टोटके 3 PARASHMUNI


💯✔जीवनसाथी का फिर से प्रेम पा सकते हैं।

पहला उपायः पति-पत्नी वशीकरण मंत्र

इस मंत्र का प्रयोग पति-पत्नी दोनों में कोई भी या कोई एक कर सकता है। इसके लिए आपको सिद्ध योग में निम्नलिखित मंत्र का 1100 जप कर प्रेमपूर्वक अपने लाइफ पार्टनर को पान खिलाए, इससे आपके लाइफ पार्टनर जीवन भर आपके वश में रहेंगे। इस उपाय को पति पत्नी के लिए अथवा पत्नी पति के लिए कर सकती है।

अमुक (लाइफ पार्टनर का नाम) जय जय सर्वव्यान्नमः स्वाहा।

दूसरा उपाय

पारिवारिक सुख की प्राप्ति हेतु यदि पति-पत्नी के संबंधों में कटुता आ जाए, तो पति या पत्नी, या संभव हो, तो दोनों, ऊपर वर्णित मंत्र का पांच माला जप इक्कीस दिन तक प्रतिदिन करें। जप निष्ठापूर्वक करें, तनाव दूर होगा और वैवाहिक जीवन में माधुर्य बढ़ेगा।

तीसरा उपायः मांगलिक दोष को ऐसे हटाएं

मंगल दोष के कारण वैवाहिक जीवन में कलह या तनाव होने की स्थिति में निम्नोक्त क्रिया करें। पति या पत्नी, या फिर दोनों, मंगलवार का व्रत करें और हनुमान जी को लाल बूंदी, सिंदूर व चोला चढ़ाएं। तंदूर की मीठी रोटी दान करें। मंगलवार को सात बार एक-एक मुट्ठी रेवड़ियां नदी में प्रवाहित करें। गरीबों को मीठा भोजन दान करें। मंगल व केतु के दुष्प्रभाव से मुक्ति हेतु रक्त दान करें। चांदी का जोड़ विहीन छल्ला धारण करें। इससे कुंडलियों का मांगलिक दोष दूर होकर पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेम बढ़ेगा।

चौथा उपाय

जिन स्त्रियों के पति किसी अन्य स्त्री के मोहजाल में फंस गए हों या आपस में प्रेम नहीं रखते हं, लड़ाई-झगड़ा करते हों तो इस टोटके द्वारा पति को अनुकूल बनाया जा सकता है। गुरुवार अथवा शुक्रवार की रात्रि में 12 बजे पति की चोटी (शिखा) के कुछ बाल काट लें और उसे किसी ऐसे स्थान पर रख दें जहां आपके पति की नजर न पड़े। ऐसा करने से आपके पति का ध्यान पूरी तरह से उस स्त्री से हट जाएगा और वह आपसे पुनः प्रेम करने लगेंगे। कुछ दिन बाद इस बालों को जलाकर अपने पैरों से कुचलकर घर के बाहर फेंक दें।

पांचवा उपाय

शुभ मुहूर्त में मंत्र ऊँ नमो महायक्षिण्ये मम पतिं में वश्यं कुरु कुरु स्वाहा की 10 माला जप करने तथा दशांश हवन, तर्पण, मार्जन करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। इसके बाद किसी भी मिठाई को इस मंत्र से सात बार अभिमंत्रित कर अपने पति को खिला दें। ऐसा लगातार 21 दिन तक करें। इससे पति आपके वश में हो जाएंगे तथा वह अपने जीवन में कभी किसी अन्य स्त्री की तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखेंगे।

छठां उपाय

हे गौरी शंकरार्धांगिं! यथा त्वं शंकरप्रिया तथा मां कुरु कल्याणि कांत कांता सुदुर्लभाम्।
इस मंत्र का प्रतिदिन पांच माला जप लगातार 21 दिन तक करने से पति का प्रेम प्राप्त होता है। जप से पूर्व भगवान गणेश एवं मां दुर्गा की पूजा अवश्य करें।

सातवां उपाय

अगर किसी स्त्री के पति अन्य से प्रेम करते हैं तथा अपनी पत्नी से लड़ाई-झगड़ा आदि दुर्व्यवहार करते हैं तो ऐसी महिलाओं को प्रत्येक रविवार को अपने घर तथा बेडरूम में गूगल की धूनी देनी चाहिए। धूनी देने के पहले मन ही मन दूसरी स्त्री का नाम लेकर प्रार्थना करनी चाहिए कि आपके पति उसके प्रभाव से मुक्त हो जाएं। जल्दी ही उन दोनों का आपसी संबंध टूट जाएगा।

आठवां उपायः वास्तु टिप्स

डॉल्फिन मछलियां अपने जीवनसाथी को भेंट में देने से वैवाहिक जीवन में मधुरता एवं सद्भाव की वृद्धि होती है। डॉल्फिन मछलियों का चित्र या मूर्ति शयन कक्ष में पूर्व या पश्चिम दिशा में रखनी चाहिए। फेंग शुई के अनुसार मेंडेरियन बत्तख का जोड़ा नवविवाहित जोड़े के शयन कक्ष में रखने से जीवनपर्यंत एक दूसरे के प्रति प्रेम बना रहता है।
प्रयोग करने में अत्यन्त सरल, शीघ्र फल को प्रदान करने वाला, अन्न और धन की वृद्धि के लिए, वशीकरण को प्रदान करने वाला भगवान गणेश जी का ये दिव्य तांत्रिक प्रयोग है I इसी सिद्धि के बल पर प्राचीन काल में साधु लोग थोड़े से प्रसाद से पूरे गांव को भरपेट भोजन करवा देते थे I इसकी साधना करते हुए मुह को जूठा रखा जाता है I
विनियोग : ॐ अस्य श्रीउच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषि:, विराट छन्द : उच्छिष्टगणपति देवता सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोग: I
मन्त्र : ॐ गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा I
अगर किसी पर तामसी कृत्या प्रयोग हुआ हो तो उच्छिष्ट गणपति शत्रु की गन्दी क्रियाओं को नष्ट करके रक्षा करते हैं I यदि आप भी तन्त्र द्वारा परेशान हैं तो संस्था के तान्त्रिकों द्वारा यह तांत्रिक साधना सम्पन्न करवा सकते हैं I

