सनातन हिन्दू धर्म मान्यता पारसमुनि

👉 जप के लिए माला किस की होनी चाहिए?

प्रवाल ,मुक्ता, स्फटिक, ये जप के लिए कोटी फलप्रद माने गये है।

👉 #भस्म न धारण करने से क्या दोष लगता है?

स्नान,दान,जप,होम, संध्या-वंदन, स्वाध्यायादि कर्म ऊर्ध्व पुण्ड्(त्रिपुंड)विहिन के लिए निरर्थक है अर्थात इनका कोई भी फल नहीं मिलता।

👉 ललाट पर तिलक कर के ही संध्या-वंदन करें जो ऐसा नहीं करता उसका किया हुआ सब निरर्थक है। तुलसी की माला अक्षय फलदायक माना गया है ।

👉 माला का दाना किन किन अंगुलियों में बदला जाये?

अंगूठे और मध्यमा अंगुली से माला का दाना बदलना चाहिए । तर्जनी अर्थात् अंगुठे की बगल वाली अंगुली से माला के मनके अर्थात् दाने का स्पर्श भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि मध्यमा अंगुली आकर्षण करनेवाली तथा सब प्रकार की सिद्धि प्रदायक होती हैं। 

👉 कर्म विशेष में दर्भ का क्या प्रमाण हैं?

ब्रह्मयज्ञ में गोकर्णमात्र दो ब्रह्मयज्ञ में गोकर्णमात्र दो दर्भा,तर्पण में हस्तप्रमाण तीन दर्भा ।

👉 गोकर्ण किसे कहते हैं?

तर्जनी और अंगूठे को फैलाकर जो प्रदेश प्रमाण होता है उसे ही गोकर्ण कहते हैं।

👉वितरित किसे कहते हैं?

कनिष्टिका तथा अंगुठे को फैलाने पर जो वितरित  होता है जिसे विलांत या द्वादशाड्गुल कहते हैं।

👉 दाहिने हाथ की मध्य की तीन अंगुलियों से विद्वान लोग त्रिपुण्ड धारण करें जो सब पापों को नाश करनेवाला है।
जो त्रिपुंड धारण नहीं करता उसके लिए सत्य, शौच, जप, होम, तीर्थ, देव- पूजन सभी व्यर्थ है।

👉 भस्म कहां-कहां धारण करें?

ललाट, हृदय ,नाभी ,कंठ, बाहुसंधि ,पृष्ठ देश शिर इन स्थानों में भस्म लगावे ।

👉 त्रिपुंड कितना लंबा होना चाहिए?

 ब्राह्मण के लिए ८ (आठ) अंगुल लंबा ,क्षत्रिय के लिए ४ (चार) अंगुल लंबा, वैश्य के लिए २  (दो) अंगुल लंबा , शेष शुद्रादि के लिए १ अंगुल लम्बा त्रिपुंड लगाना चाहिए।

👉 त्रिपुंड किसे कहते हैं ?

भ्रुवों  के मध्य से प्रारंभ कर जब तक भ्रुवों का अंत न हो मध्यमा अनामिका अंगुलियों से मध्य में प्रतिलोम अंगूठे से जो रेखा की जाती है, उससे त्रिपुंड कहते हैं।
👉 करमाला किसे कहते हैं?
मध्यड्गुलीके आदिके दो पर्वो को जप काल में छोड़ देना चाहिए स्वयं श्री ब्रह्मा जी का कथन है कि उसे मेरु मानना चाहिए।

👉 मेरु लंघन ने क्या दोष लगता है?

 मेरु हिना तथा मेरु के लांघने वाली माला अशुद्ध होती है तथा निष्फल है।

👉 माला किस चीज की उत्तम होती है?

 अरिष्ट पत्र एवं बीज शंड्पद ,मणि, कुश ग्रंथि, रुद्राक्ष ये क्रमश: उत्तरोत्तर उत्तम है।

👉 पवित्र कैसी #दर्भा का होता है?

