यक्षिणी मंत्र , मुंडी_साधना PARASHMUNI

💯✔ #यक्षिणी_मंत्र
साधारणतया 36 यक्षिणियां हैं तथा उनके वर देने के प्रकार अलग-अलग हैं। यहां 32 मंत्रों की विशेष जानकारी दी जा रही है। अन्य मंत्र अत्यंत गोपनीय है। इन मंत्रों की यक्षिणियां रंग, रूप, प्रेम, सुख, ऐश्वर्य, सौभाग्य, सफलता, संपन्नता, वैभव, पराक्रम, रिद्धि-सिद्धि, धन-धान्य, संतान सुख, रत्न जवाहरात, मनचाही उपलब्धियां, राज्य प्राप्ति और भौतिक ऐश-ओ-आराम देती है। शत्रु भय दूर करती हैं। आत्मविश्वास और सौन्दर्य से भरपूर कर देती हैं।

(1) सुर सुंदरी यक्षिणी- मंत्र निम्नलिखित है-

'ॐ ह्रीं आगच्छ सुर सुंदरी स्वाहा।'

गुग्गलादि की धूप, लाल चंदन के जल से अर्घ्य तथा तीनों संध्याओं में पूजन तथा जप मासभर की जाती है। घर पर एकांत में साधना होती है।

(2) मनोहारणी यक्षिणी- मंत्र निम्नलिखित है।

'ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहारी स्वाहा।'

नदी के संगम पर एकांत में अगर-तगर की धूप लगातार जलती रहे तथा महीने भर साधना रात्रि में की जाती है। स्वर्ण मुद्राएं प्रदान की करती हैं।

(3) कनकावती यक्षिणी- मंत्र निम्नलिखित है।

'ॐ ह्रीं कनकावती मैथुन प्रिये आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।'

एकांत में वटवृक्ष के समीप मद्य-मांस का प्रयोग नेवैद्य के लिए नित्य करते हुए साधना की जाती है।

(4) कामेश्वरी यक्षिणी- मंत्र निम्नलिखित है।

'ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ कामेश्वरी स्वाहा।'

अपने एकांत कक्ष में शय्या पर बैठकर मासभर साधना पूर्वाभिमुख होकर की जाती है। सभी इच्छाएं पूर्ण करती हैं।

(5) रतिप्रिया यक्षिणी- मंत्र निम्नलिखित है।

'ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ रतिप्रिये स्वाहा।'

एकांत कमरे में चित्र बनाकर नित्य पूजन तथा जप रात्रि में किया जाता है। समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

(6) पद्मिनी यक्षिणी- मंत्र निम्नलिखित है।

'ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ पद्मिनी स्वाहा।'

रात्रि में मास भर जप तथा पूजन कर पूर्णिमा को रातभर जप किया जाता है। ऐश्वर्य प्रदान करती है।

(7) नटी यक्षिणी- मंत्र निम्नलिखित है।

'ॐ ह्रीं आगच्छ-आगच्छ नटि स्वाहा।'

इनकी साधना अशोक वृक्ष के नीचे की जाती है। मद्य, मीन, मांसादि की बलि प्रदान की जाती है। मासांत में हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।

(8) अनुरागिणी यक्षिणी- मंत्र निम्नलिखित है।

'ॐ ह्रीं अनुरागिणी आगच्छ-आगच्छ स्वाहा।

घर के एकांत कक्ष में साधना की जाती है। मास के अंत में सभी इच्छाएं पूर्ण करती हैं।

(9) विचित्रा यक्षिणी- मंत्र निम्नलिखित है।

'ॐ ह्रीं विचित्रे चित्र रूपिणि मे सिद्धिं कुरु-कुरु स्वाहा।'

वटवृक्ष के नीचे एकांत में चम्पा पुष्प से पूजन करना पड़ता है। धन-ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।

(10) विभ्रमा यक्षिणी- मंत्र निम्नलिखित है।

'ॐ ह्रीं विभ्रमे विभ्रमांग रूपे विभ्रमं कुरु रहिं रहिं भगवति स्वाहा।'

श्मशान में रात्रि में साधना की जाती है। प्रसन्न होने पर नित्य अनेक व्यक्तियों का भरण-पोषण करती हैं।

(11) हंसी यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ हंसी हंसाह्वे ह्रीं स्वाहा।'

घर के एकांत में साधना की जाती है। अंत में पृथ्वी में गड़े धन को देखने की शक्ति देती है।

(12) भीषणी यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ ऐं महानाद भीषणीं स्वाहा।'

किसी चौराहे पर बैठकर साधना की जाती है। सभी विघ्न दूर कर कामनाएं पूर्ण करती हैं।

(13) जनरंजिनी यक्षिणी
मंत्र यथा- 'ॐ ह्रीं क्लीं जनरंजिनी स्वाहा।'

इनकी साधना कदम्ब के वृक्ष के नीचे की जाती है तथा ये देवी दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल देती हैं।

(14) विशाला यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ ऐं ह्रीं विशाले स्वाहा।'

