श्रीयंत्र PARASHMUNI

💯✔ श्रीयंत्र का शब्दार्थ -

श्रीयंत्र का सरल अर्थ है - श्री का यंत्र अर्थात गृह। नियमनार्थक यम धातु से बना 'यंत्र' शब्द गृह अर्थ को ही प्रकट करता है। क्यूंकि गृह में ही सब वस्तुओं का नियंत्रण होता है। श्रीविद्या ढूंढने के लिए उसके गृह 'श्रीयंत्र' की ही शरण लेनी होगी। आगे श्री अर्थात श्रीविद्या के परिचय से ज्ञात होगा की वह उपास्य और उपेय दोनों है। उपेय वस्तु को उसके अनुकूल स्थान में ही अन्वेषण करने से सिद्धि होती है, अन्यथा मनुष्य उपहासास्पद बनता है।

यह विश्व ही श्रीविद्या का गृह है। यहाँ विश्व शब्द से पिण्डाण्ड एवं ब्रह्माण्ड दोनों का ग्रहण है। 
भैरवयामलतन्त्र में लिखा है - चक्रं त्रिपुरसुन्दर्या ब्रह्मंडाकारमीर्श्वरी।  अर्थात हे ईश्वरी ! त्रिपुरसुन्दरी का चक्र ब्रह्मण्डाकार  है

 श्री शब्द का अर्थ - 

श्रयते या सा श्री  - अर्थात जो श्रयण की वही श्री है। श्रयणार्थक धातु सकर्मक है, अतः यह कर्म की अपेक्षा रखता है। प्राचीन परंपरागत व्यव्हार के अनुसार श्री का श्रयण कर्म हरि (ब्रह्म) के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं कर सकता। अतः जो नित्य परब्रह्म का आश्रयण करती है वही श्री है। यहाँ यह शंका हो सकती है की यह ब्रह्म को श्रयण करने वाली वस्तु यदि नित्य है तो द्वैत हो जाता है और यदि अनित्य है तो घटपटादि की भांति यह भी ब्रह्मश्रित हुई , फिर इसे अलग पदार्थ मानने की क्या आवश्यकता है?

जिस प्रकार प्रकाश अथवा ऊष्णता अग्नि से अभिन्न हैं और उसके बिना नहीं ठहर सकती, उसी प्रकार ब्रह्म से उसकी शक्ति श्री भी अभिन्न है और उससे कभी अलग नहीं हो सकती। 

न शिवेन विना देवी न देव्या च विना शिवः। 
नानयोरन्तरं किञ्चिच्चन्द्रचंद्रिककयोरिव।। 

श्री के ही कारण ब्रह्म को अनंतशक्ति अथवा सृष्टि, स्थिति और पालन करनेवाला कहते हैं। श्रीशंकराचार्य  कहते हैं - 

शिवः शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुं। 
न चदेवं देवो न खलु कुशलः स्पन्दितुम्पि।।

यह महाशक्ति विश्रमण अवस्था (प्रलय) में प्रकाशमय ब्रह्मरूप होकर रहती है। इस अवस्था में शक्ति का पृथक विवेक नहीं रहता। अनावृत आकाशस्थ प्रकाश की भांति यह ब्रह्म में लीन हुई रहती है। तब इसका महाबिन्दुरूप अथवा परब्रह्म परमात्मारूप  से वर्णन करते हैं। 

इसी कारण प्रलयकाल में अनंतशक्ति ब्रह्म के अविनाशी होने के कारण सदा वर्तमान रहने पर भी सृष्टि नहीं होती।  क्यूंकि ब्रह्म को अनंतशक्ति देने वाली इस महाशक्ति के उस काल में तल्लीन हो जाने के कारण ब्रह्म अशक्त सा हो जाता है।

