पितृ-दोष PARASHMUNI

💯✔ पितृ-दोष

पितृ गण हमारे वह पूर्वज  हैं जो पहले हमारे कुलों में जन्मे थे और अब उनका देहांत हो चूका है |इनका ऋण भी हमारे ऊपर होता है ,क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए  किया होता है , न भी किया हो तो वह हमारे कुलों और वंश में उत्पन्न होने से भावनाओं के कारण हमसे जुड़े होते हैं ,जब तक की उनकी मुक्ति न हो जाय |किसी भी मृतक आत्मा के लिए मुक्ति कई कारणों पर नित्भर करती है और कुछ की मुक्ति कुछ दिनों में तो कुछ की हजारों वर्षों में भी हो सकती है |इनके पित्र अथवा प्रेत शरीर का क्षरण कुछ महीनों में भी हो सकता है और सैकड़ों वर्षों में भी पूर्ण नहीं हो सकता ,यह उसकी प्रकृति पर निर्भर करता है और निर्भर इस बात पर करता है की उनकी मृत्यु कैसे हुई थी अथवा मृत्यु समय उनकी शारीरिक स्थिति क्या थी |
पित्र मनुष्यों के सबसे करीब से सम्बन्धत आत्माएं हुआ करती हैं अतः मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक होता है |पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है|  आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज  मिलते हैं |अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया |इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार  पर सूर्य लोक की तरफ बढती है |वहाँ से आगे  ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को बेध कर  स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित  होती है |जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता |
पित्र लोक में यद्यपि अधिकतर उच्च स्थिति वाली और अपने कुलों के संस्कारों से जुडी आत्माएं ही होती हैं किन्तु हमारे कुलों में अकाल मृत्यु को प्राप्त अथवा आकस्मिक दुर्घटना ,बीमारी से मरे लोगों की आत्माएं भी पित्र में ही गिनी जाती हैं |इन आत्माओं में देखने, समझने और प्रतिक्रया देने की शक्ति होती है ,हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म  व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं  तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों  को श्राप दे देती हैं,जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है | पितृ दोष एक अदृश्य  बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है |पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण  हो सकते हैं ,आपके आचरण  से,किसी  परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण ,खुद उसी कुल के संपत्तियों का उपभोग करने और उस संपत्ति को बनाने वाले की तृप्ति का प्रयास न करने से ,अतृप्त पितृ की शान्ति और मुक्ति का प्रयास न करने से भी हो सकता है | पित्र दोष के पराभव से मानसिक अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना ,वैवाहिक जीवन में समस्याएं,अथवा विवाह न होना ,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है , पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ  फल नहीं मिल पाते, कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए , उसका शुभ फल नहीं मिल पाता|
पितृ दोष उत्पन्न करने वाले दो प्रकार के पित्र होते हैं |अतृप्त पित्र अर्थात अपनी शारीरिक आयु पूर्ण न कर पाने वाले पित्र और निर्लिप्त पित्र अर्थात पूर्णायु प्राप्त कर सामान्य मृत्यु को प्राप्त पित्र आत्माएं |
पूर्णायु पूर्ण न करने वाले अर्थात अधोगति वाले पितरों के दोषों  का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण, परिजनों की अतृप्त इच्छाएं ,इन अतृप्त पितरों की संतुष्टि -शान्ति -मुक्ति के लिए कोई प्रयास न करना ,जायदाद  के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होना ,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय ,पितरों को मुख्य अवसरों पर याद भी न करना ,श्राद्ध आदि कर्म न करना आदि के साथ परिवार के किसी  प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं , परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं|इस प्रकार के पित्र केवल श्राप ही नहीं देते ,सीधे परिवार और व्यक्ति को प्रभावित भी करते हैं और इनकी प्रतिक्रिया तीव्र होती है |यह खुद असंतुष्ट होने के कारण परिवारियों को संतुष्ट सुखी नहीं रहने देते और इनके साथ जुडी अन्य बाहरी आत्माए जब परिवार का शोषण करती हैं तो यह कोई प्रतिक्रिया नहीं देते |
पूर्णायु प्राप्त कर शरीर त्याग करने वाले अर्थात उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते , परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति- रिवाजों का निर्वहन नहीं  करने पर ,अथवा पारिवारिक या कुल की मर्यादा के विरुद्ध आचरण होने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं | इनकी प्रतिक्रिया अंतरजातीय विवाहों ,कुल के संस्कार विरुद्ध आचरण ,कुलदेवता /देवी के अपमान ,किसी अन्य शक्ति को कुलदेवता /देवी के स्थान पर पूजे जाने पर यह प्रतिक्रया देते हैं और पित्र दोष उत्पन्न करते हैं |परिवार -खानदान अथवा व्यक्ति द्वारा किसी प्रेत शक्ति ,शहीद -मजार ,पिशाच ,ब्रह्म ,सती जैसी आत्मिक शक्तियों को पूजने पर भी यह प्रतिक्रिया करते हैं और श्राप देते हैं |इनके द्वारा उत्पन्न पित्र दोष अधिक स्थायी और कई पीढ़ियों को प्रभावित करने वाला होता है |इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की  भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है |मुक्ति मार्ग में बाधाएं उत्पन्न होती हैं ,कुलदेवता /देवी रुष्ट हो जाते हैं ,संतानें विकारयुक्त और भाग्य में पित्र दोष लिए उत्पन्न होती हैं |इस पराक्र के पित्र दोष के लिए उपाय कारगर नहीं होते  फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ, उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता |
               पितृ दोष निवारण के लिए  सबसे पहले ये जानना  ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है  |जन्म  पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम  और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है |पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य ,चन्द्रमा ,गुरु ,शनि ,और राहू -केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है |इनमें से भी गुरु ,
शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है |
इनमें सूर्य से पिता या पितामह , चन्द्रमा से माता या मातामह ,मंगल से भ्राता या भगिनी  और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है |अधिकाँश लोगों की  जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु ,शनि  और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है ,इसलिए विभिन्न उपायों को करने  के साथ साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी ,सातमुखी और आठ मुखी रुद्राक्ष भी धारण  कर ले , तो पितृ दोष का निवारण शीघ्र हो जाता है |पितृ दोष निवारण के लिए इन  रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र  जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है |
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💯✔ क्यों होता है पुत्र पर श्राद्ध का भार