चिंचा वृक्ष के नीचे साधना की जाकर दिव्य रसायन प्राप्त होता है।

(15) मदना यक्षिणी-

मंत्र यथा- 'ॐ मदने मदने देवि ममालिंगय संगे देहि देहि श्री: स्वाहा।'

राजद्वार पर साधना होती है तथा अदृश्य होने की शक्ति प्रदान करती है।

(16) घंटाकर्णी यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ ऐं पुरं क्षोभय भगति गंभीर स्वरे क्लैं स्वाहा।'

एकांत में घंटा लगातार बजाते हुए साधना होती है। वशीकरण की शक्ति प्राप्त होती है।

(17) कालकर्णी यक्षिणी-

मंत्र - 'ॐ हुं कालकर्णी ठ: ठ: स्वाहा।'

एकांत में साधना होती है तथा शत्रु का स्तंभन कर ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।

(18) महाभया यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ ह्रीं महाभये हुं फट्‍ स्वाहा।'

श्मशान में साधना की जाती है तथा अजर-अमरता का वरदान देती हैं।

(19) माहेन्द्री यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ माहेन्द्री कुलु कुलु हंस: स्वाहा।'

तुलसी के पौधे के समीप साधना की जाती है। अनेक सिद्धियां प्रदान करती हैं।

(20) शंखिनी यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ शंख धारिणे शंखा भरणे ह्रीं ह्रीं क्लीं क्लीं श्रीं स्वाहा।'

एकांत में प्रात:काल साधना की जाती है। हर इच्छा पूर्ण करती हैं।

(21) श्मशाना यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ द्रां द्रीं श्मशान वासिनी स्वाहा।'

श्मशान में साधना होती है तथा गुप्त धन का ज्ञान करवाती हैं।

(22) वट यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ श्रीं द्रीं वट वासिनी यक्षकुल प्रसूते वट यक्षिणी एहि-एहि स्वाहा।'

वटवृक्ष के नीचे साधना की जाती है। दिव्य सिद्धियां प्रदान करती हैं।

(23) मदन मेखला यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ क्रों मदनमेखले नम: स्वाहा।'

एकांत में साधना होती है तथा दिव्य दृष्टि प्रदान करती हैं।

(24) चन्द्री यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ ह्रीं चंद्रिके हंस: स्वाहा।'

अभीष्ट सिद्धियां प्रदान करती हैं।

(25) विकला यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ विकले ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं स्वाहा।'

पर्वत-कंदरा में साधना की जाती है तथा समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

(26) लक्ष्मी यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महाल्‍क्ष्म्यै नम:।'

घर में एकांत में साधना होती है तथा दिव्य भंडार प्रदान करती हैं।

(27) स्वर्णरेखा यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ वर्कर्शाल्मले सुवर्णरेखा स्वाहा।'

एकांत वन में शिव मंदिर में साधना की जाती है। मासांत में सिद्धि प्राप्त होती है। धन, वस्त्र व आभूषण आदि देती हैं।

(28) प्रमोदा यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ ह्रीं प्रमोदायै स्वाहा।'

घर में एकांत में साधना की जाती है। मास के अंत में निधि का दर्शन होता है।

(29) नखकोशिका यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ ह्रीं नखकोशिके स्वाहा।'

एकांत वन में साधना होती है। हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।

(30) भामिनी यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ ह्रीं भामिनी रतिप्रिये स्वाहा।'

ग्रहण काल में जप किया जाता है। अदृश्य होने तथा गड़ा हुआ धन देखने की सिद्धि प्राप्त होती है।

(31) पद्मिनी यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ ह्रीं आगच्छ पद्मिनी स्वाहा।'

शिव मंदिर में साधना की जाती है। धन व ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।

(32) स्वर्णावती यक्षिणी-
मंत्र - 'ॐ ह्रीं आगच्छ स्वर्णावति स्वाहा।'

वटवृक्ष के नीचे साधना की जाती है तथा अदृश्य निधि देखने की शक्ति प्रदान करती है।
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💯✔ #मुंडी_साधना

मंत्र-डम डम सिद्धिमुंडी॥इस मंत्र से जितने भी लाभ मिलता है,
उन सब को गिनते गिनते थक जाएंगे।सिर्फ जाप करने से पुरे
दिन सुखमय हो जाता है।नौकरी,विद्या,धन प्राप्ति के साथ घर
का कलह दुर हो जाता है।विवाह का समस्या? ब्यापार मेँ घाटा?
भूत और प्रेत का समस्या?और कुछ भी समस्या हो चुटकी मेँ
दुर हो जाता है।मन मेँ कुछ भी इच्छा हो वह सब सत्य होने
लगता है।कर्ज से मुक्ति और सुखमय जीवन मिलता है।ए सब
पाने के लिए प्रतिदिन कुछ माला मंत्र किसि भी देवी के चित्र
के सामाने जाप करना चाहिए।सिद्धिमुंडी देवी को दर्शन करना
चाहते हे तो 1 से 21 दिन तक रात को 1100 मंत्र जाप करना
चाहिए।10 से 11 बजे के मध्य मेँ साधना आरंभ करना चाहिए।
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 #कालभैरव_मारन_प्रयोग

|| मंत्र ||

ॐ ऐं ह्रीं महा विकराल भैरवाय ज्वालाकताय मम शत्रु दह दह पच पच उन्मूलय उन्मूलय ॐ ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा।

