभूतियाँ भी होती हैं. इसलिए इस साधना को करने से पहले साधक को अपने शरीर की रक्षा करने के लिए 11 बार देह रक्षा मन्त्र का जाप करने के बाद ही साधना में बैठना चाहिए.

पीठ शक्ति
लक्ष्मी, सरस्वती, रति, प्रीति, कीर्ति, शांति, तुष्टि, पुष्टि रूपी आठ शक्तियां नील सरस्वती की पीठ शक्ति मानी जाती हैं, देवी का वाहन शव हैं।
ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, ईश्वर, सदाशिव तथा परमशिव को षट्-शिव (६ शिव) कहा जाता हैं।
तारा, उग्रा, महोग्रा, वज्रा, काली, सरस्वती, कामेश्वरी तथा चामुंडा ये अष्ट तारा नाम से विख्यात हैं। देवी के मस्तक में स्थित अक्षोभ्य शिव अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं।

देह रक्षा मन्त्र - 

॥ हूं हूं ह्रीं ह्रीं कालिके घोर दंष्ट्रे प्रचंड चंड नायिके दानवान दारय हन हन शरीर महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हूँ फट . यदि साधक गुरु मन्त्र जानते है तो वे अपना गुरु मन्त्र भी कर सकते हैं या फिर सर्वांग दत्त मंत्र करे .

॥ ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नमः ॥

नील सरस्वती की साधना का समय – नील सरस्वती की साधना को करने का शुभ समय रात को 12.00 बजे से 3.00 तक का होता हैं.

नील सरस्वती की साधना को करने की विधि – नील सरस्वती की साधना को एक एकांत कमरे में करें. इस साधना को करने के लिए कमरे को बंद कर लें. ताकि कमरे में किसी भी प्रकार की रोशनी न आये. इस साधना को करने के लिए एक घी का दीपक जला लें तथा दीपक की रोशनी में ही नील सरस्वती की साधना की विधि को आरम्भ करें.

1. नील सरस्वती की साधना करने से पहले देह रक्षा मन्त्र का 11 बार जाप करें.

2. देह रक्षा मन्त्र का जाप करने के बाद उत्तर की ओर अपना मुख कर लें. अब सरस्वती जी का  यंत्र लें और उसके बीच में नीले हकीक  पत्थर को स्थापित करें.

3. नीले हकीक   पत्थर को स्थापित करने के बाद नील सरस्वती जी की लघु पूजन करें और संकल्प  लेकर गुरु मन्त्र की एक माला का जप करें.

4. इसके बाद नील सरस्वती मन्त्र की एक माला का जप करें.

5. लगातार 21 दिनों तक विधान के अनुसार पूजा करें.

6. 22 वें दिन सरस्वती के यंत्र में से नीले हकिक के पत्थर को निकाल लें. अब इस पत्थर से एक चाँदी की अंगूठी बनवा लें और इस अंगूठी को अपने सीधे हाथ की अनामिका ऊँगली में पहन लें.

विनियोग :-

॥ ॐ अस्य नील सरस्वती मंत्रस्य ब्रह्म ऋषिः, गायत्री छन्दः, नील सरस्वती देवता, ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ॥

नील सरस्वती मंत्र :-

॥ ॐ श्रीं ह्रीं हसौ: हूँ फट नीलसरस्वत्ये स्वाहा ॥

( 11 माला जाप करे ) मंत्र जाप के बाद स्तोत्र का पाठ करे .