 जिस प्रकार निरावरण आकश में सूर्य का आतप बिना पक्षी, मकान, छाता आदि के स्वयं प्रकाशित नहीं होता इसी प्रकार अनंतशक्ति ब्रह्म के रहते भी इस शक्तियों की भी शक्ति के (जिसे आगम में विमर्श शक्ति भी कहते हैं) सम्मुख हुए बिना उस (ब्रह्म) में कोई शक्ति नहीं आ सकती क्यूंकि वह स्वयं निर्गुण, निष्कल, निरज्जन है।  इस अवस्था का आगमिकों ने इस प्रकार वर्णन किया है      

अचिन्त्यामिताकारशक्तिस्वरूपा प्रतिव्यक्त्यधिष्ठानस्तैकमूर्तिः।  गुणातीतनिर्द्वन्द्वबोधेकगम्या  त्वमेका परब्रह्मरूपेण सिद्धा।।

इस प्रकार की श्री को जानना प्रत्येक मुमुक्षु का कर्त्तव्य है।  कामकलाविलास आगम में लिखा है - विदिता येन स मुक्तो भवति महात्रिपुरसुंदरिरूपः। अतः इस प्रकार श्री सुंदरी  के यंत्र (गृह) का ज्ञान प्राप्त करना बहुत आवश्यक है। यह श्रीयंत्ररूप श्रीत्रिपुरसुन्दरी का गृह जाग्रत, स्वप्न, सुसुप्ति तथा प्रमाता, प्रमेय, प्रमाणरूप से त्रिपुरात्मक तथा सूर्य-चंद्र-अग्नि-भेद से त्रिखण्डात्मक कहलाता है। 

त्रिखण्डं मातृकाचक्रं सोमसूर्यानलात्मकं। 

जिस प्रकार श्रीचक्र जैसे विश्वमय है, वैसे ही शब्द सृष्टि में मातृकामय है। इस से यह सिद्ध हुआ की श्रीयंत्र ब्रह्माण्ड एवं पिण्डाण्ड स्वरुप है। इसमें शब्दार्थ भेद से द्विविध सृष्टि है - अर्थ - सृष्टि तत्वात्मिका है और शब्द सृष्टि मात्रकारूप है।  

मातृका के भी स्वर, स्पर्श और व्यापक  (अन्तस्थ उष्म) तीन खंड चांद्र, सौर, आग्नेयरूप हैं। यह हुई ब्रह्माण्ड की बात।  पिण्डाण्ड में भी सिर, ह्रदय, मूलधारान्त तीन भाग तेजस्रयात्मक हैं, हाथ मध्यभाग की शाखा हैं और पैर अन्त्य भाग की।  श्री चक्र भी - 

चतुर्भिः शिवचक्रेश्च शक्तिचक्रेश्च पञ्चभिः।  शिवशक्त्यात्मकं ज्ञेयं श्रीचक्रं शिवयोर्वपुः।।

के अनुसार पांच शक्ति तथा चार शिव से बना हुआ तेजस्त्रयात्मक होने से तथा प्रमातृ,प्रमाण प्रमेयरूप से पुरत्रयात्मक है। इनमे बिंदु, त्रिकोण,अष्टार और अस्टदलरूप आग्नेयखण्ड प्रमातृपुर हैं। दशारद्वय और चतुरस्र्रूप सौरखंड प्रमाणपुर है, तथा चतुर्दशार एवं षोडशदलरूप चान्द्रखण्ड प्रमेयपुर हैं। 

इसी प्रकार वामा, ज्येष्ठा और रौद्री (इच्छा,ज्ञान और क्रिया) रूप से भी यह त्रित्यात्मक है। नाद, बिंदु और कालरूप से भी त्रिरूप है।  इस श्रीयंत्र की शरीरस्थ नवचक्रों के साथ तांत्रिक इस प्रकार ऐक्य भावना करते हैं।

