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Showing posts from October, 2023

गणेश PARASHMUNI

ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये वरद सर्वजनान् में वशमानय नमः॥ આ વિશિષ્ટ મંત્રનો અર્થ થાય છે કે હે વિનાયક શ્રી ગણેશ, તમારી કૃપા દૃષ્ટિ અને આશીર્વાદ મને દરેક જન્મમાં મળતા રહે અને તમારા આશીર્વાદથી હું એક સુખી અને સ્વાસ્થ્ય વર્ધક જીવન જીવી શકું. મને એવું સૌભાગ્ય પ્રદાન કરો જેનાથી મારા જીવનની બધી બાધાઓ દૂર થાય. ગણપતિની  મૂર્તિમાં ડાબા હાથ તરફ વળેલી સૂંઢ હોવી જોઈએ. જમણી તરફની સૂંઢવાળા ગણેશ જીદ્દી હોય છે. તેમની સાધના પણ કઠિન હોય છે અને આ ભક્તો પર મોડેથી પ્રસન્ન થાય છે. ગણપતિદાદાને જે દૂર્વા ચઢાવવામાં આવે છે, તે બાર આંગળ લાંબી અને ત્રણ ગાંઠોવાળી હોવી જોઇએ. આવી ૧૦૧ કે ૧૨૧ દૂર્વા ગણેશને અર્પણ કરી તેનું પૂજન કરવું જાઇએ. 💯✔ भगवान श्री गणेश के सिद्ध मंत्र लम्बोदर के प्रमुख चतुर्वर्ण हैं। सर्वत्र पूज्य सिंदूर वर्ण के हैं। इनका स्वरूप व फल सभी प्रकार के शुभ व मंगल भक्तों को प्रदान करने वाला है। नीलवर्ण उच्छिष्ट गणपति का रूप तांत्रिक क्रिया से संबंधित है। शांति और पुष्टि के लिए श्वेत वर्ण गणपति की आराधना करना चाहिए। शत्रु के नाश व विघ्नों को रोकने के लिए हरिद्रा गणपति की आराधना की जाती है। गणपतिजी का ब

नील सरस्वती मंत्र साधना

नील सरस्वती मंत्र साधना- यह मंत्र बहुत अधिक प्रभावशाली है इससे सिद्ध कर देने वाले व्यक्ति वाक्शक्ति में बहुत प्रबल हो जाता है वह कभी असफल या निरुत्साहित नहीं हो सकता वह अपने शब्द मात्र से किसी को भी संम्मोहित कर सकता है और वाक् युद्ध में कभी हार नहीं सकता नील सरस्वती के दो स्वरूप की उपासना होती है . सौम्य स्वरूप - वाकसिद्धि , धनधान्य , शत्रु कलह शमन केलिए और  उग्र स्वरूप -तारा तंत्र की अनेक सिद्धियां  प्राप्त करने के लिए . यहां सौम्य स्वरूप की उपासना का एक विधान दे रहे है .  इन सौम्य स्वरूप की उपासना से अचूक फल मिलता है . शत्रु और  कलह का शमन हो जाता है और वाक सिद्धि प्राप्त होती है जो समाज, व्यापार, राजनीति, शिक्षण, प्रवचन आदि क्षेत्र में सफलता दिलाती है .   अगर कोई ज्योतिष नील सरस्वती की साधना कर ले, तो उसे ज्योतिष शास्त्र का सम्पूर्ण ज्ञान हो जाता हैं. नील सरस्वती की साधना को पूर्ण करने पर ज्योतिष द्वारा की गई भविष्यवाणी सत्य तथा अकाट्य हो जाती हैं तथा इस साधना को करने के बाद ज्योतिष अगर किसी व्यक्ति की कुंडली का विश्लेषण या उसके जीवन से जुडी किसी प्रकार की भविष्यवाणी कर दे, तो वह भ

काली के कुल्लुकादि मन्त्र

सिद्धि प्राप्ति हेतु काली के कुल्लुकादि मन्त्र इच्छा की पूर्ति के लिये इष्टदेवता के ‘कुल्लुकादि मंत्रों’ का जप करना अत्यन्त ही आवश्यक हैं। उन्ही की कृपा से आपकी इष्ट सिद्धी हो सकती हैं। अज्ञात्वा कुल्लुकामेतां जपते योऽधमः प्रिये । पञ्चत्वमाशु लभते सिद्धिहानिश्च जायते ।। दश महाविद्याओं के कुल्लिकादि अलग-अलग मंत्र हैं। काली के कुल्लुकादि मंत्र इस प्रकार से हैं – कुल्लुका मंत्र – क्रीं, हूं, स्त्रीं, ह्रीं, फट् यह पञ्चाक्षरी मंत्र हैं ।  मूलमंत्र से षडङ्ग-न्यास करके शिर में १२ बार कुल्लुका मंत्र का जप करें । सेतुः- “ॐ” इस मंत्र को १२ बार हृदय में जपें । ब्राह्मण एवं क्षत्रियों का सेतु मंत्र “ॐ” हैं । वैश्यों के लिये “फट्” तथा शूद्रों के लिये “ह्रीं” सेतु मंत्र हैं । इसका १२ बार हृदय में जप करें । महासेतुः- “क्रीं” इस महासेतु मंत्र को कण्ठ-स्थान में १२ बार जप करें । निर्वाण जपः- मणिपूर-चक्र (नाभि) में – ॐ अं पश्चात् मूलमंत्र के बाद ऐं अं आं इं ईं ऋं ॠं लृं ॡं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङ चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं ॐ का जप