गणेश PARASHMUNI

ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये वरद सर्वजनान् में वशमानय नमः॥ આ વિશિષ્ટ મંત્રનો અર્થ થાય છે કે હે વિનાયક શ્રી ગણેશ, તમારી કૃપા દૃષ્ટિ અને આશીર્વાદ મને દરેક જન્મમાં મળતા રહે અને તમારા આશીર્વાદથી હું એક સુખી અને સ્વાસ્થ્ય વર્ધક જીવન જીવી શકું. મને એવું સૌભાગ્ય પ્રદાન કરો જેનાથી મારા જીવનની બધી બાધાઓ દૂર થાય.

ગણપતિની  મૂર્તિમાં ડાબા હાથ તરફ વળેલી સૂંઢ હોવી જોઈએ. જમણી તરફની સૂંઢવાળા ગણેશ જીદ્દી હોય છે. તેમની સાધના પણ કઠિન હોય છે અને આ ભક્તો પર મોડેથી પ્રસન્ન થાય છે.

ગણપતિદાદાને જે દૂર્વા ચઢાવવામાં આવે છે, તે બાર આંગળ લાંબી અને ત્રણ ગાંઠોવાળી હોવી જોઇએ. આવી ૧૦૧ કે ૧૨૧ દૂર્વા ગણેશને અર્પણ કરી તેનું પૂજન કરવું જાઇએ.

💯✔ भगवान श्री गणेश के सिद्ध मंत्र

लम्बोदर के प्रमुख चतुर्वर्ण हैं। सर्वत्र पूज्य सिंदूर वर्ण के हैं। इनका स्वरूप व फल सभी प्रकार के शुभ व मंगल भक्तों को प्रदान करने वाला है। नीलवर्ण उच्छिष्ट गणपति का रूप तांत्रिक क्रिया से संबंधित है। शांति और पुष्टि के लिए श्वेत वर्ण गणपति की आराधना करना चाहिए। शत्रु के नाश व विघ्नों को रोकने के लिए हरिद्रा गणपति की आराधना की जाती है।

गणपतिजी का बीज मंत्र ‘गं’ है। इनसे युक्त मंत्र- ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। षडाक्षर मंत्र का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक है।

ॐ वक्रतुंडाय हुम्‌

किसी के द्वारा नेष्ट के लिए की गई क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना करना चाहिए। इनका जप करते समय मुँह में गुड़, लौंग, इलायची, पताशा, ताम्बुल, सुपारी होना चाहिए। यह साधना अक्षय भंडार प्रदान करने वाली है। इसमें पवित्रता-अपवित्रता का विशेष बंधन नहीं है।

उच्छिष्ट गणपति का मंत्र

ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा

आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए विघ्नराज रूप की आराधना का यह मंत्र जपें –

गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:

विघ्न को दूर करके धन व आत्मबल की प्राप्ति के लिए हेरम्ब गणपति का मंत्र जपें –

‘ॐ गं नमः’

रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक वृद्धि के लिए लक्ष्मी विनायक मंत्र का जप करें-

ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा।

विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है-

ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

इन मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र, गणेश चालीसा का पाठ करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है।

भगवान गणेश विघ्नहर्ता है और समस्त सुखों को प्रदान करने वाले है। उनकी स्तुति साधकों की हर मनोकामना पूरी कर देती है । ऐसी मान्यता है कि हरित वर्ण का दूर्वा जिसमें अमृत तत्व का वास होता है, उसको भगवान श्री गणेश पर चढाने से समस्त विघ्नों का नाश हो जाता है तथा अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
गणेश ज्ञान-विज्ञान के देवता भी माने जाते हैं। विनायक के बारह नामों से की गई स्तुति सभी संकटों का निवारण करने वाली है। गणेश चतुर्थी के दिन विनायक की प्रतिमा की परिक्रमा बहुत ही फलदायक मानी जाती है जो आपके जीवन में शुभता को लाती है।

