#धन_सम्पदा_की_अधिष्ठात्री_देवी_महाविद्या_माँ_कमला_की_साधना? PARASHMUNI

#धन_सम्पदा_की_अधिष्ठात्री_देवी_महाविद्या_माँ_कमला_की_साधना?
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A- मां कमला धन सम्पदा की अधिष्ठात्री देवी हैं, भौतिक सुख की इच्छा रखने वालों के लिए इनकी आराधना सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।दस महाविद्याओं में दसवें स्थान पर माँ कमला साधना मानी जाती हैं। माँ कमला सती का दशम रूपांतरण हैं जो परम चेतन एवं परमानंद का प्रतीक हैं और शांति एवं सुख के अमृत से स्नान करती हैं। वे ब्रह्म एकत्व का साक्षात्कार हैं, वे स्वयं आनंद एवं आनंद भोगा हैं। दरिद्रता, संकट, गृहकलह और अशांति को दूर करती हैं। इनकी सेवा और भक्ति से व्यक्ति सुख और समृद्धि पूर्ण रहकर शांतिमय जीवन बिताता है।

B-इनकी  पूजा करने से व्यक्ति साक्षात कुबेर के समान धनी और विद्यावान होता है। व्यक्ति का यश और व्यापार या प्रभुत्व संसांर भर में प्रचारित हो जाता है।!माँ कमला साधना करने से साधक के जीवन में धन, धान्य, भूमि, वाहन, लक्ष्मी आदि की प्राप्ति होती है ! धन से जुडी सारी समस्या समाप्त हो जाती है ! 

C-साधना का समय..समृद्धि, धन,  पुत्रादि के लिए इनकी साधना की जाती है। इन महाविद्या की साधना नदी तालाब या समुद्र में गिरने वाले जल में आकंठ डूब कर भी की जाती है। महाविद्या माँ कमला साधना आप नवरात्रि या किसी भी शुक्ल पक्ष के शुक्रवार के दिन से शुरू कर सकते हैं !रात्रि 9 बजे के बाद कर सकते हैं ! 
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माँ कमला साधना पूजा विधि 

1-महाविद्या माँ कमला साधना करने वाले साधक को स्नान करके शुद्ध लाल वस्त्र धारण करके अपने घर में किसी एकान्त स्थान या पूजा कक्ष में पूर्व दिशा की तरफ़ मुख करके लाल ऊनी आसन पर बैठ जाए !

2-उसके बाद अपने सामने चौकी रखकर उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर ताम्र पत्र की प्लेट में एक कमल का पुष्प रखें उसके बाद उस पुष्प के बीच में सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त “कमला यंत्र” को स्थापित करें ! और उसके दाहिनी तरफ भगवान शिव जी की फोटो स्थापित करें !

3-उसके बाद यन्त्र के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर यंत्र का पूजन करें !साधना जगत में संकल्प और विनियोग के बाद बात आती है न्यास की;तत्पश्चात् ही ध्यान,पटल, कवच, स्तोत्र,हृदयादि-पाठ-जपादि का विधान है। 

मन्त्र विधान अनुसार संकल्प आदि कर सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़े : 
4-विनियोग:-
ॐ अस्य श्रीमहालक्ष्मी मन्त्रस्य भृगु ऋषि: निच्रच्छन्द: श्रीमहालक्ष्मी र्देवता श्रीं बीजं ह्रीं शक्ति: ऐं कीलकं श्रीमहालक्ष्मी प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: !!
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5-ऋष्यादि न्यास : -
सीधे हाँथ के अंगूठे ओर अनामिका अंगुली को आपस में जोड़ ले। सम्बंधित मंत्र का उच्चारण करते जाये , शरीर के जिन-जिन भागों का नाम लिया जा रहा हैं उन्हें स्पर्श करते हुए यह भावना रखे कि...   वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं ! ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है ।
मंत्र :-
भृगुऋषये नम: शिरसि ( सर को स्पर्श करें )
निच्रच्छ्न्दसे नम: मुखे ( मुख को स्पर्श करें )
श्रीमहालक्ष्मीदेवतायै नम: ह्रदये ( ह्रदय को स्पर्श करें )
श्रीं बीजाय नम: गुहे (कामिन्द्रिय स्थान पर...इसकी मुद्रा होगी- दाहिने करतल को पीछे ले जाकर,गुद-प्रान्त का वाह्य स्पर्श। )
ह्रीं शक्तये नम: पादयो: ( दोनों पैरों को स्पर्श करें )
ऐं कीलकाय नम: नाभौ ( नाभि को स्पर्श करें )
विनियोगाय नम: सर्वांगे ( पूरे शरीर को स्पर्श करें )
6-कर न्यास :-
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कर न्यास करने का सही तरीका क्या हैं?