नील सरस्वती का पूजा मंत्र

ऐं ह्रीं श्रीं नील सरस्वत्यै नम:।
नील सरस्वती मन्त्र –

ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौं क्लीं ह्रीं ऐं ब्लूं स्त्रीं
नीलतारे सरस्वती द्रां द्रीं क्लीं ब्लू सः।
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौंः सौः ह्रीं स्वाहा।

नील सरस्वती मंत्र के लाभ –
शास्त्रों में इसको सरस्वती का अत्यन्त प्रिय मन्त्र बताया है और कहा गया है कि जो इस मन्त्र को सिद्ध कर लेता है वह किसी भी विषय पर धाराप्रवाह बोल सकता है और किसी भी विषय पर शास्त्रार्थ में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है।

बालक जब जन्म ले तब स्नान कराकर दूर्वा से इस मन्त्र को उसकी जीभ पर लिखने से उसे समस्त शास्त्र कंठस्थ हो जाते हैं और समस्त संसार में उसे विजय प्राप्त होती है। एक प्रकार से देखा जाय तो वह विद्या के क्षेत्र में पूर्ण सिद्धि प्राप्त करता है।

*ગોલ્ડન (યલો) તારા મંત્ર*
ૐ તારે તુતારે તુરે પુષ્ટિં કુરુ સ્વાહા ।
*રક્ત (રેડ) તારા મંત્ર*
ૐ તારે તં સ્વાહા ।
*લીલા (ગ્રીન) તારા મંત્ર*
ૐ તારે તુતારે તુરે સ્વાહા ।

*તારા મંત્ર*
ૐ સ્ત્રીં તારાયૈ નમઃ ।

ૐ હ્રીં સ્ત્રીં હૂં ફટ્ ।

ऐं स्त्रीं ॐ ऐं ह्रीं फट् स्वाहा।

हंसः ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं हंसः।

ॐ नमः पद्मासने शब्दरुपे ऐं ह्रीं क्लीं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा
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नील सरस्वती स्तोत्र | 

नील सरस्वती स्तोत्रम देवी सरस्वती को समर्पित एक अत्यंत ही शक्तिशाली स्तोत्र है जिसके पाठ से व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह एक सिद्ध सरस्वती स्तोत्र है जिसके प्रभाव से साधक की बुद्धि तीक्ष्ण होती है तथा उसके अंदर आत्मज्ञान जागृत होता है।

अष्टमी, नवमी व चतुर्दशी के दिन नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है। कई साधकों को तो नील सरस्वती स्तोत्र अर्थ सहित कंठस्थ होता है और वह इसका योनिमुद्रा में आसन लगा कर पाठ करते हैं। यह एक शत्रु नाशक नील सरस्वती स्तोत्र है जो साधक के समस्त शत्रुओं का नाश कर देता है।

॥ अथ श्रीनील सरस्वतीस्तोत्रम् ॥

॥ श्री गणेशाय नमः ॥

घोररूपे महारावे सर्वशत्रुभयङ्करि।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥1॥

अर्थ – भयानक रूपवाली, घोर निनाद करनेवाली, सभी शत्रुओं को भयभीत करनेवाली तथा भक्तों को वर प्रदान करनेवाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥2॥

अर्थ – देव तथा दानवों के द्वारा पूजित, सिद्धों तथा गन्धर्वों के द्वारा सेवित और जड़ता तथा पाप को हरनेवाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥3॥

अर्थ – जटाजूट से सुशोभित, चंचल जिह्वा को अंदर की ओर करनेवाली, बुद्धि को तीक्ष्ण बनानेवाली हे देवि ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

सौम्यक्रोधधरे रुपे चण्डरूपे नमोऽस्तु ते।
सृष्टिरुपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणागतम्। ॥4॥

अर्थ – सौम्य क्रोध धारण करनेवाली, उत्तम विग्रहवाली, प्रचण्ड स्वरूपवाली हे देवि ! आपको नमस्कार है। हे सृष्टिस्वरुपिणि ! आपको नमस्कार है, मुझ शरणागत की रक्षा करें।

जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।
मूढ़तां हर मे देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥5॥

अर्थ – आप मूर्खों की मूर्खता का नाश करती हैं और भक्तों के लिये भक्तवत्सला हैं। हे देवि ! आप मेरी मूढ़ता को हरें और मुझ शरणागत की रक्षा करें।

वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नमः।
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम्। ॥6॥

