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Showing posts from May, 2020

सरस्वतीदेवी PARASHMUNI

💯✔ #હિન્દુ_ધર્મ શાસ્ત્રોમાં માતા #સરસ્વતી ને #જ્ઞાન અને #બુદ્ધિ ની સાથે #વાણી ની દેવી પણ માનવામાં આવી છે. અર્થાત્ જે લોકો વાણીના વ્યવસાય-વેપાર સાથે જોડાયેલા છે તેમની માટે સરસ્વતીની ઉપાસના ફાયદાકારક માનવામાં આવે છે. જેમ કે, વકીલ, ગાયક, કથાકાર વગેરે. આમ તો #માતા_સરસ્વતી ની સાધના માટે ઘણા મંત્રો, સ્તુતિ અને આરતીની રચના કરવામાં આવી છે પરંતુ નીચે આપેલ મંત્રના માધ્યમથી જો જપ સાધના કરવામાં આવે તો માતા ખૂબ જ પ્રસન્ન થાય છે.  વાણીના માધ્યમથી રોજીરોટી(આજીવિકા) ચલાવતા લોકોએ પણ આ મંત્ર ઘણો લાભદાયક રહે છે. મંત્રઃ-नमस्ते शारदे देवी सरस्वती मतिप्रदे। वसत्वं मम जिव्हाग्रे सर्वविद्या प्रदाभव।। અર્થાત્ – હે #દેવી_સરસ્વતી, તમને પ્રણામ કરું છું. તમે મારી જીભ ઉપર વિરાજમાન છો જેનાથી મને વિદ્યા પ્રાપ્ત થાય છે. દેવી સ્તુતિ : સરસ્વતી या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावॄता , या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना | या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभॄतिभिर्देवै: सदा वन्दिता , सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा || જે દેવી #સફેદ_ચમેલી, ચંદ્રમાં તથા મોતીના હાર જેવા વસ્ત્રોમાં , હાથમાં વીણા લઇ, #સફેદ_કમળ પર બે

#खोया_प्यार_वापिस_पाने_का_उपाय , #पति को #पराई_स्त्री से दूर करने के उपाय, शत्रु_उच्चाटन #मंत्र #टोटके PARASHMUNI

💯✔ #शत्रु_उच्चाटन #मंत्र #टोटके किसी भी कार्य की संपन्ना उसमें लगे मन की एकाग्रता और कार्य के प्रति समर्पण पर निर्भर है। यह कहें कि दिल लगाकर  किया गया कार्य ही फलदायी साबित होता है, अन्यथा इसमें आने वाली अड़चनें  सफलता में बाधक बनी रहती हैं। कई बार कार्य के प्रति मन में भटकाव अर्थात उचाट जैसी स्थिति बन जाती है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं। कुछ अपने आचरण, विवाद, मनमुटाव, किसी की नापसंदगी, तो कुछ दुश्मनों के विराधी तेवर से हो सकते हैं। इन्हें उच्चाटन के तांत्रिक उपायों से दूर किया जा सकता है। षटकर्म प्रयोग यह #तांत्रिक #षट्कर्म प्रयोग से संभव हो पाता है। इसके द्वारा किसी भी व्यक्ति के मन में कार्य के प्रति विरोधी भावना रखने वाले के गुण, स्थान आदि के प्रति अरुचि पैदा कर दी जाती है, जिससे शत्रु से विकर्षण और कार्य के प्रति आकर्षण बन जाता है। उच्चाटन का यह प्रयोग उनके लिए बहुत ही उपयोगी साबित होता है, जो किसी के वशीभूत हो चुके होते हैं, अपने कार्मपथ से भटक जाते हैं, गलत संगत में पड़ जाते हैं, बुरी आदतों के शिकार हो जाते हैं या फिर किसी के बहकावे में आकर संस्कार व सम्मान भूल जाते हैं। साथ ही प

स्वाहा’ का अर्थ PARASHMUNI

💯✔ #हिंदू_शास्त्र ने ही नहीं बल्कि #विज्ञान ने भी माना, #हवन से मिलते #लाभ #भारतीय_संस्कृति में अग्रिहोत्र कर्म प्रतिदिन करने की बौद्धिक काल से परम्परा रही है। यज्ञ, हवन के बिना कोई भी कार्य पूर्ण न मानने के पीछे इसमें निहित लाभ ही रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार फ्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की, जिसमें उन्हें पता चला कि हवन मुख्यत: आम की लकड़ी से किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो #फॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है जो खतरनाक जीवाणुओं को मारकर वातावरण को शुद्ध करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसके बनने का तरीका पता चला। गुड़ को जलाने पर भी यह गैस उत्पन्न होती है। टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गई अपनी रिसर्च में ये पाया कि यदि आधा घंटा हवन में बैठा जाए अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टायफाइड जैसे खतरनाक रोग फैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है। #हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय #वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर रिसर्च की। उन्होंने ग्रंथों में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलन

काली-रहस्य ( कौलान्तक मार्गी तंत्रसाधना ) PARASHMUNI

💯✔ काली-रहस्य ( कौलान्तक मार्गी तंत्रसाधना ) ‘भैरव-तन्त्र’ के अनुसार साधक को अपनी साधना की सम्पूर्णत: निर्विघ्न सिद्धि के निमित्त कालिका देवी की उपासना करना अपरिहार्य है । भगवती काली ही तंत्रों के प्रवर्तक भगवान सदाशिव की आह्लादनी शक्ति हैं । कालिका देवी के कृपा-कटाक्ष बिना अघोरेश्वर शिव भी साधक को उसका वांछित वर देने में असमर्थ हो जाते हैं । ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ (गणपति खण्ड) में परशुरामजी द्वारा शिवजी की आज्ञा से कालिका देवी को प्रसन्न करने हेतु बार-बार स्तुति करने का वर्णन मिलता है । शिवजी द्वारा प्रदत्त‘कालिका सहस्रनाम’ पूर्णत: सिद्ध है । इसका पाठ करने के लिए पूजन, हवन, न्यास, प्राणायाम,ध्यान, भूत-शुद्धि, जप आदि की कोई आवश्यकता नहीं है । भगवान सदाशिव ने परशुरामजी से इस पाठ के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा है कि इस पाठ को करने से साधक में प्रबल आकर्षण शक्ति उत्पन्न हो जाती है, उसके कार्य स्वत: सिद्ध होते जाते हैं, उसके शत्रुगण हतबुद्धि हो जाते हैं तथा उसके सौभाग्य का उदय होता है । ‘कालिका-सहस्रनाम’ का पाठ करने की अनेक गुप्त विधियाँ हैं, जो विभिन्न कामनाओं के अनुसार पृथव्â-पृथव्â हैं