टोटके 5 PARASHMUNI

ओम् एं ह्रीं श्रीं क्लीं चंद्रमुखी सौभाग्यदायिनी अक्छयभंडागार-भरपूरण मम् रिद्धी-सिद्धी ,सुख-समृद्धी देहि-देहि मम् गृहे आगच्छ स्वाहा!"
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💯✔गुम वस्तु की प्राप्ति हेतु

जीवन में भूलना, गुमना, चले जाना, बलात ले लेना अथवा लेने के बाद कोई भी वस्तु वापस नहीं मिलना ऐसी घटनाएँ स्वाभाविक रूप से घटि‍त होती रहती है। ऐसी स्थिति में कार्तविर्यार्जुन राजा जो हैहय वंश के थे तथा भगवान विष्‍णु के सुदर्शन चक्र के अवतार माने जाते हैं, इनकी साधना करने से इस प्रकार की समस्या से तुरंत मुक्ति मिल जाती है। 

उनकी साधना के लिए दीपक लगाकर पूर्व अथवा उत्तर दिशा की अओर मुँह करके बैठ कर अपनी कामना को उच्चारण कर भगवान विष्‍णु के सुदर्शन चक्रधारी रूप का ध्यान करें। चक्र को रक्त वर्ण में ध्याएँ एवं इस मंत्र का विश्वासपूर्वक जप करें। 

मंत्र :- ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नामा राजा बाहु सहस्त्रवान। 
यस्य स्मरेण मात्रेण गतं नष्‍टं च लभ्यते ह्रीं ॐ।। 
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💯✔फंसा हुआ धन निकालने के उपाय

अगर आपका किसी व्यक्ति से अपना धन प्राप्त करना है, लेकिन वह आपको लगातार टालता जा रहा है तो डूबा हुआ धन वसूलने के टोटके को करें. इस उपाय को करने के लिए आपको कपूर का काजल बनाना होगा. शुक्रवार के दिन कपूर जला दें और उसके ऊपर कोई बर्तन उल्टा करके रख दें. उस बर्तन पर काजल इकठ्ठा हो जायेगा| अब आप इस काजल से किसी भोजपत्र पर जिस व्यक्ति से पैसा लेना है उसका नाम लिख दें. और 7 बार हल्की थपकी मारकर आपका धन वापिस देने के लिए कहें. अगर उस व्यक्ति के घर जाना संभव हो तो उसके घर जाकर उसे धैर्य पूर्वक पैसे लौटने के लिए कहें. ये विधि करने के बाद भोजपत्र को तिजोरी के नीचे दबाकर रख दें. ये धन प्राप्ति का अचूक उपाय है. आपको इससे शीघ्र ही सफलता मिल जाएगी|
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💯✔ शास्त्र के अंतर्गत तांत्रिक क्रियाओं में एक ऐसे पत्थर का उपयोग किया जाता है जो दिखने में बहुत ही साधारण होता है लेकिन इसका प्रभाव असाधारण होता है। इस पत्थर को गोमती चक्र कहते हैं। गोमती चक्र कम कीमत वाला एक ऐसा पत्थर है जो गोमती नदी में मिलता है। गोमती चक्र के साधारण तंत्र उपयोग इस प्रकार हैं- - पेट संबंधी रोग होने पर 10 गोमती चक्र लेकर रात को पानी में डाल दें तथा सुबह उस पानी को पी लें। इससे पेट संबंध के विभिन्न रोग दूर हो जाते हैं। - धन लाभ के लिए 11 गोमती चक्र अपने पूजा स्थान में रखें। उनके सामने श्री नम: का जप करें। इससे आप जो भी कार्य या व्यवसाय करते हैं उसमें बरकत होगी और आमदनी बढऩे लगेगी। - गोमती चक्रों को यदि चांदी अथवा किसी अन्य धातु की डिब्बी में सिंदूर तथा चावल डालकर रखें तो ये शीघ्र शुभ फल देते हैं। - होली, दीवाली तथा नवरात्र आदि प्रमुख त्योहारों पर गोमती चक्र की विशेष पूजा की जाती है। अन्य विभिन्न मुहूर्तों के अवसर पर भी इनकी पूजा लाभदायक मानी जाती है। सर्वसिद्धि योग तथा रविपुष्य योग पर इनकी पूजा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।

👉 धन प्राप्ति के बजरंगबली के 4 चमत्कारिक टोटके

बजरंगबली चमत्कारिक सफलता देने वाले देवता माने गए हैं। हनुमान जयंती, मंगलवार अथवा शनिवार के दिन उनके टोटके विशेष रूप से धन प्राप्ति के लिए किए जाते हैं। साथ ही यह टोटके हर प्रकार का अनिष्ट भी दूर करते हैं।

टोटका 1. - कच्ची धानी के तेल के दीपक में लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। संकट दूर होगा और धन भी प्राप्त होगा।

टोटका 2. - अगर धन लाभ की स्थितियां बन रही हो, किन्तु फिर भी लाभ नहीं मिल रहा हो, तो मंगलवार या हनुमान जयंती के दिन गोपी चंदन की नौ डलियां लेकर केले के वृक्ष पर टांग देनी चाहिए। स्मरण रहे यह चंदन पीले धागे से ही बांधना है।

टोटका 3. - एक नारियल पर कामिया सिन्दूर, मौली, अक्षत अर्पित कर पूजन करें। फिर हनुमान जी के मन्दिर में चढ़ा आएं। धन लाभ होगा।

टोटका 4. - पीपल के वृक्ष की जड़ में तेल का दीपक जला दें। फिर वापस घर आ जाएं एवं पीछे मुड़कर न देखें। धन लाभ होगा।

हनुमानजी की पूजा-अर्चना और व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन कर संयमपूर्वक रहना चाहिए।

ध्यान रहे जो भी प्रसाद हनुमान को चढ़ाया जाए वह शुद्ध होना चाहिए।

हनुमानजी की पूजा में घी अथवा चमेली के तेल का दीपक ही उत्तम होता है।

प्रभु हनुमानजी को लाल फूल प्रिय हैं। उन्हें पूजा में लाल फूल ही चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं।

हनुमानजी की मूर्ति को जल व पंचामृत से स्नान कराने के बाद सिंदूर में तिल का तेल मिलाकर लगाने से वे प्रसन्न होते हैं।

हनुमानजी की साधना हमेशा पूर्व दिशा की ओर मुंह करके ही करना चाहिए।
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💯✔ गाय का दूध, मूत्र और गोबर ही नहीं, दुर्लभ गोरोचन भी है उपयोगी!

पंच गकारों (गुरु, गौ, गंगा, गीता और गायत्री) में से गाय एक प्रमुख गकार हैं. आधार है सनातन धर्म का. गाय से प्राप्त प्रत्येक पदार्थ अद्भुत है. अभी तक आपने सिर्फ गाय के दूध, मूत्र और गोबर की उपयोगिता के बारे में जाना है. क्या आप जानते हैं गोरोचन जिसकी गंध कस्तूरी से हज़ार गुना ज्यादा है, के एक कण का स्पर्श चित्त को शांत कर देता है.

जी हाँ ये मात्र सूचना नहीं है ज्ञान है श्रुति (आगम -निगम ,वेद पुराण) जिसका प्रमाण है. यूं तो गाय का सबसे अद्भुत पदार्थ उसका गोबर है. पूरे संसार में गाय का गोबर ही अकेला ऐसा पदार्थ है जो अपने तापमान पर स्थिर रहता है. राजस्थान की कितनी ही जगहों पर ग्रीष्म में तापमान (४५ -४९ ) सेल्सियस तक पहुँच जाता है. गोबर के ऊपर एक श्वेत झिल्ली रहती है. यह ताप निरोधी है. इसलिए गोबर उसी तापमान पर रहता है अपना आंतरिक ताप बनाये रहता है.