यद्यपि लिङ्गशरीर में सुषुम्णा नाड़ी को आश्रयण किये हुए बत्तीस पद्म हैं तथापि यहाँ नव चक्रों की सादृश्य से नव पद्मों का ही उल्लेख किया जाता है।  सुषुम्णा के दोनों भागों में उर्ध्व एवं अधोमुख दो सहस्त्रार हैं और मध्य में इस प्रकार नवचक्र हैं  l

ब्रह्मरन्द्र में स्थित महाबिन्दु सहस्त्रार है। इस प्रकार श्रीचक्र तथा शरीरचक्र का ऐक्य  संपादन होता है। इसी प्रकार मातृकाचक्र का भी इन दोनों चक्रों के साथ ऐक्य पाया जाता है। 

षोडशदल और चतुर्दशार स्वरमय हैं, दशारद्वय क से लेकर न पर्यन्त बीस वर्णमय है, अष्टार अन्तस्थ और उष्मरूप है, चतुरस्र प से लेकर म पर्यन्त वर्णमय है, अष्टदल अकचटतपादि वर्गाष्टकरूप है, बिंदु क्षकारूप, त्रिकोण मकाररूप और महाबिन्दु क्षकार-मकार-समष्टिरूप है। 

शरीरचक्र में कंठ में स्वर, ह्रदय में क से ठ पर्यन्त, नाभि में ड से फ पर्यन्त, स्वाधिष्ठान में ब से ल पर्यन्त, मूलाधार में व से स पर्यन्त वर्ण तथा आज्ञा में ह और क्ष ये दो वर्ण हैं। 

श्रीयंत्र की आकृति अन्यत्र दिखलाई गयी है।  इसकी रचना दो -दो त्रिकोणो के परस्पर श्लेष से होती है।  इस प्रकार इसमें नव त्रिकोण होते हैं। इस प्रकार की रचना से पिण्डाण्ड के भीतर ब्रह्माण्ड और ब्रह्माण्ड के भीतर पिण्डाण्ड का समावेश सूचित होता है। 

श्रीयंत्र को सृष्टि, स्थिति तथा प्रलयात्मक माना गया है। इसमें बिन्दुचक्र शिव की मूल प्रकृति से बने होने के कारण प्रकृतिस्वरूप है। शेष आठ चक्र प्रकृति-विकृति उभयात्मक हैं। सम्पूर्ण श्रीचक्र इस प्रकार भी त्रियात्मक है। बिंदु, त्रिकोण, अष्टार सृस्टिचक्र हैं। दशारद्वय और चतुर्दशार स्थितिचक्र हैं तथा अष्टदल, षोडशदल और भूपुर संहारचक्र हैं। अर्थात विन्द्वादि भूपुरांत चक्र को सृस्टिक्रम  तथा भूपुरादि विन्द्वन्त चक्र को संहारक्रम कहते हैं। 

इस प्रत्येक खंड में आदि मध्य अंत या इच्छा-ज्ञान-क्रिया रूप से त्रिपुटी समझनी चाहिए।  यह सामान्यतः श्रीयंत्र का संक्षिप्त परिचय है।  अब बिंदु से लेकर भुपूरपर्यंत विशेष चक्रों का विवरण दिया जायेगा। 

नव चक्र -  

बिंदु तथा महा बिंदु - मूल कारण, महात्रिपुरसुन्दरी, कामेश्वर-कामेश्वरी-सामरस्य, जगत की मूल्ययोनि तथा शिवभाव। 

त्रिकोण - आद्या विमर्शशक्ति या जीवभाव , शब्द-अर्थरूप सृष्टि की कारणात्मिका पराशक्ति, अहंभाव एवं जीव तत्व। 

अष्टार - पूर्यष्टक, कारणशरीर - लिङ्गशरीर का कारण। 
अंतर्दशार - इन्द्रियवासना (लिङ्गशरीर)

बहिर्दशार - तन्मात्रा तथा पंचभूत (इन्द्रियविषय)

