योगिनी , किन्नरी, यक्षिणी साधना , कालभैरव , काली मन्त्र PARASHMUNI

चौंसठ योगिनी मंत्र और नाम 


(1) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा।


(2) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा।


(3) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा।


(4) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा।


(5) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विरोधिनी विलासिनी स्वाहा।


(6) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा।


(7) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा।


(8) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा।


(9) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा।


(10) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा।


(11) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री घना महा जगदम्बा स्वाहा।


(12) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बलाका काम सेविता स्वाहा।


(13) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा।


(14) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा।


(15) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा।


(16) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा।


(17) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा।


(18) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भगमालिनी तारिणी स्वाहा।


(19) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा।


(20) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा।


(21) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा।


(22) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा।


(23) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा।


(24) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा।


(25) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा।


(26) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा।


(27) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा।


(28) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विजया देवी वसुदा स्वाहा।


(29) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा।


(30) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा।


(31) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा।


(32) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा।


(33) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री डाकिनी मदसालिनी स्वाहा।


(34) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री राकिनी पापराशिनी स्वाहा।


(35) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा।


(36) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा।


(37) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा।


(38) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा।


(39) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा।


(40) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री षोडशी लतिका देवी स्वाहा।


(41) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा।


(42) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा।


(43) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा।


(44) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा।


(45) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा।


(46) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातंगी कांटा युवती स्वाहा।


(47) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा।


(48) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा।


(49) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा।


(50) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मोहिनी माता योगिनी स्वाहा।


(51) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा।


(52) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा।


(53) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नारसिंही वामदेवी स्वाहा।


(54) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा।


(55) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा।


(56) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा।


(57) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा।


(58) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा।


(59) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा।


(60) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा।


(61) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा।


(62) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा।


(63) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा।


(64) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा।

=====================

*सर्प प्रजाति* के मुख्य 12 सर्प हैं : 1. अनंत 2. कुलिक 3. वासुकि 4. शंकुफला 5. पद्म 6. महापद्म 7. तक्षक 8. कर्कोटक 9. शंखचूड़ 10. घातक 11. विषधान 12. शेष नाग।


*चौसठ योगिनी* : १.बहुरूप, २.तारा, ३.नर्मदा, ४.यमुना, ५.शांति, ६.वारुणी, ७.क्षेमंकरी, ८.ऐन्द्री, ९.वाराही १०.रणवीरा, ११.वानर-मुखी, १२.वैष्णवी, १३.कालरात्रि, १४.वैद्यरूपा, १५.चर्चिका, १६.बेतली १७.छिन्नमस्तिका, १८.वृषवाहन, १९.ज्वाला कामिनी, २०.घटवार, २१.कराकाली, २२.सरस्वती, २३. बिरूपा, २४.कौवेरी, २५.भलुका, २६.नारसिंही, २७.बिरजा, २८.विकतांना, २९.महालक्ष्मी, ३०.कौमारी, ३१.महामाया, ३२.रति, ३३.करकरी, ३४.सर्पश्या, ३५.यक्षिणी, ३६.विनायकी, ३७.विंद्यावालिनी, ३८.वीर कुमारी, ३९.माहेश्वरी, ४०.अम्बिका, ४१.कामिनी, ४२. घटाबरी, ४३. स्तुती, ४४. काली, ४५. उमा, ४६.नारायणी, ४७.समुद्र, ४८.ब्रह्मिनी, ४९.ज्वालामुखी, ५०.आग्नेयी, ५१.अदिति, ५२.चन्द्रकान्ति, ५३. वायुवेगा, ५४.चामुण्डा, ५५.मूरति, ५६.गंगा, ५७.धूमावती, ५८.गांधार, ५९.सर्व मंगला, ६०.अजिता, ६१.सूर्य पुत्री, ६२.वायु वीणा, ६३.अघोर और ६४.भद्रकाली हैं।


*भैरव* को शिव का रुद्र अवतार माना गया है। तंत्र साधना में भैरव के आठ रूप भी अधिक लोकप्रिय हैं- 1.असितांग भैरव, 2. रु-रु भैरव, 3. चण्ड भैरव, 4. क्रोधोन्मत्त भैरव, 5. भयंकर भैरव, 6. कपाली भैरव, 7. भीषण भैरव तथा 8. संहार भैरव।

========================

*चौंसठ  ऋद्धि मंत्र अनेक प्रकार के रोग, शोक, दु:ख, दारिद्र्य से छुटकारा पाना यह इसका फल है।*


https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=3028048754124775&id=100007590397702


*चौंसठ ऋद्धि के मंत्र*


1. ॐ ह्रीं अवधिज्ञान बुद्धि ऋद्धये नम:।

2 . ॐ ह्रीं मन:पर्ययज्ञान बुद्धि ऋद्धये नम:।

3 . ॐ ह्रीं केवलज्ञान बुद्धि ऋद्धये नम:।

4 . ॐ ह्रीं बीज बुद्धि ऋद्धये नम:।

5 . ॐ ह्रीं कोष्ठ ज्ञान बुद्धि ऋद्धये नम:।


6 . ॐ ह्रीं पदानुसारिणीबुद्धि ऋद्धये नम:।


7 . ॐ ह्रीं संभिन्नश्रोतृत्व बुद्धि ऋद्धये नम:।


8 . ॐ ह्रीं दूरास्वादित्व बुद्धि ऋद्धये नम:।


9. ॐ ह्रीं दूरस्पर्शत्व बुद्धि ऋद्धये नम:।


10. ॐ ह्रीं दूरघ्राणत्व बुद्धि ऋद्धये नम:।


11. ॐ ह्रीं दूरश्रवणत्व बुद्धि ऋद्धये नम:।


12 . ॐ ह्रीं दूरदर्शित्वबुद्धि ऋद्धये नम:।


13 . ॐ ह्रीं दशपूर्वित्वबुद्धि ऋद्धये नम:।


14 . ॐ ह्रीं चतुर्दशपूर्वित्वबुद्धि ऋद्धये नम:।


15 . ॐ ह्रीं अष्टांगमहानिमित्तबुद्धि ऋद्धये नम:।


16  ॐ ह्रीं प्रज्ञाश्रमणबुद्धि ऋद्धये नम:।


17 . ॐ ह्रीं प्रत्येकबुद्धि ऋद्धये नम:।


18 . ॐ ह्रीं वादित्वबुद्धि ऋद्धये नम:।


विक्रिया के 11  मंत्र


1. ॐ ह्रीं अणिमाविक्रिया ऋद्धये नम:।


2 . ॐ ह्रीं महिमाविक्रिया ऋद्धये नम:।


3 . ॐ ह्रीं लघिमाविक्रियाऋद्धये नम:।


4 . ॐ ह्रीं गरिमाविक्रिया ऋद्धये नम:।


5 . ॐ ह्रीं प्राप्तिविक्रिया ऋद्धये नम:।


6 . ॐ ह्रीं प्राकाम्यविक्रिया ऋद्धये नम:।


7 . ॐ ह्रीं ईशत्वविक्रिया ऋद्धये नम:।


8 . ॐ ह्रीं वशित्वविक्रिया ऋद्धये नम:।


9 . ॐ ह्रीं अप्रतिघातविक्रिया ऋद्धये नम:।


10 . ॐ ह्रीं अंतर्धानविक्रिया ऋद्धये नम:।


11 . ॐ ह्रीं कामरूपविक्रिया ऋद्धये नम:।


चारणऋद्धि के 9  मंत्र


1  ॐ ह्रीं नभस्तलगामित्वचारणक्रियाऋद्धये नम:।


2 . ॐ ह्रीं जलचारणक्रिया ऋद्धये नम:।


3 . ॐ ह्रीं जंघाचारणक्रिया ऋद्धये नम:।


4 . ॐ ह्रीं फलपुष्पपत्रचारणक्रिया ऋद्धये नम:।


5 . ॐ ह्रीं अग्निधूमचारणक्रिया ऋद्धये नम:।


6 . ॐ ह्रीं मेघधाराचारणक्रिया ऋद्धये नम:।


7 . ॐ ह्रीं तंतुचारणक्रिया ऋद्धये नम:।


8 . ॐ ह्रीं ज्योतिश्चारणक्रिया ऋद्धये नम:।


9 . ॐ  ह्रीं मरुच्चारण क्रिया ऋद्धये नम:।


तपऋद्धि के 7 मंत्र


1 . ॐ ह्रीं उग्रतप: ऋद्धये नम:।


2 . ॐ ह्रीं दीप्ततप: ऋद्धये नम:।


3 . ॐ ह्रीं तप्ततप: ऋद्धये नम:।


4 . ॐ ह्रीं महातप: ऋद्धये नम:।


5 . ॐ ह्रीं घोरतप: ऋद्धये नम:।


6 . ॐ ह्रीं घोरपराक्रमतप: ऋद्धये नम:।


7 . ॐ ह्रीं अघोरब्रह्मचारित्वतप: ऋद्धये नम:।


बलऋद्धि के 3  मंत्र


1 . ॐ ह्रीं मनोबल ऋद्धये नम:।


2 . ॐ ह्रीं वचनबल ऋद्धये नम:।


3 . ॐ ह्रीं कायबल ऋद्धये नम:।


औषधिऋद्धि के 8  मंत्र


1 . ॐ ह्रीं आमर्शौषधि ऋद्धये नम:।


2 . ॐ ह्रीं क्ष्वेलौषधि ऋद्धये नम:।


3 . ॐ ह्रीं जल्लौषधि ऋद्धये नम:।


4 . ॐ ह्रीं मल्लौषधि ऋद्धये नम:।


5 . ॐ ह्रीं विपु्रुषौषधि ऋद्धये नम:।


6 . ॐ ह्रीं सर्वौषधि ऋद्धये नम:।


7 . ॐ ह्रीं मुखनिर्विष ऋद्धये नम:।


8 . ॐ ह्रीं दृष्टिनिर्विष ऋद्धये नम:।


रसऋद्धि के 6  मंत्र


1 . ॐ ह्रीं आशीर्विष ऋद्धये नम:।


2 . ॐ ह्रीं दृष्टिविष ऋद्धये नम:।


3 . ॐ ह्रीं क्षीरस्राविरस ऋद्धये नम:।


4 . ॐ ह्रीं मधुस्राविरस ऋद्धये नम:।


5 . ॐ ह्रीं अमृतस्राविरस ऋद्धये नम:।


6 . ॐ ह्रीं सर्पिस्राविरस ऋद्धये नम:।


अक्षीणऋद्धि के 2  मंत्र


1 . ॐ ह्रीं अक्षीणमहानस ऋद्धये नम:।


2 . ॐ ह्रीं अक्षीणमहालय ऋद्धये नम:।


😷✋🏻 *गोंडल संप्रदाय के महामंत्र प्रभावक पू.जगदीशमुनि म.सा. के सुशिष्य सद्गुरूदेव पू. श्री पारसमुनि म.सा.* 🔝


Forward to all Friends 🔝📩

========================

💯✔चमत्कारी यक्षिणी साधना मंत्र विधि

चमत्कारी यक्षिणी साधना
यक्षिणी साधना की शुरुआत भगवान शिव जी की साधना से की जाती हैं. यक्षिणी साधना को करने से साधक की मनोकामनाएं जल्द ही पूर्ण हो जाती हैं तथा इस साधना को करने से साधक को दुसरे के मन की बातों को जानने की शक्ति भी प्राप्त होती हैं, साधक की बुद्धि तेज होती हैं. यक्षिणी साधना को करने से कठिन से कठिन कार्यों की सिद्धि जल्द ही हो जाती हैं.

यक्षिणी साधना के प्रकार
यक्षिणी साधना 14 प्रकार की होती हैं जिनकी जानकारी निम्नलिखित दी गई हैं –

1. महायक्षिणी
2. सुन्दरी
3. मनोहरी
4. कनक यक्षिणी
5. कामेश्वरी
6. रतिप्रिया
7. पद्मिनी
8. नटी
9. रागिनी
10. विशाला
11. चन्द्रिका
12. लक्ष्मी
13. शोभना
14. मर्दना

यक्षिणी साधना को करने का शुभ दिन –
ज्योतिषों के अनुसार यदि आषाढ़ माह में शुक्रवार के दिन पूर्णिमा हैं तो यक्षिणी साधना को करने का सबसे शुभ दिन अगले सप्ताह में आने वाला गुरुवार हैं.

इसके अलावा यक्षिणी साधना को करने की शुभ तिथि श्रावण मास की कृष्ण पक्ष प्रतिपदा हैं. यह यक्षिणी साधना को करने का शुभ दिन इसलिए माना जाता हैं. क्योंकि इस दिन चंद्रमा में शक्ति अधिक होती हैं. जिससे साधक को उत्तम फल की प्राप्ति होती हैं.

यक्षिणी साधना की विधि –
1.       यक्षिणी साधना को करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और पूजा की सारी सामग्री को इकट्ठा कर लें.

2.       यक्षिणी साधना का आरम्भ करने के लिए सबसे पहले शिव जी की पूजा सामान्य विधि से करें.

3.       इसके बाद एक केले के पेड़ या बेलगिरी के पेड़ के नीचे यक्षिणी की साधना करें.

4.       यक्षिणी साधना को करने से आपका मन स्थिर और एकाग्र हो जायेगा. इसके बाद निम्नलिखित मन्त्रों का जाप पांच हजार बार करें.

5.       जाप करने के बाद घर पहुंच कर कुंवारी कन्याओं को खीर का भोजन करायें.

यक्षिणी साधना की दूसरी विधि –

यक्षिणी साधना को करने का एक और तरीका हैं. इस विधि के अनुसार यक्षिणी साधना करने के लिए वट के या पीपल के पेड़ नीचे शिवजी की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना कर लें. अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण पांच हजार बार करते हुए पेड़ की जड में जल चढाएं

शिवजी का मन्त्र –

ऊँ रुद्राय नम: स्वाहा

ऊँ त्रयम्बकाय नम: स्वाहा
ऊँ यक्षराजाय स्वाहा
ऊँ त्रयलोचनाय स्वाहा

यक्षिणी साधना के नियम

1.  यक्षिणी साधना को करने लिए ब्रहमचारी रहना बहुत ही जरूरी हैं.

2.  इस साधना को प्राम्भ करने के बाद साधक को अपने सभी कार्य भूमि पर करने चाहिए.

3.  यक्षिणी साधना की सिद्धि हेतु साधक को नशीले पदार्थों का एवं मांसाहारी भोजन का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए.

4.  यक्षिणी साधना को करते समय सफेद या पीले रंग के वस्त्रों को ही केवल धारण करना चाहिए.