गणेश चतुर्थी को चंद्रमा नहीं देखें
गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन भी नहीं करने चाहिए क्योंकि मान्यता के मुताबिक चंद्रमा को भगवान गणेश का शाप लगा हुआ है। मान्यता है कि जो कोई चंद्रमा के दर्शन करेगा उस पर झूठा कलंक लग सकता है। अगर भूल से चंद्रमा के दर्शन हो जाएं तो इससे मुक्ति के लिए हरिवंश भागवतोत्त संयमन्तक मणि के आख्यान के पाठ का विधान किया गया है।

श्री गणेशाय नम:
किसी भी काम का शुभारंभ यानी गणपति की अराधना। इसीलिए आप शादी ब्याह के कार्ड पर इस मंत्र को देखते होंगे। यहीं वजह है कि मुहावरा यानी श्रीगणेश करना (किसी भी काम की शुरुआत करना) का जन्म इसी से हुआ।
लिंगपुराण में भगवान शिव ने गणेश जी को कहा है कि गणेश तुम विघ्नविनाशक हो और तुम विघ्नगणों के स्वामी होने की वजह से त्रिलोक में सवर्त्र पूजनीय और वंदनीय रहोगे। किसी भी पूजा से पहले गणेश जी की पूजा की जानी चाहिए। माना जाता है कि हर शुभ काम से पहले गणेश पूजा करने से विघ्नों का नाश होता है।

गणपति की पूजा यानी कामयाबी की 100 फीसदी गारंटी
भगवान गणेश विघ्नकर्ता हैं। कहा जाता है भगवान गणेश की परिक्रमा कर के पूजा की जानी चाहिए। परिक्रमा करते वक्त अपनी इच्छाओं को लगातार दोहराते रहना चाहिए। इसलिए किसी भी काम को शुरू करन से पहले ऊं गणेशाय नम: का जाप किया जाता है यानि इससे कोई भी काम बिना विघ्न के संपन्न हो जाता है और उसमें शत-प्रतिशत कामयाबी मिलती है ।भगवान गणेश ऐसा करने वाले भक्तों की मनोकामना जरूर पूरी करते हैं। भक्तों को विनायक के मंदिर की तीन परिक्रमा करनी चाहिए। इसके अलावा भक्त अगर भगवान विनायक को खुश करना चाहते हैं और अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहते हैं तो उन्हें विनायक के नाम से तर्पण करना चाहिए।

पूजा में इन बातों का रखें ध्यान
भगवान गणेश को दुर्वा और मोदक बेहद प्रिय हैं। दुर्वा के बगैर उनकी पूजा अधूरी समझी जाती है। भगवान गणेश को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए वर्ना अशांति होती है। पद्म पुराण के मुताबिक उनकी पूजा दूब से की जाती है। घर में कभी भी तीन गणेश की पूजा नहीं करनी चाहिए। भगवान गणेश की तीन प्रदक्षिणा ही करनी चाहिए। भगवान भगवान गणपति की आराधना में नामाष्टकका स्तवन अवश्य करना चाहिए। जिससे चतुर्थी के देवता भगवान वरद विनायक प्रसन्न होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति अवश्य करावें। हरित वर्ण का दूर्वा जिसमें अमृत तत्त्‍‌व का वास होता है, उसको भगवान श्री गणेश पर चढाने से समस्त विघ्नों का विनाश हो जाता है तथा अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

गोबर से बनी गणपति की बालरुप प्रतिमा
माउंटआबू को अर्धकाशी भी कहा जाता है । पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक एक कथा यह भी है कि इसी अर्बुद पर्वत यानि अर्बुदारण्य पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। वास्थान जी तीर्थ वो पूरा इलाका है जहा भगवान शंकर अपनी पत्नी पार्वती और गणेश के साथ रहा करते थे। स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में गणेश के प्रादुर्भाव की कथा इस प्रकार है।मां पार्वती ने भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति का वर मांगा। भगवान शंकर ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। 33 करोड़ देवी-देवताओं के साथ भगवान शंकर ने अर्बुदारण्य की परिक्रमा की।