इस झिल्ली की महिमा वेदों ने गाई  है. विशाल मात्रा में गोबर होने पर इस झिल्ली के प्रभाव से बादल वहीं के वहीं ठहर जाते हैं. यह झिल्ली बादलों में एक संतुलन बनाकर वर्षा का नियमन  करती है रेगुलेट करती है वर्षा को.

आप को ज्वर है तो गाय को छूकर देखो. गाय के शुद्ध घृत, उसके गोबर और मूत्र के बिना यज्ञ नहीं हो सकता. धरती और अंबर  का संतुलन है यज्ञ. यज्ञ से ओज़ोन की परत (ओज़ोन मंडल )स्थिर रहती  है, छीजता नहीं है, ओज़ोन कवच, भूकम्प नहीं आते हैं. पृथ्वी के उत्पादों से से प्राप्त  तमाम रसों में संतुलन बना रहता है.

मदिरा की गंध देवताओं को मान्य नहीं है यज्ञ का धुआं  मान्य है. भैंस के घृत से यज्ञ नहीं हो सकता. ऐसा यज्ञ जड़ता बढ़ाएगा. तमोगुण  बढ़ाएगा. भैस का घी और दूध कामोत्तेजक है. विषय आसक्ति, संसार आसक्ति, वासना को बढ़ाता है. यज्ञ की पहली शर्त है, गाय.

प्रति सौ ग्राम गाय का शुद्ध घी हवन में होम करने से दस हज़ार लीटर ऑक्सीजन वायुमंडल में दाखिल होती है. कलकत्ता के पर्यावरण विभाग ने उक्त तथ्य की पुष्टि की है.

गाय से प्राप्त छाछ (शीत, मठ्ठा, बटर मिल्क ) शरीर से टॉक्सिन्स को बाहर निकालता है. शिरोवेदन (तेज़ सर का दर्द ) गाय को छूने से थोड़ी ही देर में भाग जाता है. इसीलिए गौ ग्रास निकालने का विधान रखा गया ताकि आप किसी भी विधि गाय के नज़दीक पहुंचें.

कभी अपने दोनों हाथों में गुड़ लेकर गाय को खिलाइये - एक पॉजिटिव एनर्जी आपको उत्प्राणित कर देगी. तरोताज़ा कर देगी. गाय की पूंछ से सकारात्मक ऊर्जा रिसती है. इसीलिए गाय की पूंछ से पंखा झल कर नज़र उतारी जाती है. कृष्ण जब पूतना का वध कर देते हैं तब गोपियाँ उन्हें गौशाला में लेजाकर गोबर से स्नान करके  गाय की पूंछ का झाड़ा देकर उनकी नज़र उतारती हैं.

ये मात्र कथाएँ नहीं हैं. वेदान्त का दर्शन हैं. 

इसके अलावा गोरोचन सबसे महंगा और तीक्ष्ण गंध पदार्थ है इसकी अतिरिक्त गंध आप बर्दाश्त नहीं कर सकते.

जांगम द्रव्यों में गोरोचन आज के जमाने में एक दुर्लभ वस्तु हो गया है. वैसे नकली गोरोचन पूजा-पाठ की दुकानों में भरे पड़े हैं. छोटी-छोटी प्लास्टिक की शीशियों में उपलब्ध होने वाले पीले से पदार्थ को गोरोचन से दूर का भी सम्बन्ध नहीं है.

गोरोचन मरी हुयी गाय के शरीर से प्राप्त होता है. कुछ विद्वान का मत है कि यह गाय के मस्तक में पाया जाता है, किन्तु वस्तुतः इसका नाम "गोपित्त" है, यानी कि गाय का पित्त. शरीर में सर्वव्यापी पित्त का मूल स्थान पित्ताशय(Gallbladar) होता है. पित्ताशय की पथरी आजकल की आम बीमारी जैसी है.

मनुष्यों में इसे शल्यक्रिया द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है. गाय की इसी बीमारी से गोरोचन  प्राप्त होता है. वैसे स्वस्थ गाय में भी किंचित मात्रा में पित्त तो होगा ही- उसके पित्ताशय में, जिसे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है. मस्तक के एक खास भाग पर भी यह पदार्थ- गोल, चपटे, तिकोने, लम्बे, चौकोर- विभिन्न आकारों में एकत्र हो जाता है, जिसे चीर कर निकाला जा सकता है. हल्की लालिमायुक्त पीले रंग का यह एक अति सुगन्धित पदार्थ है, जो मोम की तरह जमा हुआ सा होता है. ताजी अवस्था में लस्सेदार, और सूख जाने पर कड़ा- कंकड़ जैसा हो जाता है.

गोपित्त, शिवा, मंगला, मेध्या, भूत-निवारिणी, वन्द्य आदि इसके अनेक नाम हैं, किन्तु सर्वाधिक प्रचलित नाम गोरोचन ही है. शेष नाम साहित्यिक रुप से गुणों पर आधारित हैं. गाय का पित्त- गोपित्त. शिवा- कल्याणकारी. मंगला- मंगलकारी. मेध्या- मेधाशक्ति बढ़ाने वाला. भूत-निवारिणी- भूत से त्राण दिलाने वाला. वन्द्य- पूजादि अति वन्द्य- आदरणीय.

आयुर्वेद और तन्त्र शास्त्र में इसका विशद प्रयोग-वर्णन है. अनेक औषधियों में इसका प्रयोग होता है. यन्त्र-लेखन, तन्त्र-साधना, तथा सामान्य पूजा में भी अष्टगन्ध-चन्दन-निर्माण में गोरोचन की अहम् भूमिका है. हालाकि विभिन्न देवताओं के लिए अलग-अलग प्रकार के अष्टगन्ध होते हैं, किन्तु गोरोचन का प्रयोग लगभग प्रत्येक अष्टगन्ध में विहित है.

गोरोचन को रविपुष्य योग में साधित करना चाहिए. सुविधानुसार कभी भी प्राप्त हो जाय, किन्तु साधना हेतु शुद्ध योग की अनिवार्यता है. साधना अति सरल है- विहित योग में सोने या चांदी, अभाव में तांबे के ताबीज में शुद्ध गोरोचन को भर कर यथोपलब्ध पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करें. तदुपरान्त अपने इष्टदेव का सहस्र जप करें,साथ ही शिव / शिवा के मंत्रो का भी एक-एक हजार जप अवश्य कर लें.इस प्रकार साधित गोरोचन युक्त ताबीज को धारण करने मात्र से ही सभी मनोरथ पूरे होते है- षटकर्म-दशकर्म आदि सहज ही सम्पन्न होते हैं. गोरोचन में अद्भुत कार्य क्षमता है. सामान्य मसी-लिखित यन्त्र की तुलना में असली गोरोचन द्वारा तैयार की गयी मसी से कोई भी यन्त्र-लेखन का आनन्द ही कुछ और है. ध्यातव्य है कि कर्म शुद्धि, भाव शुद्धि को साथ द्रव्य शुद्धि भी अनिवार्य है.

गोरोचन के कतिपय तान्त्रिक प्रयोग-

साधित गोरोचन युक्त ताबीज को घर के किसी पवित्र स्थान में रख दें, और नियमित रुप से, देव-प्रतिमा की तरह उसकी पूजा-अर्चना करते रहें. इससे समस्त वास्तु दोषों का निवारण होकर घर में सुख-शान्ति-समृद्धि आती है.