चतुर्दशार - जाग्रत स्थूल शरीर। 

अष्टदल -  अष्टावासना। 

षोडशदल - दशारद्वयवासना। 

भूपुर - बिंदु, त्रिकोण , अष्टदल,  षोडशदल - इन चारों की समिष्टि , परमातृपुर और प्रमाणपुर का - पशुपदीय , प्रकृति , मन , बुद्धि , अहङ्कार और शिवपदीय शुद्ध विद्यादिततत्वचस्तुष्टिका - सामरस्य। 

नवचक्रों के यथाक्रम नाम-संकेत तथा देवता इस प्रकार हैं -   
    चक्र नाम                   अधिष्ठात्री देवता

सर्वानन्दमय             -  महात्रिपुरसुन्दरी 

सर्वसिद्धिप्रद            -  त्रिपुराम्बा 

सर्वरोगहर               -  त्रिपुरसिद्धा

सर्वरक्षाकर              -  त्रिपुरमालिनी 

सर्व्रतसाधक             -  त्रिपुराश्री

सर्वसौभाग्यदायक     -  त्रिपुरवासिनी

सर्वसङ्क्षोभणकारक   -  त्रिपुरसुन्दरी 

सर्वशापरिपूरक        -  त्रिपुरेशी

त्रैलोक्यमोहन           -  त्रिपुरा
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💯✔ श्री-यन्त्र की संक्षिप्त आवरण पूजन 

सर्वप्रथम प्राणायाम आदि कर तीन बार आचमन कर इस प्रकार आसन पूजन करें।

ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: ।

विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें ।

पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से

पंचोपचार पूजन करें – ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं ।ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्‌मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: ।
तदुपरांत गुरू गणपति गौरी पित्र व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन कर कलश स्थापित करें व उसमें

।।ॐ गंगेश्च यमुनेश्चैव गोदावरी सरस्वती नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरू।।

से जल में तीर्थों का आवाहन कर पंचोपचार से पूजन करें । उस पवित्र जल से ही समस्त पूजा सामग्री को पवित्र करें ।
श्री चक्र के सम्मुख व अपने बाईं ओर वृत्त के मध्य षटकोण व त्रिकोण से मण्डल का निर्माण कर पंचोपचार पूजन करें व मत्स्य मुद्रा का प्रदर्शन करें ।
फट्‌ का उच्चारण कर शंख को धोकर पुष्प गन्ध डालकर षोड़शाक्षरी अथवा दीक्षा में प्राप्त मूल मन्त्र जपते हुए शंख को जल से पूर्ण कर उस मण्डल पर स्थापित करें व शंख के जल में

।।ॐ गंगेश्च यमुनेश्चैव गोदावरी सरस्वती नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरू।।

से जल में तीर्थों का आवाहन इस प्रकार पूजन करें

शंख के आधार पर :- ॐ अं वह्नि मण्डलाय दशकलात्मने नम: ।

शंख पर :- ॐ उं सूर्य मण्डलाय द्वादशकलात्मने नम: ।
शंख के जल में :- ॐ मं सोम मण्डलाय षोड़शकलात्मने नम:

"हुं" का उच्चारण करते हुए शंख पर पंचोपचार पूजन कर धेनु मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए षोड़शाक्षरी अथवा दीक्षा में प्राप्त मूल मन्त्र का आठ बार जप करें व शंख में से थोड़ा जल प्रोक्षणी पात्र में गिरा दें ।

श्री चक्र के सम्मुख व अपने दाहिनी ओर पाद्य पात्र स्थापित करके श्री चक्र पर पीठ पूजन प्रारम्भ करें :

ॐ पृथिव्यै नम: । ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मायै नमः । ॐ अनन्तायै नमः । ॐ रत्नद्वीपायै नमः । ॐ रत्न मण्डपायै नमः । ॐ रत्न वेदिकायै नमः । ॐ रत्न सिंहासनायै नमः । ॐ रत्न पीठायै नमः ।