ऋषि-मुनियों ने देवी-देवताओं के सहयोग से गोबर गणेश की प्रतिमा स्थापित की जो आज सिद्धिगणेश के नाम से जाना जाता है । इस मंदिर को लंबोदर मंदिर,सिद्धिविनायक मंदिर,गोबर गणेश मंदिर या फिर सिद्धि गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव ने पूरे परिवार के साथ इस जगह पर वास किया इसलिए इसे वास्थान जी तीर्थ के नाम से जाना जाता है । गोबर गणेश की ये प्रतिमा आज भी भव्य रुप में विराजमान है । गोबर से बनी हुई भगवान गणेश की ये प्रतिमा पूरी दुनिया में इकलौती है । यह प्रतिमा 4,500 साल पुरानी मानी जाती है ।
गणेश की प्रतिमा यहां बालरुप में विराजमान है । भगवान के दर्शन के लिए 200 सीढि़यों की चढ़ाई चढ़नी होती है। गणेश विघ्नहर्ता भी है लिहाजा उनके बारे मे ये कहा जाता है कि इस मूर्ति के दर्शन और नमन मात्र से ही श्रद्धालु के सभी कष्ट दूर हो जाते है। वो भय के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है ।

शुभता प्रदान करते हैं गणपति
जब भी हम कोई शुभ कार्य आरंभ करते हैं, तो कहा जाता है कि कार्य का श्री गणेश हो गया। इसी से भगवान श्री गणेश की महत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है। जीवन के हर क्षेत्र में गणपति विराजमान हैं। पूजा-पाठ, विधि-विधान, हर मांगलिक-वैदिक कार्यों को प्रारंभ करते समय सर्वप्रथम गणपति का सुमिरन करते हैं।
श्री गणेश जी की पूजा प्रत्येक शुभकार्यकरने के पूर्व` श्री गणेशायनम:` का उच्चारण किया जाता है। क्योंकि गणेश जी की आराधना हर प्रकार के विघ्नों के निवारण करने के लिए किया जाता है। क्योंकि गणेश जी विघ्नेश्वर हैं :-
विवाह की एवं गृह प्रवेश जैसी समस्त विधियों के प्रारंभ में गणेश पूजन किया जाता है। `पत्र अथवा अन्य कुछ लिखते समय सर्वप्रथम॥ श्री गणेशाय नमः॥, ॥श्री सरस्वत्यै नमः ॥,॥श्री गुरुभ्यो नमः ॥ ऐसा लिखने की प्राचीन पद्धति थी। ऐसा ही क्रम क्यों बना? किसी भी विषय का ज्ञान प्रथम बुद्धि द्वारा ही होता है व गणपति बुद्धि दाता हैं, इसलिए प्रथम `॥ श्री गणेशाय नमः ॥` लिखना चाहिए।
वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ । निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश का अद्वितीय महत्व है। यह बुद्धि के अधिदेवता विघ्ननाशक है। ‘गणेश’ का अर्थ है- गणों का स्वामी। हमारे शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां तथा चार अंतःकरण हैं तथा इनके पीछे जो शक्तियां हैं, उन्हीं को चौदह देवता कहते हैं।

मोदक और भगवान गणेश
भगवान गणेश की मूर्तियों एवं चित्रों में उनके साथ उनका वाहन और उनका प्रिय भोजन मोदक जरूर होता है। शास्त्रों के मुताबिक भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए सबसे आसान तरीका है मोदक का भोग। गणेश जी का मोदक प्रिय होना भी उनकी बुद्धिमानी का परिचय है।
भगवान गणेश को मोदक इसलिए भी पसंद हो सकता है क्योंकि मोदक प्रसन्नता प्रदान करने वाला मिष्टान है। मोदक के शब्दों पर गौर करें तो `मोद` का अर्थ होता है हर्ष यानी खुशी। भगवान गणेश को शास्त्रों में मंगलकारी एवं सदैव प्रसन्न रहने वाला देवता कहा गया है। अर्थात् वह कभी किसी चिंता में नहीं पड़ते।
गणपत्यथर्वशीर्ष में लिखा है, “यो मोदकसहस्त्रेण यजति स वांछितफलमवाप्नोति।” इसका अर्थ है जो व्यक्ति गणेश जी को मोदक अर्पित करके प्रसन्न करता है उसे गणपति मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।