क्यों आवश्यक है पितरों का श्राद्ध

हर संतान के लिए हिन्दू धर्म में यह कर्त्तव्य बनाया गया है की वह अपने पिता और पितरों का श्राद्ध अवश्य करे |यह अति आवश्यक है |इसका धार्मिक और गूढ़ कारण है |संतानोत्पादन से दशमद्वार से प्राण त्याग की शक्ति क्षीण हो जाती है अतः पिता की इस हानि का दायित्व पुत्र पर आ जाता है ,क्योकि उसी को उत्पन्न करने के कारण यह क्षमता क्षीण होती है |दाहकर्म के समय पुत्र पिता की कपालास्थी को बांस से तीन बार स्पर्श करता हुआ अंत में तोड़ डालता है |जिसका अर्थ यही है की पुत्र श्मशानस्थ समस्त बांधवों के सामने संकेत करता है की अगर पिता जी मुझ जैसे पामर जंतु को उत्पन्न करने का प्रयास न करते तो ब्रह्मचर्य के बल से उनके दशमद्वार से प्राण निकलते और वे मुक्त हो जाते |परन्तु मेरे कारण अर्थात मुझे उत्पन्न करने के कारण उनकी यह शक्ति नष्ट हो गयी |में तीन बार प्रतिज्ञा करता हूँ की इस कमी को श्राद्धादी और्ध्वदेहिक वैदिक क्रियाओं द्वारा पूरी करके पिता जी का अन्वर्थ -"पु "नामक नरक से "त्र "त्राणकरने वाला पुत्र बनूँगा |वास्तव में शास्त्र में पुत्र की परिभाषा करते हुए पुत्रत्व का आधार श्राद्ध कर्म को ही प्रकट किया गया है |यथा -
जीवतो वाक्यकरणान्म्रिताहे भूरिभोजनात | गयायाँ पिंडदानाच्च त्रिभिः पुत्रस्य पुत्रता ||
जीवित माता पिता आदि गुरुजनों की आज्ञा का पालन करने से और उनके परलोक जाने पर संस्कार पिंड पत्तल -ब्रह्मभोज आदि कृत्य करने से तथा गया आदि तीर्थ में जाकर पिंडदान करने से सुपुत्र होना सिद्ध होता है |उक्त तीनो कार्यों का सम्पादन ही योग्य पुत्रत्व का सूचक है |
एक ही मार्ग है जिससे दो वस्तुएं उत्पन्न होती हैं ,एक पुत्र और दूसरा मूत्र |अतः जो व्यक्ति उपरोक्त तीनो कार्य करता है वही पुत्र है ,शेष सब मूत्र है |
इसी तरह पिता के प्रति श्राद्ध करने के साथ ही उनके पिता और अन्य कुटुम्बियों का पित्र पक्ष में श्राद्ध आवश्यक होता है ,यदि उन्हें गया आदि पित्र तीर्थों में स्थापित नहीं किया गया है |सर्वप्रथम तो चाहिए यह की पिता आदि की मृत्यु पर उपरोक्त कर्म करते हुए उन्हें उअप्युक्त समय पर गया आदि तीर्थ में पिंडदान के साथ स्थान वंशज दिलाएं |किन्तु यदि यह शीघ्र संभव नहीं हो पाता अथवा बहुत वर्षों से नहीं हुआ है और पूर्वजों को नहीं बैठाया गया है तो प्रत्येक वर्ष पित्र पक्ष में उनका श्राद्ध होना चाहिए उनकी मृत्यु तिथियों पर |क्योकि वह इस स्थिति में आपसे जुड़े होते हैं और उन्हें श्राद्ध की आवश्यकता होती है तृप्ति के लिए |यदि उनका श्राद्ध नहीं होता तो पित्र दोष की समस्या उत्पन्न होने लगती है और कालान्तर में यह संतति के पतन का कारण बन सकता है |
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💯✔ पित्र दोष ,कुलदेवता दोष ,नकारात्मक ऊर्जा कष्ट और ग्रह दोष एक साथ समाप्त हो

जीवन की सभी समस्याओं का निदान है दिव्य डिब्बी /गुटिका में 

      वर्षों वर्ष लोगों की समस्याएं देखते हुए ,उनका पारंपरिक ज्योतिषीय और तांत्रिक निदान बताते हुए हमेशा से हमारे दिमाग में एक बात उभरती रही की ऐसा कुछ हो जो लोगों की सभी समस्याओं का निदान कर सके |भिन्न भिन्न समस्याओं के लिए लोगों को अलग अलग देवी -देवता न पूजने पड़ें ,अलग अलग उपचार और उपाय समय -समय पर न करने पड़ें ,किसी समया के लिए बार -बार तांत्रिक ,पंडित को न खोजना पड़े |कुछ ऐसा हो जो प्रबल शक्तिशाली हो जो तीब्र शक्ति उत्पन्न करे और जो कहीं भी कभी भी ले आया ले जाया जा सके |जो साथ में भी रखा जा सके और जिसे मन्दिर में भी स्थापित किया जा सके |कुछ ऐसा मिले जिससे उत्पन्न ऊर्जा महाशक्तियों का प्रतिनिधित्व करे |जो जीवन की ग्रहों से उत्पन्न समस्याओं से लेकर भूत -प्रेत -अभिचार तक की मानवीय समस्याओं तक का निदान करने में सक्षम हो |इस हेतु हम लगातार कई वर्षों तक खोज करते रहे और तंत्र की दुर्लभ वस्तुओं के एकल और सामूहिक प्रयोग करते रहे ,उनके परिणाम देखते रहे |कई वर्ष के खोज पर हमने विभिन्न तांत्रिक विशिष्ट वस्तुओं ,दुर्लभ तांत्रिक वनस्पतियों ,जड़ी -बूटियों को क्रमशः समय समय पर उनके लिए निर्दिष्ट विशिष्ट समय -नक्षत्र -मुहूर्त में निष्कासित ,प्राण प्रतिष्ठित किया |इसके बाद इन्हें एक साथ मिलाकर एक डिब्बी में एकत्रकर महाविद्या काली के मन्त्रों से अभिमंत्रित किया |निर्मित डिब्बी/गुटिका को हमने चमत्कारी दिव्य गुटिका /डिब्बी नाम दिया ,क्योंकि इससे उत्पन्न ऊर्जा दिव्य ,शक्तिशाली ,चमत्कार करने वाली और जीवन में प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करने वाली हुई |

          हमारे पास आने वाले अधिकतर लोगों की समस्याएं घर -परिवार -व्यक्ति को प्रभावित कर रही विभिन्न प्रकार की नकारात्मक शक्तियों से सम्बन्धित होती हैं ,जिनमे ग्रहों से उत्पन्न नकारात्मक प्रभाव ,वायव्य अथवा भूत -प्रेत के प्रभाव ,स्थान दोष ,जमीन -मकान के नीचे दबे नकारात्मक शक्ति के प्रभाव ,ब्रहम -सती -जिन्न -खबीस आदि स उत्पन्न पीड़ा ,कुलदेवता /देवी की रुष्टता अथवा अनुपस्थिति से उत्पन्न नकारात्मक प्रभाव ,ईष्ट अथवा किसी देवता की रुष्टता आदि के होते हैं |अतः सबसे अधिक प्रयास हमारा रहा की हमारी डिब्बी की अवयवों में वह वस्तु अधिक हो जो इन नकारात्मक शक्तियों के प्रभाव को कम कर सके ,इनकी पीड़ा कम कर सके ,देवी -देवता की रुष्टता कम कर उन्हें संतुष्टि दे तथा ऐसे ऊर्जा उत्पन्न करे जिससे नकारात्मक शक्तिया ,उर्जाये घर -परिवार -व्यक्ति से दूर हों |हमसे सम्पर्क करने वाले लोगों में दुसरे सबसे अधिक लोगों की संख्या पारिवारिक विवाद ,कलह ,दाम्पत्य बाधा ,संतति बाधा ,संतति दोष आदि की रही है |इनके बाद आर्थिक समस्याओं को लेकर लोग अधिक मिलते हैं |इन सभी मूल समस्याओं को लेकर एक साथ संतुलित करने के प्रयास में हमने यह डिब्बी निर्मित की है जिसके हर क्षेत्र में उत्तम परिणाम प्राप्त हुए हैं |यह डिब्बी प्राण प्रतिष्ठित होती है और इसमें देवी शक्ति को स्थापित किया गया होता है जिससे इसी पूजा रोज हर हाल में चाहिए होती है किसी प्राण प्रतिष्ठित मूर्ती की तरह |इसके बाद अगर कोई विशेष उद्देश्य नहीं है तो मात्र सामान्य पूजा से यह जीवन के हर क्षेत्र में क्रिया करता और लाभ देता है |विशेष उद्देश्य होने पर उस उद्देश्य के अनुसार मंत्र और पद्धति के साथ पूजन करने से वह उद्देश्य विशेष रूप से पूर्ण होता है ,साथ ही अन्य क्षेत्र के लाभ तो मिलते ही हैं |