अनन्त गर्भवती अग्रभाग सहित दो दलवाली प्रदेशमात्र कुश का पवित्र होता है। #मार्कण्डेय_पुराण के मत से ब्राह्मण को ४ (चार) शाखावाली दर्भा से, क्षत्रिय को ३ (तीन) शाखावाली दर्भा और वैश्य को २ (दो) शाखावाली दर्भा से पवित्र बनाना चाहिए।

👉 सपवित्र हस्त से आचमन करना या नहीं करना चाहिए?
सपवित्र हस्त से आचमन करने से वह पवित्र उचिष्ट नहीं होता हैं। 
कौन-कौन से कर्म दोनों हाथों में दर्भा लेकर करना चाहिए?
स्नान,दान,होम,जप, स्वाध्याय,पितृकर्म तथा संध्या-वंदन दोनों हाथ में दर्भा लेकर करें ।
👉 पवित्र किसे कहते हैं?
२ (दो) अंगुल जिसका मूल भागों ,१ (एक) आंगुल की ग्रंथी हो और ४ अंगुल जिसका अग्रभाग हो उसे पवित्र कहते हैं।

👉 #ब्रह्मग्रन्थी और वर्तुल ग्रन्थी कहां-कहां लगाना चाहिए? ब्रह्मग्रन्थी और वर्तुल ग्रन्थी में क्या भेद हैं?
ब्रह्मग्रन्थी और वर्तुल ग्रन्थी परस्पर विपरीत क्रम से हैं। 
कुशा तथा दुर्वा की पवित्रीमें अधिक उत्तम कौन हैं?
कुशा तथा दुर्वा की पवित्रीमें अधिक उत्तम सुवर्ण की पवित्री उत्तम हैं।

👉  #संध्या_वंदन करने के लिए कौन से आसन उपयुक्त है?
कृष्ण मृग चर्म पर बैठने से ज्ञान सिद्धि, व्याघ्रचर्म पर बैठने से मोक्ष प्राप्ति, दु:ख के  नाश के लिए कम्बल पर बैठना चाहिए। अभिचार कर्म करने के लिए नील वर्ण के आसन, वशीकरण के लिए रक्तवर्ण, शांति कर्म के लिए कम्बल का आसन, सभी प्रकार की सिद्धि के लिए कम्बल का आसन श्रेयस्कर है।बांस पर बैठने से दरिद्रता, पत्थर पर बैठने से गुदा रोग, पृथ्वी पर बैठने से दु:ख , बिंदी हुई लकड़ी अर्थात छेद किया हुआ (किल लगी हुई ) पर बैठकर संध्यादि करने से दुर्भाग्य ,घास पर बैठने से धन और यश की हानि, पत्तों पर बैठकर जप करने - संध्या करने से चिंता तथा विभ्रम होता है।

👉 #काष्ठासन तथा #वस्त्रासन का माप क्या होना चाहिए?
काष्ठासन २४ अंगुल लम्बा १८ अंगुल चोड़ा ४ या ५ अंगुल ऊंचा होना चाहिए, वस्त्रासन २ हाथ से ज्यादा चोड़ा न हो,३ अंगुल से ज्यादा मोटा नहीं होना चाहिए। लकड़ी की गड़ाएं कहां-कहां नहीं पहनना चाहिए?
आग्न्यागार में , गोशाला में ,देवता तथा ब्राह्मण के सम्मुख,आहार के समय जप के समय पादुका का त्याग कर देना चाहिए। 

👉 #यजुर्वेद की कितनी शाखाएं हैं?

यजुर्वेद की १०१ शाखाएं हैं। उसमें ६ शाखाएं मिलती है जिनके नाम है तैत्तिरीय, मैत्रायणि, कंठ, कपिष्ठल, श्वेता , श्वतर हैं, ये कृष्ण यजुर्वेद की शाखाएं हैं जो उपलब्ध है।
 शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेय,काण्व शाखाएं उपलब्ध है शेष शाखाएं लुप्त हैं ।

👉 #सामवेद की कितनी शाखाएं हैं?

 सामवेद के १००० शाखाएं हैं ।जिनमें केवल ३ शाखाएं प्राप्त है शेष शाखाएं लुप्त हैं ।

👉 #अथर्ववेद की कितनी शाखाएं हैं?

 अथर्ववेद की ९ शाखाएं हैं जिनमें पैप्पलवाद और शौनकीया प्राप्त हैं।
 #ऋग्वेद की शाकलशाखा  का विवरण बताएं?
 ऋग्वेद की शाकल शाखा १० भागों  में विभक्त है। जिन्हें मंडल कहते हैं प्रत्येक मंडल में कई सूक्त में कई ऋचाएं है। कुल १,०२८एक हजार अठ्ठाईस सुक्त है। जिसमें १०,५०० ऋचाएं हैं।

👉 यजुर्वेद का विवरण बतायें?