समस्त तन्त्र शक्ति के नाश के लिए मारण प्रयोगों को नष्ट करने के लिए कृत्याद्रोह नाम के तन्त्र उन्मूलन के लिए इस प्रयोग को किया जाता है I इससे तन्त्र के छ: प्रकार के अभिचार कर्मों का नाश होकर रक्षा की प्राप्ति होती है I
मन्त्र : ॐ नमो भगवते पशुपतये ॐ नमो भूताधिपतये ॐ नमो खड्गरावण लं लं विहर विहर सर सर नृत्य नृत्य व्यसनं भस्मार्चित शरीराय घण्टा कपाल- मालाधराय व्याघ्रचर्मपरिधानाय शशांककृतशेखराय कृष्णसर्प यज्ञोपवीतिने चल चल बल बल अतिवर्तिकपालिने जहि जहि भुतान् नाशय नाशय मण्डलाय फट् फट् रुद्राद्कुशें शमय शमय प्रवेशय प्रवेशय आवेणय आवेणय रक्षांसि धराधिपति रुद्रो ज्ञापयति स्वाहा I
शत्रुओं के प्रयोगों के द्वारा जो लम्बे समय से तरह- तरह के कष्ट झेलते आ रहे हैं और किसी प्रकार भी इससे मुक्ति नहीं मिल पा रही हो तो इस प्रयोग को अवश्य सम्पन्न करें I त्रिलोक विजयी रावण इसी मन्त्र के बल पर ही महारूद्र को प्रसन्न करके उस युग के तन्त्र- मन्त्र वेत्ता, ऋषि- मुनियों का भी सम्राट बना I

दैनिक जीवन में किए जाने कुछ साधारण उपाय बताए गए हैं। इनहे करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है तथा मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
उपाय

1- सुबह सबसे पहले घर में झाड़ू लगाएं परंतु शाम होने के बाद भूलकर भी झाड़ू न लगाएं। इससे गृह लक्ष्मी अप्रसन्न होती हैं।

2- शाम होते ही घर में रोशनी अवश्य कर दें। अंधेरे घर में दरिद्रता का वास होता है।

3- यदि किसी विशेष उद्देश्य के लिए कहीं जा रहे हों तो मीठा दही खाकर जाएं। इससे उद्देश्य में सफलता मिलेगी।

4- महिलाओं का आदर करने से तथा 10 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर प्रसन्न करने से सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है।

5- सफेद वस्तुओं का दान करने से मां लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं और सुख-संपदा का भंडार भर देती हैं।

6- घर में टूटे-फूटे बर्तनों का उपयोग न करें। इससे लक्ष्मी रुष्ठ हो जाती हैं।

महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। मंत्र में दिए अक्षरों की संख्या से इनमें विविधता आती है। यह मंत्र निम्न प्रकार से है-

एकाक्षरी(1) मंत्र- 'हौं' ।
त्र्यक्षरी(3) मंत्र- 'ॐ जूं सः'।
चतुराक्षरी(4) मंत्र- 'ॐ वं जूं सः'।
नवाक्षरी(9) मंत्र- 'ॐ जूं सः पालय पालय'।
दशाक्षरी(10) मंत्र- 'ॐ जूं सः मां पालय पालय'।

(स्वयं के लिए इस मंत्र का जप इसी तरह होगा जबकि किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह जप किया जा रहा हो तो 'मां' के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना होगा)

वेदोक्त मंत्र-
महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित है-

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ ॥इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसी मंत्र में ॐ' लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे 'त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात्‌ शक्तियाँ निश्चित की हैं जो कि निम्नलिखित हैं।

इस मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना है।
मंत्र विचार :
इस मंत्र में आए प्रत्येक शब्द को स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है।

शब्द बोधक शब्द बोधक
'त्र' ध्रुव वसु 'यम' अध्वर वसु
'ब' सोम वसु 'कम्‌' वरुण
'य' वायु 'ज' अग्नि
'म' शक्ति 'हे' प्रभास
'सु' वीरभद्र 'ग' शम्भु
'न्धिम' गिरीश 'पु' अजैक
'ष्टि' अहिर्बुध्न्य 'व' पिनाक'र्ध' धर्म 'नं' नंदी
'उ' उमा 'र्वा' शिव की बाईं शक्ति
'रु' रूप तथा आँसू 'क' कल्याणी
'व' वरुण 'बं' बंदी देवी
'ध' धंदा देवी 'मृ' मृत्युंजय
'त्यो' नित्येश 'क्षी' क्षेमंकरी
'य' यम तथा यज्ञ 'मा' माँग तथा मन्त्रेश
'मृ' मृत्युंजय 'तात' चरणों में स्पर्श

यह पूर्ण विवरण 'देवो भूत्वा देवं यजेत' के अनुसार पूर्णतः सत्य प्रमाणित हुआ है।

महामृत्युंजय के अलग-अलग मंत्र हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार जो भी मंत्र चाहें चुन लें और नित्य पाठ में या आवश्यकता के समय प्रयोग में लाएँ। मंत्र निम्नलिखित हैं-

तांत्रिक बीजोक्त मंत्र-ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ ॥

संजीवनी मंत्र अर्थात्‌ संजीवनी विद्या-ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ।

महामृत्युंजय का प्रभावशाली मंत्र-ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ॥

महामृत्युंजय मंत्र जाप में सावधानियाँ

महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है। लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियाँ रखना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे।

अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-

1. जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।
2. एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
3. मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
4. जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
5. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
6. माला को गोमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गोमुखी से बाहर न निकालें।
7. जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
8. महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
10. महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
11. जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
12. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधरन भटकाएँ।
13. जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
14. मिथ्या बातें न करें।
15. जपकाल में स्त्री सेवन न करें।
16. जपकाल में मांसाहार त्याग दें।

कब करें महामृत्युंजय मंत्र जाप?

महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है।

दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएँ दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए। निम्नलिखित स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है-

(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।
(2) किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।
(3) जमीन-जायदाद के बँटबारे की संभावना हो।
(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।
(5) राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।
(6) धन-हानि हो रही हो।
(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।
(8) राजभय हो।
(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।
(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।
(11) मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।
(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।
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💯✔कुछ उपयोगी जानकारी कुछ मन्त्र और टोटके

मंत्रो का हमारे जीवन में अत्यधिक प्रभाव है. यदि मंत्रो का उच्चारण शुद्ध हो तो यह मनुष्य, जीव-जन्तुओ पर गहरा एवं सकरात्मक प्रभाव डालता है. परन्तु यदि मंत्रो का उच्चारण गलत हो तो यह प्राणी पर विपरीत प्रभाव डालता है तथा इसके साथ ही अनिष्टता का भी भय रहता है.

मंत्रों की शक्ति तथा इनका महत्व ज्योतिष में वर्णित सभी रत्नों एवम उपायों से अधिक है. मंत्रों के माध्यम से ऐसे बहुत से दोष बहुत हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं जो रत्नों तथा अन्य उपायों के द्वारा ठीक नहीं किए जा सकते.

क्योंकि ज्योतिष में रत्नों का प्रयोग किसी जन्मांग में केवल शुभ असर देने वाले ग्रहों को बल प्रदान करने के लिए किया जा सकता है. वहीँ अशुभ असर देने वाले ग्रहों के रत्न धारण करना वर्जित है क्योंकि किसी ग्रह विशेष का रत्न धारण करने से केवल उस ग्रह की ताकत बढ़ती है.

उसका स्वभाव नहीं बदलता इसलिए जहां एक ओर अच्छे असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनसे होने वाले लाभ बढ़ जाते हैं, वहीं दूसरी ओर बुरा असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनके द्वारा की जाने वाली हानि की मात्रा भी बढ़ जाती है

इसलिए किसी जन्मांग में बुरा असर देने वाले ग्रहों के लिए रत्न धारण नहीं करने चाहिए .

वहीं दूसरी ओर किसी ग्रह विशेष का मंत्र उस ग्रह की ताकत बढ़ाने के साथ-साथ उसका किसी जन्मांग में बुरा स्वभाव बदलने में भी पूरी तरह से सक्षम होता है इसलिए मंत्रों का प्रयोग किसी जन्मांग में अच्छा तथा बुरा असर देने वाले दोनो ही तरह के ग्रहों के लिए किया जा सकता है .

अतः आज हम आपको एक ऐसे शक्तिशाली मन्त्र के बारे में बताएंगे जिसका प्रभाव अचूक है तथा इस मन्त्र की सिद्धि द्वारा हर एक व्यक्ति आपकी बात मनेगा.

किंतु ध्यान रहे इस विधि का दुरुपयोग या स्वहित के लिए प्रयोग निषिद्ध है और यदि किसी ने ऐसा किया तो उसे इसका दुष्परिणाम भुगतना ही होता है.

क्या है वशीकरण सिद्ध करने की विधि:

सबसे पहले आप ये जान लें कि वशीकरण का अर्थ होता है दूसरे व्यक्ति को अपने मनोनुकूल बनाना यानि ऐसा इंसान जिस पर वशीकरण का प्रयोग किया जाता है, उसे आपकी हर बात को मानना ही होता है भले ही ऐसा करने से उसका नुकसान क्यों न हो रहा हो.

आज हम आपको अत्यन्त शक्तिशाली सिद्ध कुंजिका मन्त्र के बारे में बताने जा रहे है. सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम् मार्कण्डेय पुराण के सप्तशती अध्याय का वह सिद्ध मंत्र है, जिसके द्वारा किसी भी इच्छित वस्तु की प्राप्ति की जा सकती है.

क्या है सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम् मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे. ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः, ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल, ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा..

इस सिद्ध मंत्र को आप सप्तशती का सार मंत्र कह सकते हैं. सप्तशती के अन्य मंत्रों यथा कवच, कीलक, अर्गला आदि मंत्रों की अपेक्षा अकेले इसी मन्त्र का नियमित 108 बार जाप करने से आपको महान सिद्धि प्राप्त हो जाती है.

यदि इस मंत्र को वास्तविक रूप में सिद्ध करना है तो इसके स्थापना मंत्र की जागृति के पश्चात निश्चित आसन पर समाधि की अवस्था में बैठकर अनवरत रूप से इसका एक लाख इक्यावन हज़ार बार जप आवश्यक है.

ध्यान रहे कि मंत्र जाप के दौरान आप कातर भाव से प्रार्थनारत रहें और अगाध निष्ठा के साथ तेज स्वर में उच्चारण करें. उच्चारण पूर्णरूप से सही होना चाहिए और किसी भी रूप में ध्यान भंग नहीं होना चाहिए.

इस मंत्र की सिद्धि के पश्चात आप जिस भी व्यक्ति पर इसका प्रयोग करना चाहें, उसका स्मरण करते हुए 108 बार मंत्र जाप करें, वो इंसान आपकी बात मानने के लिए विवश होगा

. पीपल का वृक्ष समाप्त करता है सभी संकट - सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान हेतु जानें अपना राशि अनुसार विशेष उपाय