    इस चमत्कारी डिब्बी में जो वस्तुएं, जड़ी -बूटियां ,पदार्थ हमने सम्मिलित की हैं वह विभिन्न महाशक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा जिनके विशेषता के बारे में तंत्र शास्त्र ,ज्योतिष शास्त्र हजारों वर्षों से कहता आया है ,मान्यता देता आया है ,जिनका प्रयोग हजारों वर्षों से विभिन्न लाभों के लिए ,भिन्न समस्याओं क निदान के लिए करता आया है |इन वस्तुओं में दक्षिणावर्ती शंख ,गोमती चक्र ,पीली कौड़ी ,स्फटिक ,हत्था जोड़ी ,सियारसिंगी ,रुद्राक्ष ,अपराजिता मूल ,नागदौन मूल ,श्वेतार्क मूल ,गुडमार मूल ,हरसिंगार मूल ,औदुम्बर मूल ,महायोगेश्वरी मूल ,निर्गुन्डी मूल ,श्वेत गूंजा ,अमरबेल मूल ,एरंड मूल के साथ सात अन्य विशिष्ट वस्तुएं होती हैं |सभी के नाम हम नहीं लिख पा रहे क्योंकि इससे हमारी व्यक्तिगत खोज और गोपनीय अनुसंधान के सार्वजनिक होने पर हमें आर्थिक नुकसान भी होगा और हमारा विशेषाधिकार भी प्रभावित होगा |इसका लोग व्यावसायिक उपयोग कर सकते हैं अथवा इसका दुरुपयोग कर सकते हैं ,चुकी यह सभी षट्कर्म मारण ,मोहन ,उच्चाटन ,वशीकरण ,आकर्षण ,शांति कर्म के उद्देश्य पूर्ण करता है | शुरू में हमने इस दिव्य गुटिका /डिब्बी में २१ वस्तुओं का संग्रह रखा था जिनमे अब ४ अन्य वस्तुएं मिलाकर २५ कर दिया गया है |इनसे इसकी उपयोगिता और शक्ति और भी अधिक बढ़ गयी है |यहाँ हम इस डिब्बी की समग्र विशिष्टता लिख रहे ,वस्तुओं की अलग से विशिष्टता जानने के लिए हमारा पूर्व का लेख " कैसे चमत्कारी है दिव्य गुटिका /डिब्बी " देखें |इस लेख में हम इसका कोई प्रयोग भी नहीं दे पा रहे चूंकि लेख बहुत लंबा हो जाएगा |इसके कहाँ -कहाँ ,कैसे प्रयोग हो सकते हैं यह जानने के लिए हमारा पूर्व का लेख " कहाँ ,कैसे ,कब प्रयोग कर सकते हैं दिव्य गुटिका /डिब्बी " देखें |

          इस डिब्बी पर हमने विभिन्न समस्याओं पर लगभग २५ साधना और प्रयोग अपने डिब्बी /गुटिका धारकों के लिए लिखे हैं ,जो हमारे blog पर प्रकाशित हैं ताकि डिब्बी /धारक को कहीं भटकना न पड़े और उन्हें जब ,जैसी समस्या आये वह अपने घर में रखी डिब्बी पर ही समस्या से सम्बन्धित प्रयोग कर अपनी समस्या से मुक्त हो सकें |हमने इस पर जीवन बदलने और संघर्ष के दिन समाप्त करने के लिए प्रयोग प्रकाशित किया है |,महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए होली का अलग और दीपावली का अलग प्रयोग प्रकाशित किया है |पति वशीकरण ,सर्वजन वशीकरण ,पत्नी -प्रेमिका वशीकरण ,सर्व जन आकर्षण ,त्रैलोक्य मोहन ,विशिष्ट व्यक्ति आकर्षण ,शेयर -सट्टा- लाटरी -कमोडिटी सफलता ,नकारात्मक ऊर्जा /शक्ति हटाने ,भूत -प्रेत -अभिचार हटाने जैसे विषयों पर अनेक प्रयोग हमने पोस्ट किये हैं |यह गुटिका जीवन के हर क्षेत्र की समस्या से मुक्ति दिलाने में सक्षम है |इससे अनेक और कठिन उद्देश्य पूर्ण किये जा सकते हैं बस प्रक्रिया और पद्धति बदल कर जबकि गुटिका या डिब्बी वही रहती है |यह गुटिका या डिब्बी लोगों के लगभग सभी वह कार्य पूर्ण करती है जिसके लिए अलग -अलग पूजा -जप -तप करना पड़ता है या -ताबीज -कवच -जड़ी आदि धारण करना पड़ता है |इसमें सम्मिलित सभी महत्वपूर्ण मूल और वनस्पतियाँ तंत्र के सबसे महत्वपूर्ण और वर्ष के एक दिन ही उपलब्ध योग रविपुष्य योग में ही निकाली ,प्राण प्रतिष्ठित और अभिमंत्रित होती हैं |अन्य वस्तुएं भी रविपुष्य योग में ही विशेष तांत्रिक पद्धति से प्राण प्रतिष्ठित और अभिमंत्रित होती हैं जिससे इनके गुण कई गुना बढ़ जाते हैं |इसलिए यह गुटिका जहाँ भी रखी जाती है इसकी प्रतिक्रिया शुरू हो जाती है वहां की नकारात्मक उर्जाओं पर |केवल सामान्य पूजा मात्र भी इसका उत्तम लाभ दिलाती है जबकि यदि ठीक से पूजा और मंत्र जप किया जाए तो लक्षित उद्देश्य की पूर्ती संभव हो जाती है |

       इस गुटिका/डिब्बी के उपयोग से धन वृद्धि ,सम्मोहन ,वशीकरण ,वायव्य बाधाओं से सुरक्षा ,शत्रुओं से सुरक्षा ,अभिचार कर्म से सुरक्षा ,संपत्ति संवर्धन ,यात्रा में सुरक्षा ,विवाद-प्रतियोगिता में सफ़लता ,साक्षात्कार में सफ़लता ,द्युतक्रीडा -शेयर -सट्टा -लाटरी -कमोडिटी के कार्यों में सफलता ,आकस्मिक आय स्रोतों में वृद्धि ,सेल्स -मार्केटिंग के कार्यों में सफलता ,घर -मकान -दूकान के बंधन /तंत्र क्रिया की रोकथाम ,शत्रु से अथवा मुकदमे में विजय ,अधिकारी का अनुकूलन -वशीकरण ,गृह दोष-वास्तु दोष का शमन ,जमीन के नीचे की नकारात्मक ऊर्जा शमन ,मकान -दूकान -व्यावसायिक प्रतिष्ठान की नकारात्मक ऊर्जा या शक्ति का शमन ,गृह कलह का शमन ,ग्रह बाधा-अशुभत की समाप्ति ,प्रियजनों का अनुकूलन-वशीकरण किया जा सकता है |इसके अतिरिक्त भी यह गुटिका के अनेकानेक और विशिष्ट उपयोग हैं ,जिनके लिए विविध प्रकार की क्रियाएं की जा सकती है ,इसकी क्षमता की कोई सीमा नहीं है ,उद्देश्य के अनुसार भिन्न क्रियाएं विभिन्न मनोकामनाएं पूर्ण कर सकती हैं |यह नैसर्गिक रूप से सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों पर प्रतिक्रया करती है ,चूंकि यह दैवीय शक्ति से सम्पन्न होती है |इससे नकारात्मक उर्जाओं को कष्ट होता है |बहुत तीव्र शक्ति की किसी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव होने पर इस पर विशेष क्रिया और प्रयोग करने हो जाते हैं अन्यथा यह सामान्य नकारात्मक प्रभाव अपने आप हटाने लगती है |यह भाग्यावरोध दूर कर ,ग्रहों के दुष्प्रभाव रोककर व्यक्ति के भाग्य अनुसार परिणाम दिलाने में सहायक होती है |

