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घंटाकर्ण महावीर PARASHMUNI

श्री घंटाकर्ण की उत्त्पति के बारे में कई लोककथा, पोराणिक प्रमाण एवम् जनश्रुतियां है| श्री घंटाकर्ण को महादेव शिव के भैरव अवतार से एक माना जाता है| श्री घंटाकर्ण को हिंदुत्व के साथ-साथ जैन, बोद्ध मत में भी एक लोक हितकारी देवता माना जाता है| उत्तराखंड के गढ़वाल प्रभाग में टिहरी, पोड़ी, और बद्रीनाथ में श्री घंटाकर्ण को क्षेत्रपाल देवता माना है| श्री घंटाकर्ण को कोणार्क के विश्वप्रसिद्ध सूर्य मंदिर के पत्थरों पर भी नाव में नृत्य करते हुए भैरवों की प्रतिमा उत्कीर्ण किया गया है| घंटाकर्ण की एक प्रतिमा शांत भाव में है और एक रौद्र रूप में है| दक्षिण भारत और गुजरात मे भी घंटाकर्ण की पूजा होती है, केरल मे भगवान् कृष्ण लीलाओं मे उनकी कृष्ण से भेंट का नृत्य नाटक मे वर्णन होता है| श्री घंटाकर्ण को यक्ष राज कुबेर का सेनापति भी माना जाता है| दक्ष प्रजापति के यज्ञ को जिन शिव गणों ने भंग किया था श्री घंटाकर्ण भी उनमे से एक थे| लेकिन कुछ लोकचार में घंटाकर्ण के बारे में कुछ भिन्न गाथा चलती है| जागरों में उन्हें पांडवो यानी अर्जुन (खाती) और सुबोध (सुभद्रा) का बेटा और नारायण (कृष्ण ) का भांजा कहा गया है| उन्