मोदक का भोग लगाएं जीवन में खुशहाली लाएं
हिन्दू धर्म परंपराओं में बुधवार का दिन सभी सुखों का मूल बुद्धि के दाता और देवता भगवान श्री गणेश की उपासना का दिन है। इसी कड़ी में श्री गणेश को विशेष रूप से मोदक या लड्डू चढ़ाने की भी परंपरा है। शास्त्रों में यह वर्णित है कि भगवान गणेश को बुधवार के दिन 5 या फिर 11 लड्डुओं का भोग लगाने से वह जीवन की समस्त बाधाओं को हर लेते है। इन लड्डुओं का भोग लगाने के साथ ही श्रद्धापूर्वक ऊं गं (गम) गणपतये नम: मंत्र का जितनी बार संभव हो सके जाप करें।
बुधवार के स्वामी बुध ग्रह भी है, जो बुद्धि के कारक भी माने जाते हैं। इस तरह बुद्धि प्रधानता वाले दिन पर बुद्धि के दाता श्री गणेश की मोदक का भोग लगाकर पूजा प्रखर बुद्धि व संकल्प के साथ सुख-सफलता व शांति की राह पर आगे बढऩे की प्रेरणा व ऊर्जा से भर देती है।

कर्ज से मुक्ति दिलाते हैं भगवान गणेश
भगवान गणेश आपके जीवन के सभी विघ्नों को नहीं हरते बल्कि आपको जीवन की हर खुशहाली प्रदान करते हैं। शास्त्रों में यह वर्णित है कि बुधवार के दिन लड्डू या लड्डू नहीं उपलब्ध हो तो दूर्वा भगवान गणेश को अर्पित करें। दूर्वा वह है, जो गणेश के दूरस्थ पवित्रकों को पास लाती है। गणपति को अर्पित की जाने वाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए। ऐसी दूर्वा को बालतृणम्‌ कहते हैं। सूख जाने पर यह आम घास जैसी हो जाती है। साथ ही भगवान गणेश को नमन कर ऊं गं (गम) गणपतये नम: मंत्र का 11 या 108 बार जाप करें।

वास्तु दोष दूर करते हैं गणपति
यदि घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर गणेश जी की प्रतिमा इस प्रकार लगाए कि दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे। इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है। भवन के जिस भाग में वास्तु दोष हो उस स्थान पर घी मिश्रित सिंदूर से स्वास्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है। घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग में वक्रतुण्ड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते हैं। किंतु प्रतिमा लगाते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुंह दक्षिण दिशा या नैर्ऋत्य कोण में नहीं हो। इसका विपरीत प्रभाव होता है।
मंगल मूर्ति भगवान गणेश को मोदक एवं उनका वाहन मूषक अतिप्रिय है। अत: घर में चित्र लगाते समय ध्यान रखें कि चित्र में मोदक या लड्डू और चूहा अवश्य होना चाहिए। इससे घर में बरकत होती है। इस तरह आप भी बिना तोड़-फोड़ के गणपति पूजन के द्वारा से घर के वास्तुदोष को दूर कर सकते हैं।
घर में बैठे हुए गणेश जी तथा कार्यस्थल पर खड़े गणपति जी का चित्र लगाना चाहिए, किंतु यह ध्यान रखें कि खड़े गणेश जी के दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते हुए हों। इससे कार्य में स्थिरता आने की संभावना रहती है।
सर्वमंगल की कामना करने वालों के लिए सिंदूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है। इससे शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। विघ्नहर्ता की मूर्ति अथवा चित्र में उनके बाएं हाथ की ओर सूंड घुमी हुई हो इस बात का ध्यान रखना चाहिए। दाएं हाथ की ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेश जी हठी होते हैं तथा उनकी साधना-आराधना कठिन होती है। शास्त्रों में कहा गाया है कि दाएं सूंड वाले गणपति देर से भक्तों पर प्रसन्न होते हैं।

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