नवग्रहों की कृपा और प्रकोप से सभी अवगत हैं. इनक प्रसन्नता हेतु जप-होमादि उपचार किये जाते हैं. किन्तु गोरोचन के प्रयोग से भी इन्हें प्रसन्न किया जा सकता है. साधित गोरोचन को ताबीज रुप में धारण करने, और गोरोचन का नियमित तिलक लगाने से समस्त ग्रहदोष नष्ट होते हैं.

प्रेतवाधा युक्त व्यक्ति को गुरुपुष्य योग में साधित गोरोचन से भोजपत्र पर सप्तशती का "द्वितीय बीज" लिख कर ताबीज की तरह धारण करा देने से विकट से विकट प्रेतवाधा का भी निवारण हो जाता है.

मृगी, हिस्टीरिया आदि मानस व्याधियों में गोरोचन(रविपुष्य योग साधित) मिश्रित अष्टगन्ध से नवार्ण मंत्र लिख कर धारण कर देने से काफी लाभ होता है.

उक्त बीमारियों में गोरोचन को गुलाबजल में थोड़ा घिसकर तीन दिनों तक लागातार तीन-तीन बार पिलाने से अद्भुत लाभ होता है.यह कार्य किसी रवि या मंगलवार से ही प्रारम्भ करना चाहिए.

षटकर्म के सभी कर्मों में तत् तत् यंत्रों का लेखन गोरोचन मिश्रित मसी से करने से चमत्कारी लाभ होता है.

धनागम की कामना से गुरुपुष्य योग में विधिवत साधित गोरोचन का चांदी या सोने के कवच में आवेष्ठित कर नित्य पूजा-अर्चना करने से अक्षय लक्ष्मी का वास होता है.

विभिन्न सौदर्य प्रसाधनों में भी गोरोचन का प्रयोग अति लाभकारी है. हल्दी,मलयागिरी चन्दन, केसर, कपूर, मंजीठ और थोड़ी मात्रा में गोरोचन मिलाकर गुलाबजल में पीसकर तैयार किया गया लेप सौन्दर्य कान्ति में अद्भुत विकास लाता है. इस लेप को चेहरे पर लगाने के बाद घंटे भर अवश्य छोड़ दिया जाय ताकि शरीर की उष्मा से स्वतः सूखे.
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💯✔ हनुमान जी की किसी भी मंत्र जाप से पहले निचे दिए कवच को सिद्ध कर ले ! उनके किसी भी मंत्र जाप से पूर्व स्वयं की रक्षा के लिए इस कवच को पड़कर अपने छाती पर फूक मरे ! फिर आप उनके किसी भी मंत्र का अनुष्ठान कर सकते है !  हनुमान लाला के किसी भी मंत्र की साधना के पहले हनुमान जी को चोला चड़वाए !
आसान लाल
ब्रम्हचर्य का पालन करे
मासाहार न करे
माला मूंगे की रुद्राक्ष की या चन्दन की प्रयोग में ले
साधना के पूर्ण होते ही नारियल फूल प्रसाद भेट चढ़ाये

रक्षा-विधानः  रक्षा-कारक  शाबर मन्त्र
“श्रीरामचन्द्र-दूत हनुमान ! तेरी चोकी – लोहे का खीला, भूत का मारूँ पूत । डाकिन का करु दाण्डीया । हम हनुमान साध्या । मुडदां बाँधु । मसाण बाँधु । बाँधु नगर की नाई । भूत बाँधु । पलित बाँधु । उघ मतवा ताव से तप । घाट पन्थ की रक्षा – राजा रामचन्द्र जी करे ।
बावन वीर, चोसठ जोगणी बाँधु । हमारा बाँधा पाछा फिरे, तो वीर की आज्ञा फिरे । नूरी चमार की कुण्ड मां पड़े । तू ही पीछा फिरे, तो माता अञ्जनी का दूध पीया हराम करे । स्फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा ।”

विधिः- उक्त मन्त्र का प्रयोग कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही करें । प्रयोग हनुमान् जी के मन्दिर में करें । पहले धूप-दीप-अगरबत्ती-फल-फूल इत्यादि से पूजन करें । सिन्दूर लगाएँ, फिर गेहूँ के आटे का एक बड़ा रोट बनाए । उसमें गुड़ व घृत मिलाए । साथ ही इलायची-जायफल-बादाम-पिस्ते इत्यादि भी डाले तथा इसका भोग लगाए । भोग लगाने के बाद मन्दिर में ही हनुमान् जी के समक्ष बैठकर उक्त मन्त्र का १२५ बार जप करें । जप के अन्त में हनुमान् जी के पैर के नीचे जो तेल होता है, उसे साधक अँगुली से लेकर स्वयं अपने मस्तक पर लगाए । इसके बाद फिर किसी दूसरे दिन उसी समय उपरोक्तानुसार पूजा कर, काले डोरे में २१ मन्त्र और पढ़कर गाँठ लगाए तथा डोरे को गले में धारण करे । मांस-मदिरा का सेवन न करे । इससे सभी प्रकार के वाद-विवाद में जीत होती है । मनोवाञ्छित कार्य पूरे होते हैं तथा शरीर की सुरक्षा होती है ।

हनुमत् ‘साबर’ मन्त्र प्रयोग

।। श्री पार्वत्युवाच ।।

हनुमच्छावरं मन्त्रं, नित्य-नाथोदितं तथा ।
वद मे करुणा-सिन्धो ! सर्व-कर्म-फल-प्रदम् ।।

।। श्रीईश्वर उवाच ।।

आञ्जनेयाख्यं मन्त्रं च, ह्यादि-नाथोदितं तथा ।
सर्व-प्रयोग-सिद्धिं च, तथाप्यत्यन्त-पावनम् ।।

।। मन्त्र ।।

“ॐ ह्रीं यं ह्रीं राम-दूताय, रिपु-पुरी-दाहनाय अक्ष-कुक्षि-विदारणाय, अपरिमित-बल-पराक्रमाय, रावण-गिरि-वज्रायुधाय ह्रीं स्वाहा ।।”

विधिः- ‘आञ्जनेय’ नामक उक्त मन्त्र का प्रयोग गुरुवार के दिन प्रारम्भ करना चाहिए। श्री हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के सम्मुख बैठकर दस सहस्त्र जप करे। इस प्रयोग से सभी कामनाएँ पूर्ण होती है। मनोनुकूल विवाह-सम्बन्ध होता है। अभिमन्त्रित काजल रविवार के दिन लगाना चाहिए। अभिमन्त्रित जल नित्य पीने से सभी रोगों से मुक्त होकर सौ वर्ष तक जीवित रहता है। इसी प्रकार आकर्षण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण आदि सभी प्रयोग उक्त मन्त्र से किए जा सकते हैं।

।। मन्त्र ।।

“ॐ नमो भगवते हनुमते, जगत्प्राण-नन्दनाय, ज्वलित-पिंगल-लोचनाय, सर्वाकर्षण-कारणाय ! आकर्षय आकर्षय, आनय आनय, अमुकं दर्शय दर्शय, राम-दूताय आनय आनय, राम आज्ञापयति स्वाहा।”

विधिः- उक्त ‘केरल′- मन्त्र का जप रविवार की रात्रि से प्रारम्भ करे। प्रतिदिन दो हजार जप करे। बारह दिनों तक जप करने पर मन्त्र सिद्धि होती है। उसके बाद पाँच बालकों की पूजा कर उन्हें भोजनादि से सन्तुष्ट करना चाहिए। ऐसा कर चुकने पर साधक को रात्रि में श्री हनुमान जी स्वप्न में दर्शन देंगे और अभीष्ट कामना को पूर्ण करेंगे। इस मन्त्र से ‘आकर्षण’ भी होता है। यथा-