     इस डिब्बी में सम्मिलित वस्तुएं दुकानों में बहुत मूल्यवान नहीं अगर मिल जाएँ तो ,किन्तु दुर्लभ होने से शुद्ध ,सही मिलती नहीं जिससे यह बहुमूल्य हो जाती हैं |इसके बाद इनका इनके लिए वर्ष में निश्चित विशेष मुहूर्त में तंत्रोक्त विधि से निष्कासन और प्राण प्रतिष्ठा इसे अमूल्य बना देती है ,क्योंकि अगर दुकानों में कोई वस्तु मिल भी जाती है तो वह तांत्रिक प्रयोग के लिए कोई महत्त्व नहीं रखती जब तक की उसका निश्चित मुहूर्त में ,निश्चित तंत्रोक्त विधि से निष्कासन और प्राण प्रतिष्ठा न हो |प्राण प्रतिष्ठा के बाद इन्हें सम्मिलित रूप में देवी काली के मंत्र से २१ दिनों तक अभिमन्त्रण इसे ऐसा बना देती है जिसको कोई मूल्य नहीं दिया जा सकता |यह सब क्रियाएं विशेष तांत्रिक दक्षता के साथ श्रम और समय की मांग करती हैं जिसके लिए पूर वर्ष प्रयास करना होता है की किस मुहूर्त में कौन सी वस्तु को निकालना है अथवा लाना है ,उसकी क्या पद्धति है |कौन वनस्पति -वस्तु कहाँ उपलब्ध है खोज कर रखना होता है |इसके बाद निश्चित दिन लेकर तांत्रिक विधि से विशेष समय में प्राण प्रतिष्ठा करके सुरक्ष्तित करते हुए जाना होता है |प्राण प्रतिष्ठा के बाद वस्तुओं की नियमित पूजा सुनिश्चित करनी होती है |इन्हें फिर आवश्यकतानुसार सम्मिलित रूप में अभिमंत्रित किया जाता है |इस प्रकार यह बहुत श्रम और दक्षता के बाद तैयार होती है |जब इसे घर -दूकान अथवा प्रतिष्ठान में स्थापित कर पूजन शुरू होता है तो यह त्वरित रूप से सबसे पहले नकारात्मक ऊर्जाओं को प्रभावित करती है |इसके बाद क्रमशः अन्य सभी क्षेत्रों में इसके प्रभाव शुरू होते हैं तथा जीवन के हर क्षेत्र में यह व्यक्ति के भाग्य में नियत परिणाम दिलाने में सहायक होती है |

               समस्या कोई भी हो ,ग्रह बाधा हो ,भाग्यावरोध हो ,वास्तु दोष हो ,स्थान दोष हो ,किये -कराये की समस्या हो ,भूत -प्रेत की समस्या हो ,नकारात्मक ऊर्जा या शक्ति की समस्या हो ,कुलदेवता -देवी का पता न हो ,कुलदेवता /देवी रुष्ट /क्रोधित हों ,पित्र असंतुष्ट हों ,पित्र शान्ति के अनेक उपाय करने /करवाने पर भी कोई अंतर न समझ आ रहा हो ,कालसर्प अथवा मांगलिक दोष आदि ज्योतिषीय दोषों के सभी उपाय करने पर भी कोई विशेष अंतर न समझ आ रह हो और दोषों से सम्बन्धित कष्ट सामने आ रहे हों |अकाल मृत्यु प्राप्त आत्माओं की समस्या हो ,पारिवारिक समस्या हो ,पारिवारिक विघटन हो ,पत्नी -पत्नी अथवा परिवार के लोगों के बीच लगातार कलह ,अनबन का माहौल रहता हो ,आर्थिक समस्या हो ,आय -व्यय असंतुलन हो ,किसी बाधा के कारण उन्नति नहीं हो रही हो ,कार्यों में रुकावट आ रही हो ,बीमार हों पर रोग का पता न चल रहा हो ,गंभीर असाध्य रोग से पीड़ित हों ,बार बार दुर्घटनाओं ,हानि आदि से परेशान हो ,अशांति -तनाव -चिंता हो ,भविष्य असुरक्षित लग रहा हो ,हीन भावना से ग्रस्त हों ,पूजा -पाठ असफल हो रहे हों ,उपाय पर उपाय करने पर भी परिणाम न मिल रहे हों ,उपायों से विश्वास उठ गया हो ,उपाय पर उपाय करके इतना व्यतिक्रम उत्पन्न कर लिया हो की ज्योतिषी की भविष्यवाणी सही न उतर रही हो ,नकारात्मक शक्तियों का ऐसा प्रभाव हो की जो भाग्य कुंडली बता रही हो वह न मिल रहा हो ,सब तरफ से निराश हो कष्ट -दुःख को ही अपनी नियति मान लिए हों जबकि कुंडली में ऐसा न हो तब.....
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💯✔ पितृ-दोष कि शांति के उपाय :

पित्र दोष की शान्ति के सामान्य उपायों में षोडश पिंड दान ,सर्प पूजा ,ब्राह्मण को गौ -दान ,कन्या -दान,कुआं ,बावड़ी ,तालाब आदि बनवाना ,मंदिर प्रांगण में पीपल ,बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना,प्रेत श्राप को दूर करने के लिए श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए |  वेदों  और पुराणों में पितरों की संतुष्टि के लिए मंत्र ,स्तोत्र  एवं सूक्तों का वर्णन है , जिसके नित्य पठन से किसी भी प्रकार की पितृ बाधा क्यों ना हो ,शांत हो जाती है | अगर नित्य पठन संभव  ना हो , तो कम से कम प्रत्येक माह की अमावस्या  और आश्विन कृष्ण  पक्ष  अमावस्या अर्थात
पितृपक्ष  में अवश्य करना चाहिए | वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृ दोष है उस पितृ दोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छाहोता है ,लेकिन कुछ ऐसे सरल सामान्य उपाय  भी हैं, जिनको करने से पितृदोष  शांत  हो जाता है ,ये उपाय निम्नलिखित हैं :----
१ .ब्रह्म पुराण (२२०/१४३ )में  पितृ गायत्री मंत्र दिया गया है ,इस मंत्र कि प्रतिदिन १ माला या अधिक जाप करने से पितृ दोष में अवश्य लाभ होता है|
मंत्र :  देवताभ्यः पित्रभ्यश्च महा योगिभ्य एव  च
  |   नमः स्वाहायै   स्वधायै  नित्यमेव नमो नमः  || "
२. मार्कंडेय पुराण (९४/३ -१३ )में वर्णित चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ  प्रसन्नहोकर  स्तुतिकर्ता  मनोकामना कि पूर्ती करते हैं |
३.भगवान  भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर   में  ही  भगवान भोलेनाथ का  ध्यान  करनिम्न  मंत्र  की एक  माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट   बाधा  आदि  शांत  होकर शुभत्व  की  प्राप्ति  होती  है  |मंत्र  जाप प्रातः  या  सायंकाल  कभी  भी  कर  सकते  हैं :
मंत्र : "ॐ   तत्पुरुषाय  विद्महे  महादेवाय  च  धीमहि   तन्नो  रुद्रः  प्रचोदयात  | 
४.अमावस्या को  पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल  बूरा ,घी  एवं  एक रोटी गाय  को  खिलाने  से पितृ दोष शांत   होता  है |
   ५  . अपने माता -पिता ,बुजुर्गों का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर /सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं |
६ . पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए  "हरिवंश  पुराण " का श्रवण करें  या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें  |
७ . प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती  या सुन्दर काण्ड  का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है  |
८.सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि  डाल  कर सूर्य देव को अर्घ्य  देकर ११ बार "ॐ घृणि सूर्याय नमः "      मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता  एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है  |
९. अमावस्या  वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा  आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए |
१० .पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा  अवश्य  करें | अगर १०८ परिक्रमा  लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा |...
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💯✔ पितृ दोष निवारण के ज्योतिषीय उपाय :