पीपल के वृक्ष द्वारा अपनी समस्याओं को दूर करें…
प्रत्येक नक्षत्र वाले दिन भी इसका विशिष्ट गुण भिन्नता लिए हुए होता है.
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में कुल मिला कर 28 नक्षत्रों कि गणना है, तथा
प्रचलित केवल 27 नक्षत्र है उसी के आधार पर प्रत्येक मनुष्य के जन्म के
समय नामकरण होता है. अर्थात मनुष्य का नाम का प्रथम अक्षर किसी ना किसी
नक्षत्र के अनुसार ही होता है. तथा इन नक्षत्रों के स्वामी भी अलग अलग
ग्रह होते है. विभिन्न नक्षत्र एवं उनके स्वामी निम्नानुसार है यहां
नक्षत्रों के स्वामियों के नाम कोष्ठक के अंदर लिख रहा हूँ जिससे आपको
आसानी रहे.
(१)अश्विनी(केतु), (२)भरणी(शुक्र), (३)कृतिका(सूर्य),
(४)रोहिणी(चन्द्र), (५)मृगशिर(मंगल), (६)आर्द्रा(राहू),
(७)पुनर्वसु(वृहस्पति), (८)पुष्य(शनि), (९)आश्लेषा(बुध), (१०)मघा(केतु),
(११)पूर्व फाल्गुनी(शुक्र), (१२)उत्तराफाल्गुनी(सूर्य),
(१३)हस्त(चन्द्र), (१४)चित्रा(मंगल), (१५)स्वाति(राहू),
(१६)विशाखा(वृहस्पति), (१७)अनुराधा(शनि), (१८)ज्येष्ठा(बुध),
(१९)मूल(केतु), (२०)पूर्वाषाढा(शुक्र), (२१)उत्तराषाढा(सूर्य),
(२२)श्रवण(चन्द्र), (२३)धनिष्ठा(मंगल), (२४)शतभिषा(राहू),
(२५)पूर्वाभाद्रपद(वृहस्पति), (२६)उत्तराभाद्रपद(शनि) एवं
(२७)रेवती(बुध)..
ज्योतिष शास्त्र अनुसार प्रत्येक ग्रह 3, 3 नक्षत्रों के स्वामी होते है
.
कोई भी व्यक्ति जिस भी नक्षत्र में जन्मा हो वह उसके स्वामी ग्रह से
सम्बंधित दिव्य प्रयोगों को करके लाभ प्राप्त कर सकता है.
अपने जन्म नक्षत्र के बारे में अपनी जन्मकुंडली को देखें या अपनी
जन्मतिथि और समय व् जन्म स्थान लिखकर भेजे.या अपने विद्वान ज्योतिषी से
संपर्क कर जन्म का नक्षत्र ज्ञात कर के यह सर्व सिद्ध प्रयोग करके लाभ
उठा सकते है.
विभिन्न ग्रहों से सम्बंधित पीपल वृक्ष के प्रयोग निम्न है.
(१) सूर्य:- जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान सूर्य देव है, उन व्यक्तियों
के लिए निम्न प्रयोग है.
(अ) रविवार के दिन प्रातःकाल पीपल वृक्ष की 5 परिक्रमा करें.
(आ) व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में हुआ हो उस दिन (जो कि प्रत्येक माह
में अवश्य आता है) भी पीपल वृक्ष की 5 परिक्रमा अनिवार्य करें.
(इ) पानी में कच्चा दूध मिला कर पीपल पर अर्पण करें.
(ई) रविवार और अपने नक्षत्र वाले दिन 5 पुष्प अवश्य चढ़ाए. साथ ही अपनी
कामना की प्रार्थना भी अवश्य करे तो जीवन की समस्त बाधाए दूर होने
लगेंगी.
(२) चन्द्र:- जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान चन्द्र देव है, उन
व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है.
(अ) प्रति सोमवार तथा जिस दिन जन्म नक्षत्र हो उस दिन पीपल वृक्ष को सफेद
पुष्प अर्पण करें लेकिन पहले 4 परिक्रमा पीपल की अवश्य करें.
(आ) पीपल वृक्ष की कुछ सुखी टहनियों को स्नान के जल में कुछ समय तक रख कर
फिर उस जल से स्नान करना चाहिए.
(इ) पीपल का एक पत्ता सोमवार को और एक पत्ता जन्म नक्षत्र वाले दिन तोड़
कर उसे अपने कार्य स्थल पर रखने से सफलता प्राप्त होती है और धन लाभ के
मार्ग प्रशस्त होने लगते है.
(ई) पीपल वृक्ष के नीचे प्रति सोमवार कपूर मिलकर घी का दीपक लगाना चाहिए.
(३) मंगल:- जिन नक्षत्रो के स्वामी मंगल है. उन नक्षत्रों के व्यक्तियों
के लिए निम्न प्रयोग है....
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और प्रति मंगलवार को एक ताम्बे के लोटे में जल
लेकर पीपल वृक्ष को अर्पित करें.
(आ) लाल रंग के पुष्प प्रति मंगलवार प्रातःकाल पीपल देव को अर्पण करें.
(इ) मंगलवार तथा जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 8 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए.
(ई) पीपल की लाल कोपल को (नवीन लाल पत्ते को) जन्म नक्षत्र के दिन स्नान
के जल में डाल कर उस जल से स्नान करें.
(उ) जन्म नक्षत्र के दिन किसी मार्ग के किनारे १ अथवा 8 पीपल के वृक्ष रोपण करें.
(ऊ) पीपल के वृक्ष के नीचे मंगलवार प्रातः कुछ शक्कर डाले.
(ए) प्रति मंगलवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन अलसी के तेल का दीपक
पीपल के वृक्ष के नीचे लगाना चाहिए.
(४) बुध:- जिन नक्षत्रों के स्वामी बुध ग्रह है, उन नक्षत्रों से
सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) किसी खेत में जंहा पीपल का वृक्ष हो वहां नक्षत्र वाले दिन जा कर,
पीपल के नीचे स्नान करना चाहिए.
(आ) पीपल के तीन हरे पत्तों को जन्म नक्षत्र वाले दिन और बुधवार को स्नान
के जल में डाल कर उस जल से स्नान करना चाहिए.
(इ) पीपल वृक्ष की प्रति बुधवार और नक्षत्र वाले दिन 6 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए.
(ई) पीपल वृक्ष के नीचे बुधवार और जन्म, नक्षत्र वाले दिन चमेली के तेल
का दीपक लगाना चाहिए.
(उ) बुधवार को चमेली का थोड़ा सा इत्र पीपल पर अवश्य लगाना चाहिए अत्यंत
लाभ होता है.
(५) वृहस्पति:- जिन नक्षत्रो के स्वामी वृहस्पति है. उन नक्षत्रों से
सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहियें.
(अ) पीपल वृक्ष को वृहस्पतिवार के दिन और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन
पीले पुष्प अर्पण करने चाहिए.
(आ) पिसी हल्दी जल में मिलाकर वृहस्पतिवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन
पीपल वृक्ष पर अर्पण करें
(इ) पीपल के वृक्ष के नीचे इसी दिन थोड़ा सा मावा शक्कर मिलाकर डालना या
कोई भी मिठाई पीपल पर अर्पित करें.
(ई) पीपल के पत्ते को स्नान के जल में डालकर उस जल से स्नान करें
(उ) पीपल के नीचे उपरोक्त दिनों में सरसों के तेल का दीपक जलाएं.
(६) शुक्र:- जिन नक्षत्रो के स्वामी शुक्र है. उन नक्षत्रों से सम्बंधित
व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहियें.
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष के नीचे बैठ कर स्नान करना.
(आ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और शुक्रवार को पीपल पर दूध चढाना.
(इ) प्रत्येक शुक्रवार प्रातः पीपल की 7 परिक्रमा करना.
(ई) पीपल के नीचे जन्म नक्षत्र वाले दिन थोड़ासा कपूर जलाना.
(उ) पीपल पर जन्म नक्षत्र वाले दिन 7 सफेद पुष्प अर्पित करना.
(ऊ) प्रति शुक्रवार पीपल के नीचे आटे की पंजीरी सालना.
(७) शनि:- जिन नक्षत्रों के स्वामी शनि है. उस नक्षत्रों से सम्बंधित
व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) शनिवार के दिन पीपल पर थोड़ा सा सरसों का तेल चडाना.
(आ) शनिवार के दिन पीपल के नीचे तिल के तेल का दीपक जलाना.
(इ) शनिवार के दिन और जन्म नक्षत्र के दिन पीपल को स्पर्श करते हुए उसकी
एक परिक्रमा करना.
(ई) जन्म नक्षत्र के दिन पीपल की एक कोपल चबाना.
(उ) पीपल वृक्ष के नीचे कोई भी पुष्प अर्पण करना.
(ऊ) पीपल के वृक्ष पर मिश्री चडाना.
(८) राहू:- जिन नक्षत्रों के स्वामी राहू है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित
व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 21 परिक्रमा करना.
(आ) शनिवार वाले दिन पीपल पर शहद चडाना.
(इ) पीपल पर लाल पुष्प जन्म नक्षत्र वाले दिन चडाना.
(ई) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल के नीचे गौमूत्र मिले हुए जल से स्नान करना.
(उ) पीपल के नीचे किसी गरीब को मीठा भोजन दान करना.
(९) केतु:- जिन नक्षत्रों के स्वामी केतु है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित
व्यक्तियों को निम्न उपाय कर अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहिए.
(अ) पीपल वृक्ष पर प्रत्येक शनिवार मोतीचूर का एक लड्डू या इमरती चडाना.
(आ) पीपल पर प्रति शनिवार गंगाजल मिश्रित जल अर्पित करना.
(इ) पीपल पर तिल मिश्रित जल जन्म नक्षत्र वाले दिन अर्पित करना.
(ई) पीपल पर प्रत्येक शनिवार सरसों का तेल चडाना.
(उ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की एक परिक्रमा करना.
(ऊ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की थोडीसी जटा लाकर उसे धूप दीप दिखा कर
अपने पास सुरक्षित रखना.
इस प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति उपरोक्त उपाय अपने अपने नक्षत्र के अनुसार
करके अपने जीवन को सुगम बना सकते है, इन उपायों को करने से तुरंत लाभ
प्राप्य होता है और जीवन में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती
है और जो बाधा हो वह तत्काल दूर होने लगती है. शास्त्र, आदि सभी महान
ग्रन्थ अनुसार पीपल वृक्ष में सभी देवी देवताओं का वास होता है. उन्हीं
को हम अपने जन्म नक्षत्र अनुसार प्रसन्न करते है. और आशीर्वाद प्राप्त
करते है
★★★★★★★★★★★★★★★★★★
दाएँ हाथ की अनामिका उंगली से इस प्रकार लिख दें यह मन्त्र - जीवन भर नही होगी धन की कमी