।। मन्त्र ।।

“ॐ यं ह्रीं वायु-पुत्राय ! एहि एहि, आगच्छ आगच्छ, आवेशय आवेशय, रामचन्द्र आज्ञापयति स्वाहा ।”

विधिः- ‘कर्णाटक’ नामक उक्त मन्त्र को, पूर्ववत् पुरश्चरण कर, सिद्ध कर लेना चाहिए। फिर यथोक्त-विधि से ‘आकर्षण’ प्रयोग करे। यथा-

।। मन्त्र ।।

ॐ नमो भगवते ! असहाय-सूर ! सूर्य-मण्डल-कवलीकृत ! काल-कालान्तक ! एहि एहि, आवेशय आवेशय, वीर-राघव आज्ञापयति स्वाहा।”
विधिः- उक्त ‘आन्ध्र’ मन्त्र के पुरश्चरण की भी वही विधि है। सिद्ध-मन्त्र द्वारा सौ बार अभिमन्त्रित भस्म को शरीर में लगाने से सर्वत्र विजय मिलती है। 

।। मन्त्र ।।

“ॐ नमो भगवते अञ्जन-पुत्राय, उज्जयिनी-निवासिने, गुरुतर-पराक्रमाय, श्रीराम-दूताय लंकापुरी-दहनाय, यक्ष-राक्षस-संहार-कारिणे हुं फट्।”

विधिः- उक्त ‘गुर्जर’ मन्त्र का दस हजार जप रात्रि में भगवती दुर्गा के मन्दिर में करना चाहिए। तदन्तर केवल एक हजार जप से कार्य-सिद्धि होगी। इस मन्त्र से अभिमन्त्रित तिल का लड्डू खाने से और भस्म द्वारा मार्जन करने से भविष्य-कथन करने की शक्ति मिलती है। तीन दिनों तक अभिमन्त्रित शर्करा को जल में पीने से श्रीहनुमानजी स्वप्न में आकर सभी बातें बताते हैं, इसमें सन्देह नहीं यथा-

संकट से रक्षा के लिए कुछ विशिष्ट प्रयोग

१. भयंकर,आपति आने पर हनुमान जी का ध्यान करके रूद्राक्ष माला पर १०८ बार जप करने से कुछ ही दिनों में सब कुछ सामान्य हो जाता है।
मंत्र:-त्वमस्मिन् कार्य निर्वाहे प्रमाणं हरि सतम।
तस्य चिन्तयतो यत्नों दुःख क्षय करो भवेत्॥
२. शत्रु,रोग हो या दरिद्रता,बंधन हो या भय निम्न मंत्र का जप बेजोड़ है,इनसे छुटकारा दिलाने में यह प्रयोग अनूभुत है।नित्य पाँच लौंग,सिनदुर,तुलसी पत्र के साथ अर्पण कर सामान्य मे एक माला,विशेष में पाँच या ग्यारह माला का जप करें।कार्य पूर्ण होने पर १०८बार,गूगूल,तिल धूप,गुड़ का हवन कर लें।आपद काल में मानसिक जप से भी संकट का निवारण होता है।
मंत्र:-मर्कटेश महोत्साह सर्व शोक विनाशनं,शत्रु संहार माम रक्ष श्रियम दापय में प्रभो॥
३. अनेकानेक रोग से भी लोग परेशान रहते है,इस कारण श्री हनुमान जी का तीव्र रोग हर मंत्र का जप करनें,जल,दवा अभिमंत्रित कर पीने से असाध्य रोग भी दूर होता है। तांबा के पात्र में जल भरकर सामने रख श्री हनुमान जी का ध्यान कर मंत्र जप कर जलपान करने से शीघ्र रोग दूर होता है।श्री हनुमान जी का सप्तमुखी ध्यान कर मंत्र जप करें।
मंत्र:-ॐ नमो भगवते सप्त वदनाय षष्ट गोमुखाय,सूर्य रुपाय सर्व रोग हराय मुक्तिदात्रे

“को नहीं जानत जग में कपि सकंट मोचन नाम तिहारो ....”
कलियुग की शुरुआत होते ही सारे देवता इस भू लोक को छोड़ कर चले गए थे सिर्फ भैरव और हनुमान ही ऐसे देवता है जिन्होंने कलयुग में भू लोक पर निवास किआ ! इसलिए हनुमान लाला और भैरव महाराज दोनों की उपासना  कलयुग में उत्तम फल प्रदान करती है
जब भी ऐसी कोई समस्या हो आप किसी भी पात्र में जल ले ले और निम्न मंत्र से उसे अभिमंत्रित कर ले मतलब इसके दो तरीके हैं एक तो मंत्र जप करते समय अपने सीधे हाथ की एक अंगुली इस जल से स्पर्श कराये रखे या जितना आप को मंत्र जप करना हैं उतना कर ले और फिर पूरे श्रद्धा विस्वास से इस जल में एक फूंक मार दे ..
यह मन में भावना रखते हुए की इस मंत्र की परम शक्ति अब जल में निहित हैं .. और यह सब मानने की बात नहीं हैं अनेको वैज्ञानिक परीक्षणों से यह सिद्ध भी हुआ हैं की निश्चय ही कुछ तो परिवर्तन उच्च उर्जा का जल में समावेश होता ही हैं .
मंत्र :
ॐ नमो हनुमते पवन पुत्राय ,वैश्वानर मुखाय पाप दृष्टी ,घोर दृष्टी , हनुमदाज्ञा स्फुरेत स्वाहा ||

कम से कम १०८ बार मंत्र जप तो करे ही  और इस अभिमंत्रित जल को जो भी पीड़ित हैं उ स पर छिडके .. उसे भगवान् हुनमान की कृपा से निश्चय ही लाभ होना शुरू हो जायेगा और जो भी   इसे रोज करना चाहे उनके जीवन कि अनेको कठिनाई तो स्वत ही दूर होती जाएगी .. तो आवश्यक सावधानी जो की हनुमान साधना में होती हैं वह करते हुए कर सकते हैं .. 

हनुमान जी के संकट-नाशक अनुष्ठान

१॰  विनियोगः- ॐ अस्य श्री हनुमन्महामन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः, गायत्री छन्दः, हनुमान देवता, हं बीजं, नमः शक्तिः, आञ्जनेयाय कीलकम् मम सर्व-प्रतिबन्धक-निवृत्ति-पूर्वकं हनुमत्प्रसाद-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः- ईश्वर ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, हनुमान देवतायै नमः हृदि, हं बीजाय नमः नाभौ, नमः शक्तये नमः गुह्ये, आञ्जनेयाय कीलकाय नमः पादयो मम सर्व-प्रतिबन्धक-निवृत्ति-पूर्वकं हनुमत्प्रसाद-सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
करन्यासः- ॐ ह्रां आञ्जनेयाय अंगुष्ठाभ्यां नमः, ॐ ह्रीं महाबलाय तर्जनीभ्यां नमः, ॐ ह्रूं शरणागत-रक्षकाय मध्यमाभ्यां नमः, ॐ ह्रैं श्री-राम-दूताय अनामिकाभ्यां नमः, ॐ ह्रौं हरिमर्कटाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः, ॐ ह्रः सीता-शोक-विनाशकाय करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादिन्यासः- ॐ ह्रां आञ्जनेयाय हृदयाय नमः, ॐ ह्रीं महाबलाय शिरसे स्वाहा, ॐ ह्रूं शरणागत-रक्षकाय शिखायै वषट्, ॐ ह्रैं श्री-राम-दूताय कवचाय हुम्, ॐ ह्रौं हरिमर्कटाय नेत्र-त्रयाय वोषट्, ॐ ह्रः सीता-शोक-विनाशकाय अस्त्राय फट् ।
ध्यानः-
ॐ उद्यद्बालदिवाकरद्युतितनु पीताम्बरालंकृतं ।
देवेन्द्र-प्रमुख-प्रशस्त-यशसं श्रीराम-भूप-प्रियम् ।।
सीता-शोक-विनाशिनं पटुतरं भक्तेष्ट-सिद्धि-प्रदं ।
ध्यायेद्वानर-पुंगवं हरिवरं श्रीमारुति सिद्धिदम् ।।