जन्म कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव पर सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का योग हो तो जातक को पितृ दोष होता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उसके ही अशुभ फल घटित होते हैं। जैसे प्रथम भाव में सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि आदि अशुभ योग हो तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती हैं।
दूसरे भाव में यह योग बने तो परिवार में वैमनस्य व आर्थिक उलझनें हों, चतुर्थ भाव में पितृ योग के कारण भूमि, मकान, माता-पिता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं। पंचम भाव में उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत हैं। सप्तम में यह योग वैवाहिक सुख में नवम में भाग्योन्नति में बाधाएँ तथा दशम भाव में पितृ दोष हो तो सर्विस या कार्य व्यवसाय संबंधी परेशानियाँ होती हैं। प्रत्येक भावानुसार फल का विचार होता है। सूर्य यदि नीच में होकर राहु या शनि के साथ पड़ा हो तो पितृदोष ज्यादा होता है।
किसी कुंडली में लग्नेश ग्रह यदि कोण (6,8 या 12) वें भाव में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव में हो तब भी पितृदोष होता है। पितृयोग कारक ग्रह पर यदि त्रिक (6, 8,12) भावेश एवं भावों के स्वामी की दृष्टि अथवा युति का संबंध भी हो जाए, तो अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेत बाधा, ज्वर, नेत्र रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि आदि अनिष्ट फल होते हैं। ऐसी स्थिति में रविवार की संक्रांति को लाल वस्तुओं का दान कर तथा पितरों का तर्पण करने से पितृ आदि दोषों की शांति होती है।
चंद्र राहु, चंद्र केतु, चंद्र बुध, चंद्र शनि आदि योग भी पितृ दोष की भाँति मातृ दोष कहलाते हैं। इनमें चंद्र-राहु एवं सूर्य-राहु योगों को ग्रहण योग तथा बुध-राहु को जड़त्व योग कहते हैं।
इन योगों के प्रभावस्वरूप भी भावेश की स्थिति अनुसार ही अशुभ फल प्रकट होते हैं। सामान्यतः चन्द्र-राहु आदि योगों के प्रभाव से माता अथवा पत्नी को कष्ट, मानसिक तनाव,आर्थिक परेशानियाँ, गुप्त रोग, भाई-बंधुओं से विरोध, अपने भी परायों जैसे व्यवहार रखें आदि फल घटित होते हैं।
दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो इसका राहु से दृष्टि या योग आदि का संबंध हो तो भी पितृदोष होता है। यदि आठवें या बारहवें भाव में गुरु-राहु का योग और पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि कू्र ग्रहों की स्थिति हो तो पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान सुख में कमी रहती है।
अष्टमेश पंचम भाव में तथा दशमेष अष्टम भाव में हो तो भी पितृदोष के कारण धन हानि अथवा संतान के कारण कष्ट होते हैं। यदि पंचमेश संतान कारक ग्रह राहु के साथ त्रिक भावों में हो तथा पंचम में शनि आदि कू्र ग्रह हो तो भी संतान सुख में कमी होती है।
इस प्रकार राहु अथवा शनि के साथ मिलकर अनेक अनिष्टकारी योग बनते हैं, जो पितृ दोष की भाँति ही अशुभ फल प्रदान करते हैं। बृहत्पाराशर होरा शास्त्र में कुंडली में इस प्रकार के शापित योग कहे गए हैं। इनमें पितृ दोष श्राप, भ्रातृ श्राप,मातृ श्राप, प्रेम श्राप आदि योग प्रमुख हैं। अशुभ पितृदोषों योगों के प्रभाव स्वरूप जातक के स्वास्थ्य की हानि, सुख में कमी, आर्थिक संकट, आय में बरकत न होना, संतान कष्ट अथवा वंशवृद्धि में बाधा, विवाह में विलम्ब्, गुप्त रोग, लाभ व उन्नति में बाधाएं तनाव आदि अशुभ फल प्रकट होते हैं।
यदि किसी जातक की जन्म कुंडली सूर्य-राहू, सूर्य-शनि आदि योगों के कारण पितृ दोष हो, तो उसके लिए नारायण बलि, नाग पूजा अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्रह्म भोज, दानादि कर्म करवाने चाहिए। पितृदोष निवारण के लिए अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों के फोटो लगाकर उन पर हार चढ़ाकर सम्मानित करना चाहिए तथा उनकी मृत्यु तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा सहित दान, पितृ तर्पण एवं श्राद्ध कर्म करने चाहिए।
जीवित माता-पिता एवं भाई-बहनों का भी आदर-सत्कार करना चाहिए। हर अमावस को अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर कच्ची लस्सी, गंगाजल, थोड़े काले तिल, चीनी, चावल, जल, पुष्पादि चढ़ाते हुए ॐ पितृभ्यः नमः मंत्र तथा पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ होगा।
हर संक्रांति, अमावस एवं रविवार को सूर्य देव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन गंगाजल, शुद्ध जल डालकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्घ्य दें। श्राद्ध के अतिरिक्त इन दिनों गायों को चारा तथा कौए, कुत्तों को दाना एवं असहाय एवं भूखे लोगों को भोजन कराना चाहिए।
विशिष्ट उपाय :
१.किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं |
२. यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी मजबूर व्यक्ति  की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें |
३.पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में एक शुद्ध घी का दीपक लगाना चाहिए,ये क्रम टूटना नहीं चाहिए |
एक माह बीतने पर जो अमावस्या आये उस दिन एक प्रयोग और करें :--
इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोडा सा गौ -मूत्र प्राप्त करें|उसे थोड़े एनी जल में मिलकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों  में डाल दें |इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे ५ अगरबत्ती ,एक नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक अपने कल्याण की कामना करें,और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें |ऐसा करने पर पितृ दोष शांत हो जायेगा|  
४ .घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है | इसके अलावा  पशुओं  के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ  लगवाने  अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है|
५ . अगर पितृ दोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो,संतान हानि  हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रण होने की प्रार्थना करें और अपने dwara जाने-अनजाने में किये गए अपराध / उपेक्षा के लिए क्षमा याचना करें ,फिर घर में श्रीमदभागवद का यथा विधि पाठ कराएं,इस संकल्प ले साथ की इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो |ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंके उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है|
६. पितृ दोष की शांति हेतु ये उपाय बहुत ही अनुभूत और अचूक फल देने वाला देखा गया है,वोह ये कि- किसी गरीब की कन्या के विवाह में गुप्त रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहयोग करना |(लेकिन ये सहयोग पूरे दिल से होना चाहिए ,केवल दिखावे या अपनी बढ़ाई कराने के लिए नहीं )|इस से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंकि इसके परिणाम स्वरुप मिलने वाले पुण्य फल से  पितरों को बल और तेज़ मिलता है ,जिस से वह ऊर्ध्व लोकों की ओरगति करते हुए पुण्य लोकों को प्राप्त होते हैं.|
७. अगर किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृ दोष उत्पन्न करती है तो तो ऐसी स्थिति में मोह को त्याग कर उसकी सदगति के लिए "गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र " का पाठ करना चाहिए.|
८.पित्र दोष से सम्बंधित  व्यक्ति को अपने घर के वायव्य कोण में  नित्य सरसों का तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में नित्य लगाना चाहिए+दिया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है ,दीपक कम से कम १० मिनट नित्य जलना आवश्यक है लाभ प्राप्ति के लिए |
९.यदि परिवार -खानदान के किसी सदस्य से कोई ऐसी गलती हो गयी हो जो कुल के संस्कारों के विरुद्ध हो तो उसे सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए |कोई अगर किसी ऐसी शक्ति को पूजने लगा हो जो प्रेत आत्मा की तरह हो तो उसे समझाना चाहिए की ऐसा न करे ,इससे पित्र रुष्ट होते हैं और कुलदेवता /देवी क्रोधित होते हैं ,उन्हें पूजा नहीं मिलती |पितरों का अंश उन्हें नहीं मिलता है और स्थायी समस्या उत्पन्न होती है |
इन उपायों के अतिरिक्त वर्ष की प्रत्येक अमावस्या को दोपहर के समय गूगल की धूनी पूरे घर में सब जगह घुमाएं ,शाम को अन्धेरा होने के बाद पितरों के निमित्त शुद्ध भोजन बनाकर एक दोने में सारी सामग्री रख कर किसी बबूल के वृक्ष अथवा पीपल या बड़ कि जड़ में रख कर आ जाएँ, पीछे मुड़कर न देखें.|नित्य प्रति घर में देसी कपूर जालाया करें| ये कुछ ऐसे उपाय हैं,जो सरल भी हैं  और प्रभावी भी,और हर कोई सरलता से इन्हें कर पितृ दोषों से मुक्ति पा सकता है| लेकिन किसी भी प्रयोग की सफलता आपकी पितरों के प्रति श्रद्धा के ऊपर निर्भर करती है|..
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💯✔ पित्र शान्ति नहीं होगी चाहे कितने भी उपाय कर लो