5. इस साधना को करने वाले साधक को साबुन, इत्र या किसी प्रकार के सुगन्धित तेल का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए तथा उसे अपने क्रोध पर काबू करना चाहिए

ये प्रमुख यक्षिणियां है - 1. सुर सुन्दरी यक्षिणी, 2. मनोहारिणी यक्षिणी, 3. कनकावती यक्षिणी, 4. कामेश्वरी यक्षिणी, 5. रतिप्रिया यक्षिणी, 6. पद्मिनी यक्षिणी, 7. नटी यक्षिणी और 8. अनुरागिणी यक्षिणी।

प्रत्येक यक्षिणी साधक को अलग-अलग प्रकार से सहयोगिनी होकर सहायता करती है, अतः साधक को चाहिए कि वह आठों  यक्षिणियों को ही सिद्ध करने के लिए किसी योग्य गुरु या जानकार से इसके बारे में जानें।

1.सुर सुन्दरी यक्षिणी : इस यक्षिणी की विशेषता है कि साधक उन्हें जिस रूप में पाना चाहता हैं, वह प्राप्त होती ही है- चाहे वह मां का स्वरूप हो, चाहे वह बहन या प्रेमिका का। जैसी रही भावना जिसकी वैसे ही रूप में वह उपस्थित होती है या स्वप्न  में आकर बताती है। यदि साधना नियमपूर्वक अच्छे उद्देश्य के लिए की गई  है तो वह दिखाई भी देती है। यह यक्षिणी सिद्ध होने के पश्चात साध को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है। देव योनी के समान सुन्दर सुडौल होने से कारण इसे सुर सुन्दरी यक्षिणी कहा गया है।

2.मनोहारिणी यक्षिणी : मनोहारिणी यक्षिणी सिद्ध होने के बाद यह यक्षिणी साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहक बना देती है कि वह दुनिया को अपने सम्मोहन पाश में बांधने की क्षमता हासिल कर लेता है। वह साधक को धन आदि प्रदान कर उसे संतुष्ट करती है।  मनोहारिणी यक्षिणी का चेहरा अण्डाकार, नेत्र हरिण के समान और रंग गौरा है। उनके शरीर से निरंतर चंदन की सुगंध निकलती रहती है।

3.कनकावती यक्षिणी : कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने के पश्चात साधक में तेजस्विता तथा प्रखरता आ जाती है, फिर वह विरोधी को भी मोहित करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। यह यक्षिणी साधक की प्रत्येक मनोकामना को पूर्ण करने मे सहायक होती है। माना जाता है कि यह यक्षिणी यह लाल रंग के वस्त्र धारण करने वाली षोडश वर्षीया, बाला स्वरूपा है।

4.कामेश्वरी यक्षिणी : यह साधक को पौरुष प्रदान करती है तथा पत्नी सुख की कामना करने पर पूर्ण पत्निवत रूप में उपस्थित होकर साधक की इच्छापूर्ण करती है। साधक को जब भी किसी चीज की आवश्यकता होती है तो वह तत्क्षण उपलब्ध कराने में सहायक होती है। यह यक्षिणी सदैव चंचल रहने वाली मानी गई है। इसकी यौवन युक्त देह मादकता छलकती हुई बिम्बित होती है।

5.रति प्रिया यक्षिणी : इस यक्षि़णी को प्रफुल्लता प्रदान करने वाली माना गया है। रति प्रिया यक्षिणी साधक को हर क्षण प्रफुल्लित रखती है तथा उसे दृढ़ता भी प्रदान करती है। साधक-साधिका को यह कामदेव और रति के समान सौन्दर्य की उपलब्धि कराती है। इस यक्षिणी की देह स्वर्ण के समान है जो सभी तरह के मंगल आभूषणों से सुसज्जित है।

6.पदमिनी यक्षिणी : पद्मिनी यक्षिणी अपने साधक में आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान करती है तथा सदैव उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति की ओर अग्रसर करती है। यह हमेशा साधक के साथ रहकर हर कदम पर उसका हौसला बढ़ाती है। श्यामवर्णा, सुंदर नेत्र और सदा प्रसन्नचित्र करने वाली यह यक्षिणी अत्यक्षिक सुंदर देह वाली मानी गई है।

7.नटी यक्षिणी : यह यक्षिणी अपने साधक की पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है तथा किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थितियों में साधक को सरलता पूर्वक निष्कलंक बचाती है। यह सभी तरह की घटना-दुर्घटना से भी साधक को सुरक्षित बचा ले आती है। उल्लेखनीय है कि नटी यक्षिणी को विश्वामित्र ने भी सिद्ध किया था।

8.अनुरागिणी यक्षिणी : यह यक्षिणी यदि साधक पर प्रसंन्न हो जाए तो वह उसे नित्य धन, मान, यश आदि से परिपूर्ण तृप्त कर देती है। अनुरागिणी यक्षिणी शुभ्रवर्णा है और यह साधक की इच्छा होने पर उसके साथ रास-उल्लास भी करती है।

मन्त्र
0.मूल अष्ट यक्षिणी मंत्र :॥ ॐ ऐं श्रीं अष्ट यक्षिणी सिद्धिं सिद्धिं देहि नमः॥

1.सुर सुन्दरी मंत्र : ॥ ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ॥

2.मनोहारिणी मंत्र :॥ ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा ॥

3.कनकावती मंत्र : ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा ॥

4.कामेश्वरी मंत्र : ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ ॥

5.रति प्रिया मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥

6.पद्मिनी मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा ॥

7.नटी मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा ॥

8.अनुरागिणी मंत्र : ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥

__________________

💯✔ #यक्षिणी_साधना_क्या_है ? #यक्षिणी_साधना के प्रकार व मंत्र

यक्षिणी साधना भी देव साधना के समान ही सकारात्मक शक्ति प्रदान करने वाली है | आज के समय में बहुत ले लोग यक्षिणी साधना को किसी #चुड़ैल_साधना या दैत्य प्रकर्ति की साधना के रूप में देखते है | किन्तु यह पूर्णरूप रूप से असत्य है | जिस प्रकार हमारे शास्त्रों में 33 देवता होते है उसी प्रकार 8 यक्ष और यक्षिणीयाँ भी होते है | गन्धर्व और यक्ष जाति को देवताओं के समान ही माना गया है जबकि राक्षस और दानव को दैत्य कहा गया है | इसलिए जब कभी भी आप किसी यक्ष या यक्षिणी की साधना करते है तो ये देवताओं की तरह ही प्रसन्न होकर आपको फल प्रदान करती है |


यक्षिणी साधना के समय, यक्षिणी साधक के समक्ष एक सुंदर, सौम्य स्त्री के रूप में प्रकट होती है | जिस रूप में व जिस भाव से साधक यक्षिणी की उपासना करता है, उसी रूप में यक्षिणी उसे दर्शन देती है | एक स्त्री के रूप में यक्षिणी साधना – एक माँ के रूप में , प्रेमिका के रूप में , बहन के रूप में  और पुत्री के रूप में की जाती है | उच्च कोटि के बड़े साधक यक्षिणी साधना को एक माँ के रूप में या पुत्री के रूप में करने की सलाह देते है |


यक्षिणी साधना के प्रकार :


शास्त्रों में मुख्य रूप से आठ प्रकार की यक्षिणीयों का विवरण मिलता है | जिन्हें अष्ट यक्षिणी साधना भी कहा गया है | जो कि इस प्रकार से है :


1. #सुर_सुन्दरी_यक्षिणी, 2. #मनोहारिणी_यक्षिणी, 3. #कनकावती_यक्षिणी, 4. #कामेश्वरी_यक्षिणी, 5. #रतिप्रिया_यक्षिणी, 6. #पद्मिनी_यक्षिणी, 7. #नटी_यक्षिणी और 8. #अनुरागिणी_यक्षिणी।


#सुरसुन्दरी #यक्षिणी  :-

कल्पना के आधार पर सुर सुन्दरी यक्षिणी को सुबसे सुंदर यक्षिणी कहा गया है | इस साधना में सिद्ध प्राप्त होने पर साधक धन-सम्पत्ति और एश्वर्य को प्राप्त करता है | इस यक्षिणी साधना में साधक जिस भाव से और जिस रूप में यक्षिणी की आराधना करता है वह उसे उसी रूप में स्वप्न में आकार दर्शन देती है | जैसे : माँ के रूप में, प्रेमिका के रूप में , पुत्री के रूप में , इनमें से जिस भी रूप में आराधना की जाये, उसी रूप में साधक को यक्षिणी के दर्शन प्राप्त होते है | इस साधना के लिए साधक को इस मंत्र द्वारा साधना करनी चाहिए : ॐ ऐं ह्रीं आगच्छ सुर सुन्दरी स्वाहा ||


मनोहारिणी यक्षिणी :-

इस यक्षिणी साधना में साधक को सम्मोहन शक्ति की प्राप्ति होती है | इस साधना में सफलता प्राप्त करने पर साधक में ऐसी शक्तियां आती है जिसके बल पर वह किसी को भी अपने वश में कर सकता है | इसके साथ ही साधक धन आदि से परिपूर्ण होता है | #मनोहारिणी #यक्षिणी साधना मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा  ||


कनकावती यक्षिणी :-

कनकावती यक्षिणी साधना/Yakshini Sadhana में सफल होने पर साधक इनता तेजस्वी हो जाता है कि वह अपने विरोधी को भी अपने वश में कर सकता है | इसमें सफल होने पर साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है | #कनकावती #यक्षिणी मंत्र : ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावती स्वाहा ||


कामेश्वरी यक्षिणी : –

इस साधना में साधक को पौरुष शक्ति प्राप्त होती है | पत्नी सुख की कामना करने पर यक्षिणी साक्षात् पत्नीवत रूप में उपस्थित होकर साधक की इच्छा पूर्ण करती है | इस यक्षिणी की विशेषता यह भी है कि हर वस्तु को प्राप्त करने में यह साधक की सहायता करती है | #कामेश्वरी मंत्र : ॐ क्रीं कामेश्वरी वश्य प्रियाय क्रीं ॐ  || 


रति प्रिया यक्षिणी :-

इस साधना में साधक को सौंदर्य की प्राप्ति होती है | साधक को हर समय प्रसन्नता रहती है | #रतिप्रिया #यक्षिणी मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥


पदमिनी यक्षिणी :-

इस साधना में साधक को आत्मविश्वास और आत्मबल की प्राप्ति होती है | ऐसा साधक मानसिक रूप से प्रबल बनता है | हर परिस्थितियों में साधक को डटकर खड़े रहने में उसकी सहायता करती है | #पदमिनी #यक्षिणी मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ रति प्रिया स्वाहा ॥


नटी यक्षिणी :-

इस साधना में सफल होने पर यक्षिणी साधक की हर विकट परिस्थिति में सहायता करती है | हर प्रकार की दुर्घटना से उसकी रक्षा करती है | #नटी #यक्षिणी मंत्र : ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ नटी स्वाहा ॥


अनुरागिनी यक्षिणी :-

इस साधना में सफल होने पर यह #यक्षिणी हर प्रकार से साधक को संतुष्ट करती है | धन, मान-सम्मान व अन्य सभी सुखों से साधक को लाभान्वित करती है | साधक की कामना पर यह उसके साथ रास-उल्लास भी करती है | अनुरागिनी #यक्षिणी मंत्र : ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ स्वाहा ॥


अन्य जानकारियाँ :- 


#मंत्र, #यंत्र और #तंत्र साधनाएं | मंत्र-यंत्र व तन्त्र साधनाओं के विषय में सम्पुर्ण जानकारी

मंत्र सिद्धि में गुरु की आवश्यकता क्यों होती है ?

शास्त्रों के अनुसार मंत्र जप के समय मंत्र उच्चारण की विधियाँ

#यक्षिणी_साधना करते समय ध्यान देने योग्य : –

#यक्षिणी_साधना अन्य सभी तंत्र साधनाओं की अपेक्षा थोड़ी कठिन है | इसमें साधक को शारीरिक व मानसिक रूप से क्षति पहुँच सकती है | साधना के दौरान साधक को भोग और वासना के माध्यम से भटकाने के प्रयास किये जा सकते है | कुछ डरावनी अनुभूति भी हो सकती है | 


इसलिए #यक्षिणी साधना के लिए सबसे जरुरी नियम है कि इसे किसी योग्य गुरु की देख-रेख में संपन्न किया जाये | बिना गुरु के सिर्फ किताबों के सहारे इस साधना को करना, आपको किसी बड़ी मुशीबत में डाल सकता है |

______________________________

💯✔ 8 योगिनियों के 8 चमत्कारी मंत्र, सभी कामनाएं करते हैं पूर्ण

योगिनियों की सिद्धि के बारे में केवल एक बात ही उनकी महत्ता दर्शाती है कि धनपति कुबेर उनकी कृपा से ही धनाधिपति हुए थे। इनको प्रसन्न करने से राज्य तक प्राप्त किया जा सकता है। ये भी मुख्यत: 8 होती हैं तथा मां, बहन तथा भार्या के रूप में सर्वस्व देती हैं। इनकी साधना सावधानी भी मांगती है। पत्नी के रूप में साधना करने से अपनी पत्नी का सुख नहीं रहता है। अतिरेक करने पर सब कुछ नष्ट हो जाता है। ये योगिनियां निम्नलिखित हैं-

(1) सुर-सुंदरी योगिनी-अत्यंत सुंदर शरीर सौष्ठव अत्यंत दर्शनीय होता है। 1 मास तक साधना की जाती है। प्रसन्न होने पर सामने आती हैं तथा माता, बहन या पत्नी कहकर संबोधन करें। राज्य, स्वर्ण, दिव्यालंकार तथा दिव्य कन्याएं तक लाकर देती हैं। सभी कामनाएं पूर्ण करती हैं। अन्य स्त्रियों पर आसक्त साधक को समूल नष्ट करती हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ सुरसुंदरि स्वाहा।'

(2) मनोहरा योगिनी-विचित्र वेशभूषा वाली अत्यंत सुंदर, शरीर से सुगंध निकलती हुई मास भर साधना करने पर प्रसन्न होकर प्रतिदिन साधक को स्वर्ण मुद्राएं प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा।'

(3) कनकावती योगिनी-रक्त वस्त्रालंकार से भूषित अपनी परिचारिकाओं के साथ आकर वांछित कामना पूर्ण करती हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावति स्वाहा।'

(4) कामेश्वरी योगिनी-इनका जप भी रात्रि में मास भर किया जाता है। पुष्पों से सज्जित देवी प्रसन्न होकर ऐश्वर्य, भोग की वस्तुएं प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ कामेश्वरी स्वाहा।'

(5) रति सुन्दरी योगिनी-स्वर्णाभूषण से सज्जित देवी महीनेभर साधना के पश्चात प्रसन्न होकर अभीष्ट वर प्रदान करती हैं तथा सभी ऐश्वर्य, धन व वस्त्रालंकार देती हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ रति सुन्दरी स्वाहा।'

(6) पद्मिनी योगिनी-श्याम वर्ण की ये देवी वस्त्रालंकार से युक्त मास भर साधना के बाद प्रसन्न होकर ऐश्वर्यादि प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ पद्मिनी स्वाहा।'

(7) नटिनी योगिनी-अशोक वृक्ष के नीचे रात्रि में साधना की जाकर इनकी प्रसन्नता प्राप्ति कर अपने सारे मनोरथ पूर्ण किए जा सकते हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ नटिनि स्वाहा।'

(8) मधुमति योगिनी-शुभ्र वर्ण वाली देवी अति सुंदर नाना प्रकार के अलंकारों से भूषित साधना के पश्चात सामने आकर किसी भी लोक की वस्तु प्रदान करती हैं। इनकी कृपा से पूर्ण आयु तथा अच्‍छा स्वास्‍थ्य प्राप्त होता है। राज्याधिकार प्राप्त होता है।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ मैथुन प्रिये स्वाहा।'
_______________
💯✔ 8 किन्नरी मंत्र देंगे हर सफलता, चमकाएंगे सौभाग्य

साधारणतया 'किन्नर' शब्द से बृहन्नला माना जाता है। यह बृहन्नला नहीं है। ये देवताओं के लोक में गाने-बजाने तथा मनोरंजन करने वाले देवताओं की शक्तियों से संपन्न होते हैं। किन्नरी यानी देवियां। हिमाचल में एक स्थान है किन्नौर, जो इन्हीं के नाम से जाना जाता है। मुख्य रूप से यह 8 होती हैं। यह शीघ्र प्रसन्न होने वाली देवियां हैं जिनकी साधना से द्रव्य, भोग, दिव्य रसायन, स्वर्ण, वस्त्रालंकार मिलते हैं एवं समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अप्सराओं की तरह इनकी भी साधना की जाती है, जो निम्नलिखित है-

(1) मंजूघोष किन्नरी-एक मास तक अमावस्या से पूर्णिमा तक साधना की जाती है तथा नित्य पूजन, नेवैद्य बली आदि कर्म किए जाते हैं। दिव्य रसायन व ऐश्वर्य देती हैं।

मंत्र- 'ॐ मंजूघोष आगच्छागच्छ स्वाहा।'

(2) मनोहारी किन्नरी-उपरोक्त वर्णित तरीके से साधना पर्वत शिखर पर की जाती है तथा सभी मनोकामनाएं भार्या के रूप में प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ मनोहार्ये स्वाहा।'

3) सुभगा किन्नरी-उज्जट पर्वत शिखर पर साधन होता है तथा चंदन मिले जल से अर्घ्य देना पड़ता है। स्वर्ण मुद्राएं नित्य प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ सुभगे स्वाहा।'

(4) विशाल नेत्रा किन्नरी-नदी के एकांत तट पर साधना की जाती है तथा भार्या बनकर नित्य स्वर्ण मुद्राएं देती हैं।

मंत्र- 'ॐ विशाल नेत्रे स्वाहा।'

(5) सुरति प्रिय किन्नरी-पवित्र नदी के संगम पर साधन होता है तथा वस्त्रालंकार तथा स्वर्ण प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ सुरति प्रिये स्वाहा।'

(6) अश्वमुखि किन्नरी-निर्जन-उज्जट पर्वत‍ शिखर पर साधना से प्रसन्न होने वाली हैं तथा काम, भोग, ऐश्वर्य, धन व स्वर्ण प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ अश्वमुखि स्वाहा।'

(7) दिवाकरी मुखि किन्नरी-निर्जन पर्वत शिखर पर साधना की जाती है तथा भोग व ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ दिवाकरी मुखि स्वाहा।'

(8) मंगला किन्नरी-नितांत एकांत में नदी के संगम या तट पर साधना की जाती है तथा अपनी इच्छा बताने पर पूरी करती हैं।        