श्री चक्र के बिन्दु चक्र में भगवान शिव का ध्यान करके मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें :

ॐ ह्सौं सदाशिव महाप्रेत पद्‌मासनाय लिंग मुद्रा स्वरूपिणे नमः ।

श्री चक्र के बिन्दु पीठ में भगवती शिवा महात्रिपुरभैरवी का ध्यान करके इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें :

ॐ हसरैं हसकलरीं हसरौं: महायोनि मुद्रा स्वरूपिण्यै नमः

इस मन्त्र को बोलकर तीन बार पुष्पांजलि अर्पित करें :

ॐ महापद्‌मावनान्तस्थे कारणानन्द विग्रहे । सर्वभूतहिते मातरेह्येहि परमेश्वरी ।।
श्री पादुकां पूजयामि नमः

बोलकर शंख के जल से अर्घ्य प्रदान करते रहें ।
श्री चक्र के बिन्दु चक्र में निम्न मन्त्रों से षड़ांग पूजन करते हुए न्यास करें :

1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अंगुष्ठाभ्याम नमः । अंगुष्ठ शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा । तजर्नी शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः

3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं मध्यमाभ्यां वष्‌ट । मध्यमा शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः

4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं अनामिकाभ्यां हुम्‌ । अनामिका शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः

5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट । कनिष्ठिका शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं करतल करपृष्ठाभ्यां फट्‌ । करतल करपृष्ठ शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

श्री चक्र के बिन्दु चक्र में निम्न मन्त्रों से षड़ांग पूजन करते हुए न्यास करें :

1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं हृदयाय नमः । हृदय शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं शिरसे स्वाहा । शिर: शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं शिखायै वष्‌ट । शिखा शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं क ए ई ल ह्रीं कवचायै हुम्‌ । कवच शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह स क ह ल ह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट । नेत्र शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः

6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं स क ल ह्रीं अस्त्राय फट्‌ । अस्त्र शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

निम्न मन्त्रों से षोड़शांग पूजन करते हुए न्यास करें :

1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं नमः पादयो । पाद शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । दोनों पैरों पर ।

2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क नमः जंघे । जंघा शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । दोनों जंघाओं पर ।

3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ए नमः जानु । जानु शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । दोनों घुटनों पर ।

4 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ई नमः कटिदेशे । कटि शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । छाती पर ।

5 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ल नमः लिंगे । लिंग शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । लिंग पर स्पर्श कर हाथ धो लें ।

6 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं नमः पृष्ठे । पृष्ठ शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । पीठ पर ।

7 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह नमः नाभौ । नाभी शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । नाभी पर ।

8 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स नमः पार्श्वे । पार्श्व शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । दोनों बगल में ।

9 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क नमः स्तने । स्तन शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । दोनों स्तनों पर ।

10 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह नमः स्कन्धयो । स्कन्ध शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । दोनों कन्धों पर ।

11 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ल नमः कर्णयो । कर्ण शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । दोनों कानों पर

12 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं नमः ब्रह्मरन्ध्रे । ब्रह्म शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । शिखा पर

13 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं स नमः मुखे । मुख शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । मुख पर

14 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क नमः नेत्रयो । मुख शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । दोनों नेत्रों पर ।

15 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ल नमः ग्रीवे ग्रीवा शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । गर्दन पर ।

16 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं नमः गुह्ये । गुह्य शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । गुदा पर ।

श्री चक्र के बिन्दु चक्र में निम्न मन्त्रों से गुरू पूजन करें :

1 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।

2 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री परम गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।

3 ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री परात्पर गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।

श्री चक्र के बिन्दु पीठ में भगवती शिवा महात्रिपुरसुन्दरी का ध्यान करके योनि मुद्रा का प्रदर्शन करते हुए पुन: इस मन्त्र से तीन बार पूजन करें :