          उपाय तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक वह कहीं स्वीकार न हों |उपाय एक ऊर्जा प्रक्षेपण है |उपाय से ऊर्जा उत्पन्न कर एक निश्चित दिशा में भेजी जाती है |यह ऊर्जा जब तक कहीं स्वीकार न की जाए अंतरिक्ष में निरुद्देश्य विलीन हो जाती है और कोई लाभ नहीं मिलता अथवा यह ऊर्जा अपने गंतव्य तक न पहुंचे ,किसी और द्वारा ले ली जाए तो भी असफल हो जाती है ,अथवा उत्पन्न ऊर्जा का परिवर्तन प्राप्तकर्ता के योग्य ऊर्जा में न हो पाए तो भी अपने उद्देश्य में ऊर्जा सफल नहीं होती |ऐसा ही कुछ पित्र शान्ति के उपायों में होता है |बहुत से लोगों की कुंडलियों में पित्र दोष होता है |बहुत से लोग पित्र पीड़ा से परेशान रहते हैं और बहुत से लोग पित्र शान्ति करते हैं या कराते हैं |इसके उपरान्त भी उनकी समस्या समाप्त नहीं होती |ज्योतिषी को जब बताते हैं की यह -यह पूजा करा दी तो वह मान लेते हैं की पित्र शान्ति हो गयी होगी ,लेकिन वास्तव में पित्र संतुष्ट नहीं होते ,उनको पूजा नहीं मिली होती या वह नहीं लेते और पित्र तृप्ति के उपायों का कोई लाभ नहीं होता |जब किसी ज्ञानी तांत्रिक को समस्या बताई जाती है तब वह बार -बार कहता है पित्र असंतुष्ट हैं ,पूजा नहीं मिल रही |तंत्र की पूजाएँ भी उन्हें नहीं मिलती और वह लगातार असंतुष्ट बने रहते हैं |जानकारों तक को समझ नहीं आता की हो क्या रहा है ,पूजा जा कहाँ रही है ,कौन ले रहा है ,क्यों लाभ नहीं मिल रहा |अधिकतर ज्योतिषी -तांत्रिक एक पक्ष को जानने वाले होते हैं , इसकी पूर्ण तकनिकी सबको ज्ञात नहीं होती ,अतः वह बता नहीं पाते की ऐसा क्यों हो रहा ,लाभ क्यों नहीं हो रहा |वह मान लेते हैं की इतना -इतना हुआ तो पित्र शांति हो गयी |यथार्थ में जातक को कोई लाभ नहीं मिलता |
           पित्र शान्ति के हजारों उपाय शास्त्रों में दिए गए हैं ,इनमे ज्योतिषीय ,कर्मकांडीय अर्थात वैदिक पूजन प्रधान और तांत्रिक उपाय होते हैं |इन उपायों में छोटे टोटकों से लेकर बड़े -बड़े अनुष्ठान तक होते हैं |इन शास्त्रों में यह कहीं नहीं लिखा की कैसे यह उपाय काम करते हैं |किस सूत्र पर कार्य करते हैं ,कैसे पितरों तक ऊर्जा पहुँचती है ,कैसे यहाँ के पदार्थों का पित्र लोक के पदार्थों में परिवर्तन होता है ,कौन यह ऊर्जा स्थानान्तरण करता है ,कब यह क्रिया अवरुद्ध हो जाती है ,कौन इस कड़ी को प्रभावित कर सकता है ,कैसे उपायों से कितनी ऊर्जा किस प्रकार उत्पन्न होती है |कहीं कोई सूत्र नहीं दिए गए ,क्योंकि जब यह उपाय बनाए गए तब के लोग इन सूत्रों को समझते थे |उन्हें इसकी क्रियाप्रणाली पता थी |उस समय के ऋषियों को यह अनुमान ही नहीं था की आधुनिक युग जैसी समस्या आज के मानव उत्पन्न कर सकते हैं ,अतः उन्होंने इन्हें नहीं लिखा |उन्होंने जो संस्कार बनाए उसे यह मानकर बनाए की यह लगातार माने जायेंगे |इन्ही संस्कारों में उपायों की क्रिया के सूत्र थे अतः लिखने की जरूरत नहीं समझी |जब संकार छूटे तो सूत्र टूट गए |लोगों की समझ में अब नहीं आता की हो क्या गया |लोग अपनी इच्छाओं से चलने लगे तथा व्यतिक्रम उत्पन्न हो गया ऊर्जा संचरण में और सबकुछ बिगड़ गया |कुछ सूत्रों को पितरों के सम्बन्ध में गरुण पुराण में दिया गया है किन्तु पूरी तकनिकी वहां नहीं है क्योंकि बीच की कड़ी सामान्य जीवन से सम्बन्धित है |गरुण पुराण बताता है की विश्वेदेवा पदार्थ को बदलकर पित्र की योनी अनुसार उन्हें पदार्थ उपलब्ध कराते हैं ,किन्तु विश्वदेव तक ही कुछ न पहुंचे तो क्या करें |विश्वदेव ही नाराज हो जाएँ तो क्या करें |आचार्य करपात्री जी ने विश्वेदेवा की कार्यप्रणाली को बहुत अच्छे उदाहरण से बताया है किन्तु समस्या उत्पन्न उर्जा के वहां तक ही पहुँचने में होती है |उनके द्वारा स्वीकार करने और परिवर्तित कर पितरों को प्रदान करने में ही होती है |
             यह सभी प्रक्रिया ब्रह्माण्ड की ऊर्जा संरचना की क्रियाप्रणाली के आधार पर हमारे पूर्वज ऋषियों द्वारा बनाई गयी थी जो की आधुनिक वैज्ञानिकों से लाखों गुना श्रेष्ठ वैज्ञानिक थे |इस प्रणाली में एक त्रुटी पूरे तंत्र को बिगाड़ देती है |चूंकि यह प्रणाली प्रकृति की ऊर्जा संरचना पर आधारित है अतः यहाँ देवी -देवता भी हस्तक्षेप नहीं करते ,क्योंकि वह भी उन्ही सूत्रों पर चलते हैं |उनकी उत्पत्ति भी उन्ही सूत्रों पर आधारित है ,उन्हें भी उन्ही सूत्रों पर ऊर्जा दी जाती है ,उन्ही सूत्रों पर उन तक भी पूजा पहुँचती है |इस प्रकार ईष्ट चाहे कितना भी बड़ा हो ,देवी -देवता चाहे कितना ही शक्तिशाली हो कड़ियाँ टूटने पर कड़ियाँ नहीं बना सकता |सीधे कहीं हस्तक्षेप नहीं कर सकता |वायरल स्थितियों में व्यक्ति विशेष के लिए इनके हस्तक्षेप होते हैं किन्तु यह हस्तक्षेप पित्र संतुष्टि अथवा देवताओं को पूजा मिलने को लेकर नहीं रहे हैं |पित्र संतुष्टि की सबसे मूल कड़ी व्यक्ति के खानदान के मूल पूर्वज ऋषि के देवता या देवी होते हैं जिन्हें बाद में कुलदेवता /देवी कहा जाने लगा |इनका सीधा सम्बन्ध विश्वदेवा स्वरुप से होता है ,जो की पूजन स्थानान्तरण के लिए उत्तरदाई होते हैं |कुल देवता /देवी ब्रह्माण्ड की उच्च शक्तियों जिन्हें देवी /देवता कहा जाता है और मनुष्य के बीच की कड़ी हैं और यह पृथ्वी की ऊर्जा तथा ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच सामंजस्य बनाते हैं |यह कड़ी जहाँ टूटी सबकुछ टूट जाता है और फिर चाहे कितनी भी पित्र शान्ति कराई जाए पितरों को संतुष्टि नहीं मिल पाती |उन तक दी जा रही पूजा नहीं पहुँचती और वह असंतुष्ट ही रह जाते हैं |