अर्थ – वं ह्रूं ह्रूं बीजमन्त्रस्वरूपिणी हे देवि ! मैं आपके दर्शन की कामना करता हूँ। बलि तथा होम से प्रसन्न होनेवाली हे देवि ! आपको नमस्कार है। उग्र आपदाओं से तारनेवाली हे उग्रतारे ! आपको नित्य नमस्कार है, आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।
मूढ़त्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम्। ॥7॥

अर्थ – हे देवि ! आप मुझे बुद्धि दें, कीर्ति दें, कवित्वशक्ति दें और मेरी मूढ़ता का नाश करें। आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

इन्द्रादिविलसद्द्वन्द्ववन्दिते करुणामयि।
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणागतम्। ॥8॥

अर्थ – इन्द्र आदि के द्वारा वन्दित शोभायुक्त चरणयुगल वाली, करुणा से परिपूर्ण, चन्द्रमा के समान मुखमण्डलवाली और जगत को तारनेवाली हे भगवती तारा ! आप मुझ शरणागत की रक्षा करें।

अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां यः पठेन्नरः।
षण्मासैः सिद्धिमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा। ॥9॥

अर्थ – जो मनुष्य अष्टमी, नवमी तथा चतुर्दशी तिथि को इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह छः महीने में सिद्धि प्राप्त कर लेता है, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए।

मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्।
विद्यार्थी लभते विद्यां तर्कव्याकरणादिकम्। ॥10॥

अर्थ – इसका पाठ करने से मोक्ष की कामना करनेवाला मोक्ष प्राप्त कर लेता है, धन चाहनेवाला धन पा जाता है और विद्या चाहनेवाला विद्या तथा तर्क – व्याकरण आदि का ज्ञान प्राप्त कर लेता है।

इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाऽन्वितः।
तस्य शत्रुः क्षयं याति महाप्रज्ञा प्रजायते। ॥11॥

अर्थ – जो मनुष्य भक्तिपरायण होकर सतत इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके शत्रु का नाश हो जाता है और उसमें महान बुद्धि का उदय हो जाता है।

पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये।
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशयः। ॥12॥

अर्थ – जो व्यक्ति विपत्ति में, संग्राम में, मूर्खत्व की दशा में, दान के समय तथा भय की स्थिति में इस स्तोत्र को पढ़ता है, उसका कल्याण हो जाता है, इसमें संदेह नहीं है।

इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनिमुद्रां प्रदर्शयेत्। ॥13॥

अर्थ – इस प्रकार स्तुति करने के अनन्तर देवी को प्रणाम करके उन्हें योनिमुद्रा दिखानी चाहिए।


सिद्ध नील सरस्वती स्तोत्रम का प्रतिदिन पाठ करने से व्यक्ति के आत्मज्ञान में वृद्धि होती है।
जिन छात्रों को पढ़ाई करने में समस्या होती है अथवा परिश्रम करने पर भी परीक्षा में मनोवांछित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे हैं तो उन्हें भी श्री नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
इस स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करने से व्यक्ति के मस्तिष्क में शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है।
जो लोग कविता, साहित्य, कला व संगीत आदि ललित कलाओं के क्षेत्र में अपना करियर बनान चाहते हैं अथवा दक्षता प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें श्री नील सरस्वती स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन पूर्ण विधि-विधान से करना चाहिए।
सिद्ध नील सरस्वती स्तोत्रम के प्रभाव से साधक समस्त प्रकार के ज्ञात व् अज्ञात भय से मुक्त हो जाता है।
इस स्तोत्र को सुनने से अनेक प्रकार की मानसिक समस्याओं का समाधान होता है तथा शांति का अनुभव होता है।
यदि किसी बालक का मानसिक विकास ठीक से नहीं हो रहा है अथवा वह अन्य बालकों की तुलना में में मानसिक रूप से दुर्बल है तो इस स्तोत्र का पाठ व श्रवण करने से उसका मानसिक विकास सुचारु रूप से होने लगता है।
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