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं श्री ललिता महात्रिपुर सुन्दरी श्री विद्या राज राजेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

भगवती श्री चक्रराज निलया का ध्यान करें :

ॐ बालार्क मण्डलाभासां चतुर्बाहां त्रिलोचनां। पाशांकुश शरांश्चापं धारयन्तीं शिवां भजे ।।

।। आवरण पूजा ।।

1 त्रैलोक्यमोहन चक्रे ।
प्रथम रेखा :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अणिमाद्यष्ट देवी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

द्वितीय रेखा : ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ब्राह्म्याद्यष्ट देवी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

तृतीय रेखा :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्वसंक्षोभिण्यादि दश मुद्रा देवी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

चक्राग्रे :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं प्रकट योगिनी त्रिपुरा चक्रेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

अर्घ्य जल प्रदान करें :

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रैलोक्यमोहन चक्रस्य अधिष्ठात्री प्रकट योगिनी त्रिपुरा चक्रेश्वरी देव्यै समुद्रा: ससिद्धय: सायुधा: सशक्तय: सवाहना: सपरिवारा: सर्वोपचारै: सम्पूजिता: सन्तर्पिता: सन्तुष्टा: सन्तु नमः ।

2 सर्वाशा परिपूरक चक्रे ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लृृं एं ऐं ओं औं अं अ: कामाकर्षण्यादि षोड़श नित्या कला देवी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

चक्राग्रे :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं गुप्त योगिनी त्रिपुरेशी चक्रेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

अर्घ्य जल प्रदान करें :

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्वाशा परिपूरक चक्रस्य अधिष्ठात्री गुप्त योगिनी त्रिपुरेशी चक्रेश्वरी देव्यै समुद्रा: ससिद्धय: सायुधा: सशक्तय: सवाहना: सपरिवारा: सर्वोपचारै: सम्पूजिता: सन्तर्पिता: सन्तुष्टा: सन्तु नमः ।

3 सर्व संक्षोभण चक्रे ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अनंग कुसुमादि अष्ट देवी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

चक्राग्रे :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं गुप्ततर योगिनी त्रिपुरसुन्दरी चक्रेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

अर्घ्य जल प्रदान करें :

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्व संक्षोभण चक्रस्य अधिष्ठात्री गुप्ततर योगिनी त्रिपुरसुन्दरी चक्रेश्वरी देव्यै समुद्रा: ससिद्धय: सायुधा: सशक्तय: सवाहना: सपरिवारा: सर्वोपचारै: सम्पूजिता: सन्तर्पिता: सन्तुष्टा: सन्तु नमः ।

4 सर्व सौभाग्य दायक चक्रे ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्व संक्षोभिणि आदि चतुर्दश देवी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

चक्राग्रे :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सम्प्रदाय योगिनी त्रिपुरवासिनी चक्रेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

अर्घ्य जल प्रदान करें :

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्व सौभाग्य दायक चक्रस्य अधिष्ठात्री सम्प्रदाय योगिनी त्रिपुरवासिनी चक्रेश्वरी देव्यै समुद्रा: ससिद्धय: सायुधा: सशक्तय: सवाहना: सपरिवारा: सर्वोपचारै: सम्पूजिता: सन्तर्पिता: सन्तुष्टा: सन्तु नमः ।

5 सर्वार्थसाधक चक्रे ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्व सिद्धि प्रदादि दश देवी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

चक्राग्रे :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं कुलोत्तीर्ण योगिनी त्रिपुरा श्री चक्रेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

अर्घ्य जल प्रदान करें :

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्वार्थ साधक चक्रस्य अधिष्ठात्री कुलोत्तीर्ण योगिनी त्रिपुरा श्री चक्रेश्वरी देव्यै समुद्रा: ससिद्धय: सायुधा: सशक्तय: सवाहना: सपरिवारा: सर्वोपचारै: सम्पूजिता: सन्तर्पिता: सन्तुष्टा: सन्तु नमः ।