            व्यक्ति के कुलदेवता /देवी ही उसके ईष्ट देवी /देवता हों जरुरी नहीं |इष्ट देवी देवता ३३ कोटि देवी देवता में से कोई भी हो सकते हैं किन्तु कुलदेवता /देवी हमेशा हर खानदान के एक ही रहते हैं |ईष्ट देवी देवता आप अपनी इच्छा से चुन सकते हैं ,जब मन हो बदल सकते हैं ,किन्तु कुलदेवता /देवी को न बदल सकते हैं न खुद चुन सकते हैं |ईष्ट देवी /देवता किसी भी प्रकार की ऊर्जा अथवा कोई भी हो सकते हैं किन्तु कुलदेवता /देवी हमेशा शिव परिवार से ही होते हैं |शिव /शक्ति ही उत्पत्ति और संहार के कारक हैं ,यही पृथ्वी के नियंता हैं अतः यही कुलदेवता /देवी होते हैं किसी न किसी रूप में |सभी कुलदेवता /देवी इनके ही रूप होते हैं भले उनका नाम कहीं कुछ भी रख दिया गया हो |अवतारों तक को इनकी पूजा करनी ही होती है |इनके बिन पृथ्वी पर कोई कार्य सफल नहीं हो सकता |सभी पित्र जिस किसी खानदान /वंश से होते हैं उनके रहते हुए भी कुलदेवता के संरक्षण में होते हैं और मृत्यु के बाद भी कुलदेवता द्वारा ही उन तक अंश पहुँचता है |कुलदेवता /देवी द्वारा ही देव पूजन या ईष्ट पूजन भी देवता या ईष्ट तक पहुँचता है |यदि यह कुलदेवता की कड़ी टूट गयी या कुलदेवता रुष्ट हुए ,इनकी पूजा नहीं हो रही तो पित्र शांति के सारे उपाय ,प्रयास असफल हो जाते हैं |यहाँ तक की देवताओं तक को पूजा नहीं पहुँचती |पित्र शांति के उपायों में किसी न किसी देवता को ही पूजा दी जाती है ,विभिन्न प्रयोजन किये जाते हैं किन्तु यह सीधे पितरों तक या देवताओं तक नहीं पहुँच सकते |कुलदेवता /देवी के बिन यह सब व्यर्थ हो जाता है |कहने को कोई कुछ भी कहे कि देवता चाहें तो क्या नहीं हो सकता ,किन्तु यह मात्र भ्रम ही होगा ,लोग खुद को दिलासा देंगे या यह अहंकार के बोल होंगे ,क्योंकि देवी /देवता भी इसी सूत्र से बंधे हैं |इतनी शक्ति भी आज के मानव में नहीं कि कोई देवता आकर सीधे उसके लिए हस्तक्षेप करे |सारी श्रृष्टि ऊर्जा सूत्रों पर चलती है जिसकी कड़ी टूट जाने पर ऊर्जा संचरण बाधित हो जाता है |
           कुलदेवता या देवी सीधे ब्रह्माण्ड की उच्चतर शक्तियाँ न होने पर भी उनके अंश अथवा पृथ्वी से जुडी उनकी ऊर्जा होते हैं |इनका सम्बन्ध परिवार की उत्पत्ति और सुरक्षा के साथ ही लोगों की मृत्यु के बाद की गति से होता है |कुलदेवता /देवी व्यक्ति के किसी खानदान में जन्म लेने से लेकर अगले जन्म अथवा मुक्ति के बीच की समस्त स्थितियों में समान प्रभाव रखते हैं |जन्म से मृत्यु तक की समस्त आयु में सुरक्षा ,पारिवारिक सुरक्षा ,समस्त क्रियाकलाप ,के बाद मृत्यु उपरान्त पित्र लोक की स्थिति में श्राद्ध आदि का पहुंचना कुलदेवता /देवी के अंतर्गत आता है |यह व्यक्ति के मूल वंशज द्वारा स्थापित /पूजित होते हैं इसलिए इन्हें वह भोज्य आदि दिया जाता है जो उस समय भारत में उत्पन्न होता था और परिवार में उपयोग होता था |इन्हें कुल वृद्धि ,मांगलिक कार्य होने पर विशेष पूजा दी जाती है जबकि किसी की मृत्यु होने पर सम्बत क्षय तक इनकी पूजा नहीं होती |इनकी पूजा पद्धति पूर्ण पारंपरिक और खानदान के अनुसार होती है |इस प्रकार यह समझा जा सकता है की यह किस प्रकार की शक्तियाँ होते हैं |इनकी अनुपस्थिति में शिव /शक्ति की स्थापना करनी होती है कुलदेवता रूप में क्योंकि यह शिव /शक्ति से जुडी शक्तियाँ होते हैं |यह भिन्न खानदान में भिन्न स्वरुप में होते हैं जिससे किसी अन्य के खानदान वाले किसी अन्य खानदान के कुलदेवता को नहीं पूज सकते |इनकी ऊर्जा की प्रकृति हर खानदान में भिन्न होती है |मूल शिव /शक्ति से जुडी शक्ति होने पर भी इनमे पृथ्वी की सतह पर ऊर्जा में भिन्नता होती है ,अतः सबके अलग -अलग प्रकृति के कुलदेवता होते हैं |इनकी पूजा घर की कन्याएं नहीं देखती क्योंकि उन्हें किसी अन्य गोत्र में जाना होता है विवाह बाद |
            कुलदेवता /देवी की कड़ी तब टूट जाती है जब उन्हें पूजा न मिले उनके लिए नियत समय पर |उन्हें जब खानदान के लोग भूल जाएँ |यह तब नाराज और असंतुष्ट हो जाते हैं जब खानदान में परम्पराओं का पालन न हो ,भिन्न आचरण हो ,किसी अन्य शक्ति को अथवा किसी मृत मानव की प्रेतिक शक्ति को घर में देवताओं सा स्थान दे दिया जाय ,बुजुर्गों का अपमान होने लगे ,किसी और के कुलदेवता को पूजित किया जाय ,किसी अन्य धर्म के किसी शक्ति को पूजित किया जाय ,किसी ऐसी प्रेत शक्ति को देवता की तरह पूजा जाय जो कभी मानव था भले ही वह अपने ही खानदान का हो ,किसी पैशाचिक ,श्मशानिक शक्ति को घर में स्थान दे पूजा जाय ,पितरों का सामयिक श्राद्ध न हो आदि |जब कुलदेवता /देवी की पूजा ही न हो और उन्हें भूल गए हों तब तो पित्र तृप्ति के उपाय पूरी तरह असफल हो जाते हैं और पित्र दोष खानदान में स्थायी हो जाता है ,किन्तु जब कुलदेवता /देवी असंतुष्ट हों तब इनके द्वारा व्यतिक्रम उत्पन्न होता है |इन्हें इस स्थिति में संतुष्ट किया जा सकता है और संतुष्टि बाद पित्र तृप्ति के उपाय सफल होने लगते हैं |जिन गलतियों के कारण कुलदेवता /देवी रुष्ट हो रहे हों उन्हें सुधारने और इनकी पारंपरिक पूजा देने पर पित्र हेतु किये जाने जाने वाले प्रयास परिणाम देने लगते हैं |