1-करन्यास की प्रक्रिया को समझने से पहले हमें यह समझना होगा की हम भारतीय किस तरीके से नमस्कार करते हैं । इसमें हमारे दोनों हाँथ की हथेली आपस में जुडी रहती हैं।साथ -साथ दोनों हांथो की हर अंगुली ,ठीक अपने कमांक की दुसरे हाँथ की अंगुली से जुडी होतीहैं। ठीक इसी तरह से यह न्यास की प्रक्रिया भी....

2-यहाँ पर हमें जो प्रक्रिया करना हैं वह कम से धीरे धीरे एक पूर्ण नमस्कार तक जाना हैं। तात्पर्य ये हैं की जव् आप पहली लाइन के मन्त्र का उच्चारण करेंगे तब केबल दोनों हांथो के अंगूठे को आपस में जोड़ देंगे और जब तर्जनीभ्याम वाली लाइन का उच्चारण होगा तब दोनों हांथो की तर्जनी अंगुली को आपस में जोड़ ले।

3-यहाँ पर ध्यान रखे की अभी भी दोनों अंगूठे के अंतिम सिरे आपस में जुड़े ही रहेंगे , इसके बाद मध्यमाभ्यम वाली लाइन के दौरान हम दोनों हांथो की मध्यमा अंगुली को जोड़ दे। पर यहा भी पहले जुडी हुए अंगुली ..अभी भी जुडी ही रहेंगी. .. इसी तरह से आगे की लाइन के बारे में क्रमशः करते जाये ।और अंत में करतल कर वाली लाइन के समय एक हाँथ की हथेली की पृष्ठ भाग को दुसरे हाँथ से स्पर्श करे। और फिर दूसरी हाँथ के लिए भी यही प्रक्रिया करे।

अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है ।
श्रां अंगुष्ठाभ्यां नम:।
श्रीं तर्जनीभ्यां नम: ।
श्रूं मध्यमाभ्यां नम: ।
श्रैं अनामिकाभ्यां नम: ।
श्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: ।
श्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: ।
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7-ह्र्दयादि न्यास : -
  सीधे हाँथ के अंगूठे ओर अनामिका अंगुली को आपस में जोड़ ले। सम्बंधित मंत्र का उच्चारण करते जाये , शरीर के जिन-जिन भागों का नाम लिया जा रहा हैं उन्हें स्पर्श करते हुए यह भावना रखे की... वे भाग अधिक शक्तिशाली और पवित्र होते जा रहे हैं।ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है !

मंत्र :

श्रां ह्रदयाय नम: (ह्रदय को स्पर्श करें)
श्रीं शिरसे स्वाहा ( सिर को स्पर्श करें)
श्रूं शिखायै वषट् (अपनी शिखा को जो कि सिर के उपरी पिछले भाग में स्थित होती हैं )
श्रैं कवचाय हुम् (दोनों कंधों को स्पर्श करें)
श्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् (दोनों नेत्रों को स्पर्श करें)
श्र: अस्त्राय फट् (अपने सिर पर सीधा घुमाकर तीन बार चुटकी बजाएं)

नोंध

हम तीन बार चुटकी क्यों बजाते है?वास्तव में , हम हमेशा से बहुत शक्तियों से घिरे रहते हैं और जो हमेशा से हमारे द्वारा किये जाने वाले मंत्र जप को हमसे छीनते जाते हैं , तो तीन बार सीधे हाँथ की हथेली को सिर के चारो ओर चक्कर लगाये / सिर के चारो तरफ वृत्ताकार में घुमाये ,इसके पहले यह देख ले की किस नासिका द्वारा हमारा स्वर चल रहा हैं , यदि सीधे हाँथ की ओर वाला स्वर चल रहा हैं तब ताली बजाते समय उलटे हाँथ को नीचे रख कर सीधे हाँथ से ताली बजाये . ओर यदि नासिका स्वर उलटे हाथ (LEFT)की ओर का चल रहा हैं तो सीधे(RIGHT) हाँथ की हथेली को नीचे रख कर उलटे (Left) हाँथ से ताली उस पर बजाये ) इस तरीके से करने पर हमारा मन्त्र जप सुरक्षित रहा हैं ,सभी साधको को इस तथ्य पर ध्यान देना ही चाहिए...
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8-माँ कमला ध्यान :-

इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती कमला का ध्यान करके, कमला माँ का पूजन करे धुप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर कमला महाविद्या मन्त्र का जाप करें !श्वेत वर्ण के चार हाथी सूंड में सुवर्ण कलश लेकर सुवर्ण के समान कांति लिए हुए मां को स्नान करा रहे हैं। कमल पर आसीन कमल पुष्प धारण किए हुए मां सुशोभित होती हैं।