ॐ मंगला किन्नरी स्वाहा
_______________
💯✔कालभैरव अष्टमी

शिव अवतार कहे जाने वाले कालभैरव का अवतार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ। इस संबंध में शिवपुराण की शतरुद्रासंहिता में बताया गया है शिवजी ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया और यह स्वरूप भी भक्तों को मनोवांछित फल देने वाला है।कोयले से भी प्रगाढ़ रंग, विशाल प्रलंब, स्थूल शरीर, अंगारकाय त्रिनेत्र, काले वस्त्र, रूद्राक्ष की कण्ठमाला, हाथों में लोहे का भयानक दण्ड और काले कुत्ते की सवारी – यह है महाभैरव, अर्थात् भय के भारतीय देवता का स्वरूप।

👉भैरव जी के उपवास के लिए रविवार और मंगलवार ग्राह्य माने गए हैं। ऐसी मान्यता है कि अष्टमी के दिन स्नान के बाद पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के बाद यदि कालभैरव की पूजा की जाए तो उपासक के साल भर के सारे विघ्न टल जाते हैं। मान्यता यह भी है कि महाकाल भैरव मंदिर में चढ़ाए गए काले धागे को गले या बाजू में बांधने से भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता है। कहते हैं कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी 'काल' का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु कालभैरव की शरण में जाने की सलाह धर्मशास्त्र देते हैं। ऐसा जन विश्वास है कि सामाजिक मर्यादाओं का पालन करने वालों की भैरव जी रक्षा करते हैं।
भैरो आस्टमि के दिन प्रत्येक प्रहर में काल भैरव और ईशान नाम के शिव की पूजा और अर्घ्य देने का विधान है। आधी रात के बाद काल भैरव की आरती की जाती है। इसके बाद पूरी रात का जागरण किया जाता है। मान्यता है कि भगवान भैरव का वाहन कुत्ता है। इसलिए इस दिन कुत्ते की भी पूजा की जाती है। कहते हैं कि अगर कुत्ता काले रंग का हो तो पूजा का माहात्म्य और बढ़ जाता है। कुछ भक्त तो उसे प्रसन्न करने के लिए दूध पिलाते हैं और मिठाई खिलाते हैं।

भगवान भैरव उल्लेख आदित्य पुराण में विस्तार से आया है। भैरव भगवान शिव के दूसरे रूप में माने गए हैं। मान्यता है कि इसी दिन दोपहर के समय शिव के प्रिय गण भैरवनाथ का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि भैरव से काल भी भयभीत रहता है, इसलिए उन्हें कालभैरव भी कहते हैं। देश में भैरव जी के कई मंदिर हैं, जिनमें काशी स्थित कालभैरव मंदिर काफी प्रसिद्ध है।

भगवान भैरव पर दूध चढ़ाया जाता है, लेकिन किलकारी भैरव के विषय में मान्यता है कि वह शराब चढ़ाने पर प्रसन्न होते हैं। उज्जैन स्थित काल भैरव मंदिर में श्रद्धालु भैरव जी को मदिरा अर्पित करते हैं। ऐसा मानते हैं कि यह व्रत गणेश, विष्णु, यम, चंद्रमा, कुबेर आदि ने भी किया था और इसी व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु लक्ष्मीपति बने, अप्सराओं को सौभाग्य मिला और कई राजा चक्रवर्ती बने। यह सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत कहा गया है।

इस दिन चन्द्रमा सिंह राशि में रहेगा और आश्लेषा नक्षत्र रहेगा..

कहते हैं, औरंगजेब के शासन काल में जब काशी के भारत-विख्यात विश्वनाथ मंदिर का ध्वंस किया गया, तब भी कालभैरव का मंदिर पूरी तरह अछूता बना रहा था। जनश्रुतियों के अनुसार कालभैरव का मंदिर तोड़ने के लिये जब औरंगज़ेब के सैनिक वहाँ पहुँचे तो अचानक पागल कुत्तों का एक पूरा समूह कहीं से निकल पड़ा था। उन कुत्तों ने जिन सैनिकों को काटा वे तुरंत पागल हो गये और फिर स्वयं अपने ही साथियों को उन्होंने काटना शुरू कर दिया। बादशाह को भी अपनी जान बचा कर भागने के लिये विवश हो जाना पड़ा। उसने अपने अंगरक्षकों द्वारा अपने ही सैनिक सिर्फ इसलिये मरवा दिये किं पागल होते सैनिकों का सिलसिला कहीं खु़द उसके पास तक न पहुँच जाए।

उपासना की दृष्टि से भैरव तमस देवता हैं। उनको बलि दी जाती है और जहाँ कहीं यह प्रथा समाप्त हो गयी है वहाँ भी एक साथ बड़ी संख्या में नारियल फोड़ कर इस कृत्य को एक प्रतीक क्रिया के रूप में सम्पन्न किया जाता है। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है। तंत्र साधक का मुख्य लक्ष्य भैरव की भावना से अपने को आत्मसात करना होता है।

कालभैरव की पूजा प्राय: पूरे देश में होती है, और अलग-अलग अंचलों में अलग-अलग नामों से वह जाने-पहचाने जाते हैं। महाराष्ट्र में खण्डोबा उन्हीं का एक रूप है, और खण्डोबा की पूजा-अर्चना वहाँ ग्राम-ग्राम में की जाती है। दक्षिण भारत में भैरव का नाम शास्ता है। वैसे हर जगह एक भयदायी और उग्र देवता के रूप में ही उनको मान्यता मिली हुई है, और उनकी अनेक प्रकार की मनौतियां भी स्थान-स्थान पर प्रचलित हैं। भूत, प्रेत, पिशाच, पूतना, कोटरा और रेवती आदि की गणना भगवान शिव के अन्यतम गणों में की जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो विविध रोगों और आपत्तियों विपत्तियों के वह अधिदेवता हैं। शिव प्रलय के देवता हैं, अत: विपत्ति, रोग एवं मृत्यु के समस्त दूत और देवता उनके अपने सैनिक हैं। इन सब गणों के अधिपति या सेनानायक हैं महाभैरव। सीधी भाषा में कहें तो भय वह सेनापति है जो बीमारी, विपत्ति और विनाश के पार्श्व में उनके संचालक के रूप में सर्वत्र ही उपस्थित दिखायी देता है।
भय स्वयं तामस-भाव है। तम और अज्ञान का प्रतीक है यह भाव। जो विवेकपूर्ण है वह जानता है कि समस्त पदार्थ और शरीर पूरी तरह नाशवान है। आत्मा के अमरत्व को समझ कर वह प्रत्येक परिस्थिति में निर्भय बना रहता है। जहाँ विवेक तथा धैर्य का प्रकाश है वहाँ भय का प्रवेश हो ही नहीं सकता। वैसे भय केवल तामस-भाव ही नहीं, वह अपवित्र भी होता है।। इसीलिये भय के देवता महाभैरव को यज्ञ में कोई भाग नहीं दिया जाता। कुत्ता उनका वाहन है। क्षेत्रपाल के रूप में उन्हें जब उनका भाग देना होता है तो यज्ञीय स्थान से दूर जाकर वह भाग उनको अर्पित किया जाता है, और उस भाग को देने के बाद यजमान स्नान करने के उपरांत ही पुन: यज्ञस्थल में प्रवेश कर सकता है।
पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया।
ऐसी मान्यता है कि अष्टमी के दिन स्नान के बाद पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के बाद यदि कालभैरव की पूजा की जाए तो उपासक के साल भर के सारे विघ्न टल जाते हैं। मान्यता यह भी है कि महाकाल भैरव मंदिर में चढ़ाए गए काले धागे को गले या बाजू में बाँधने से भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता है। ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी ‘काल’ का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत से लोग कालभैरव की उपासना करते हैं।
भारत में भैरव के अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें काशी का काल भैरव मंदिर सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है।
भारतीय संस्कृति प्रारंभ से ही प्रतीकवादी रही है और यहाँ की परम्परा में प्रत्येक पदार्थ तथा भाव के प्रतीक उपलब्ध हैं। यह प्रतीक उभयात्मक हैं – अर्थात स्थूल भी हैं और सूक्ष्म भी। सूक्ष्म भावनात्मक प्रतीक को ही कहा जाता है देवता। चूँकि भय भी एक भाव है, अत: उसका भी प्रतीक है – उसका भी एक देवता है, और उसी भय का हमारा देवता हैं महाभैरव।
व्रत की विधि :-मार्गशीर्ष अष्टमी पर कालभैरव के निमित्त व्रत उपवास रखने पर जल्द ही भक्तों की इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस पर्व की व्रत की विधि इस प्रकार है-
भैरवाष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। स्नान आदि कर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें। तत्पश्चात किसी भैरव मंदिर जाएं। मंदिर जाकर भैरव महाराज की विधिवत पूजा-अर्चना करें। साथ ही उनके वाहन की भी पूजा करें। साथ ही ऊँ भैरवाय नम: मंत्र से षोडशोपचारपूर्वक पूजन करना चाहिए। भैरवजी का वाहन कुत्ता है, अत: इस दिन कुत्तों को मिठाई खिलाएं। दिन में फलाहार करें।
भैरवाष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। स्नान आदि कर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें। तत्पश्चात किसी भैरव मंदिर जाएं। मंदिर जाकर भैरव महाराज की विधिवत पूजा-अर्चना करें। साथ ही उनके वाहन की भी पूजा करें। साथ ही ऊँ भैरवाय नम: मंत्र से षोडशोपचारपूर्वक पूजन करना चाहिए। भैरवजी का वाहन कुत्ता है, अत: इस दिन कुत्तों को मिठाई खिलाएं। दिन में फलाहार करें।
कैसे करें कालभैरव का पूजन : -
काल भैरवाष्टमी के दिन मंदिर जाकर भैरवजी के दर्शन करने से पूर्ण फल की प्राप्ति होती है। उनकी प्रिय वस्तुओं में काले तिल, उड़द, नींबू, नारियल, अकौआ के पुष्प, कड़वा तेल, सुगंधित धूप, पुए, मदिरा, कड़वे तेल से बने पकवान दान किए जा सकते हैं।
शुक्रवार को भैरवाष्टमी पड़ने पर इस दिन उन्हें जलेबी एवं तले पापड़ या उड़द के पकौड़े का भोग लगाने से जीवन के हर संकट दूर होकर मनुष्य का सुखमय जीवन व्यतीत होता है।
कालभैरव के पूजन-अर्चन से सभी प्रकार के अनिष्टों का निवारण होता है तथा रोग, शोक, दुखः, दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। कालभैरव के पूजन में उनकी प्रिय वस्तुएं अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
भैरवजी के दर्शन-पूजन से सकंट व शत्रु बाधा का निवारण होता है। दसों दिशाओं के नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति मिलती है तथा पुत्र की प्राप्ति होती है। इस दिन भैरवजी के वाहन श्वान को गुड़ खिलाने का विशेष महत्व है।
यूं तो भगवान भैरवनाथ को खुश करना बेहद आसान है लेकिन अगर वे रूठ जाएं तो मनाना बेहद मुश्किल। पेश है काल भैरव अष्टमी पर कुछ खास सरल उपाय जो निश्चित रूप से भैरव महाराज को प्रसन्न करेंगे।
रविवार, बुधवार या गुरुवार के दिन एक रोटी लें। इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दीजिए। अगर कुत्ता यह रोटी खा लें तो समझिए आपको भैरव नाथ का आशीर्वाद मिल गया। अगर कुत्ता रोटी सूंघ कर आगे बढ़ जाए तो इस क्रम को जारी रखें लेकिन सिर्फ हफ्ते के इन्हीं तीन दिनों में (रविवार, बुधवार या गुरुवार)। यही तीन दिन भैरव नाथ के माने गए हैं।
उड़द के पकौड़े शनिवार की रात को कड़वे तेल में बनाएं और रात भर उन्हें ढंककर रखें। सुबह जल्दी उठकर प्रात: 6 से 7 के बीच बिना किसी से कुछ बोलें घर से निकले और रास्ते में मिलने वाले पहले कुत्ते को खिलाएं। याद रखें पकौड़े डालने के बाद कुत्ते को पलट कर ना देखें। यह प्रयोग सिर्फ रविवार के लिए हैं।
शनिवार के दिन शहर के किसी भी ऐसे भैरव नाथ जी का मंदिर खोजें जिन्हें लोगों ने पूजना लगभग छोड़ दिया हो। रविवार की सुबह सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी लेकर पहुंच जाएं। मन लगाकर उनकी पूजन करें। बाद में 5 से लेकर 7 साल तक के बटुकों यानी लड़कों को चने-चिरौंजी का प्रसाद बांट दें। साथ लाए जलेबी, नारियल, पुए आदि भी उन्हें बांटे। याद रखिए कि अपूज्य भैरव की पूजा से भैरवनाथ विशेष प्रसन्न होते हैं।
. प्रति गुरुवार कुत्ते को गुड़ खिलाएं।
रेलवे स्टेशन पर जाकर किसी कोढ़ी, भिखारी को मदिरा की बोतल दान करें।
सवा किलो जलेबी बुधवार के दिन भैरव नाथ को चढ़ाएं और कुत्तों को खिलाएं।
शनिवार के दिन कड़वे तेल में पापड़, पकौड़े, पुए जैसे विविध पकवान तलें और रविवार को गरीब बस्ती में जाकर बांट दें।
रविवार या शुक्रवार को किसी भी भैरव मं‍दिर में गुलाब, चंदन और गुगल की खुशबूदार 33 अगरबत्ती जलाएं।
. पांच नींबू, पांच गुरुवार तक भैरव जी को चढ़ाएं।
सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरव नाथ के मंदिर में बुधवार के दिन चढ़ाएं।
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी काल भैरवाष्टमी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान महादेव ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था। कालभैरव भगवान महादेव का अत्यंत ही रौद्र, भयाक्रांत, वीभत्स, विकराल प्रचंड स्वरूप है। भैरवजी को काशी का कोतवाल भी माना जाता है।
तंत्राचार्यों का मानना है कि वेदों में जिस परम पुरुष का चित्रण रुद्र में हुआ, वह तंत्र शास्त्र के ग्रंथों में उस स्वरूप का वर्णन ‘भैरव’ के नाम से किया गया, जिसके भय से सूर्य एवं अग्नि तपते हैं। इंद्र-वायु और मृत्यु देवता अपने-अपने कामों में तत्पर हैं, वे परम शक्तिमान ‘भैरव’ ही हैं। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है।
तांत्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरूक्ति उनका विराट रूप प्रतिबिम्बित करती हैं। वामकेश्वर तंत्र की योगिनीहदयदीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं- ‘विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात्‌ सृष्टि-स्थिति-संहारकारी परशिवो भैरवः।’
भ- से विश्व का भरण, र- से रमश, व- से वमन अर्थात सृष्टि को उत्पत्ति पालन और संहार करने वाले शिव ही भैरव हैं। तंत्रालोक की विवेक-टीका में भगवान शंकर के भैरव रूप को ही सृष्टि का संचालक बताया गया है।
श्री तंत्वनिधि नाम तंत्र-मंत्र में भैरव शब्द के तीन अक्षरों के ध्यान के उनके त्रिगुणात्मक स्वरूप को सुस्पष्ट परिचय मिलता है, क्योंकि ये तीनों शक्तियां उनके समाविष्ट हैं-
‘भ’ अक्षरवाली जो भैरव मूर्ति है वह श्यामला है, भद्रासन पर विराजमान है तथा उदय कालिक सूर्य के समान सिंदूरवर्णी उसकी कांति है। वह एक मुखी विग्रह अपने चारों हाथों में धनुष, बाण वर तथा अभय धारण किए हुए हैं।
‘र’ अक्षरवाली भैरव मूर्ति श्याम वर्ण हैं। उनके वस्त्र लाल हैं। सिंह पर आरूढ़ वह पंचमुखी देवी अपने आठ हाथों में खड्ग, खेट (मूसल), अंकुश, गदा, पाश, शूल, वर तथा अभय धारण किए हुए हैं।
‘व’ अक्षरवाली भैरवी शक्ति के आभूषण और नरवरफाटक के सामान श्वेत हैं। वह देवी समस्त लोकों का एकमात्र आश्रय है। विकसित कमल पुष्प उनका आसन है। वे चारों हाथों में क्रमशः दो कमल, वर एवं अभय धारण करती हैं।
स्कंदपुराण के काशी- खंड के 31वें अध्याय में उनके प्राकट्य की कथा है। गर्व से उन्मत ब्रह्माजी के पांचवें मस्तक को अपने बाएं हाथ के नखाग्र से काट देने पर जब भैरव ब्रह्म हत्या के भागी हो गए, तबसे भगवान शिव की प्रिय पुरी ‘काशी’ में आकर दोष मुक्त हुए।
ब्रह्मवैवत पुराण के प्रकृति खंडान्तर्गत दुर्गोपाख्यान में आठ पूज्य निर्दिष्ट हैं- महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रूरू भैरव, काल भैरव, क्रोध भैरव, ताम्रचूड भैरव, चंद्रचूड भैरव। लेकिन इसी पुराण के गणपति- खंड के 41वें अध्याय में अष्टभैरव के नामों में सात और आठ क्रमांक पर क्रमशः कपालभैरव तथा रूद्र भैरव का नामोल्लेख मिलता है। तंत्रसार में वर्णित आठ भैरव असितांग, रूरू, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण संहार नाम वाले हैं।
भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं। शिव पुराण में भैरव को महादेव शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। इनकी आराधना में कठोर नियमों का विधान भी नहीं है। ऐसे परम कृपालु एवं शीघ्र फल देने वाले भैरवनाथ की शरण में जाने पर जीव का निश्चय ही उद्धार हो जाता है।
भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है।
भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।
जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्‍ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगाना लाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है।
भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं। भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है।
खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है। भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं। वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, ‍लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है। ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे।
भैरव अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करके उनके कर्म सिद्धि को अपने आशीर्वाद से नवाजते है। भैरव उपासना जल्दी फल देने के साथ-साथ क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त खत्म कर देती है। शनि या राहु से पीडि़त व्यक्ति अगर शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। तो उसके सारे कार्य सकुशल संपन्न हो जाते है।
एक बार भगवान शिव के क्रोधित होने पर काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई। तब ब्रह्म हत्या को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे।
मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है। पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है। तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है।
जीवन में आने वाली समस्त प्रकार की बाधाओं को दूर करने के लिए भैरव आराधना का बहुत महत्व है। खास तौर भैरवाष्टमी के दिन तंत्र-मंत्रों का प्रयोग करके आप अपने व्यापार-व्यवसाय, जीवन में आने वाली कठिनाइयां, शत्रु पक्ष से आने वाली परेशानियां, विघ्न, बाधाएं, कोर्ट कचहरी आदि मुकदमे में जीत के लिए भैरव आराधना करेंगे, तो निश्चित ही आपके सारे कार्य सफल और सार्थ क हो जाएंगे।