शनिवार के दिन पीपल का एक पत्ता तोड़कर उसे गंगाजल से धोकर उसके ऊपर हल्दी तथा दही के घोल से अपने दाएं हाथ की अनामिका अंगुली से ह्रीं लिखें। इसके बाद इस पत्ते को धूप-दीप दिखाकर अपने बटुए में रखे लें। प्रत्येक शनिवार को पूजा के साथ वह पत्ता बदलते रहें। यह उपाय करने से आपका बटुआ कभी धन से खाली नहीं होगा। पुराना पत्ता किसी पवित्र स्थान पर ही रखें।

मोर पंख खोलता है किस्मत के दरवाजे, आजमा कर देखें

देववाहिनी तन्त्र में मोर के पंखों का विवरण दिया गया है। समस्त शास्त्रों, ग्रंथो, वास्तु एवं ज्योतिष शास्त्र में मोर के पंख को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। घर में मोर पंख ऐसे स्थान पर लगाएं जहां से वह आसानी से दिखाई देता रहे। मोर के पंख घर में रखने का बहुत महत्त्व है इसका धार्मिक प्रयोग भी है। 

मोर पंख बहुत से देवताओं का प्रिय आभूषण है जैसे भगवान श्री कृष्ण, श्री गणेश और कार्तिकेय जी। विद्या की देवी सरस्वती मां का वाहन होने के कारण विद्यार्थी वर्ग में अपनी पुस्तकों के भीतर मोर पंख रखने की प्रथा है। मोर भगवान कार्तिकेय का भी वाहन है। कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति हैं, लेकिन उन्होंने वाहन के रूप में मोर को चुना।

1 घर में मोर पंख को रखने से शुभता का संचार होता है तथा सुख-समृद्धि और लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है।