यजुर्वेद दो भागों में विभक्त है। शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद।
शुक्ल यजुर्वेद वाजसनेय माध्यदिन संहिता में कुल ४० अध्याय हैं। जिनमें यज्ञ संबंधी ज्ञान का विस्तृत वर्णन है।
 कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा में कितने मंत्र हैं ?

#कृष्ण_यजुर्वेद में ७ (सात) अष्टक, ४४ (चौवालीस) प्रपाठक , ६५१ (छः सौ इक्यावन) अनुवाक और २१९८ (दो हजार एक सौ अठानवे) मंत्र संग्रह है।

👉 कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा में कितने मंत्र हैं?

कृष्ण यजुर्वेद में सात अष्टक ४४ प्रपाठक, ६५१ अनुवाद और २१९८ मंत्र समूह है।

👉#शुक्ल_यजुर्वेद माध्यदिन शाखा में कितने मंत्र आदि हैं?

शुक्ल यजुर्वेद माध्यमिक शाखा में ४० अध्याय १,९७५ मंत्र ९०,५३५ अक्षर ,१२३० सभी प्रकार की (-) धूं चिन्ह है।

👉 सामवेद का विवरण बताएं?

सामवेद की १००० शाखाओं में से कौथुमी शाखा में २९ अध्याय हैं , ६ आर्चिक हैं, ८८साम, १८२४ मंत्र है। राणायणी शाखा में १५४९ मंत्र है।

👉 अथर्ववेद की विवरण बताएं?

अथर्ववेद की नव शाखाएं हैं जिनमें शौनक शाखा में  २० कांड , ३४ प्रपाठक, १११ अनुवाक, ७३३ वर्ग , ७५९ सुक्त, ५९७७ मन्त्र है। कुछ शाखाएं ऐसी है जिनके आरण्यक , ब्राह्मण उपनिषद ही मिलते हैं मंत्र भाग नहीं मिलतेहै।

👉 तीनों काल की संध्या का नाम क्या है?

प्रभात काल की संध्या का नाम गायत्री, मध्यकाल की संध्या का नाम सावित्री, और सांयकाल की संध्या का नाम सरस्वती है ऐसा तत्वज्ञ ऋषियों का वचन है।

👉#त्रैकालिक_संध्या के वर्ण कौन कौन से हैं?

प्रभात काल की  संध्या गायत्री का वर्णन- लाल है। मध्याह्न काल की संध्या सावित्री का वर्ण शुक्ला वर्ण है, और सायंकाल भी संध्या का वर्ण कृष्णवर्ण है उपासनार्थियों की उपासना के लिए है।

👉 त्रैकालिकसंध्या का रूप क्या है?

प्रातः काल की संध्या- गायत्री- ब्रह्मरूपा मध्याह्न संध्या- सावित्री -शुद्ररूपा और सायंकाल की संध्या- सरस्वती विष्णुरूपा है।
ताराओ से युक्त समय उत्तम समय है, ताराओं के लुप्त हो जाने पर मध्यम। सूर्य सहित अधम इस प्रकार प्रातः संध्या तीन प्रकार की हैं।

👉 त्रैकालिक संध्या का गौत्र क्या है?

प्रात: काल की संध्या -गायत्री का गोत्र-सांड्ख्यायन, मध्याह्न काल की संध्या -सावित्री का गौत्र -कात्यायन है।
एवं सायंकाल की संध्या- सरस्वती का गौत्र बाहुल्य  है।
भग्न तथा टूटे पात्र से संध्या करना निंदनीय है उसी प्रकार धारा से टूटे हुए जल संध्या करना मना है नदी में , तीर्थ में, हद में, मिट्टी के पात्र से,उदुम्बर के पात्र में सुवर्ण-रजत- ताम्र- एवं लकड़ी के पात्र में से संध्या करनी चाहिए ।

👉 त्रैकालिकसंध्या-वन्दन में कौन-कौन से पात्र अपवित्र है?

कांसा, लौह, शीशा, पीतल के पात्रोंसे आचमन करने वाला कभी शुद्ध नहीं हो सकता ।अत:इन धातुओं के बने पात्र अपवित्र हैं इन्हें संध्या वंदन में प्रयोग न लेना चाहिए।

👉 किन-किन स्थानों पर संध्या वंदन करना विशेष फलप्रद है?