👉भैरव आराधना के खास मंत्र निम्नानुसार है : -
- ‘ॐ कालभैरवाय नम:।’
- 2 ॐ भयहरणं च भैरव:।’
- ‘ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।’
- ‘ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।’
- ‘ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्‍।’
जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 40 दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
उपरोक्त मंत्र जप आपके समस्त शत्रुओं का नाश करके उन्हें भी आपके मित्र बना देंगे। आपके द्वारा सच्चे मन से की गई भैरव आराधना और मंत्र जप से आप स्वयं को जीवन में संतुष्ट और शांति का अनुभव करेंगे।
________________
💯✔दर्शन हेतु श्री काली मन्त्र

“डण्ड भुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड। प्रगट देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड। खगर दिखा खप्पर लियां, खड़ी कालका। तागड़दे मस्तङ्ग, तिलक मागरदे मस्तङ्ग। चोला जरी का, फागड़ दीफू, गले फुल-माल, जय जय जयन्त। जय आदि-शक्ति। जय कालका खपर-धनी। जय मचकुट छन्दनी देव। जय-जय महिरा, जय मरदिनी। जय-जय चुण्ड-मुण्ड भण्डासुर-खण्डनी, जय रक्त-बीज बिडाल-बिहण्डनी। जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव राजेश्वरी। अमृत-यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी। बड़ रवि डर-डरनी ॐ ॐ ॐ।।”
विधि- नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित रखते हुए अगर-बत्ती जलाकर प्रातः-सायं उक्त मन्त्र का ४०-४० जप करे। कम या ज्यादा न करे। जगदम्बा के दर्शन होते हैं।

👉होली पर करने योग्य टोटके

१॰ यदि किसी ने आपके व्यवसाय अथवा निवास पर कोई तंत्र क्रिया करवा रखी हो, तो होली की रात्रि में जिस स्थान पर होलिका दहन हो, उस स्थान पर एक गड्ढा खोसकर उसमें ११ अभिमंत्रित कौड़ियाँ दबा दें । अगले दिन कौड़ियों को निकालकर व्यवसाय स्थल की मिट्टी के साथ नीले वस्त्र में बांधकर बहते जल में प्रवाहित कर दें । तंत्र क्रिया नष्ट हो जाएगी ।

२॰ यदि आपके कार्यों में लगातार बाधाएँ आ रही हो, अथवा घर में अचानक ही अप्रिय घटनाएँ घटित होती हों, जिसके कारण बड़ी हानि उठानी पड़ती हो अथवा आपको लगता हो कि आपके घर पर कोई ऊपरी चक्कर है अथवा किसी ने कोई बन्दिश करवा दी है, तो आप इस उपाय के माध्यम से उपरोक्त सभी समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं ।
होली की रात्रि में घर में किसी शुद्ध स्थान पर गोबर से लीपकर उसपर अष्टदल बनाएं । फिर एक बाजोट रखकर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर अभिमंत्रित ३ लघु नारियल तथा श्री हनुमान यंत्र को स्थान दें । इसके बाद एक पात्र में थोड़ा-सा गाय का कच्चा दूध रखें तथा अलग से पंचगव्य रखें । फिर नारियल व यंत्र पर रोली से तिलक करके प्रभु श्री हनुमान् जी से अपनी समस्या के समाधान का निवेदन करें और गुड़ का भोग लगाएँ ।
तत्पश्चात् शुद्ध घी के दीपक के साथ चन्दन की अगरबत्ती व गुग्गुल की धूप अर्पित करें । फिर ताँबे की प्लेट पर रोली से “ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्” मंत्र लिखकर एक सामान्य नारियल को फोड़कर (पधारकर) उसके पानी को अपने साधना स्थल पर छिड़क दें और नारियल को प्लेट के पास रख दें । फिर मूंगे की माला से “ॐ घण्टाकर्णो महावीर सर्व उपद्रव नाशय कुरु-कुरु स्वाहा” मंत्र की तीन माला का जप करें । मंत्र समाप्त होने के बाद प्रणाम करके बाहर आ जाएँ । गाय के दूध को अपने घर के चारों ओर घुमते हुए धारा के रुप में बिखराकर कवच जैसा बना दें और पंचगव्य से मुख्यद्वार को लीप दें ।
अगले दिन स्नान करके प्रभु को भोग व धूप-दीप अर्पत करके घण्डाकर्ण मंत्र की पुनः तीन माला का जप करें । इस प्रकार यह क्रिया लगातार ११ दिन तक करें । ११वें दिन मंत्र जप के बाद १४-१८ वर्ष के किसी लड़के को भोजन कराकर दक्षिणा और वस्त्र आदि दें । फिर उसका चरण स्पर्श कर विदा करें । उसके जाने के बाद लाल वस्त्र पर लघु नारियल, यंत्र और टूटा नारियल रखकर एक पोटली का रुप दें । उसको किसी लकड़ी के डिब्बे में रखकर अपने घर में कहीं भी गड्ढा खोदकर दबा दें ।
अब ताँबे की जिस प्लेट में आपने प्रभु का नाम लिखा था, उसमें गंगाजल डालकर धो लें और उस जल को अपने घर में छिड़क दें । यदि आप किसी फ्लैट में रहते हों, जहाँ आपको पोटली दबाने का स्थान न मिले, तो अपने फ्लैट के पास किसी कच्चे स्थान पर दबा सकते हैं । इस उपाय से कुछ ही समय बाद आप चमत्कारिक परिवर्तन अनुभव करेंगे । यदि यह उपाय होली पर नहीं कर पाते, तो शुक्ल पक्ज़ के प्रथम मंगलवार से आरम्भ करें । सभी समस्या दूर हो जायेगी ।

३॰ व्यवसाय में सफलता के लिए आप जब होली जल जाए, तब आप होलिका की थोड़ी-सी अग्नि ले आएं । फिर अपने दुकान एवं व्यवसाय स्थल के आग्नेय कोण में उस अग्नि की मदद से सरसों के तेल का दीपक जला दें । इस उपाय से आपके दुकान व व्यवसाय स्थल की सारी नकारात्मक ऊर्जा जलकर समाप्त हो जाएगी । इससे आपके दुकान एवं व्यवसाय में सफलता मिलेगी ।

४॰ यदि आपके परिवार अथवा परिचितों में कोई व्यक्ति अधिक समय से अस्वस्थ हो, तो उसके लिए यह उपाय लाभकारी होगा । होली की रात्रि में सफेद वस्त्र में ११ अभिमंत्रित गोमती चक्र, नागकेसर के २१ जोड़े तथा ११ धनकारक कौड़ियाँ बांधकर कपड़े पर हरसिंगार तथा चन्दन का इत्र लगाकर रोगी पर से सात बार उसारकर किसी शिव मन्दिर में अर्पित करें । व्यक्ति तुरन्त स्वस्थ होने लगेगा । यदि बिमारी गम्भीर हो, तो यह क्रिया शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरम्भ करके लगातार ७ सोमवार को करें ।

५॰ यदि आप अपना कोई विशेष कार्य सिद्ध करना चाहते हों अथवा कोई व्यक्ति गम्भीर रुप से रोगग्रस्त हो, तो होली की रात्रि में किसी काले कपड़े में काली हल्दी तथा खोपरे में बूरा भरकर पोटली बनाकर पीपल के वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर दबा दें । फिर पीपल के वृक्ष को आटे से निर्मित सरसों के तेल का दीपक, धूप-अगरबत्ती तथा मीठा जल अर्पित करें । इसके बाद आठ अभिमंत्रित गोमती चक्र पीपल पर ही छोड़कर पीछे देखे बिना घर आ जाएं । शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को जाकर सिर्फ उपरोक्त प्रकार से दीपक व धूप-अगरबत्ती अर्पित करके छोड़े गए गोमती चक्र ले आएं । जब तक कार्य सिद्ध न हो, वह गोमती चक्र अपनी जेब में रखें अथवा जो व्यक्ति रोग-ग्रस्त हो, उसके सिरहाने रख दें । कुछ ही समय में आपके कार्य सिद्ध होने लगेंगे अथवा अस्वस्थ व्यक्ति स्वस्थ लाभ करेगा ।

६॰ यदि आप आर्थिक संकट से ग्रस्त हैं, तो जिस स्थान पर होलिका जलती हो, उस स्थान पर गड्ढा खोदकर अपने मध्यमा अंगुली के लिए बनने वाले छल्ले की मात्रा के अनुसार चाँदी, पीतल व लोहा दबा दें । फिर मिट्टी से ढककर लाल गुलाल से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं । जब आप होलिका पूजन को जाएं, तो पान के एक पत्ते पर कपूर, थोड़ी-सी हवन सामग्री, शुद्ध घी में डुबोया लौंग का जोड़ा तथा बताशै रखें । दूसरे पान के पत्ते से उस पत्ते को ढक दें और सात बार परिक्रमा करते हुए “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें । परिक्रमा समाप्त होने पर सारी सामग्री होलिका में अर्पित कर दें तथा पूजन के बाद प्रणाम करके घर वापस आ जाएं । अगले दिन पान के पत्ते वाली सारी नई सामग्री ले जाकर पुनः यही क्रिया करें । जो धातुएं आपने दबाई हैं, उनको निकाल लाएं । फिर किसी सुनार से तीनों धातुओं को मिलाकर अपनी मध्यमा अंगुली के माप का छल्ला बनवा लें । १५ दिन बाद आने वाले शुक्ल पक्ष के गुरुवार को छल्ला धारण कर लें । जब तक आपके पास यह छल्ला रहेगा, तब तक आप कभी भी आर्थिक संकट में नहीं आएंगे ।

७॰ यदि आप किसी प्रकार की आर्थिक समस्या से ग्रस्त हैं, तो होली पर यह उपाय अवश्य करें । होली की रात्रि में चन्द्रोदय होने के बाद अपने निवास की छत पर अथवा किसी खुले स्थान पर आ जाएं । फिर चन्द्रदेव का स्मरण करते हुए चाँदी की एक प्लेट में सूखे छुहारे तथा कुछ मखाने रखकर शुद्ध घी के दीपक के साथ धूप एवं अगरबत्ती अर्पित करें । अब दूध से अर्घ्य प्रदान करें । अर्घ्य के बाद कोई सफेद प्रसाद तथा केसर मिश्रित साबूदाने की खीर अर्पित करें । चन्द्रदेव से आर्थिक संखट दूर कर समृद्धि प्रदान करने का निवेदन करें । बाद में प्रसाद और मखानों को बच्चों में बांट दें । आप प्रत्येक पूर्णिमा को चन्द्रदेव को दूध का अर्घ्य अवश्य दें । कुछ ही दिनों में आप अनुभव करेंगे कि आर्थिक संकट दूर होकर समृद्धि बढ़ रही है ।

८॰ होली के दिन अपने घर पर अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान में सूर्य डूबने से पहले धूप-दीप करें । घर व प्रतिष्ठान की सारी लाइट जला दें तथा मन्दिर के सामने माँ लक्ष्मी का कोई मंत्र ११ बार मानसिक रुप से जपें । तत्पश्चात् घर अथवा प्रतिष्ठान की कोई भी कील लाकर जिस स्थान पर होली जलनी हो, वहां की मिट्टी में दबा दें । अगले दिन उस कील को निकालकर मुख्य-द्वार के बाहर की मिट्टी में दबा दें । इस उपाय से आपके निवास अथवा प्रतिष्ठान में किसी प्रकार की नकारात्मक शक्ति का प्रवेश नहीं होगा । आप आर्थिक संकट में भी नहीं आएंगे ।

९॰ यदि आप पर किसी प्रकार का कोई कर्ज है, तो होली की रात्ति में यह उपाय करके कर्ज से मुक्ति पा सकते हैं । जिस स्थान पर होली जलनी हो, उस स्थान पर एक छोटा-सा गड्ढा खोदकर उसमें तीन अभिमंत्रित गोमती चक्र तथा तीन कौड़ियाँ दबा दें । फिर मिट्टी में लाल गुलाल व हरा गुलाल मिलाकर उस गड्ढे को भरकर उसके ऊपर पीले गुलाल से कर्जदार का नाम लिख दें । जब होली जले तब आप पान के पत्ते पर ३ बतासे, घी में डुबोया एक जोड़ा लौंग, तीन बड़ी इलायची, थोड़े-से काले तिल व गुड़ की एक डली रखकर तथा सिन्दूर छिड़ककर पान के पत्ते से ढक दें ।
अब सात परिक्रमा करते हुए प्रत्येक बार निम्न मंत्र का जप करके एक-एक गोमती चक्र होलिका में डालतेजाएं - “ल्रीं ल्रीं फ्रीं फ्रीं अमुक कर्ज विनश्यते फट् स्वाहा” यहां अमुक के स्थान पर कर्जदार का नाम लें । परिक्रमा करने के बाद प्रणाम करके वापस आ जाएं । अगले दिन जाकर सर्वप्रथम तीन अगरबत्ती दिखाकर गड्ढे में से सामग्री निकाल लें और थोड़ी-सी गुलाल मिश्रित मिट्टी भी ले लें । फिर सभी को किसी नदी में प्रवाहित कर दें । कुछ ही समय में कर्ज मुक्ति के मार्ग निर्मित होने लगेंगे ।

१०॰ आपने देखा होगा कि किसी निवास या व्यवसाय स्थल पर अचानक ही कुछ अजीबो-गरीब घटनाएं घटित होती हैं अथवा उस स्थान पर जो व्यक्ति प्रवेश करता है, उसके मन में डर के साथ अजीब-सी घुटन होने लगती है अथवा बिना बात के नुकसान या झगड़े होने लगते हैं । यदि आपके साथ ऐसा कुछ होता है, तो समझ जाएं कि आप पर अथवा उस स्थान पर किसी प्रकार की कोई ऊपरी बाधा का प्रभाव है । जब तक आप उस बाधा से मुक्ति नहीं पा लेंगे, तब तक आप ऐसे ही परेशान रहेंगे । इस बाधा से मुक्ति पाने के लिए आप यह उपाय अवश्य करें ।
जिस स्थान पर यह बाधा है, उस स्थान के सर्वाधिक निकट जो भी वृक्ष हो, उसको देखें । यदि पीपल का वृक्ष हो, तो बहुत अच्छा है । होली के पूर्व शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को अंधेरा होने पर आप उस स्थान पर जाएं, जिस स्थान पर वृक्ष है । फिर ताँबे के एक पात्र में दूध में थोड़ी-सी शक्कर मिश्रित करें और खोए के तीन लड्डू, थोड़ी-सी साबूदाने की खीर, ११ हरी इलायची, २१ बताशे, दूध से बनी थोड़ी-सी कोई भी अन्य मिठाई तथा एक सूखे खोपरे में बूरा भरकर उसके मध्य लौंग का एक जोड़ा रखकर उस वृक्ष की जड़ में अर्पित करें । साथ ही २१ अगरबत्ती भी अर्पित करें । यही क्रिया किसी मन्दिर में लगे पीपल के वृक्ष पर भी करें । प्रथम बार के प्रयोग से ही आप परिवर्तन अनुभव करेंगे । यदि समस्या अधिक है, तो यह क्रिया ३, ५, ७ या ११ सोमवार तक करें । आप निश्चित रुप से ऊपरी बाधा से मुक्ति पा लेंगे । परन्तु इतना ध्यान रखें कि बाधा से मुक्ति के बाद आप प्रभु श्री हनुमान् जी के नाम पर कुछ दान अवश्य करें ।