2 घर के वातावरण में मौजूद नकारात्मक शक्तियां नष्ट होती हैं और सकारात्मक शक्तियां सक्रिय होती हैं।

3 सांप मोर पंख से भय खाते हैं क्योंकि मोर का प्रिय आहार है सांप। अत: सांप उस स्थान में नहीं जाते जहां उन्हें मोर या मोर पंख दिखाई देते हैं।

4 जो व्यक्ति सदैव अपने पास मोर पंख रखता है उस पर कोई अमंगल नहीं मंडराता।

5 मोर पंख से बने पंखे को घर के अंदर ऊपर से नीचे फहराने से घर की आसपास की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है।

6 मोर पंख को सिर पर धारण करने से विद्या लाभ प्राप्त होता है।

7 घर के दक्षिण-पूर्व में मोर पंख लगाने से बरकत में बढ़ौतरी होती है व अकस्मात दुख नहीं आते।

8 मनचाहा पैसा कमाने के बाद भी अगर पैसा नहीं टिकता तो घर में मोर पंख लगाएं।

9 अपने बच्चे को सुपर इंटैलिजेंट बनाने के लिए श्री कृष्ण को मोर पंख चढ़ाकर बच्चे के स्टडी टेबल पर स्थापित करें।
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💯✔प्राचीन भारतीय ग्रंथों में कई ऐसे मंत्र दिए गए हैं जिनकी सहायता से असंभव कार्य को भी संभव किया जा सकता है। इन मंत्रों के प्रयोग से किसी भी कठिनाई को चुटकी बजाते ही दूर करना तो मामूली चीज है ही, साथ में जन्म-जन्मान्तर के भी बंधन कट जाते हैं। आज की इस पोस्ट में हम एक ऐसे ही शक्तिशाली मंत्र के बारे में बताएंगे जिसे सुनने मात्र से ही पाप कट जाते हैं। इस मंत्र के जाप से जीवन की बड़ी से बड़ी बाधा भी आसानी से कट जाती है।

यह मंत्र निम्न प्रकार है-

नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे
सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:

जीवन में आने वाली समस्त बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए रोज सुबह इस मंत्र का जाप करना चाहिए। इस मंत्र को भगवान शिव तथा विष्णु की पूजा में इस्तेमाल किया जाता है। यह मंत्र अत्यन्त गुप्त है तथा आमतौर पर इसका उल्लेख नहीं किया जाता है।

ऐसे करें इस्तेमाल

इस मंत्र के बारे में महाभारत के अनुशासन पर्व तथा तंत्र के प्राचीन ग्रंथों में लिखा गया है। इसके इस्तेमाल की विधि भी अत्यन्त सरल है। आपको केवल इतना सा करना है कि रोज सुबह नहा-धोकर, साफ धुले हुए कपड़े पहने तथा भगवान विष्णु की पूजा करें। उन्हें पीले पुष्प, प्रसाद, चंदन आदि समर्पित करें और यथायोग्य उनकी पूजा कर उनसे इस मंत्र के जाप को आरंभ करने का आशीर्वाद लें।
इसके पश्चात एक स्वच्छ व शुद्ध आसन पर एकांत में बैठकर भगवान शिव अथवा विष्णु का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप आरंभ कर दें। एक माला रोजाना कर लें। आपके लिए इतना ही पर्याप्त रहेगा। साथ ही समस्या हल होने तक इसका जाप लगातार जारी रखें। पूजा के दौरान रोजाना किसी जीव (भिखारी, बच्चे, पशु या पक्षी) को भोजन दान दें। इसके अलावा घर पर आए साधु को भी अन्नदान दें। इसके बाद सच्चे मन से प्रार्थना कर अपने काम में जुट जाएं। अवश्य ही आपकी इच्छा पूरी होगी।

दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के उपाय

सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले इस को करना है। एक रोटी लें। इस रोटी को अपने ऊपर से 31 बार ऊवार लें। बाद में यह रोटी कुत्ते को खिला दें अथवा बहते पानी में बहा दें।

उपाय

प्रति मंगलवार और शनिवार को बजरंगबली को बिना चूना लगा हुआ एक मीठा पान चढ़ाएं। पान चढ़ाने के साथ ही तेल का दीपक लगाएं, हार-फूल अर्पित करें। प्रार्थना करें कि आपके सभी कार्य पूर्ण हो। इस प्रकार प्रार्थना के बाद हनुमान चालिसा का पाठ करें। यदि पर्याप्त समय हो तो सुंदरकांड का पाठ श्रेष्ठ है।

दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के उपाय

थाईलैंड के भिक्षुओं के पास लोगों को बुरे भाग्य से बचाने का एक अनोखा उपाय मौजूद है। ऐसे व्यक्ति भिक्षुओं के पास जाकर अपना नकली अंतिम संस्कार कराकर अपने बुरे भाग्य को हमेशा के लिए दूर भगा सकते हैं।
दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के उपाय

किसी फकीर को गुड़ तथा चना देने से सौभाग्य की प्राप्ति होगी। यदि आपका व्यापार ठीक तरह से नहीं चल रहा है तो बुधवार के दिन एक तोता पिजरे सहित खरीद कर लायें तोते को आजाद कर दे। तोता जितनी दूर उड़कर जायेगा, आपका व्यापार उतना ही अधिक चलेगा।

दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के उपाय

दांपत्य जीवन में सुख के लिये पति-पत्नी गौरी शंकर रुद्राक्ष धारण करें तो वैवाहिक जीवन सुखमय होगा। जिस कन्या का विवाह न हो रहा हो वह किसी विवाह में दूल्हा-दूल्हन के पास इस तरह खड़ी हो जाये कि दूल्हे पर फेंके गये अक्षत उसके ऊपर गिरे, शीघ्र विवाह होगा।

दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के उपाय

दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने हेतु किसी कुएं या बावड़ी के समीप पीपल का पौधा लगायें। पौधे के वृक्ष होने तक उसको सींचे, पालन-पोषण करें। ऐसा करने से दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलते देर नहीं लगती।

दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के उपाय

सुबह दैनिक क्रिया कलापों से निवृत्त होकर गणेश स्तोत्र का ऊनी आसन पर बैठकर पाठ करने से कार्यों की सफलता सुनिश्चित होती है। इससे व्यक्ति की मानसिक शक्ति असाधारण रूप से बढ़ती है और सुदृढ़ होती है।

दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के उपाय

सोमवार को दर्पण में अपना चेहरा देखकर जायें। मंगलवार को मिष्ठान्न, गुड़, चीनी, मिठाई आदि खाकर जायें। गुरुवार को सरसों के कुछ दाने मुख में डालकर जायें। शुक्रवार को दही खाकर जाना चाहिये। शनिवार को अदरक और घी खाकर जाना चाहिये। बुधवार के दिन हरे धनिये के पत्ते खाकर जाना लाभदायक रहता है।

त्रिदेव और नवग्रह स्मरणं

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे ममसुप्रभातम् ॥  श्लोक का अर्थ: ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य, चन्द्रमा, मङ्गल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु... ये सभी मेरे प्रातःकाल को मंगलमय करें।

धर्म में शनि की साढ़ेसाती का भय सभी को रहता है. जब भी लोगों के साथ बुरा होने लगता है तो उनको लगता है कि उनकी साढ़ेसाती चल रही है. कई बार पंडित भी शनि दोष की बात कहते हैं, लेकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है. शनि देव न्याय और कानून के देवता हैं. आज हम आपको पीड़ादायक शनि दशा, साढ़े साती या शनि दोष शांति के लिए पांच उपाय बताएंगे. इन उपायों से आप शनि के कारण हो रहे नुकसान और शनि दोष से बच सकते हैं.

पंडित और शास्त्रों के अनुसार शनिदेव के मंत्र का जाप करने से शनि दोष कम होता है. शनि देव के मंत्र, ऊं प्रां प्रीं प्रौं स: शनश्चरायै नम: और ऊं शन: शनश्चरायै नम: हैं.शनि देव की कृपा पाने एक और भी तरीका है. पवन पुत्र हनुमान जी की भक्ति आपको साढ़ेसाती के प्रकोप से बचा सकती है. तो दिल लगा के हनुमान जी की भक्ति करें.

शनि की बुरी दशा चलने पर कुंडली दिखाकर नीलम धारण करने की बात भी कही जाती है, लेकिन नीलम जांच करना जरूरी होता है. नीलम धारण करने के बाद आपके साथ अच्छा हुआ तो नीलम आपके लिए अच्छा है और नुक्सान हुआ तो आपके लिए नीलम धारण करना सही नहीं है. नीलम धारण करने से पहले उसकी शुद्धिकरण और पूजा करने की बात भी कही जाती है.

अगर आप पर शनि की बुरी दशा चल रही है तो आप शनि-शांति के लिए महामृत्युंजय जाप, शनि मंत्र का जाप, काली चालीसा, श्रीदुर्गा सप्तशती का अर्गला स्तोत्र का पाठ का जाप, शनि चालीसा, शनि स्तोत्र का पाठ, सात बार या तीन बार हनुमान चालीसा, सुंदरकांड का पाठ, हनुमानजी की काले तिलों से पूजा, शनि मंत्र व हनुमानजी का मंत्र कर सकते हैं.

शनि की बुरी दशा को खत्म करने के लिए आप चावल, तिल, उड़द, लोहा, तेल, काले वस्त्र, गुड, खाना, रोटी, तिल लड्डू, काला चना, लोहे की कोई वस्तु दान करें इससे आपको लाभ मिलेगा. शनि देव को खुश करने के लिए गाय और कुत्ते को रोटी खिलाएं. चींटी को आंटा और शक्कर खिलएं. साथ ही गरीबों की सेवा करें

अघोर शिव पूजन कैसे करें इस पूजा को

इसके लिए सबसे पहले आपको शिवलिंग का निर्माण करना होगा। इस निर्माण में के लिए आपको शमशान की मिटटी, तथा भस्म, श्यामा (काली) गाय का गोबर दूध और घी, गंगा जल, शहद बेलपत्र धतूर फल और फूल स्वेतार्क के पुष्प, भांग रुद्राक्ष की माला, लाल आसन, लाल वस्त्र की आवश्यकता होगी।
इन सभी सामग्री को एकत्रित कर जहां शिवलिंग का निर्माण होना है उसे गोबर से लीप कर पवित्र कर लें। स्नान-ध्यान आदि से निवृत्त होकर मिटटी, भस्म और गोबर को गंगा जल से भिगोकर एक 16 इंच लम्बा और पांच इंच मोटाई (गोलाई) के शिवलिंग का निर्माण करें!

शिवलिंग की पूजा कैसे करें

ध्यान रखें इस पूजा को पूर्णिमा को आरंभ करना होता है अतः किसी कुशल ज्योतिषी से शुभ मुहूर्त निकलवा लें। सबसे पहले भगवान गणेश, माता पार्वती तथा अपने गुरु की पूजा कर उनसे आशीर्वाद लें। तत्पश्चात साफ, धुले हुए पीले वस्त्र पहने कर उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पीले आसन पर बैठें तथा संकल्प ले कि मैं इतने (उदाहरण के तौर पर 11000, 31000, 51000 या सवा लाख आदि) जाप करूंगा। वैसे पूरा विधान 5 लाख जप से होता है।

इसके बाद अपने गुरुमंत्र की 4 माला जप करें। साथ ही गौरी गणेश की स्थापना सुपारी में कलावा लपेटकर करें और पुजन संपन्न करें तथा अपने दाहिने ओर भैरव की स्थापना करें यदि आपके पास भैरव यंत्र या गुटिका हो तो अति उत्तम या फिर सुपारी का भी उपयोग कर सकते हैं।

अब भगवान् भैरव का पूजन सिन्दूर और लाल फूल से करें तथा गुड का भोग लगाएं। उनके सामने एक सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करें जो मन्त्र जप तक जलता रहे। अब अपने बायीं ओर एक घी का दीपक प्रज्वलित करें जो कि पूरे साधना काल में अखंड जलता रहे।

अब निम्न मंत्र का प्रयोग करते हुए भगवान शिव की पूजा करें...