निम्नलिखित मन्त्रों में से किसी एक मन्त्र का जप ६ मास तक नित्य-प्रति ३००० करना चाहिए -

१॰ “ॐ हं हनुमते आञ्जनेयाय महाबलाय नमः ।”
२॰ “ॐ आञ्जनेयाय महाबलाय हुं फट् ।”

२॰  “ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय महाभीमपराक्रमाय सकलशत्रुसंहारणाय स्वाहा।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय महाबलप्रचण्डाय सकलब्रह्माण्डनायकाय सकलभूत-प्रेत-पिशाच-शाकिनी-डाकिनी-यक्षिणी-पूतना-महामारी-सकलविघ्ननिवारणाय स्वाहा।
ॐ आञ्जनेयाय विद्महे महाबलाय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् (गायत्री)
ॐ नमो हनुमते महाबलप्रचण्डाय महाभीम पराक्रमाय गजक्रान्तदिङ्मण्डलयशोवितानधवलीकृतमहाचलपराक्रमाय पञ्चवदनाय नृसिंहाय वज्रदेहाय ज्वलदग्नितनूरुहाय रुद्रावताराय महाभीमाय, मम मनोरथपरकायसिद्धिं देहि देहि स्वाहा।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय महाभीमपराक्रमाय सकलसिद्धिदाय वाञ्छितपूरकाय सर्वविघ्ननिवारणाय मनो वाञ्छितफलप्रदाय सर्वजीववशीकराय दारिद्रयविध्वंसनाय परममंगलाय सर्वदुःखनिवारणाय अञ्जनीपुत्राय सकलसम्पत्तिकराय जयप्रदाय ॐ ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रूं फट् स्वाहा।”
विधिः-
सर्वकामना सिद्धि का संकल्प करके उपर्युक्त पूरे मन्त्र का १३ दिनों में ब्राह्मणों द्वारा ३३००० जप पूर्ण कराये। तेरहवें दिन १३ पान के पत्तों पर १३ सुपारी रखकर शुद्ध रोली अथवा पीसी हुई हल्दी रखकर स्वयं १०८ बार उक्त मन्त्र का जाप करके एक पान को उठाकर अलग रख दे। तदन्तर पञ्चोपचार से पूजन करके गाय का घृत, सफेद दूर्वा तथा सफेद कमल का भाग मिलाकर उसके साथ उस पान का अग्नि में हवन कर दे। इसी प्रकार १३ पानों का हवन करे।
तदन्तर ब्राह्मणों द्वारा उक्त मन्त्र से ३२००० आहुतियाँ दिलाकर हवन करायें। तथा ब्राह्मणों को भोजन कराये।

३॰  “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवते हनुमते मम कार्येषु ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यं साधय साधय मां रक्ष रक्ष सर्वदुष्टेभ्यो हुं फट् स्वाहा।”
विधिः-मंगलवार से प्रारम्भ करके इस मन्त्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करता रहे और कम-से-कम सात मंगलवार तक तो अवश्य करे। इससे इसके फलस्वरुप घर का पारस्परिक विग्रह मिटता है, दुष्टों का निवारण होता है और बड़ा कठिन कार्य भी आसानी से सफल हो जाता है।

४॰  “हनुमन् सर्वधर्मज्ञ सर्वकार्यविधायक।
अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तु ते।।”
या  “हनूमन्नञ्जनीसूनो वायुपुत्र महाबल।
अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तु ते।।”
विधिः- प्रतिदिन तीन हजार के हिसाब से ११ दिनों में ३३ हजार जप जो, फिर ३३०० दशांश हवन या जप करके ३३ ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाये। इससे अकस्मात् आयी हुई विपत्ति सहज ही टल जाती है।

हनुमान जी की साधना में ब्रम्हचर्य अनिवार्य है ! भोजन याम नियम की सावधानी बरते ! दशांश हवन करने से हनुमान जी सब कष्टो से मुक्ति देते है ! सारे ही मंत्र विलक्षण है बस नियमित जाप और हवन की आवश्यकता है

पीलिया रोग को झाड़ा मंत्र
५- “ॐ यो यो हनुमन्त फलफलित धग्धगिति आयुराष परुडाह ।”
प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखकर इस मंत्र का २५ माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है । इस मंत्र के द्वारा पीलिया रोग को झाड़ा जा सकता है ।

विष निवारण मंत्र
ॐ पश्चिम-मुखाय-गरुडासनाय पंचमुखहनुमते नमः मं मं मं मं मं, सकल विषहराय स्वाहा ।”
इस मन्त्र की जप संख्या १० हजार है, इसकी साधना दीपावली की अर्द्ध-रात्रि पर करनी चाहिए । यह मन्त्र विष निवारण में अत्यधिक सहायक है ।

ग्रह-दोष निवारण मंत्र
“ॐ उत्तरमुखाय आदि वराहाय लं लं लं लं लं सी हं सी हं नील-कण्ठ-मूर्तये लक्ष्मणप्राणदात्रे वीरहनुमते लंकोपदहनाय सकल सम्पत्ति-कराय पुत्र-पौत्रद्यभीष्ट-कराय ॐ नमः स्वाहा ।”
इस मन्त्र का उपयोग महामारी, अमंगल एवं ग्रह-दोष निवारण के लिए है ।

वशीकरण  मंत्र
“ॐ नमो पंचवदनाय हनुमते ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुं रुं रुं रुं रुं रुद्रमूर्तये सकललोक वशकराय वेदविद्या-स्वरुपिणे ॐ नमः स्वाहा ।”
यह वशीकरण के लिए उपयोगी मन्त्र है ।

भूत-प्रेत दोष निवारण मंत्र
“ॐ श्री महाञ्जनाय पवन-पुत्र-वेशयावेशय ॐ श्रीहनुमते फट् ।”
यह २५ अक्षरों का मन्त्र है इसके ऋषि ब्रह्मा, छन्द गायत्री, देवता हनुमानजी, बीज श्री और शक्ति फट् बताई गई है । छः दीर्घ स्वरों से युक्त बीज से षडङ्गन्यास करने का विधान है । इस मन्त्र का ध्यान इस प्रकार है -
आञ्जनेयं पाटलास्यं स्वर्णाद्रिसमविग्रहम् ।
परिजातद्रुमूलस्थं चिन्तयेत् साधकोत्तम् ।। (नारद पुराण ७५-१०२)
इस प्रकार ध्यान करते हुए साधक को एक लाख जप करना चाहिए । तिल, शक्कर और घी से दशांश हवन करें और श्री हनुमान जी का पूजन करें । यह मंत्र ग्रह-दोष निवारण, भूत-प्रेत दोष निवारण में अत्यधिक उपयोगी है ।

उदररोग नाशक मंत्र

“ॐ यो यो हनुमंत फलफलित धग्धगित आयुराषः परुडाह ।”
उक्त मन्त्र को प्रतिदिन ११ बार पढ़ने से सब तरह के पेट के रोग शांत हो जाते हैं ।
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💯✔ शाबर बगला मुखी शत्रु जिह्वा कीलन प्रयोग