माँ कमला देवी मंत्र ;-

मुख्य नाम : कमला।

अन्य नाम : लक्ष्मी, कमलात्मिका।

भैरव : श्री विष्णु।भगवान विष्णु के २४ अवतारों से सम्बद्ध : मत्स्य अवतार।

तिथि : कोजागरी पूर्णिमा, अश्विन मास पूर्णिमा।

कुल : श्री कुल।

दिशा : उत्तर-पूर्व।

स्वभाव : सौम्य स्वभाव।

कार्य : धन, सुख, समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी।

शारीरिक वर्ण : सूर्य की कांति के समान।

माँ कमला देवी बीज मंत्र :- " ॐ ह्रीं हूं हां ग्रें क्षों क्रौं नमः

"माँ कमला देवी मूल मन्त्र :-

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः॥

माँ कमला साधना सिद्धि मन्त्र ;-
॥ ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह्सौ: जगत्प्रसूत्यै नम: ॥
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माँ कमला साधना पूजा नियम 

1-साधना करते समय साधक पूर्ण आस्था के साथ नियमों का पालन जरुर करें !ग्यारह दिनों के बाद मन्त्रों का जाप करने के बाद दिए गये मन्त्र जिसका आपने जाप किया हैं उस मन्त्र का दशांश ( 10% भाग ) हवन अवश्य करें !

2-हवन में कमल गट्टे, लाल पुष्प, शुद्ध घी व् हवन सामग्री को मिलाकर आहुति दें ! हवन के बाद कमला यंत्र को एक साल के लिए वही रख दें जंहा आपने साधना की हैं, और बाकि बची हुई पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जन कर आयें ! ऐसा करने से साधक की साधना पूर्ण हो जाती हैं ! और साधक के ऊपर माँ कमला देवी की कृपा सदैव बनी रहती हैं !

3-कमला माता का 'मंत्र'.. कमलगट्टे की माला से ..रोजाना इक्यावन  माला 'मंत्र' का जाप करें।मंत्र उच्चारण करने के बाद कमला कवच पढ़ें,यह महाविद्या साधना ग्यारह दिनों की साधना है ....
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#माँ_कमला_कवच

ऐन्कारो मस्तके पातु वाग्भवी सर्वसिद्धिदा ।
ह्रीं पातु चक्षुषोर्मध्ये चक्षुयुग्मे च शांकरी ॥
जिह्वायां मुखव्रत्ते च कर्णयोर्दन्तयोर्नसि ।
ओष्ठाधरे दंतपन्क्तौ तालुमूले हनौ पुन: ॥
पातु मां विष्णुवनिता लक्ष्मी: श्रीविष्णुरूपिणी ।
कणयुग्मे भुजद्वन्द्वे स्तनद्वन्द्वे च पार्वती ॥
ह्रदये मणिबंधे च ग्रीवायां पाशर्वयो: पुन: ।
पृष्ठदेशे तथा गुहे वामे च दक्षिणे तथा ॥
उपस्थे च नितम्बे च नाभौ जंघाद्वये पुन: ।
जानुचक्रे पदद्वन्द्वे घुटिकेऽड़ूगुलिमूलके ॥
स्वधातु-प्राणशक्त्यात्मसीमन्ते मस्तके पुन: ।
विजया पातु भवने जया पातु सदा मम ॥
सर्वांगे पातु कामेशी महादेवी सरस्वती ।
तुष्टि: पातु महामाया उत्कृष्टि: सर्वदाऽवतु ॥
ऋद्धि: पातु महादेवी सर्वत्र शम्भुवल्लभा ।
वाग्भवी सर्वदा पातु पातु मां हरगेहिनी ॥
रमा पातु सदा देवी पातु माया स्वराट् स्वयम् ।
सर्वांगे पातु मां लक्ष्मीर्विष्णुमाया सुरेश्वरी ॥
शिवदूती सदा पातु सुन्दरी पातु सर्वदा ।
भैरवी पातु सर्वत्र भेरुंडा सर्व्वदाऽवतु ।
त्वरिता पातु मां नित्यमुग्रतारा सदाऽवतु ।
पातु मां कालिका नित्यं कालरात्रि: सदावतु ॥
नवदुर्गा सदा पातु कामाक्षी सर्वदाऽवतु ।
योगिन्य: सर्वदा पान्तु मुद्रा: पान्तु सदा मम ॥
मात्रा: पान्तु सदा देव्यश्चक्रस्था योगिनीगणा: ।
सर्वत्र सर्वकामेषु सर्वकर्मसु सर्वदा ।
पातु मां देवदेवी च लक्ष्मी: सर्वसम्रद्धिदा ॥

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