११॰ यदि आपको ऐसा लगे कि आपके निवास अथवा व्यवसाय स्थल पर कोई ऊपरी बाधा है, तो आप इस उपाय द्वारा उस बाधा से मुक्ति पा सकते हैं । होली की रात्रि में गाय के गोबर से इक दीपक बनाएं । इसके बाद उसमें सरसों का तेल, लौंग का जोड़ा, थोड़ा-सा गुड़ और काले तिल डाल दें । फिर दीफक को अपने मुख्य द्वार के बिल्कुल मध्य स्थान पर रख दें । द्वार की चौखट के बाहर आठ सौ ग्राम काली साबूत उड़द को फैला दें ।
अब द्वार के अन्दर आकर दीपक को जला दें और द्वार बन्द कर दें । अगले दिन ठण्डा दीपक उठाकर घर के बाहर रख दें और झाड़ू की मदद से सारी उड़द को समेट लें । फिर ठण्डा दीपक और उड़द को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें । तत्पश्चात् घर वापस आ जाएं तथा हाथ-पैर धोकर ही घर में प्रवेश करें । इसके बाद आप अगले शनिवार से पुनः यही क्रिया लगातार तीन शनिवार करें । यदि आपको लगे कि बाधा अधिक बड़ी है, तो अगले शुक्ल पक्ष से पुनः तीन बार यह क्रिया दोहराएं । कार्य सिद्ध हो जाने पर शनिवार को ही किसी भी पीपल के वृक्ष में मीठे जल के साथ धूप-दीप अर्पित करें । इस उपाय द्वारा आप ऊपरी बाधा से मुक्ति पा लेंगे ।

👉श्री गुरु गोरखनाथ का शाबर मंत्र

विधि - सात कुओ या किसी नदी से सात बार जल लाकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए रोगी को स्नान करवाए तो उसके ऊपर से सभी प्रकार का किया-कराया उतर जाता है.

👉मंत्र

ॐ वज्र में कोठा, वज्र में ताला, वज्र में बंध्या दस्ते द्वारा, तहां वज्र का लग्या किवाड़ा, वज्र में चौखट, वज्र में कील, जहां से आय, तहां ही जावे, जाने भेजा, जांकू खाए, हमको फेर न सूरत दिखाए, हाथ कूँ, नाक कूँ, सिर कूँ, पीठ कूँ, कमर कूँ, छाती कूँ जो जोखो पहुंचाए, तो गुरु गोरखनाथ की आज्ञा फुरे, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र इश्वरोवाचा.

प्रत्येक साधना के कुछ नियम होते है, इसी प्रकार साबर साधनाओं में भी कुछ विशेष नियम होते है ! इन नियमों का पालन किये बिना सिद्धि मिलना बहुत मुश्किल होता है और यदि इन नियमों का पालन किया जाएँ तो साबर साधनाएँ जल्दी सिद्ध हो जाती है! जिस प्रकार वैदिक रीति में करन्यास, अंगन्यास आदि का महत्त्व है , उसी प्रकार साबर साधनाओं में आसन जाप और शारीर कीलन का महत्त्व है ! आप लोगो की सुविधा के लिए आसन जाप की आसान विधि दी जा रही है ! किसी भी साधना को करने से पहले इन मंत्रो का प्रयोग अवश्य करें ! यह मंत्र स्वयं सिद्ध है , इन्हें सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है  !

👉आसन बिछाते हुए इस मन्त्र का जाप करे और आसन को नमस्कार करे -

ॐ नमो आदेश श्री गुरूजी को,
अंतर मन्त्र ढाई कंकर
जय शिव शंकर

अब आसन पर बैठ कर आसन जाप

सत नमो आदेश,गुरूजी को आदेश,
ॐ गुरूजी मन मारू मैदा करू,करू चकनाचूर
पांच महेश्वर आज्ञा करे तो बैठू आसन पूर
श्री नाथ जी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश

👉पूजा  के बाद आसन उठाते हुए इस मन्त्र का जाप करे, आसन उठाने का मन्त्र -

ॐ  सत नमो आदेश,गुरूजी को आदेश
ॐ गुरूजी, ॐ तरो तरो महेश्वर करणी उतारो पार
संत चले घर अपने मंदिर जय जयकार
श्रीनाथजी  गुरूजी को आदेश आदेश आदेश

👉ब्रह्मचर्य रक्षा मंत्र

यह प्रयोग स्वयं सिद्ध है ! इसे सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है ! फिर भी पर्व काल में एक माला जप ले !
जिन लोगों की साधना बार बार स्वप्नदोष की वजह से भंग हो जाती है वह इसका इस्तेमाल जरुर करे !
एक बात का हमेशा ख्याल रखे कि यदि आपका मन पवित्र नहीं है तो किसी भी उपाय से ब्रह्मचर्य की रक्षा नहीं हो सकती !

|| मंत्र |
“सत नमो आदेश ! गुरूजी को आदेश !
पारा पारा महापारा पारा पहुंचा दशमे द्वारा दशमे द्वारे कौन पहुंचाए ?
गुरु गोरखनाथ पहुचाये , जो न पहुंचाए तो हनुमान का ब्रहमचर्य खंडित हो जाये ,
माता अन्जनी की आन चले , गुरु गोरख का वान चले ,
मेरा ब्रहमचर्य जाये तो हनुमान त्रिया राज्य में रानी मैनाकनी को भोग के आये !
दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ आओ जैसे हनुमान का ब्रहमचर्य रखा हमारी भी लाज बचाओ !
ॐ गुरूजी भग में लिंग , लिंग में पारा जो राखे वही गुरु हमारा !
काम कामनी की यह आग इसे मिटावे गोरखनाथ
माया का पर्दा देयो हटा दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ !
दुहाई दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ की ! आदेश गुरु गोरख के !
नाथ जी गुरूजी को आदेश आदेश आदेश !
|| विधि ||
रात को सोते समय इस मंत्र को 21 बार जप करे और लाल लंगोट धारण करे ! लंगोट धारण करते वक़्त भी इस मंत्र का जाप करे !
भगवान से हमारी यही कामना है कि आपको साधनाओं में सफलता प्रदान करे !

___________________________

💯✔ #चौंसठ_योगिनी_साधना (#हिन्दू_मान्यता)

https://goo.gl/oKmgzi

1-योगिनी साधना एक बहुत ही प्राचीन तंत्र विद्या की विधि है।इसमें सिद्ध योगिनी या सिद्धि दात्री योगिनी की आराधना की जाती है । इस विद्या को कुछ लोग द्वितीय दर्जे की आराधना मानते हैं क्योंकि दुरुपयोग  होने पर अनिष्ट होने की आशंका रहती है।माँ शक्ति के भक्तों को योगिनी साधना से बहुत जल्द और काफी उत्साहवर्धक परिणाम प्राप्त होते हैं। इस साधना को करने वाले साधक की प्राण ऊर्जा में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होती है।माँ की कृपा से भक्त के जीवन की सारी मुश्किलें हल हो जाती हैं और उसके घर में सुख और सम्रद्धि का आगमन हो जाता है.


2-जब भाग्यवश काफी प्रयासों के बाद भी कोई काम नहीं बन रहा है या प्रबल शत्रुओं के वश में होकर जीवन की आशा छोड़ दी हो तो इस साधना से इन सभी कष्टों से सहज ही मुक्ति पाई जा सकती है। इस साधना के द्वारा वास्तु दोष, पितृदोष, कालसर्प दोष तथा कुंडली के अन्य सभी दोष बड़ी आसाना से दूर हो जाते हैं। इनके अलावा दिव्य दृष्टि (किसी का भी भूत, भविष्य या वर्तमान जान लेना) जैसी कई सिद्धियां बहुत ही आसानी से साधक के पास आ जाती है।परन्तु इन सिद्धियों का भूल कर भी दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। अन्यथा अनिष्ट होने की आशंका रहती है।

https://goo.gl/oKmgzi

3-अष्ट या चौंसठ योगिनियों आदिशक्ति मां काली का अवतार है। घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने ये अवतार लिए थे। यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पर्वती की सखियां हैं। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी आद्या शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं।समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं।

समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं तथा इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं।मुख्य रूप से योगिनियां अष्ट योगिनी तथा चौसठ योगिनी के नाम से जानी जाती हैं, जो अपने गुणों तथा स्वभाव से भिन्न-भिन्न रूप धारण करती हैं।


4-आदिशक्ति का सीधा सा सम्बन्ध है इस शब्द का जिसमे प्रकृति या ऐसी शक्ति का बोध होता जो उत्पन्न करने और पालन करने का दायित्व निभाती है जिसने भी इस शक्ति की शरणमें खुद को समर्पित कर दिया उसे फिर किसी प्रकार कि चिंताकरने कि कोई आवश्यकता नहीं वह परमानन्द हो जाता है चौंसठ योगिनियां वस्तुतः माता आदिशक्ति कि सहायक शक्तियों के रूप में मानी जाती हैं । जिनकी मदद से माता आदिशक्ति इस संसार का राज काज चलाती हैं एवं श्रृष्टि के अंत काल में ये मातृका शक्तियां वापस माँ आदिशक्ति में पुनः विलीन हो जाती हैं और सिर्फ माँ आदिशक्ति ही बचती हैं फिर से पुनर्निर्माण के लिए ।

https://goo.gl/oKmgzi

5-इस मृत्यु लोक में मातृ शक्ति के जितने भी रूप विदयमान हैं सब एक ही विराट महामाया आद्यशक्ति के अंग,भाग , रूप हैं साधकों को वे जिस रूप की साधना करते हैं उस रूप के लिए निर्धारित व्यवहार और गुणों के अनुरूप फल प्राप्त होता है। चौंसठ योगिनियां वस्तुतः माता दुर्गा कि सहायक शक्तियां है जो समय समय पर माता दुर्गा कि सहायक शक्तियों के रूप में काम करती हैं। समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं तथा इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं। एवं दुसरे दृष्टिकोण से देखा जाये तो यह मातृका शक्तियां तंत्र भाव एवं शक्तियोंसे परिपूरित हैं और मुख्यतः तंत्र ज्ञानियों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं ।

https://goo.gl/oKmgzi

क्या महत्व हैं चौंसठ योगिनी का ?


1-64 योगिनियों के भारत में पांच  प्रमुख मंदिर है। दो ओडिशा में तथा तीन मध्यप्रदेश में।उड़ीसा में भुवनेश्वर के निकट हीरापुर तथा बोलनगीर के निकट रानीपुर में हैं।मध्यप्रदेश में एक मुरैना जिले के थाना थाना रिठौराकलां में ग्राम पंचायत मितावली में है। इसे 'इकंतेश्वर महादेव मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। दूसरा मंदिर खजूराहो में स्थित है। 875-900 ई. के आसपास बना यह मंदिर खजुराहो के मंदिरों के पश्चिमी समूह में आता है। तीसरा जबलपुर के निकट भेड़ाघाट में हैं।  


2-ये मंदिर लम्बे वक्त से परित्यक्त हैं जिनके कारण आज भी रहस्य बने हुए हैं।कहीं शिव जी तथा भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा बढऩे से इन मंदिरों में सहज रूप से अवनति तो नहीं आ गई थी? इसका कारण ब्रह्मचारी पुरुषों के वर्चस्व वाले वेदांतिक आश्रमों का दबाव तो नहीं था? कहीं ऐसा मुस्लिम आक्रमणकारियों की वजह से तो नहीं हुआ था? इनमें अफगान सेनापति काला पहाड़ भी एक था जिसने उड़ीसा पर हमला करके इसके अधिकतर स्मारकों को तबाह कर दिया था। असलियत न जाने क्या थी क्योंकि इन कारणों के बारे में हम कल्पना ही कर सकते हैं।हालांकि, पुरातत्वविदों ने इन मंदिरों की खोज और जीर्णोद्धार गत एक सदी के दौरान ही किया।

https://goo.gl/oKmgzi

3-इन मंदिरों के देवी-देवताओं के बारे में संस्कृत लेख अस्पष्ट हैं। इनमें नामों की कई सूचियां, अनुष्ठानों का जिक्र है लेकिन पौराणिक कथाएं नहीं हैं, केवल युद्ध पर निकलीं दुर्गा और काली मां की कहानियां हैं।आमतौर पर हिन्दू मंदिर वर्गाकार होते हैं और इनका विन्यास रेखीय होता है। अधिकतर मंदिरों में ईश्वर का मुख पूर्व दिशा की ओर होता है। दूसरी ओर गोलाकार योगिनी मंदिरों में ईश्वर का मुंह हर दिशा की ओर होता है। हालांकि, कुएं जैसी इन संरचनाओं का प्रवेश द्वार पूर्व की ओर ही है।


4-मंदिरों की आम पहचान गुम्बद या विमान इनमें नहीं हैं। वास्तव में इन मंदिरों की तो छत ही नहीं है। उड़ीसा के हीरापुर तथा रानीपुर के योगिनी मंदिरों की अंदरूनी दीवारों पर योगिनियों की प्रतिमाएं हैं, सभी का मुंह केंद्र में बने मंदिर की ओर है।मध्यप्रदेश के भेड़ाघाट और मितावली मंदिरों में सभी योगिनियों के अलग-अलग मंदिर हैं जिनकी छतें तो हैं परंतु वे सभी गोलाकार प्रांगण की ओर खुलते हैं। योगिनियों की प्रतिमाएं हीरापुर, रानीपुर तथा जबलपुर के मंदिरों में अच्छी हालत में हैं।

https://goo.gl/oKmgzi

5-खजुराहो के मंदिर में केवल तीन प्रतिमाएं बची हैं जबकि मौरेना के मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है। कहीं उन्हें हटा कर शिवलिंगों से तो नहीं बदल दिया गया? शायद कोई नहीं जानता।हीरापुर में योगिनी प्रतिमाओं में महिलाओं को विभिन्न दशाओं में प्रदर्शित किया गया है। कुछ नृत्य कर रही हैं, कुछ धनुष-बाण से शिकार कर रही हैं, कुछ संगीत वादन कर रही हैं, कुछ खून अथवा मदिरा पी रही हैं, कुछ हाथों में छानना लेकर घरेलू कामकाज कर रही हैं। अधिकतर ने खूब आभूषण पहने हैं और उनके केश भी सुंदर सज्जित हैं।


6-अन्यों के सिर सर्प, भालू, शेर या हाथी के हैं जो इंसानी मस्तक, नर देहों, कौओं, मुर्गों, मोरों, बैलों, भैंसों, गधों, शूकरों, बिच्छुओं, केकड़ों, ऊंटों, कुत्तों, जल पर अथवा अग्नि के मध्य खड़ी हैं।इनमें से कुछ पहचानी जा सकती हैं जैसे चामुंडा, वीणाधारी सरस्वती, कलश धारी लक्ष्मी और नरसिम्ही व वाराही जैसे विष्णु भगवान के स्त्री रूप के अलावा इंद्राणी। इतना तो स्पष्ट है


कि योगिनियां जीवन से परिपूर्ण हैं।यदि योगी जीवन से दूर होते हैं तो योगिनी जीवन को अपनाती है। योगी अमरता की चाह रखता है तो योगिनी को मृत्यु से भय नहीं। यदि योगी इच्छाओं पर काबू पाना चाहता है तो योगिनी सभी इच्छाओं को आजाद करने में विश्वास रखती है।

क्या महत्व हैं चौंसठ का? चौंसठ ही क्यों?

https://goo.gl/oKmgzi

1-इसके बारे में भी हम कल्पना ही कर सकते हैं। शायद यह उन चौंसठ कलाओं की ओर इशारा हो जिनमें अप्सराएं व प्राचीन काल की गणिकाएं पारंगत थीं। हो सकता है कि इनका अर्थ और भी गूढ़ हो और ये दिन के आठ प्रहरों को प्रदर्शित करते हों या भारत में इजाद किए गए शतरंज के खेल की आठ दिशाओं को।इन सभी गोलाकार संरचनाओं के बीचों-बीच केंद्रीय मंदिर हैं।हीरापुर में केंद्रीय संरचना एक मंडप जैसी है जो आकाश की ओर खुली है। इसकी चार दीवारों पर चार भैरवों तथा चार योगिनियों की प्रतिमाएं हैं।