6 सर्व रक्षाकर चक्रे ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्व सर्वज्ञादि दश देवी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।
चक्राग्रे :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं निगर्भ योगिनी त्रिपुरमालिनी चक्रेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

अर्घ्य जल प्रदान करें :-

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्व रक्षाकर चक्रस्य अधिष्ठात्री निगर्भ योगिनी त्रिपुरमालिनी चक्रेश्वरी देव्यै समुद्रा: ससिद्धय: सायुधा: सशक्तय: सवाहना: सपरिवारा: सर्वोपचारै: सम्पूजिता: सन्तर्पिता: सन्तुष्टा: सन्तु नमः ।

7 सर्व रोगहर चक्रे ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वशिन्यादि अष्ट देवी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।
चक्राग्रे :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं रहस्य योगिनी त्रिपुरासिद्धा चक्रेश्वरी श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

अर्घ्य जल प्रदान करें :

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्व रोगहर चक्रस्य अधिष्ठात्री रहस्य योगिनी त्रिपुरासिद्धा चक्रेश्वरी देव्यै समुद्रा: ससिद्धय: सायुधा: सशक्तय: सवाहना: सपरिवारा: सर्वोपचारै: सम्पूजिता: सन्तर्पिता: सन्तुष्टा: सन्तु नमः ।

8 सर्व सिद्धि प्रद चक्रे ।

अग्रकोणे :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ब्रह्मा शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं महाकामेश्वरी देव्या शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

दक्षिणकोणे :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं विष्णु शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं महावज्रेश्वरी देव्या शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

वामकोणे :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं रूद्र शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौं महाभगमालिनी देव्या शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

चक्राग्रे :- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं अतिरहस्य योगिनी त्रिपुराम्बा चक्रेश्वरी शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

अर्घ्य जल प्रदान करें :

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सर्व सिद्धि प्रद चक्रस्य अधिष्ठात्री अतिरहस्य योगिनी त्रिपुराम्बा चक्रेश्वरी देव्यै समुद्रा: ससिद्धय: सायुधा: सशक्तय: सवाहना: सपरिवारा: सर्वोपचारै: सम्पूजिता: सन्तर्पिता: सन्तुष्टा: सन्तु नमः ।

9 सर्वानन्द मये महाबिन्दु चक्रे ।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महात्रिपुरसुन्दरी श्रीविद्या शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः । तीन बार पूजन करें ।

महाबिन्दु चक्र के दाहिनी ओर :

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महालिंग मुद्रा शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः

महाबिन्दु चक्र के बाईं ओर :

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महायोनि मुद्रा शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः

महाबिंदु पीठ पर :

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं परापरातिरहस्य योगिनी ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं श्री ललिता महात्रिपुरसुन्दरी श्री राजराजेश्वरी षोड़शात्मिका श्रीविद्या चक्रेश्वरी शक्ति श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

तीन बार अर्घ्य जल प्रदान करें :

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महाबैन्दव चक्रस्य अधिष्ठात्री परापरातिरहस्य योगिनी ह्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं श्री ललिता महात्रिपुरसुन्दरी श्री राजराजेश्वरी षोड़शात्मिका श्रीविद्या चक्रेश्वरी शक्ति देव्यै समुद्रा: ससिद्धय: सायुधा: सशक्तय: सवाहना: सपरिवारा: सर्वोपचारै: सम्पूजिता: सन्तर्पिता: सन्तुष्टा: सन्तु नमः ।

महायोनि मुद्रा का प्रदर्शन करके प्रणाम करें ।
तदुपरान्त अरती स्तोत्र आदि तथा षोड़शाक्षरी अथवा दीक्षा में प्राप्त मूल मन्त्र जप आदि कर्म सम्पन्न कर हाथ में जल लेकर भगवती पराम्बा को अपना कर्म समर्पित कर आसन त्यागें ।
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