      किसी अन्य शक्ति या प्रेत शक्ति या पीर ,ब्रह्म ,साईं ,सती ,वीर को घर में पूजने पर भी कुलदेवता परिवार छोड़ देते हैं जिससे पित्र दोष स्थायी हो जाता है और कोई भी पित्र तृप्ति का उपाय चाहे कितना भी बड़ा किया जाय सफल नहीं होता |यह शक्तियाँ घर की पूजा खुद लेने लगती हैं और अपनी शक्ति बढाते हुए ईष्ट की भी पूजा लेने लगती हैं |कुलदेवता तो परिवार छोड़ते ही हैं इस स्थिति में ईष्ट तक पूजा नहीं पहुँचती और पित्र शान्ति के सारे प्रयास असफल हो जाते हैं क्योंकि उन तक कोई पूजा नहीं पहुँचती |कुलदेवता घर से हट जाते हैं तो पित्र तक कोई उपाय नहीं पहुँचते जिससे वह असंतुष्ट तो रहते ही हैं उनकी मुक्ति के प्रयास भी असफल होते हैं |इससे बड़ी दिक्कत यह हो जाती है की किसी भी इष्ट तक कोई पूजा नहीं पहुँचती जिससे मुक्ति का मार्ग भी अवरुद्ध हो जाता है |मृत्यु के बाद व्यक्ति अपने पितरों में न जाकर उस शक्ति के अधीन प्रेत लोक में चला जाता है |वीर या ब्रह्म या सती की पूजा उनके स्थान पर उनके खानदान वाले कर सकते हैं किन्तु घर में इनकी स्थापना होने पर यह उपरोक्त स्थिति उत्पन्न कर देते हैं |साईं ,पीर ,मजार ,शहीद आदि की पूजा कुलदेवता /देवी को भी स्वीकार्य नहीं होती और पित्र तो गंभीर रुष्ट हो जाते हैं |इन्हें आज के समय में सामान्य ढंग से लिया जाता है क्योंकि हिन्दू दयालु और सबको समान मानने वाला होता है |जिससे वह अपने पैर पर अधिक कुल्हाड़ी मारता है अन्य ऐसा नहीं करते |हिन्दू अपनी अंध श्रद्धा में अथवा अपने स्वार्थ में कहीं भी सर झुका देता है ,इनकी ऊर्जा संरचना ,प्रकृति ,स्वभाव आदि को नहीं समझता अथवा अनदेखा करता है अपने को अतिबुद्धिमान मानकर |
        कुछ अतिआधुनिक पाश्चात्यवादी कह सकते हैं कि जहाँ कुलदेवता की अवधारणा ही नहीं उनका क्या ,तो यह ध्यान देना होगा की वहां पित्र तृप्ति के उपाय भी या तो नहीं होंगे या कोई माध्यम जरुर होगा बीच में जिससे उन तक श्रद्धा पहुंचाई जा सके |दूसरी बात और की वहां फिर मुक्ति अथवा मोक्ष की पूर्ण अवधारणा भी सम्पूर्ण विज्ञान के साथ नहीं होगी |वहां भारतीय वैदिक ज्योतिष भी नहीं होगा जिसमे पित्र दोष दीखता है और उसके प्रभाव भी दिखते हैं |वहां कालसर्प ,मांगलिक योग जैसे योग भी नहीं होते जिनका सीधा प्रभाव व्यक्ति पर होता है |कालसर्प आदि का सीधा सम्बन्ध पित्र दोष से होने से कालसर्प आदि ज्योतिषीय दोषों के लिए किये जाने वाले उपाय भी कुलदेवता की अनुपस्थिति अथवा रुष्टता पर काम नहीं करते |यह हाल सभी ज्योतिषीय उपायों का होता है जहाँ भी पूजा का प्रयोग हो ,क्योंकि पूजा मूल ईष्ट तक ही नहीं पहुँचती अतः उपाय अपेक्षित परिणाम नहीं देते |
          अंत में समाधान की बात |कोई पंडित ,कोई ज्योतिषी ,कोई तांत्रिक आपके कुलदेवता /देवी को संतुष्ट नहीं कर सकता ,उन्हें वापस नहीं ला सकता |वह मात्र पित्र संतुष्टि के उपाय कर सकता है किन्तु वह तभी सफल होगा जब उपरोक्त स्थितियां न हों |कुलदेवता /देवी की संतुष्टि आपको करनी होगी ,उनकी रुष्टता आप ही दूर कर सकते हैं ,अगर वह खानदान छोड़ चुके हैं तो उन्हें आप ही ला सकते हैं या उनकी अन्य रूप में स्थापना आप ही कर सकते हैं |आपको ही यह करना होगा ,दूसरा इनमे कुछ नहीं कर सकता |अगर आपके घर में किसी अन्य शक्ति का वास है अथवा आपके घर में किसी अन्य शक्ति को जैसा उपर लिखा गया है ,को पूजा जा रहा है तो आपको ही उसका समाधान निकालना होगा कुछ इस तरह की सांप भी मर जाय और लाठी भी न टूटे |आप स्वयं कभी किसी प्रेतिक ,पैशाचिक ,श्मशानिक शक्ति को घर में स्थान न दें न तो तात्कालिक लाभ के लिए कोई वचनबद्ध पूजा करें |उपर लिखी गयी किसी शक्ति की स्थापना आप घर में आज के लाभ के लिए न करें जिससे भविष्य में आपके खानदान वालों के लिए कांटे उत्पन्न हों |यदि आप उपरोक्त परिस्थिति में हैं तो अपने घर में ऐसी शक्ति की स्थापना करें जो कुलदेवता /देवी और पितरों को प्रसन्न /संतुष्ट करे ,उन तक तालमेल उत्पन्न करे ,प्रेतिक या श्मशानिक या पैशाचिक या अन्य शक्ति के प्रभाव को कम करते हुए समाप्त करे |इसके बाद अपने कुलदेवता /देवी को स्थान दे ,नियमानुसार उनकी पूजा करें |यदि उनका पता आपको नहीं चलता कि कौन आपके कुलदेवता /देवी हैं या थे तो ऐसी शक्ति की स्थापना करें जो इनकी कमी पूरी कर दे और वही रूप ले ले जो कल के कुलदेवता /देवी की थी |तब जाकर आपके उपाय भी सफल होंगे और आपकी पूजा भी आपके ईष्ट तक पहुंचेगी |...
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