आज जो मंत्र व् विधान बताने जा रहा हूँ वह दुर्लभ तो है ही साथ में तुरन्त परिणाम भी देने वाला है
मै स्वम् प्रयोगों को करके अनुभव करता हूँ फिर आप को बताता हूँ  अन्यथा नही ...
इस मंत्र का उत्पत्ति की कहानी भी बड़ी ही रोचक है
बंगाल में एक व्यक्ति था जो हकलाता था बात करते समय
इस समस्या का समाधान उसने अपने गुरु से पूछा
तो गुरु ने कहा की तेरी जिह्वा को बगला जी ही खिंच के ठीक कर सकती है
तू उसी देवी की उपसना कर
उनका बीज मंत्र यह है ( ह्लीं )
फिर क्या था
उसने गुरु से मंत्र व् विधान प्राप्त कर लग गया साधना करने
जब वोह जाप करने लगा तो हकलाने की वजह से ठीक से उच्चारण नहीं कर पाता था
वह एक बार बीज उच्चारण करने के लिए बहुत मेहनत करता था
।। हिलि हिलि हिलिम स्वाहा ।।
इस प्रकार से उच्चारण करता था किन्तु पूर्ण समर्पण के साथ
माँ को और चाहिए भी क्या ?
समर्पित है तो माँ को ओर कोई दोष नहीं दिखती
की वह उच्चारण सही किया की नहीं
माला फेरा की नहीं
स्टेप बाय स्टेप किया की नहीं
कुछ नही
माँ को बस समर्पण चाहिए होता है
बस फिर क्या था माँ आ गयी उसके सामने और बोलने लगी के
जा आजके बाद तू कभी हकलायेगा नही
यह सुनकर व् माँ को देखकर वह इतना भाव बिभोर हो गया की उसे यह सुध ही नहीं की माँ उस से बात कर रही हैं
माँ ने उसको चेताया
तो वह महान बगला उपासक बिना हकलाये कहने लगा की
माँ मुझे पहले जैसा ही बना दे
मुझे नहीं बोलना दुसरो की तरह
तो माँ ने पूछा ऐसा क्यों बोल रहा हैं ??
तूने जो मांगा वह तो तुझे दे दिया
तेरी साधना का फल स्वरुप तू अब कभी हकलायेगा नही
वह साधक अब माँ के सामने एक बच्चे की तरह रोने लगा और बोलने लगा
नहीं माँ मेरी हकलाहट की वजह से  तूने दर्शन दिए
मै इसे नही छोड़ सकता
तब माँ तारा ने जो ज्ञान दिया व् रहस्य खोले
सब सुनकर उसके होश उड़ गए
माँ ने कहा
बेटा तेरे गुरु ने जो मन्त्र दिया था तूने तो उसका एक बार भी जाप नही किया
जाप करने का प्रयास किया
और इसी प्रयास के दौरान तूने गुरु व् देव् भावना से पुटित
शाबर बगला मंत्र का रचना कर दिए
और मै उसी कारण ही प्रकट हुई
तूने  ( हिलि हिलि हिलिम स्वाहा )  जाप किया हर एक मनके पर
और जो फल मिलना चाहिए था तुझे मिल गया
किन्तु तेरे इस। समर्पण से मै प्रसन्न हूँ
आज तुझे एक वरदान देता हूँ
आज के बाद जो भी इस मंत्र का जप करेगा
उसके समस्त शत्रुओं की वाणी स्तंभित हो जायेगा
पीठ पीछे बुराई नहीं कर पायेगा व् विषम परिस्थितियो में उसकी सुरक्षा के लिए डाकिनियाँ पहुँच जायेंगे
इतना कहकर माँ अंतर्ध्यान हो गयी
वह उठा और भागते हुए गुरु जी के आगे पूरा वृतांत कह सुनाया तो गुरु जी ने उसे गले से लगा लिए
धीरे धीरे उसकी ख्याति चहुँ ओर फ़ैल गया
उसके गुरु के ब्रह्मलीन होने के बाद वह ही दीक्षा देता था लोगो को
किन्तु मंत्र वही देता था
।। हिलि हिलि हिलिम स्वाहा ।।
विधान ........
वस्त्र आसनी लाल
आसन सिद्धासन
दिशा उत्तर
माला रुद्राक्ष के
दिन कोई भी
समय कभी भी
अवधि जब तक आप की रूचि हो
कितनी माला जप ??
जितना ज्यादा आप आराम से कर सकते हो
पूजन मानसिक करना है
आप चाहे तो माँ की एक चित्र के सामने। द्वीप धुप जलाके सङ्कल्प कर जाप शुरू कर सकते है
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💯✔ घर के मंदिर में हो श्रीकृष्ण की मूर्ति तो न भूले ये 6 चीजें

श्री कृष्ण को प्रेम स्वरूप माना जाता है। ग्रंथों में कहा गया है कि श्री कृष्ण का व्यक्तित्व बहुत ही सम्मोहक है। वे पीलापीतांबर धारण करते हैं और उनके मुकुट पर मोर पंख है। श्री कृष्ण को छ: चीजों से बहुत प्रेम है, पहली बांसुरी जो हमेशा उनके होंठों से लगी रहती है। दूसरी गाय व तीसरी माखन मिश्री, चाैथा मोर पंख और पांचवा कमल और वैजयंती माला। ये छ: चीजें श्री कृष्ण को प्रिय होती है इसलिए जो भी श्री कृष्ण को ये चीजें अर्पित करता है। उसके घर में हमेशा सुख समृद्धि व ऐश्वर्य बना रहता है। आइए जानते हैं श्री कृष्ण को क्यों प्रिय है ये 6 चीजें….

👉1 मुरली या बांसुरी

कृष्ण को बांसुरी बहुत पसंद है, क्योंकि यह कान्हा को बहुत प्रिय है, इसके तीन मुख्य कारण हैं पहला बांसुरी एकदम सीधी होती है। उसमें किसी तरह की गांठ नहीं होती है। जो संकेत देता है कि अपने अंदर किसी भी प्रकार की गांठ मत रखों। मन में बदले की भावना मत रखो। दूसरा बिना बजाए ये बजती नहीं है। मानो बता रही है कि जब तक ना कहा जाए तब तक मत बोलो और तीसरा जब भी बजती है मधुर ही बजती है। जिसका अर्थ हुआ जब भी बोलो, मीठा ही बोलो। जब ऐसे गुण किसी में भगवान देखते हैं, तो उसे उठाकर अपने होंठों से लगा लेते हैं।

👉2 गाय

कहते हैं गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास होता है। साथ ही, यह सभी गुणों की खान है। गाय श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। गाय से प्राप्त गौ का मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी, आदि पंचगव्य कहलाते हैं। मान्यता है कि इनका पान कर लेने से शरीर के भीतर पाप नहीं ठहरता। इसलिए घर के मंदिर में कृष्ण जी के साथ ही गाय व बछड़ा भी रखना चाहिए।

👉3 मोरपंख 

मोर का पंख देखने में बहुत सुंदर होता है। इसलिए इसे सम्मोहन का प्रतीक माना जाता है। मोर को चिर-ब्रह्मचर्य युक्त प्राणी समझा जाता है।  इसलिए श्री कृष्ण मोर पंख धारण करते हैं। मोर मुकुट का गहरा रंग दु:ख और कठिनाइयों, हल्का रंग सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

👉कमल

कमल कीचड़ में उगता है और उससे ही पोषण लेता है, लेकिन हमेशा कीचड़ से अलग ही रहता है। इसलिए कमल पवित्रता का प्रतीक है। इसकी सुंदरता और सुगंध सभी का मन मोहने वाली होती है। साथ ही कमल यह संदेश देता है कि हमें कैसे जीना चाहिए? सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन किस प्रकार जिया जाए इसका सरल तरीका बताता है कमल।