विधि: इसका जप ४० दिन तक करना है।  प्रतिरात शमशान में १ माला जपनी है भेंस के आसान पर रुद्राक्ष की माला से।  जब मंत्र जप पूरा हो तब सरसों से हवन करें, १०८ आहुतियां दें।

#लोक_कल्याण_कारक_शाबर_मन्त्र

१ अरिष्ट-शान्ति अथवा अरिष्ट-नाशक मन्त्रः-
क॰ “ह्रीं हीं ह्रीं”
ख॰ “ह्रीं हों ह्रीं”
ग॰ “ॐ ह्रीं फ्रीं ख्रीं”
घ॰ “ॐ ह्रीं थ्रीं फ्रीं ह्रीं”

विधिः-उक्त मन्त्रों में से किसी भी एक मन्त्र को सिद्ध करें । ४० दिन तक प्रतिदिन १ माला जप करने से मन्त्र सिद्ध होता है । बाद में संकट के समय मन्त्र का जप करने से सभी संकट समाप्त हो जाते हैं ।

२ सर्व-शुभ-दायक मन्त्रः-

मन्त्र - ” ॐ ख्रीं छ्रीं ह्रीं थ्रीं फ्रीं ह्रीं ।”
विधिः- उक्त मन्त्र का सदैव स्मरण करने से सभी प्रकार के अरिष्ट दूर होते हैं । अपने हाथ में रक्त पुष्प (कनेर या गुलाब) लेकर उक्त मन्त्र का १०८ बार जप कर अपनी इष्ट-देवी पर चढ़ाए अथवा अखण्ड भोज-पत्र पर उक्त मन्त्र को दाड़िम की कलम से चन्दन-केसर से लिखें और शुभ-योग में उसकी पञ्चोपचारों से पूजा करें ।

३ अशान्ति-निवारक-मन्त्रः-

मन्त्रः- “ॐ क्षौं क्षौं ।”
विधिः- उक्त मन्त्र के सतत जप से शान्ति मिलती है । कुटुम्ब का प्रमुख व्यक्ति करे, तो पूरे कुटुम्ब को शान्ति मिलती है ।

४ शान्ति, सुख-प्राप्ति-मन्त्रः-

मन्त्रः- “ॐ ह्रीं सः हीं ठं ठं ठं ।”
विधिः- शुभ योग में उक्त मन्त्र का १२५ माला जप करे । इससे मन्त्र-सिद्धि होगी । बाद में दूध से १०८ अहुतियाँ दें, तो शान्ति, सुख, बल-बुद्धि की प्राप्ति होती है ।

५ रोग-शान्ति-मन्त्रः-

मन्त्रः- “ॐ क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं फट् ।”
विधिः- उक्त मन्त्र का ५०० बार जप करने से रोग-निवारण होता है । प्रतिदिन जप करने से सु-स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है । कुटुम्ब में रोग की समस्या हो, तो कुटुम्ब का प्रधान व्यक्ति उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित जल को रोगी के रहने के स्थान में छिड़के । इससे रोग की शान्ति होगी । जब तक रोग की शान्ति न हो, तब तक प्रयोग करता रहे ।

६ सर्व-उपद्रव-शान्ति-मन्त्रः-

मन्त्रः- “ॐ घण्टा-कारिणी महा-वीरी सर्व-उपद्रव-नाशनं कुरु कुरु स्वाहा ।”

विधिः- पहले इष्ट-देवी को पूर्वाभिमुख होकर धूप-दीप-नैवेद्य अर्पित करें । फिर उक्त मन्त्र का ३५०० बार जप करें । बाद में पश्चिमाभिमुख होकर गुग्गुल से १००० आहुतियाँ दें । ऐसा तीन दिन तक करें । इससे कुटुम्ब में शान्ति होगी ।

७ ग्रह-बाधा-शान्ति मन्त्रः-

मन्त्रः- “ऐं ह्रीं क्लीं दह दह ।”

विधिः- सोम-प्रदोष से ७ दिन तक, माल-पुआ व कस्तूरी से उक्त मन्त्र से १०८ आहुतियाँ दें । इससे सभी प्रकार की ग्रह-बाधाएँ नष्ट होती हैं ।

८ देव-बाधा-शान्ति-मन्त्रः-

मन्त्रः- “ॐ सर्वेश्वराय हुम् ।”

विधिः- सोमवार से प्रारम्भ कर नौ दिन तक उक्त मन्त्र का ३ माला जप करें । बाद में घृत और काले-तिल से आहुति दें । इससे दैवी-बाधाएँ दूर होती हैं और सुख-शान्ति की प्राप्ति होती ..

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