ध्यायेन्नितय् महेशं रजतगिरिनिभं चारूचंद्रावतंसं,
रत्नाकल्पोज्ज्व्लाङ्ग परशुमृगवराभीति हस्तं प्रसन्नम्
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैव्याघ्रकृत्तिं वसानं,
विश्ववाध्यम विश्ववध्यम निखिल भयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं
ॐ श्री उमामहेश्वराभ्यां नमः आवाहयामि, स्थापयामि पूजयामि।।

इसके शिव का पूजन पंचामृत, गंगाजल और फूल और नैवेध्य आदि से करें और एक पंचमुखी रुद्राक्ष की छोटे दानों की माला शिव को पहना दें और दूसरी माला से जप करें। साधना के संपन्न होते ही ये माला दिव्य माला हो जाएगी जो जीवनपर्यंत आपके काम आएगी। अब एक पाठ रुद्राष्टक का करें व मन्त्र जप की सिद्धि हेतु प्रार्थना करें अब अपनी संकल्प शक्तिअनुसार जप करें।

मंत्र निम्न प्रकार है-

ॐ नम: शिवाय

पूजा समाप्त होने के बाद शिव से ऐसे वर मांगे

मंत्र जाप पूरा होने के बाद एक पाठ रुद्राष्टक का और पुनः गुरु मन्त्र ! पूरे दिन आपका यही क्रम होना चाहिए। किसी भी साधना में नियम संयम का पालन पूरी दृढता होना ही चाहिए न कि अपने अनुसार कम या ज्यादा। इस मंत्र साधना में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन, भूमि शयन, क्षौर कर्म आदि वर्जित आदि है, इनका अवश्य पालन करना है।

सावधानी

यह एक अघोर साधना है। इस साधना के लिए किसी योग्य तथा कुशल गुरु का होना अत्यावश्यक है। गुरु की देखरेख में ही इस साधना को सम्पन्न करें।
इस साधना क्रम को पूर्णिमा से प्रारम्भ कर पूरे संकल्प तक संपन्न करना है अतः जो भी साधना का संकल्प लें अच्छे से सोच समझकर करें ताकि बीच में क्रम नहीं टूटे।
पान को हिंदू धार्मिक शास्त्रों में पवित्र माना जाता है। किसी भी तरह के शुभ कामों में पान के पत्तों को प्रयोग किया जाता है। पूजा व पाठ में पान के पत्तों को बहुत अधिक महत्व होता है। शनिवार या मंगलवार के दिन आप एक पान जिसमें गुलकंद, सौंफ और कत्था डला हुआ हो इसे हनुमान जी को चढ़ाएं।
और अपने मन में अपनी सफलता की कामना करें। एैसा करने से आपकी जीवन की मुख्य समस्या खत्म हो जाएगी।

होलिका दहन के समय में घर के हर इंसान को देसी घी में भिगोया हुआ बताशा और
लौंग और एक पान का पत्ता चढ़ाएं। और इसके बाद होलीका की 11 परिक्रमा करके इसमें एक सूखा हुआ नारियल चढ़ा दें।
इस उपाय से घर पर कभी किसी के पास पैसों की कमी नहीं रहती है। और घर का माहौल
शांति में रहता है।

तांत्रिक असर खत्म करने के लिए
यदि किसी ने आपके घर या कार्यस्थल पर किसी भी तरह का कोई काला जादू या तंत्र किया है तो आप साबुत डंडीदार आठ पान के पत्ते और पांच पीपल के पत्तों को एक धागे से बांध दें और अपने घर या दुकान पर पूर्व दिशा में इसे बांध दें।
इस उपाय को कम से कम 5 शनिवार तक लगातार करना है। सुखे हुए पत्तों को बहते हुए जल में प्रभावित कर दें।

रूके हुए काम

यदि आपके बनते बनते हुए काम बिगड़ जाते हों तो आप एक पान का पत्ता अपने जेब में डालकर घर से जांए। एैसा करने से आपके बिगड़े हुए काम बनने लगेगें

विवाह पक्का करने के लिए

यदि आपको घर में लड़के वाले देखने आते हैं और आप रिश्ता पक्का करना चाहते हैं तो लड़की पान के पत्ते की ढंडी को घिस लें और उसका तिलक लगाएं। एैसा करने से विवाह हेतु आए लोग आपकी तरफ आकर्षित हो जाएगें।

पति को आकर्षित करने के लिए

यदि पति को अपने वश में करना चाहते हैं तो एक पान के पत्ते में केसर औश्र चंदन का पाउडर मिला लें और देवी दुर्गा के सामने चंडी स्त्रोत का 43 दिन तक पाठ करें इस उपाय से आप अपने पति को अपने वश में कर सकती हो।

बारिश का पानी सभी मनोकामना पूर्ण करता हैं ।
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✴अगर आप बारिश का पानी इकट्टा करके सभाल कर रखते हे और इसको अगर आप ईशान कोण में रखते हे तो अचानक धन लाभ होता हैं ।
✴बारिश के पानी से अगर आप विष्णु और लक्ष्मी का अभिषेक एकादशी को करते हे तो व्यापार में फायदा तो होता ही हे और परिवार में प्रेम बढ़ता हैं ।

✴अगर बारिश के पानी से गणपति का अभिषेक करते हे तो बुद्धि तेज होती हे।विवाह योग शीघ् बनता हे।
✴ अगर कोई जातक ज्यादा बीमार हे तो उसको रोज महामृत्युंजय मन्त्र का जप करते हुए बारिश का जल औषधि के रूप में पीना चाहिए।

✴ अगर कर्ज ज्यादा हो रहा हे तो बारिश के पानी में दूध डाल कर स्नान करना चाहिए।
✴ सावन के महीने में बारिश के जल से जो शिवजी का जलाभिषेक करते हे तो उनकी सारी परेशानियां दूर होती हैं .....

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