👉मिश्री अौर माखन

कान्हा को माखन मिश्री बहुत ही प्रिय है। मिश्री का एक महत्वपूर्ण गुण यह है कि जब इसे माखन में मिलाया जाता है, तो उसकी मिठास माखन के कण-कण में घुल जाती है। उसके प्रत्येक हिस्से में मिश्री की मिठास समा जाती है। मिश्री युक्त माखन जीवन और व्यवहार में प्रेम को अपनाने का संदेश देता है। यह बताता है कि प्रेम में किसी प्रकार से घुल मिल जाना चाहिए।

👉वैजयंती माला

भगवान के गले में वैजयंती माला है, जो कमल के बीजों से बनी हैं। दरअसल, कमल के बीज सख्त होते हैं। कभी टूटते नहीं, सड़ते नहीं, हमेशा चमकदार बने रहते हैं। इसका तात्पर्य है, जब तक जीवन है, तब तक ऐसे हमेशा प्रसन्न रहाे। दूसरा यह माला बीज है, जिसकी मंजिल होती है भूमि। भगवान कहते हैं जमीन से जुड़े रहो, कितने भी बड़े क्यों न बन जाओ। हमेशा अपने अस्तित्व की असलियत के नजदीक रहो।
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💯✔ आईना बना सकता है आपको मालामाल

दर्पण या आइना हमें हमारे व्यक्तित्व की झलक दिखाता है। उसके बिना अच्छे से सजने-संवरने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आइना कहां लगाना चाहिए और कहां नहीं इस संबंध में विद्वानों और वास्तुशास्त्रियों द्वारा कई महत्वपूर्ण बिंदू बताए हैं। इनका सही ढंग से उपयोग हमें लकी बना सकता है, जानें कैसे...

कैसे करें आईने का उपयोग

इस बात का खास खयाल रखा जाना चाहिए कि आईना टूटा-फूटा , नुकीला , चटका हुआ , धुंधला या गंदा न हो और उसमें प्रतिबिंब , लहरदार या टेढ़ा-मेढ़ा न दिखाई दे। हमारी शक्ल को ठीक ढंग से न दिखाने वाला दर्पण हमारे प्रभामंडल यानी ' ऑरा ' को प्रभावित करता है और ऐसे आईने के लंबे समय तक , लगातार इस्तेमाल से नेगेटिव एनर्जी पैदा होती है।

कैसे करें आईने का उपयोग

भोजन कक्ष में रखे हुए बड़े आईने अथवा दीवार पर लगे आईने, ऊर्जा के अद्भुत स्रोत साबित हुए हैं। भोजन करने के लिए फेंगशुई भाग्य अर्जित करने का यह बहुत ही अच्छा उपाय है। डाइनिंग टेबल को प्रतिबिंबित करने वाला आईना डाइनिंग टेबल पर रखे खाने के दुगुने होने का आभास कराता है। डाइनिंग टेबल के सामने आईना फेंगशुई में अच्छा माना जाता है।

कैसे करें आईने का उपयोग

वास्तु के मुताबिक दर्पण का फ्रेम भी काफी अहम होता है। दर्पण का अपना असर इतना ज्यादा होता है कि यह जहां भी इस्तेमाल किया जाता है वहां की ऊर्जा को दोगुना कर सकता है , इसलिए फ्रेम का रंग कभी भी गर्म , तीखा या भड़कीला नहीं होना चाहिए। सुर्ख लाल , गहरे नारंगी या गुलाबी रंग के फ्रेम के इस्तेमाल से बचा जाना चाहिए। इसकी बजाए अगर फ्रेम नीला , हरा , सफेद , क्रीम या ऑफ व्हाइट हो तो बहुत अच्छा रहता है।

कैसे करें आईने का उपयोग

दर्पण हमेशा उत्तर अथवा पूर्व दिशा की ओर लगाए जाने पर ही शुभ होते है. दर्पण जितने हलके और बड़े होंगे, उनका प्रभाव उतना ही अधिक होगा. उत्तर और पूर्व की दीवार पर गोल दर्पण कभी नहीं लगाना चाहिए क्योंकि गोल दर्पण में समस्त सारी ऊर्जा उसके निचले बिंदु पर केंद्रित हो जाती है. जो भार वजन का प्रतिनिधित्व करती है.

कैसे करें आईने का उपयोग

भवन में नुकीले व् तेजधार वाले दर्पण नहीं लगाने चाहियें. ये हानिकारक होते है. दर्पण का टूटना अशुभ माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि कोई मुसीबत इस दर्पण पर टल गयी है. टूटे दर्पण को तुरंत ही फेंक देना चाहिए.

कैसे करें आईने का उपयोग

दर्पण के संबंध में एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बेड रूम में आइना लगाना अशुभ है। ऐसा माना जाता है कि इससे पति-पत्नी को कई स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां झेलनी पड़ती है। यदि पति-पत्नी रात को सोते समय आइने में देखते हैं तो इसका उनकी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह वास्तु दोष ही है। इससे आपके आर्थिक पक्ष पर बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही पति-पत्नी दोनों को दिनभर थकान महसूस होती है, आलस्य बना रहता है।

कैसे करें आईने का उपयोग

दुकानों और शोरूमों की छत पर दर्पण लगाने की परम्परा आधुनिक युग में है. दूकान और शोरूम के ईशान और मध्य में छत पर दर्पण नहीं लगाना चाहिए. अगर दर्पण फ्रेम कहीं से टूट-फूट जाए या उसकी लकड़ी गिर जाए तो उसे जल्द से जल्द ठीक करवाना चाहिए।

कैसे करें आईने का उपयोग

दर्पण का निगेटिव प्रभाव कम करने के लिए उन्हें ढक कर रखना चाहिए अथवा इन्हें अलमारियों के अन्दर की ओर लगवाने चाहिए। पलंग पर सो रहे पति-पत्नी को प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण तलाक तक का कारण बन सकता है। इसलिए रात्रि के समय दर्पण दृष्टि से ओझल होना चाहिए।

कैसे करें आईने का उपयोग

भवन में छोटी और संकुचित जगह पर दर्पण रखना चमत्कारी प्रभाव पैदा करता है। कमरें में दरवाजे के अंदर की ओर दर्पण नहीं लगाना चाहिए.

कैसे करें आईने का उपयोग

दर्पण कहीं लगा हो उसमें शुभ वस्तुओं का प्रतिबिंब होना चाहिए। दर्पण को खिड़की या दरवाजे की ओर देखता हुआ न लगाएँ। उत्तर दिशा की दीवार में लगाए गए दर्पण से आने वाली ऊर्जा घर के सदस्यों को सुरक्षित रखती है।

कैसे करें आईने का उपयोग

अगर आपका ड्रॉइंग रूम छोटा है तो चारों दीवारों पर दर्पण के टाइल्स लगाएँ, लगेगा ही नहीं कि आप अतिथियों के साथ छोटे से कमरे में बैठे हैं।

कैसे करें आईने का उपयोग

कमरे के दीवारों पर आमने सामने दर्पण लगाने से घर के सदस्यों में बेचैनी और उलझन होती है। दर्पण को मनमाने आकार में कटवाकर उपयोग में न लाएँ।

कैसे करें आईने का उपयोग

यदि घर के बाहर इलेक्ट्रिक पोल, ऊँची इमारतें, अवांछित पेड़ या नुकीले उभार हैं और आप उनका दबाव महसूस कर रहे हैं तो उनकी तरफ उत्तल दर्पण रखें।

कैसे करें आईने का उपयोग

किसी भी दीवार में आईना लगाते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि वह न एकदम नीचे हो और न ही अधिक ऊपर अन्यथा परिवार के सदस्यों को सिर दर्द हो सकता है।

कैसे करें आईने का उपयोग

मकान के ईशान कोण में उत्तर या पूर्व की दीवार पर‍ स्थित वॉश बेसिन के ऊपर दर्पण भी लगाएँ यह शुभ फलदायक है।

कैसे करें आईने का उपयोग

यदि आपके घर के दरवाजे तक सीधी सड़क आ रही है और दरवाजा हटाना संभव नहीं है तो दरवाजे पर पाखुँआ दर्पण लगा दें। यह बेहद शक्तिशाली वास्तु प्रतीक है। अत: इसे लगाने में सावधानी रखना चाहिए। इसे किसी पड़ोसी के घर की ओर केंद्रित करके न लगाएँ।

कैसे करें आईने का उपयोग

फैक्ट्री में भी दक्षिण-पश्चिम की दीवार पर लगा दर्पण व्यापार में घाटा लाता है इस दर्पण को तुरंत हटा दें या कागज लगा कर आवरण लगा दे. ऐसा करने से घाटे और कर्ज से भी बचे रहेंगे.