2-रानीपुर में केंद्रीय मंदिर में शिव के क्रोधी स्वरूप भैरव की तीन मस्तक वाली प्रतिमा है। मोरैना में लिंग बना है। भेड़ाघाट वाले मंदिर के केंद्र में असाधारण रूप से नंदी पर बैठे शिव-पार्वती की प्रतिमा है।आमतौर पर शिव मंदिरों में शिव जी के सम्पूर्ण स्वरूप नहीं, उनके प्रतीकों (शिवलिंग) की ही पूजा की जाती है।तांत्रिक परम्पराओं में जब समूह रूप में देवी प्रदर्शित होती हैं, चाहे पंक्ति में हों या गोलाकार, उनके साथ एक भैरव को अक्सर उग्र रूप में दिखाया जाता है। एक रक्षक तथा प्रेमी के रूप में वह उनके साथ होते हैं। महिलाएं उन्हें गोल घेरे होती हैं।कहीं यह प्रकृति का चित्रण तो नहीं है जहां प्रत्येक कोख पवित्र है ;क्या दुनिया को त्याग देने वाले योगी पर स्त्रीत्व को स्वीकार करने का जोर डाला जा रहा है? हम ऐसी कोई भी कल्पना कर सकते हैं  

https://goo.gl/oKmgzi

चौसठ योगिनी मंदिर...#मुरैना 


1-भारत में चार चौसठ योगिनी मंदिर हैं, जो दो ओडिशा और दो मध्य प्रदेश में हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर सबसे प्रमुख और प्राचिन है। यह भारत के उन चौसठ योगिनी मंदिरों में से एक है जो अभी भी अच्छी दशा में बचे हैं। यह मंदिर तंत्र-मंत्र के लिए काफी प्रसिद्ध था, इसलिए इस मंदिर को तांत्रिक यूनिवर्सिटी भी कहा जाता था। यहां देश-विदेश से लाखों तांत्रिक तंत्र-मंत्र जानने आते थे।विदेशी नागरिक भी यहां तंत्र-मंत्र की विद्याएं हासिल करने आते थे। आज भी कुछ तांत्रिक, सिद्धियां प्राप्त करने के लिए यज्ञ करते हैं। 

2-भारत मंदिरों का देश है। हम मूर्ति पूजा में विश्वास रखनेवाले लोग हैं। हम मानते हैं कि स्वयं ईश्वर ने भारतवर्ष की इस पावन धरती पर अवतार लिया है। भारतीय ज्योतिष और धर्म विज्ञान में तंत्र का बहुत महत्व है। मध्य प्रदेश के मुरैना में एक ऐस मंदिर स्थित हैं, जो न केवल तंत्र विद्या की यूनिवर्सिटी कहलाता है बल्कि देश के संसद भवन का निर्माण भी इसी की बनावट से प्रभावित होकर किया गया है।   

https://goo.gl/oKmgzi

 3-यह मंदिर एक वृत्तीय आधार पर निर्मित है और इसमें 64 कमरे हैं। हर कमरे में एक-एक शिवलिंग बना हुआ है। मंदिर के मध्य में एक खुला हुआ मण्डप है, जिसमें एक विशाल शिवलिंग है। यह मंदिर 1323 ई में बना था। इस मंदिर का निर्माण क्षत्रिय राजाओं ने कराया था। 

https://goo.gl/oKmgzi

चौसठ योगिनी मंदिर के बारे में खास बातें


1-मंदिर के मध्य में है खुला मण्डप;-

शानदार वास्तुकला और बेहद खूबसूरती से बनाए गए इस मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 200 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। 200 सीढ़ियां चढ़ने के बाद चौसठ योगिनी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर एक वृत्तीय आधार पर निर्मित है और इसमें 64 कमरे हैं। हर कमरे में एक-एक शिवलिंग बना हुआ है। मंदिर के मध्य में एक खुला हुआ मण्डप है, जिसमें एक विशाल शिवलिंग है। यह मंदिर 1323 ई में बना था। इस मंदिर का निर्माण क्षत्रिय राजाओं ने करवाया था।

2-इसलिए पड़ा चौसठ योगिनी मंदिर;-

हर कमरे में शिवलिंग के साथ देवी योगिनी की मूर्ति साथ थीं। लेकिन कुछ मूर्तियां चोरी हो गईं, जिसकी वजह से अब मूर्तियों को दिल्ली के संग्राहलय में रखा गया है। इसी वजह से इसी मंदिर का नाम चौसठ योगिनी मंदिर पड़ा। यह मंदिर में 101 खंभों पर टिका हुआ है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस मंदिर को प्राचीन ऐतिहसिक स्मारक घोषित किया है।

3-मंदिर की तर्ज पर है संसद का निर्माण;-

ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने इस मंदिर को आधार मनाकर दिल्ली के संसद भवन का निर्माण करवाया था। जिसकी चर्चा ना तो किताबों में कहीं है और ना ही संसद की वेबसाइट पर है। संसद भवन न केवल बाहर से इस मंदिर की तरह दिखता है बल्कि अंदर से खंभों का ढांचा भी वैसा ही जैसा इस मंदिर के खंभों का। 

4-चौसठ योगिनियों को किया जाता है जागृत;-

स्थानिय निवासी आज भी मानते हैं कि यह मंदिर आज भी शिव की तंत्र साधना के कवच से ढका हुआ है। यहां आज भी रात में रुकने की इजाजत नहीं है, ना तो इंसानों को और ना ही पंक्षी को। तंत्र साधना के लिए मशहूर इस मंदिर में शिव की योगनियों को जागृत किया जाता था।कहा जाता है कि यह मंदिर तंत्र साधना का भव्य आधार था। यहां भगवान शिव की साधना मां काली के साथ कर योगनियों को जागृत किया जाता था। आज भी स्थानीय निवासी यहां रात में न रूकने की सलाह देते हैं। आज भी कुछ तांत्रिक, सिद्धियां प्राप्त करने के लिए यहां यज्ञ करते हैं। इस मंदिर को इकंतेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 

https://goo.gl/oKmgzi

“चौंसठ योगिनी मंदिर” #जबलपुर


1- जबलपुर का “चौंसठ योगिनी मंदिर” सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल भेड़ाघाट व धुआंधार जलप्रपात के नजदीक एक ऊंची पहाड़ी के शिखर पर स्थापित है। पहाड़ी के शिखर पर होने के कारण यहां से काफ़ी बड़े भू-भाग व बलखाती नर्मदा नदी को निहारा जा सकता है। ”चौंसठ योगिनी मंदिर” को दसवीं शताब्दी में कलचुरी साम्राज्य के शासकों ने मां दुर्गा के रूप में स्थापित किया था। लोगों का मानना है कि यह स्थली महर्षि भृगु की जन्मस्थली है, जहां उनके प्रताप से प्रभावित होकर तत्कालीन कलचुरी साम्राज्य के शासकों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया।


2-इस मंदिर की विषेशता इसके बीच में स्थापित भगवान शिव की प्रतिमा है, जो कि 64 देवियों की प्रतिमा से घिरा हुआ है। इस मंदिर का निर्माण सन् 1000 के आसपास “कलीचुरी वंश” ने करवाया था। योगिनी साधना के अंतर्गत देवी के चौसठ रूपों की आराधना की जाती है। इसके करने से साधक अपने जीवन के सभी शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। 


3-मंदिर के सैनटोरियम में “रानी दुर्गावती” की मंदिर की यात्रा से संबंधित एक शिलालेख भी देखा जा सकता है। यहां एक सुरंग भी है जो “चौंसठ योगिनी मंदिर” को गोंड रानी दुर्गावती के महल से जोड़ती है। यह मंदिर एक विशाल परिसर में फैला हुआ है और इसके हर एक कोने  


से भव्यता झलकती है।वर्तमान में मंदिर के अंदर भगवान शिव व मां पार्वती की नंदी पर वैवाहिक वेशभूषा में बैठे हुए पत्थर की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के चारों तरफ़ करीब 10 फुट ऊंची गोलाई में चारदीवारी बनाई गई है, जो पत्थरों की बनी है तथा मंदिर में प्रवेश के लिए केवल एक तंग द्वार बनाया गया है।


4-चारदीवारी के अंदर खुला प्रांगण है, जिसके बीचों-बीच करीब 2-3 फुट ऊंचा और करीब 80-100 फुट लंबा एक चबूतरा बनाया गया है। चारदीवारी के साथ दक्षिणी भाग में मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर का एक कक्ष जो सबसे पीछे है, उसमें शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित है। इसके आगे एक बड़ा-सा बरामदा है, जो खुला है। बरामदे के सामने चबूतरे पर शिवलिंग की स्थापना की गई है, जहां पर भक्तजन पूजा-पाठ करवाते हैं।

https://goo.gl/oKmgzi

5-मंदिर की चारदीवारी जो गोल है, उसके ऊपर मंदिर के अंदर के भाग पर चौंसठ योगिनियों की विभिन्न मुद्राओं में पत्थर को तराश कर मूर्तियां स्थापित की गई हैं। लोगों का मानना है कि ये सभी चौंसठ योगिनी बहनें थीं तथा तपस्विनियां थीं, जिन्हें महाराक्षसों ने मौत के घाट उतारा था। राक्षसों का संहार करने के लिए यहां स्वयं दुर्गा को आना पड़ा था। इसलिए यहां पर सर्वप्रथम मां दुर्गा की प्रतिमा कलचुरी के शासकों द्वारा स्थापित कर दुर्गा मंदिर बनाया गया था तथा उन सभी चौंसठ योगिनियों की मूर्तियों का निर्माण भी मंदिर प्रांगण की चारदीवारी पर किया गया। कालांतर में मां दुर्गा की मूर्ति की जगह भगवान शिव व मां पार्वती की मूर्ति स्थापित की गई है, ऐसा प्रतीत होता है।

https://goo.gl/oKmgzi

#64_योगिनियों_की_साधना


1-64 योगिनियों की साधना सोमवार अथवा अमावस्या/ पूर्णिमा की रात्रि से आरंभ की जाती है। साधना आरंभ करने से पहले स्नान-ध्यान आदि से निवृत होकर अपने पितृगण, इष्टदेव तथा गुरु का आशीर्वाद लें। तत्पश्चात् गणेश मंत्र तथा गुरुमंत्र का जप किया जाता है ताकि साधना में


किसी भी प्रकार का विघ्न न आएं।इसके बाद भगवान शिव का पूजा करते हुए शिवलिंग पर जल तथा अष्टगंध युक्त अक्षत (चावल) अर्पित करें। इसके बाद आपकी पूजा आरंभ होती है। अंत में जिस भी योगिनि को सिद्ध करना चाहते हैं, उसके मंत्र की कम से कम एक माला (108 मंत्र) अथवा ग्यारह माला (1100 मंत्र) जप करें।


2-प्रमुख रूप से आठ योगिनियां हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं:-


1.सुर-सुंदरी योगिनी, 2.मनोहरा योगिनी, 3. कनकवती योगिनी, 4.कामेश्वरी योगिनी, 5. रति सुंदरी योगिनी, 6. पद्मिनी योगिनी, 7. नतिनी योगिनी और 8. मधुमती योगिनी।

https://goo.gl/oKmgzi

3-#चौंसठ_योगिनियों_के_नाम

1.बहुरूप, 3.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वाला कामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी, 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा, 28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली।

https://goo.gl/oKmgzi

8 योगिनियों के 8 चमत्कारी मंत्र 


योगिनियों की सिद्धि के बारे में केवल एक बात ही उनकी महत्ता दर्शाती है कि धनपति कुबेर उनकी कृपा से ही धनाधिपति हुए थे। इनको प्रसन्न करने से राज्य तक प्राप्त किया जा सकता है।अष्ट योगिनियों में से कोई एक साधना गुरु के मार्गदर्शन में कर अपनी हर मनोकामना पूर्ण की जा सकती है। ये भी मुख्यत: 8 होती हैं तथा मां, बहन तथा भार्या के रूप में सर्वस्व देती हैं। इनकी साधना सावधानी भी मांगती है। पत्नी के रूप में साधना करने से अपनी पत्नी का सुख नहीं रहता है। अतिरेक करने पर सब कुछ नष्ट हो जाता है। ये योगिनियां निम्नलिखित हैं-

https://goo.gl/oKmgzi

(1) #सुरसुंदरी_योगिनी

अत्यंत सुंदर शरीर सौष्ठव अत्यंत दर्शनीय होता है। 1 मास तक साधना की जाती है। प्रसन्न होने पर सामने आती हैं तथा माता, बहन या पत्नी कहकर संबोधन करें। राज्य, स्वर्ण, दिव्यालंकार तथा दिव्य कन्याएं तक लाकर देती हैं। सभी कामनाएं पूर्ण करती हैं। अन्य स्त्रियों पर आसक्त साधक को समूल नष्ट करती हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ सुरसुंदरि स्वाहा।'


(2) #मनोहरा_योगिनी

विचित्र वेशभूषा वाली अत्यंत सुंदर, शरीर से सुगंध निकलती हुई मास भर साधना करने पर प्रसन्न होकर प्रतिदिन साधक को स्वर्ण मुद्राएं प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा।'


(3) #कनकावती_योगिनी

रक्त वस्त्रालंकार से भूषित अपनी परिचारिकाओं के साथ आकर वांछित कामना पूर्ण करती हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं हूं रक्ष कर्मणि आगच्छ कनकावति स्वाहा।'

https://goo.gl/oKmgzi

(4) #कामेश्वरी_योगिनी

 इनका जप भी रात्रि में मास भर किया जाता है। पुष्पों से सज्जित देवी प्रसन्न होकर ऐश्वर्य, भोग की वस्तुएं प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ कामेश्वरी स्वाहा।'

(5) #रति_सुन्दरी_योगिनी

स्वर्णाभूषण से सज्जित देवी महीनेभर साधना के पश्चात प्रसन्न होकर अभीष्ट वर प्रदान करती हैं तथा सभी ऐश्वर्य, धन व वस्त्रालंकार देती हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ रति सुन्दरी स्वाहा।'


(6) #पद्मिनी_योगिनी

 श्याम वर्ण की ये देवी वस्त्रालंकार से युक्त मास भर साधना के बाद प्रसन्न होकर ऐश्वर्यादि प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ पद्मिनी स्वाहा।'

https://goo.gl/oKmgzi

(7) #नटिनी_योगिनी

अशोक वृक्ष के नीचे रात्रि में साधना की जाकर इनकी प्रसन्नता प्राप्ति कर अपने सारे मनोरथ पूर्ण किए जा सकते हैं।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं आगच्छ नटिनि स्वाहा।'


(8) #मधुमति_योगिनी

शुभ्र वर्ण वाली देवी अति सुंदर नाना प्रकार के अलंकारों से भूषित साधना के पश्चात सामने आकर किसी भी लोक की वस्तु प्रदान करती हैं। इनकी कृपा से पूर्ण आयु तथा अच्‍छा स्वास्‍थ्य प्राप्त होता है।राज्याधिकार प्राप्त होता है।

मंत्र- 'ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ मैथुन प्रिये स्वाहा।'

https://goo.gl/oKmgzi

#साधना_विधि_विधान

1-शक्ति साधना के द्वारा ही इस जीवन में इन सब शक्तियों की प्राप्ति हो सकती हैै।केवल एक ही रूप में साधना करने से शक्ति की सिद्धि सम्भव नहीं है, जीवन में रौद्रता, उग्रता के साथ-साथ शान्ति हो, शत्रुओं के लिये उग्रता, मित्रों के लिये शान्ति, परिवार के लिए लक्ष्मी, ज्ञान के लिये स्मृति, मन के लिये तुष्टि, निर्बल के लिये दया, स्वभाव में नम्रता, क्योंकि नम्र वही हो सकता है, जो शक्ति से परिपूर्ण हो। निर्बल भिक्षुक हो सकता है, याचक हो सकता है, लेकिन सबल अपने स्वभाव को सुरक्षित रखते हुए नम्रता से परिपूर्ण हो सकता है। 