अपने घर पर अर्थात् अपने निवास स्थान पर संध्या -वन्दन करना समान फल प्रदायक है। गायों के स्थान पर सों(१००) गुना बगीचा तथा वन में हजार(१०००) गुना, पर्वत पर दसहजार(१०,०००) गुना नदी के तट पर लाख(१,००,०००) गुना ,देवालय में करोड़(१,००,००,०००) गुना, भगवान सदा शिव शड्कर के सम्मुख बैठकर जप करना संध्या करने से अनंत गुना फल मिलता है।
घर के बाहर संध्या करने से झूठ बोलने से लगा पाप मद्य सुंघने से लगा पाप, दिवा(दिन को) मैथुन करने से लगा पाप नष्ट होता है अत: संध्या घर से बाहर पवित्र स्थान में करना चाहिए।

👉 संध्या करने का समय अगर निकल जाए तो क्या-क्या करना चाहिए?

किसी कारण से संध्या का समय निकल जाए विलंब हो जाए तो श्री सूर्यनारायण भगवान को चौथा अर्ध देना चाहिए इस अर्ध दान से कालातिक्रमणजन्य पाप नष्ट होता है।

👉 यज्ञ कुण्ड, मंडप बनाने की चर्चा इन ग्रंथों में है?

 शुल्बसूत्र, कुण्डाक्रकुण्डकल्पतरु, कुण्डरत्नावलि में यज्ञकुंड और मण्डपादि बनाने का विधान है।

👉 #आगम किसे कहते हैं?

जिसमें सृष्टि ,प्रळ, देवताओं की पूजा सर्व कार्यों के साधन पूरच्श्ररण  षट्कर्म साधन और चार प्रकार के ध्यानयोग का वर्णन हो उससे आगम कहते हैं।

👉 #यामल किसे कहते हैं?

सृष्टि, तत्व, ज्योतिष नित्य कृत्य , सूत्र, वर्णभेद और युगधर्म का वर्णन जिसमें हो उसे यामल कहते हैं।

👉 #तन्त्र किसे कहते हैं?

सृष्टि, लय, मंत्र निर्णय, देवताओं के संस्थान, यंत्र निर्णय, तीर्थ, आश्रमधर्म ,कल्प, ज्योतिष संस्थान, व्रतकथा, शौच, अशौच,  स्त्री पुरुष लक्षण, राजधर्म, दानधर्म, व्यवहार तथा आध्यात्मिक विषयों जिसमें वर्णन हो उसे तंत्र कहते हैं।

👉 #तैंतीस_कोटि_देवता के नाम क्या है?

८ आठ वसु,११ ग्यारह रुद्र, १२आदित्य, १ एक प्रजापति,और  १ एक वषट्कार इस प्रकार कुल तैंतीस ३३ कोटि देवी देवता होते हैं।

👉#दश_महाविद्या के नाम क्या है?
काली, तारा, ‌ललिता, भुनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, छिन्नमस्ता ,धूमावती ,बगलामुखी, मातंगी और कमला ये १० महाविद्या है।

👉 संध्या वंदन का फल क्या है?

जो दिन-प्रतिदिन संध्या करता है वह पाप रहित होकर सनातन ब्रह्मलोक में जाता है।
 जितने भी इस पृथ्वी पर विक्रर्मस्थ द्विज हैं उनके पवित्र करने के लिए स्वयंभू ब्रह्मदेव ने संध्या का निर्माण किया है।
रात्रि में तथा दिन में जो भी अज्ञान अर्थात् पाप किया गया हो वह तीनों काल की संध्या वंदन से नष्ट हो जाता है।

👉 संध्या ना करने का दोष क्या है ?

 जिसने संध्या को नहीं जाना तथा उपासना भी नहीं कि वह जीवित शुद्र है, और संध्या ना करने पर कुत्ते की योनि में जन्मता है।

संध्या न करने वाला सदा अपवित्र है सभी कार्यों के अयोग्य है दूसरा भी यदि कोई काम करता है तो उसका फल नहीं मिलता।

👉 संध्या की व्याख्या क्या है?

सूर्य नक्षत्र से वंचित अहोरात्र की जो संधि है तत्वदर्शी हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने उसी को संध्या कहां है।
👉 संध्या वंदन का काल अर्थात् समय कब होना चाहिए?
संध्या का समय सूर्योदय से पूर्व ब्राह्मण के लिए दो मुहूर्त है, क्षत्रिय के लिए इससे आधा और उससे आधा वैश्य के लिए।

कल्याणकारी नियमों का निर्देश जिसमें किया हो उसे सनातन धर्म कहते हैं।

(#सनातन_हिन्दू_धर्म_मान्यता)

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