कैसे करें आईने का उपयोग

मकान का कोई हिस्सा असामान्य शेप का या अंधकारयुक्त हो तो वहाँ गोल दर्पण रखें। घर के मध्य भाग में दर्पण धन के नाश का रास्ता खोलता है इसे तुरंत ही हटा दे.

कैसे करें आईने का उपयोग

बेसमेन्ट के उत्तर-पूर्व (ईशान) कोण, उत्तर की पूर्व की ओर की आधी दीवार, पूर्व की उत्तर की ओर की आधी दीवार, उत्तर-पूर्व दोनों की ईशान कोण की दीवारों पर दर्पण लक्ष्मी को खींच लाने में समर्थ होते है. यहाँ पर धन बरसने लगता है.

कैसे करें आईने का उपयोग

पूर्व व उत्तर की ओर के कोने में अन्दर को अलमारी बना कर उसमे पूर्वी या उत्तरी खाने में कई दर्पण लगाने से भी लाभ बहुत अधिक होता ह़ै.

कैसे करें आईने का उपयोग

6 साइड वाला (षट कोण) व 8 साइड वेल (अष्ट कोण) का दर्पण पूर्व-उत्तर की ओर लगाने से भारी धन लाभ होता है लक्ष्मी वहीं पर वास करने लगती है. एक बात अवश्य ध्यान रखे कि यही षट कोण व अष्ट कोण का दर्पण बाकी दिशाओं में हानि कारक रहेगा.

कैसे करें आईने का उपयोग

  अष्ट कोण (8 साइड) दर्पण को पैसेज/गलियारे में या ड्राइंग रूम में लगायें यह आठों दिशाओं की उर्जा का प्रतीक है.

कैसे करें आईने का उपयोग

दक्षिण-पूर्व अर्थात अग्नि कोण में दर्पण लगाना ठीक नही होता इससे अग्नि लगने का भय या दुर्घटना की संभावनाए बनी रहती है. यहाँ से दर्पण हटा दें या फिर उस पर वाल पेपर लगा दें.
___________
💯✔मंदी से छुटकारा पाएं ऐसे....
अगर आपके व्यापार में मंदी आ गयी है या नौकरी में मंदी आ गयी है तो यह करें। किसी साफ़ शीशी में सरसों का तेल भरकर उस शीशी को किसी तालाब या बहती नदी के जल में डाल दें। शीघ्र ही मंदी का असर जाता रहेगा और आपके व्यापार में जान आ जाएगी।

💯✔भाग्योदय करने के लिए करें यह उपाय....

अपने सोए भाग्य को जगाने के लिए आप प्रात सुबह उठकर जो भी स्वर चल रहा हो, वही हाथ देखकर तीन बार चूमें, तत्पश्चात वही पांव धरती पर रखें और वही कदम आगे बाधाएं। ऐसा नित्य-प्रतिदिन करने से निश्चित रूप से भाग्योदय होगा।

💯✔नौकर न टिके या परेशान करे तो....
हर मंगलवार को बदाना (मीठी बूंदी) का प्रशाद लेकर मंदिर में चढा कर लडकियों में बांट दें ! ऐसा आप चार मंगलवार करें !

💯✔भूत-प्रेत और जादू-टोना से बचने के लिए....
मोर पंख को अगर ताबीज में भर के बच्चे के गले में डाल दें, तो उसे भूत-प्रेत और जादू-टोने की पीड़ा नहीं रहती।

💯✔क्रोध पर नियंत्रण हेतु....
यदि घर के किसी व्यक्ति को बात-बात पर गुस्सा आता हो, तो दक्षिणावर्ती शंख को साफ कर उसमें जल भरकर उसे पिला दें। यदि परिवार में पुरुष सदस्यों के कारण आपस में तनाव रहता हो, तो पूर्णिमा के दिन कदंब वृक्ष की सात अखंड पत्तों वाली डाली लाकर घर में रखें। अगली पूर्णिमा को पुरानी डाली कदंब वृक्ष के पास छोड़ आएं और नई डाली लाकर रखें। यह क्रिया इसी तरह करते रहें, तनाव कम होगा।

💯✔ग्रहों के देवता....
सूर्य के देवता विष्णु, चन्द्र के देवता शिव, बुध की देवी दुर्गा, ब्रहस्पति के देवता ब्रह्मा, शुक्र की देवी लक्ष्मी, शनि के देवता शिव, राहु के देवता सर्प और केतु के देवता गणेश। जब भी इन ग्रहों का प्रकोप हो तो इन देवताओं की उपासना करनी चाहिए।

💯✔अपने घर-गृहस्थी को बनाएं सुखी...
अक्सर हम गृहस्थ जीवन में देखते हैं तो गृहस्थ का सामान टूट-फूट जाता है या सामान चोरी हो जाता है। जो भी आता है असमय ही ख़त्म हो जाता है। रसोई में बरकत नहीं रहती है तो ऐसी स्त्रियाँ भोजन बनाने के बाद शेष अग्नि को न बुझाएं और जब सब जलकर राख हो जाए तो राख को गोबर में मिलाकर रसोई को लीप दें। फर्श हो तो उस राख को पानी में घोलकर उसी पानी से फर्श डालें। यह क्रिया कई बार करें। घर-गृहस्थी का छोटा-मोटा सामान, गिलास, कटोरी, चम्मच आदि सदैव बने रहेंगे।

💯✔बालक की दीर्घायु के लिये....
बालक को जन्म के नाम से मत पुकारें।

पांच वर्ष तक बालक को कपडे मांगकर ही पहनाएं।

3 या 5 वर्ष तक सिर के बाल न कटाएं।

उसके जन्मदिन पर बालकों को दूध पिलाएं।

बच्चे को किसी की गोद में दे दें और यह कहकर प्रचार करें कि यह अमुक व्यक्ति का लड़का है।

💯✔भय को दूर करें ऐसे....
अगर आपको बिना कारण भय रहता हो या सांप-बिच्छू या वन्य पशुओं का भय रहता हो तो यह करें : बांस की जड़ जलाकर उसे कान पर धारण करने से भय मिट जाता है। निर्गुन्डी की जड़ अथवा मोर पंख घर में रख देने से सर्प कभी भी घर में प्रवेश नहीं करता। रवि-पुष्य योग में प्राप्त सफ़ेद चादर की जड़ लाकर दाईं भुजा पर बाँधने से वन्य पशुओं का भय नहीं रहता है साथ ही अग्नि भय से भी छुटकारा मिल जाता है। केवड़े की जड़ कान पर धारण करने से शत्रु भय मिट जाता है।

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