 2-किसी भी प्रकार की  मनोकामना पूर्ण करने हेतु इससे तीक्ष्ण  साधना दूसरी कोइ नही हो सकती है,यह विधान कलियुग मे  शीघ्र फलप्रद है।योगिनीयों से कोइ भी कार्य शीघ्र सम्पन्न करवाया जा सकता है। इस साधना को महाशिवरात्रि के पर्व पर करने से  सफलता प्राप्त की जा सकती  है।इस साधना को सोमवार रात्रि मे या अमावस्या/ पूर्णिमा की रात्रि मे सम्पन्न करे। साधना के शुरुआत मे गणेश मंत्र और गुरुमंत्र का जाप भी कर ले ।

https://goo.gl/oKmgzi

 3-अब किसी पात्र मे शिवलिंग रखे और शिवलिंग का सामान्य  पूजन करे,जल भी चढाये । एक सफेद रंग का पुष्प अपना मनोकामना बोलते हुए शिवलिंग पर अर्पित करे। 64 योगिनी मंत्र को एक-एक बार पढना जरुरी है परंतु आप मे पात्रता हो तो 1,3,5,7,11..108 की संख्या मे आप ज्यादा मंत्र का उच्चारण कर सकते है। यह तांत्रोत्क बीज मंत्रो से युक्त योगिनी मंत्र है,जिसकी अधिष्ठात्री देवि ललिताम्बा है,जो साधक की कोइ भी इच्छा पूर्ण कर सकती है।


उपरोक्त योगिनी मंत्र जाप से पूर्व और अंत मे "ॐ नमः शिवाय" का जाप करना भी जरुरी है। आगे योगिनी मंत्रो को बोलते हुए किसी भी प्रकार के शिवलिंग पर अष्टगंध युक्त चावल चढाये पूजन के बाद शिव जी का आरती करे और एक बार फिर उनसे अपना मनोकामना  पूर्ण करने हेतु प्रार्थना करे। साधना सम्पूर्ण होते ही चढाये हुए चावल शिवलिंग के उपर से निकालकर सुरक्षित रख दे और  दूसरे दिन जल मे प्रवाहित कर दे ।

https://goo.gl/oKmgzi

 #चौसठ_योगनियों_के_मंत्र

1)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा।

2)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा।

3)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा।

4)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा।

5)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विरोधिनी विलासिनी स्वाहा।

6)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा।

7)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा।

8)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा।

9)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा।

10)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा।

11)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री घना महा जगदम्बा स्वाहा।

12)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बलाका काम सेविता स्वाहा।

13)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा।

14)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा।

15)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा।

16)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा।

17)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा।

18)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भगमालिनी तारिणी स्वाहा।

19)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा।

20)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा।

21)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा।

22)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा।

23)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा।

24)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा।

25)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा।

26)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा।

27)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा।

28)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विजया देवी वसुदा स्वाहा।

29)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा।

30)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा।

31)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा।

32)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा।

33)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री डाकिनी मदसालिनी स्वाहा।

34)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री राकिनी पापराशिनी स्वाहा।

35)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा।

36)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा।

37)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा।

38)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा।

39)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा।

40)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री षोडशी लतिका देवी स्वाहा।

41)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा।

42)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा।

43)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा।

44)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा।

45)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा।

46)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातंगी कांटा युवती स्वाहा।

47)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा।

48)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा।

49)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा।

50)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मोहिनी माता योगिनी स्वाहा।

51)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा।

52)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा।

53)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नारसिंही वामदेवी स्वाहा।

54)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा।

55)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा।

56)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा।

57)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा।

58)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा।

59)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा।

60)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा।

61)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा।

62)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा।

63)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा।

64)―ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा।


https://goo.gl/oKmgzi

विशेष साधना #चौसठ_शक्ति_तत्व'

1-तंत्र कहता है मातृ शक्ति ही इस जगत की जननी है। वही देवी शक्ति या पराशक्ति के नाम से जानी जाती हैं। शास्त्रों में ऐसा माना गया कि सभी पदार्थों के मूल रूप में शक्ति ही विराजमान हैं। यह शक्ति हम सब के भीतर है। न केवल हमारी देह बल्कि हमारे मन, हमारी आत्मा में भी विराजमान हैंं। शक्ति का कोई अपना निश्‍चित रूप-स्वरूप नहीं है। यह शक्ति विभिन्न रूपों में प्रकट होती है और यही शक्ति विभिन्न तरंगों में भी प्रतीत होती है। वह निराकार भी है, साकार भी है अर्थात वह पदार्थ भी है, वह ऊर्जा भी है। इसी शक्ति के परिणाम स्वरूप चांद, सूरज हैं। मनुष्यों, पक्षियों, पशुओं, वृक्षों, पत्थरों, पृथ्वी, स्वर्ण, चांदी,पानी, चांद, तारों, ग्रहों आदि सब ओर उसी शक्ति का प्रताप दिखाई देता है।हम सब उसी शक्ति के ही व्यक्त रूप हैं। वह स्वयं अव्यक्त रूप हैं। यह शक्ति समूल जगत की मूल हैं और मनुष्य की देह में मूलाधार चक्र में स्थापित हैं और यही शक्ति इस सारे जगत की सृष्टिकर्ता भी हैं।

https://goo.gl/oKmgzi

2-देवी दुर्गा के विभिन्न रूप स्वरूप हैं – ज्ञान भी दुर्गा हैं, विज्ञान भी दुर्गा हैं, तंत्र भी दुर्गा हैं। साथ ही जहां पर भी सात्विक शक्तियां हैं, वे देवी दुर्गा के ही रूप हैं और देवी दुर्गा के राजसिक स्वरूप भी हैं – चंचलता, कला, नृत्य, संगीत, चित्रकारी। ये भी देवी दुर्गा शक्ति के प्रतिबिम्बित स्वरूप हैं।तंत्र की परंपरा में देवी के हजारों रूप हैं, धारणा है। जिनका पूजन और स्मरण किया जाता है। देवी दुर्गा अपने विभिन्न स्वरूपों में संकटों की निवारक हैं।देवी काली के रूप में वह काल और अहंकार को मारती हैं।देवी सरस्वती के रूप में वह ज्ञान-विज्ञान की दात्री हैं,देवी लक्ष्मी के स्वरूप में वही देवी धन का वरदान देती हैं, सम्पदा और समृद्धि का वरदान देती हैं।इन सभी रूपों में दया, क्षमा, करुणा, वीरता जैसी शक्तिशाली स्पंदनकारी शक्तियों का आह्वान किया जाता है।

https://goo.gl/oKmgzi

3-सौंदर्य लहरी की प्रथम पंक्ति में देवी की स्तुति की गई है। जिसमें कहा गया है कि – बिना शक्ति के शिव भी अप्रभावकारी होते हैं। ऋषियों ने भी पहले ‘त्वमेव माता’ कहा , फिर कहा‘च पिता त्वमेव’।देवी के  तीन स्वरूप सृष्टि कर्त्ता, पालन कर्त्ता और संहारक हैं और इन्हीं तीन रूपों की विशिष्टता से नवरात्रि के दिनों में पूजन किया जाता है।जब मनुष्य के मन में धारणा , एकाग्रता की शक्ति पूर्ण हो जाती है, तो यही आगे जाकर ध्यान में परिवर्तित हो जाती है और ध्यान की ऊंची अवस्था को ही समाधि कहा जाता है।

4-एक बार कार्तिकेय जी कैलाश पर्वत पर शिव की स्तुति करते हुये बोले – हे देवाधिदेव!  तुम्ही परमात्मा हो, शिव हो, तुम्ही सभी प्राणियों की गति हों, तुम्ही जगत के आधार हो और विश्‍व के कारण हो, तुम्ही सबके पूज्य हो, तुम्हारे बिना मेेरी कोई गति नहीं है। कृपा कर मेरे संशय का निवारण करें। कार्तिकेय ने भगवान शिव से कहा ''कौन सी वस्तु संसार में समस्त सिद्धियों को देने वाली है? वह कौन सा योग है जो परमश्रेष्ठ है? कौनसा योग है जो स्वर्ग और मोक्ष दोनों देने वाला है? बिना तीर्थ, बिना दान, बिना यज्ञ, लय या ध्यान के मनुष्य किस उपाय से सिद्धि को प्राप्त कर सकता है? यह सृष्टि किससे उत्पन्न हुई? किसमें इसका लय होता है? हे देव! किस उपाय से मनुष्य संसार रूपी सागर को पार उतर सकता है? कृपा कर बतायें''।

https://goo.gl/oKmgzi

5-इसके उत्तर में भगवान शिव बोले कि'' इस जगत के सभी पदार्थ, जड़-चेतन, सजीव-निर्जीव मात्र तीन गुणों के संयोजन से ही गतिशील होते हैं। मनुष्य की समस्त गतिविधियां, मनुष्य  की जीवन शैली, जीवन में उतार चढ़ाव, गुण-दोष, स्वभाव मात्र इन तीन गुणों अर्थात् सत्य, रज एवं तम से ही बनते हैं। इन तीनों गुणों का जिस पराशक्ति से प्रादुर्भाव होता है वही भगवती आद्याशक्ति है।''

6- दुर्गा शक्ति का विस्तार स्वरूप चौसठ कलाएं हैं। जीवन के प्रत्येक पक्ष से सम्बन्धित एक-एक कला है। इन सब कलाओं का पूर्ण स्वरूप दुर्गा है। इसलिये साधक को इन चौसठ शक्ति स्वरूपों की साधना करनी चाहिये, जिससे शरीर और मन का प्रत्येक पक्ष जाग्रत

हो सके, यही दुर्गा का आधारभूत स्वरूप है।शक्ति की श्रेष्ठ साधना चौसठ शक्ति साधना है, जिसमें बीज मंत्र सहित चौसठ रूप में ध्यान किया जाये तो शक्ति को साधक का वरण करना ही पड़ता है।

https://goo.gl/oKmgzi

 7-मां भगवती दुर्गा का यह स्वरूप शक्ति का साकार स्वरूप है। जहां मां भगवती की आराधना होती है, वहां शक्ति चैतन्य रूप से स्थायी रहती हैं।शक्ति का तात्पर्य केवल बल नहीं है, शक्ति की जो व्याख्या मार्कण्डेय ॠषि ने दी है, वह शक्ति का पूर्ण स्वरूप है। शक्ति का तात्पर्य है – वृद्धि, सिद्धि, सौम्यता, रौद्रता, जगतप्रतिष्ठा, चैतन्यता, बुद्धि, तृष्णा, नम्रता, शान्ति, श्रद्धा, कान्ति, लक्ष्मी, स्मृति, दया, तुष्टि एवं इच्छा हैं।

https://goo.gl/oKmgzi

8-साधना का श्रेष्ठतम काल...मूल प्रकृति से यह मन,पदार्थ और भौतिक जगत उत्पन्न हुआ है। उस मूल शक्ति की ओर अपनी अंतर्यात्रा को बढ़ाने का पर्व ही गुप्त नवरात्रि का आध्यात्मिक लक्ष्य है।गुप्त नवरात्रि वह पर्व है, जिस पर्व में साधक अपने अंदर उस पराशक्ति के साथ एकाकार होने का परिश्रम करता है।गुप्त नवरात्रि देवी शक्ति के चौसठ स्वरूपों से एकाकार होने का श्रेष्ठतम काल है।नवरात्रि ही नहीं जीवन का प्रत्येक दिन साधनाओ के लिये विशेष सिद्धिदायक माना गया है।इस साधना को किसी भी माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को सम्पन्न किया जा सकता है।साधक द्वारा एकाग्र मन से यह साधना करने पर एक विशेष अनुभूति प्राप्त होती है। उसके मन के द्वार खुलने लगते है। शक्ति का प्रवाह रोम-रोम में होने लगता है, जब शक्ति का प्रवाह होता है तभी साधक के अपने कर्म द्वारा कार्य पूर्ण होने लगते है।  

https://goo.gl/oKmgzi

9-साधना सामग्री...इस साधना से लिये निम्न सामग्री  की आवश्यकता होती है- नारियल, चौसठ शक्ति दुर्गा यंत्र तथा रुद्राक्ष  माला। इसके अतिरिक्त कुंकुम, अक्षत, पुष्प, लौंग, दीपक इत्यादि की व्यवस्था पहले से करके रख देनी चाहिए।

https://goo.gl/oKmgzi

#साधना_विधान

1-साधना वाले दिवस साधक स्नान कर उत्तर दिशा की ओर मुंह करके लाल आसन पर बैठ जाये और स्वयं लाल धोती धारण कर लें। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछायें। उस पर  गुरु यंत्र/ गुरु पादुका स्थापित कर साधना में सफलता हेतु दोनों हाथ जोड़कर गुरुदेव निखिल का ध्यान करें –

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वरः।

गुरुः साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

निखिल ध्यान के पश्‍चात्  गुरु मंत्र की एक माला मंत्र जप करें ।

ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः

2-गुरु पूजन के पश्‍चात्  चावल की ढेरी बनाकर कर, उस पर  नारियल तथा सामने ही किसी प्लेट या थाली में पुष्पों का आसन देकर चौसठ शक्ति यंत्र स्थापित कर दें। यंत्र के चारों और तेल के नौ दीपक लगा दें। नारियल का अक्षत, पुष्प आदि से पंचोपचार पूजन करें। इसके पश्‍चात् चौसठ शक्तियों का पूजन किया जाता है, निम्न प्रत्येक मंत्र जप के पश्‍चात् यंत्र पर कुंकुम, अक्षत और एक लौंग चढ़ाएं –

https://goo.gl/oKmgzi

चौसठ शक्तियों के मंत्र –


1-ॐपिं पिगलाक्ष्यै नमः ॐविं विडालाक्ष्यै नमः 


2-ॐसं समृद्धयै नमः ॐवृं वृद्धयै नमः 


3-ॐश्रं श्रद्धायै नमः ॐस्वं स्वाहायै नमः


4-ॐस्वं स्वधायै नमः ॐमं मातृकायै नमः 


5-ॐवं वसुंधरायै नमः ॐत्रिं त्रिलोकरात्र्यै नमः 


6-ॐसं सवित्र्यै नमः ॐगं गायत्र्यै नमः


7-ॐत्रिं त्रिदशेश्‍वर्यै नमः ॐसुं सुरुपायै नमः 


8-ॐबं बहुरुपायै नमः ॐसकं स्कन्दायै नमः


9-ॐअं अच्युतप्रियायै नमः ॐविं विमलायै नमः


10-ॐअं अमलायै नमः ॐअं अरुणायै नमः 


11-ॐआं आरुण्यै नमः ॐप्रं प्रकृत्यै नमः 


12-ॐविं विकृत्यै नमः ॐसृं सृत्यै नमः 


13-ॐस्थिं स्थित्यै नमः ॐसं सहृत्यै नमः 


14-ॐसं सन्धायै नमः ॐमं मात्र्यै नमः


15-ॐसं सत्यै नमः ॐहं हंस्यै नमः


16-ॐमं मर्दिन्यै नमः ॐरें रंजिकायै नमः 


17-ॐपं परायै नमः ॐदं देवमात्र्यै नमः 


18-ॐभं भगवत्यै नमः ॐदं देवक्यै नमः 


19-ॐकं कमलासनायै नमः ॐत्रिं त्रिमुख्यै नमः 


20-ॐसं सप्तमुख्यै नमः ॐसुं सुरायै नमः 


21-ॐअं असुरमर्दिन्यै नमः ॐलं लम्बोष्ठयै नमः 


22-ॐऊं ऊर्ध्वकेशिन्यै नमः ॐबं बहुशिखायै नमः 


23-ॐवृं वृकोदरायै नमः ॐरं रथरेखायै नमः


24-ॐ शं शशिरेखायै नमः ॐअं अपरायै नमः 


25-ॐगं गगनवेगायै नमः ॐपं पवनवेगायै नमः 


26-ॐभुं भुवनमालायै नमः ॐमं मदनातुरायै नमः 


27-ॐअं अनंगायै नमः ॐअं अनंगमदनायै नमः


28-ॐअं अनंगमेखलायै नमः ॐअं अनंग कुसुमायै नमः 


29-ॐविं विश्‍वरुपायै नमः ॐअं असुरायै नमः 


30-ॐअं अपंगसिद्धयै नमः ॐसं सत्यवादिन्यै नमः 


31-ॐवं वज्ररुपायै नमः ॐशं शुचिवृत्तायै नमः 


31-ॐवं वरदायै नमः ॐवं वागीश्‍वर्यै नमः 

https://goo.gl/oKmgzi

शक्ति के चौसठ स्वरूपों के आह्वान के पश्‍चात् साधक एकाग्र मन से निम्न मंत्र की ग्यारह माला मंत्र जप करें। यह मंत्र जप सिद्धि माला से ही सम्पन्न करें।

मंत्र;-

॥ ॐ ह्रीं क्रीं पूर्ण शक्ति स्वरुपायै क्रीं ह्रीं ॐ फट् ॥

मंत्र जप समाप्ति के बाद माला को गले में धारण कर लें तथा यंत्र को अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दें। सवा माह तक माला को धारण करके रखें। सवा महीने बाद माला और यंत्र को नदी में प्रवाहित कर दें।शक्ति केवल शिव का वरण करती है ...यह मत भूले।शिव 'शक्ति'

के बिना शव है तो शक्ति बिना'शिव' के विनाशक है।(#हिन्दू_मान्यता)

_________________________


💯✔ #चौसठ_योगिनी_नामस्तोत्रम्


गजास्या सिंह-वक्त्रा च, गृध्रास्या काक-तुण्डिका ।


उष्ट्रा-स्याऽश्व-खर-ग्रीवा, वाराहास्या शिवानना ॥


उलूकाक्षी घोर-रवा, मायूरी शरभानना ।


कोटराक्षी चाष्ट-वक्त्रा, कुब्जा चविकटानना॥


शुष्कोदरी ललज्जिह्वा, श्व-दंष्ट्रा वानरानना ।


ऋक्षाक्षी केकराक्षी च, बृहत्-तुण्डा सुराप्रिया ॥


कपालहस्ता रक्ताक्षी, शुकी श्येनी कपोतिका ।


पाशहस्ता दंडहस्ता, प्रचण्डा चण्डविक्रमा ॥


शिशुघ्नी पाशहन्त्री च, काली रुधिर-पायिनी।


वसापाना गर्भरक्षा, शवहस्ताऽऽन्त्रमालिका ॥


ऋक्ष-केशी महा-कुक्षिर्नागास्या प्रेतपृष्ठका।


दन्द-शूक-धरा क्रौञ्ची, मृग-श्रृंगा वृषानना ॥


फाटितास्या धूम्रश्वासा, व्योमपादोर्ध्वदृष्टिका ।


तापिनी शोषिणी स्थूलघोणोष्ठा कोटरी तथा ॥


विद्युल्लोला वलाकास्या, मार्जारी कटपूतना।


अट्टहास्या चकामाक्षी, मृगाक्षी चेति ता मताः ॥


फल-श्रुति :-


चतुष्षष्टिस्तुयोगिन्यः पूजिता नवरात्रके।


दुष्ट-बाधां नाशयन्ति, गर्भ-बालादि-रक्षिकाः॥


नडाकिन्यो नशाकिन्यो, न कूष्माण्डा नराक्षसाः ।


तस्य पीड़ांप्रकुर्वन्ति, नामान्येतानि यः पठेत् ॥


बलि-पूजोपहारैश्च, धूप-दीप-समर्पणैः।


क्षिप्रं प्रसन्ना योगिन्यो, प्रयच्छेयुर्मनोरथान् ॥


कृष्णा-चतुर्दशी-रात्रावुपवासी नरोत्तमः ।


प्रणवादि-चतुर्थ्यन्त-नामभिर्हवनं चरेत् ॥


प्रत्येकं हवनं चासां, शतमष्टोत्तरंमतम् ।


स-सर्पिषा गुग्गुलुना, लघु-बदर-मानतः॥


विधि :-


साधक कृष्ण-पक्षकी चतुर्दशी को उपवासकरे।


रात्रि में गुग्गुलऔरघृत सेविभक्तियुक्तप्रत्येकनामके आगे प्रणव ॐलगाकर, प्रत्येकनाम से१०८आहुतियाँ अर्पित करे ।


पूरी तरह शुद्ध होकर, एकाग्र-मनसे जो इन नामों का पाठ करता है । उसे डाकिनी, शाकिनी, कूष्माण्डऔरराक्षसआदि किसी प्रकारकी पीड़ा नहीं होती ।


धूप-दीपादि उपचारों सहित पूजन औरबलि प्रदान करने से योगनियाँ शीघ्र प्रसन्नहोकरसभी कामनाओं को पूरा करती है ।


हवनके लियेचौंसठ योगिनी नाम इस प्रकारहै। प्रत्येक नाम के आदि में ‘ॐ’तथा अन्तमेंस्वाहा लगाकरहवनकरें ॥


ॐगजास्यै स्वाहा ॥ ॐ सिंह-वक्त्रायैस्वाहा ॥ ॐ गृध्रास्यायैस्वाहा ॥ ॐकाक-तुण्डिकायै स्वाहा ॥ ॐ उष्ट्रास्यायैस्वाहा ॥ ॐअश्व-खर-ग्रीवायैस्वाहा ॥ ॐवाराहस्यायै स्वाहा ॥ ॐशिवाननायै स्वाहा ॥ ॐ उलूकाक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐ घोर-रवायैस्वाहा ॥ ॐमायूर्यै स्वाहा ॥ ॐशरभाननायै स्वाहा ॥ ॐकोटराक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐअष्ट-वक्त्रायै स्वाहा॥ ॐकुब्जायै स्वाहा ॥ ॐविकटाननायै स्वाहा ॥ ॐ शुष्कोदर्यैस्वाहा ॥ ॐललज्जिह्वायैस्वाहा ॥ ॐश्व-दंष्ट्रायैस्वाहा ॥ ॐवानराननायै स्वाहा ॥ ॐ ऋक्षाक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐ केकराक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐबृहत्-तुण्डायैस्वाहा ॥ ॐसुरा-प्रियायै स्वाहा ॥ ॐकपाल-हस्तायै स्वाहा ॥ ॐरक्ताक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐ शुक्यै स्वाहा ॥ ॐश्येन्यैस्वाहा ॥ ॐकपोतिकायै स्वाहा ॥ ॐ पाश-हस्तायै स्वाहा ॥ ॐदण्ड-हस्तायैस्वाहा ॥ ॐप्रचण्डायै स्वाहा ॥ ॐचण्ड-विक्रमायै स्वाहा ॥ ॐशिशुघ्न्यैस्वाहा ॥ ॐपाश-हन्त्र्यै स्वाहा ॥ ॐ काल्यै स्वाहा ॥ ॐरुधिर-पायिन्यै स्वाहा ॥ ॐ वसा-पानायै स्वाहा ॥ ॐगर्भ-भक्षायैस्वाहा ॥ ॐशव-हस्तायै स्वाहा ॥ ॐआन्त्र-मालिकायै स्वाहा ॥ ॐ ऋक्ष-केश्यैस्वाहा ॥ ॐमहा-कुक्ष्यै स्वाहा ॥ ॐ नागास्यायै स्वाहा ॥ ॐप्रेत-पृष्ठकायै स्वाहा ॥ ॐदंष्ट्र-शूकर-धरायै स्वाहा ॥ ॐक्रौञ्च्यैस्वाहा ॥ ॐमृग-श्रृंगायै स्वाहा ॥ ॐवृषाननायै स्वाहा ॥ ॐफाटितास्यायै स्वाहा ॥ ॐ धूम्र-श्वासायै स्वाहा ॥ ॐव्योम-पादायै स्वाहा॥ ॐऊर्ध्व-दृष्टिकायैस्वाहा ॥ ॐतापिन्यै स्वाहा ॥ ॐशोषिण्यै स्वाहा ॥ ॐस्थूल-घोणोष्ठायैस्वाहा ॥ ॐकोटर्यैस्वाहा ॥ ॐविद्युल्लोलायै स्वाहा॥ ॐबलाकास्यायै स्वाहा ॥ ॐमार्जार्यैस्वाहा ॥ ॐकट-पूतनायै स्वाहा ॥ ॐअट्टहास्यायै स्वाहा॥ ॐकामाक्ष्यैस्वाहा ॥ ॐ मृगाक्ष्यै स्वाहा ॥ Ye kali ki 64 yoginiya h kali ki saadhna me inka vishes mahatwa hai:-


चौंसठ योगिनी मंत्र:-१. ॐकाली नित्य सिद्धमाता स्वाहा २. ॐकपालिनी नागलक्ष्मी स्वाहा ३. ॐकुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा ४. ॐकुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा ५. ॐविरोधिनी विलासिनी स्वाहा ६. ॐविप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा ७. ॐउग्ररक्त भोग रूपा स्वाहा ८. ॐउग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा ९. ॐदीपामुक्तिःरक्तादेहा स्वाहा १०.ॐ नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा ११.ॐ घना महा जगदम्बा स्वाहा १२.ॐ बलाका काम सेविता स्वाहा १३.ॐ मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा १४.ॐ मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा १५.ॐ मिता तंत्रकौला दीक्षा स्वाहा १६.ॐ महाकालीसिद्धेश्वरी स्वाहा १७.ॐ कामेश्वरी सर्वशक्तिस्वाहा १८.ॐ भगमालिनी तारिणी स्वाहा १९.ॐ नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा २०.ॐ भेरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा २१.ॐ वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा २२.ॐ महवज्रेश्वरी रक्तदेवी स्वाहा २३.ॐ शिवदूती आदिशक्ति स्वाहा २४.ॐ त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा २५.ॐ कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा २६.ॐ नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा २७.ॐ नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा २८.ॐ विजया देवी वसुदा स्वाहा २९.ॐ सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा ३०.ॐ ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा ३१.ॐ चित्रा देवीरक्तपुजा स्वाहा ३२.ॐ ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा ३३.ॐ डाकिनी मदसालिनी स्वाहा ३४.ॐ राकिनी पापराशिनी स्वाहा ३५.ॐ लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा ३६.ॐ काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा ३७.ॐ शाकिनी मित्ररूपिणीस्वाहा ३८.ॐ हाकिनी मनोहारिणीस्वाहा ३९.ॐ तारायोग रक्ता पूर्णा स्वाहा ४०.ॐ षोडशीलतिका देवी स्वाहा ४१.ॐ भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा ४२.ॐ छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा ४३.ॐ भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा ४४.ॐ धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा ४५.ॐ बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा ४६.ॐ मातंगी कांटा युवती स्वाहा ४७.ॐ कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा ४८.ॐ प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा ४९.ॐ गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा ५०.ॐ मोहिनी माता योगिनी स्वाहा ५१.ॐ सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा ५२.ॐ अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा ५३.ॐ नारसिंही वामदेवी स्वाहा ५४.ॐ गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा ५५.ॐ अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा ५६.ॐ चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा ५७.ॐ वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा ५८.ॐ कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा ५९.ॐ इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा ६०.ॐ ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा ६१.ॐ वैष्णवी सत्यरूपिणी स्वाहा ६२.ॐ माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा ६३.ॐ लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा ६४.ॐ दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा .हीरापुरमें योगिनियो के जिननामों या रूपों का अस्तित्व मिलता है वे इसप्रकारहैं :-


१. बहुरूपा २. तारा ३. नर्मदा ४. यमुना ५. शांति ६. वारुणी ७. क्षेमकरी ८. ऐन्द्री ९. वाराही १०.रणवीरा ११.वानरमुखी १२.वैष्णवी १३.कालरात्रि १४.वैद्यरूपा १५.चर्चिका १६.बेताली १७.छिनमास्तिका १८.वृषभानना १९.ज्वाला कामिनी २०.घटवारा २१.करकाली २२.सरस्वती २३.बिरूपा २४.कौबेरी २५.भालुका २६.नारसिंही २७.बिराजा २८.विकटानन २९.महालक्ष्मी ३०.कौमारी ३१.महामाया ३२.रति ३३.करकरी ३४.सर्पश्या ३५.यक्षिणी ३६.विनायकी ३७.विन्द्यावालिनी ३८.वीरकुमारी ३९.माहेश्वरी ४०.अम्बिका ४१.कामायनी ४२.घटाबारी ४३.स्तुति ४४.काली ४५.उमा ४६.नारायणी ४७.समुद्रा ४८.ब्राह्मी ४९.ज्वालामुखी ५०.आग्नेयी ५१.अदिति ५२.चन्द्रकांति ५३.वायुबेगा ५४.चामुंडा ५५.मूर्ति ५६.गंगा ५७.धूमावती ५८.गांधारी ५९.सर्वमंगला ६०.अजिता ६१.सूर्य पुत्री ६२.वायुवीणा ६३.अघोरा ६४.भद्रकाली प्रमुखमंदिर:- मंदिरों के हिसाबसे देखा जाये तो चौसठ योगिनियों के २प्रमुखमंदिरउड़ीसा राज्य मेंऔर२प्रमुख मंदिर मध्य प्रदेश में अवस्थितहैं!


उड़ीसा:-


१. एक प्रमुख मंदिर उड़ीसा में नवीं शताब्दी में निर्मित हुआ था जो खुर्दा डिस्ट्रिक्ट हीरापुरमें भुवनेश्वरसे १५ किलोमीटरकि दूरी पर स्थित है ! २. दूसरा चौंसठ योगिनी मंदिर (रानीपुरझरिअल )टिटिलागढ़ बलांगीरडिस्ट्रिक्ट मेंस्थित है लेकिनइस मंदिरमें ६४ के बजायअब ६२मूर्तियां ही उपलब्धहैं !


मध्य प्रदेश :-


१. नविन शताब्दी में ही निर्मित एक मंदिर मध्य प्रदेश के खजुराहो नामक स्थान परहै जो छतरपुर डिस्ट्रिक्ट में पड़ता है और यहाँ पहुँचने केलिएझाँसी से इलाहबाद वाली रेलवे लाइन से जाकरमहोबा स्टेशन पर उतरने के बाद लगभग६० किलोमीटर का सफ़र तय करनेके बाद खजुराहो पहुंचा जा सकता है।


२. दूसरा मंदिर मध्य प्रदेश में ही भेड़ाघाट नमक स्थल पर है , जो कि मध्य प्रदेश के जबलपुर डिस्ट्रिक्ट में पड़ता है


अन्य :- स्थान स्थान पर इनके रूपऔरस्थित मेंभेद दृष्टिगतहो सकता हैजैसेकि :-


१. हीरापुर में सभी योगिनियां अपने-२वाहनों पर सवार हैं । और खड़ी मुद्रा में हैं ।

२. रानीपुर झरिअल में सभी योगिनियां नृत्य मुद्रा में हैं ।

३. जबकि भेड़ाघाट में सभी मूर्तियां ललितासन में बैठी हुयी हैं चौंसठ योगिनी पूजन एक श्वेत वस्त्र पर रोली से चौंसठ खाने बनाकर एक - एक खाने में एक - एक योगिनियों को स्थित करें। इनके नाम क्रम से यह हैं-१. गजानना, २. सिंहमुखी, ३.गृहस्था, ४. काकतुंडिका, ५. उग्रग्रीवा, ६.हयग्रीवा, ७.वाराही, ८.शरमानना, ९. उलूकी, १०.शिवाख्या, ११.मयूरा, १२.विकटानन, १३. अष्टवक्रा, १४.कोटराक्षी, १५.कुब्जा, १६.विकटलोचना, १७. शुष्कोदरी, १८.ललजिह्वा, १९.श्वेतदष्ट्रा, २०.वानरानना, २१.ऋक्षाक्षी, २२.केकरा, २३. वृहत्तुन्डा, २४.सुराप्रिया, २५.कपालहस्ता, २६. रक्ताक्षी, २७.शुक्री, २८.श्येनी, २९.कपोतिका, ३०.पाशहस्ता, ३१.दण्डहस्ता, ३२. प्रचण्डा, ३३. चण्डविक्रमा, ३४.शिशुघ्री, ३५.पापहन्त्री, ३६.काली, ३७. रुधिरपायिनि, ३८. वसोधरा, ३९. गर्भभक्षा, ४०.हस्ता, ४१. ऽऽन्त्रमालिनी, ४२.स्थूलकेशी, ४३.वृहत्कुक्षिः, ४४.सर्पास्या, ४५.प्रेतहस्ता, ४६. दशशूकरा, ४७.क्रौञ्ची, ४८. मृगशीर्षा, ४९.वृषानना, ५०. व्वात्तास्या, ५१. धूमिनि, श्वाषाः, ५२.व्यौमैकचरणा, ५३. उर्ध्वदृक् , ५४.तापनी, ५५.शोषिणी दृष्टि, ५६.कोटरी, ५७. स्थूल नासिका, ५८. विद्युत्प्रभा, ५९.बलाकास्या, ६०. मार्जारी, ६१.कटपूतना, ६२.अट्ठाटटहासा, ६३. कामाक्षी, ६४.मृगाक्षी मृगलोचना । यदि हम८ मातृका शक्तिया मानकर चलते हैं तो ये ८ सहायक सहकतियों के साथ मिश्रित होती हैं जिससे इनकी संख्या ८ गुना ८ =६४ होती है किन्तु जब हम ९मातृका शक्तियों के आधार पर गणनाकरते हैं तोइनकी संख्या ८१ हो जाती है -प्रत्येक मातृका शक्ति एक योगिनी केरूप में गणित होती है और अन्य ८ मातृका शक्तियों के साथ गुणित कि जाती है।

Comments

  1. can i expect deeksha and complete guidance to get any or all of the above siddhis. i am a beginner

    ReplyDelete
  2. kripya diksha lene ke liye apse milne ka rasta dikhaye.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वशीकरण टोटके PARASHMUNI

यक्षिणी मंत्र , मुंडी_साधना PARASHMUNI